वह तोड़ती पत्थर... देखा उसको 'कारिडोर' के अंदर ...!
याद आ गये महाकवि निराला ...

उज्जैन। आगामी 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री का आगमन होने वाला है। जिसको लेकर शासन-प्रशासन व मंदिर प्रबंधन हाई अलर्ट पर है। व्यवस्थाओं का निरीक्षण और ... क्या होगा ... कैसे होगा... को लेकर योजनाएं बनाई जा रही है। इसी कड़ी में आज त्रिवेणी संग्रहालय में 3 केबिनट मंत्रियों ने बैठक ली थी। जिसके बाद प्रेस कांफ्रेंस होनी थी। इंतजार के दौरान कारिडोर घूमा। जहां पर महिलाओं को पत्थर पर सरिये ठोकते देख, बरबस ही महाकवि निराला की कविता याद आ गई। वह तोड़ती पत्थर... देखा मैने उसे इलाहबाद के पथ पर... !
करोड़ों की लागत से बने महाकाल वन कारिडोर के फेज-1 का शुभारंभ 11 अक्टूबर को होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करकमलो से। जिसको लेकर आज बैठक थी। जिसमें वित्त मंत्री जगदीश देवडा, नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्रसिंह और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव के अलावा सांसद अनिल फिरोजिया, महापौर मुकेश टटवाल, संभागायुक्त, कलेक्टर, एसपी आदि शामिल थे। मीडिया बाहर थी। प्रेस कांफ्रेंस में वक्त था। इसलिए कारिडोर घूमते हुए मजदूर महिलाएं नजर आई। जो कि अपने हाथ में सरिया पकड़कर, पत्थरों पर ठोक रही थी। इस खट-खट की आवाज ने ही ध्यान आकर्षित किया। पास जाकर देखा तो महिलाओं की पीडा समझ में आ गई। हर 2 से 5 मिनिट में वह अपने हाथों के दस्ताने उतार रही थी। उनको जो पीडा हो रही थी, वह वही समझ सकता है, जो मानवीयता के नजरिये से उनको देखता।
घर से लाये है ...
यह तस्वीर गौर से देखिए। जिसमें कपड़ो के दस्ताने और नजदीक ही रखा एक सरिया नजर आ रहा है। इस सरिये को पकडऩे के लिए इन दस्तानों का उपयोग मजदूर महिलाएं करती है। क्योंकि ठोकते-ठोकते सरिया गर्म हो जाता है और जलन का अहसास होता है। इससे बचने के लिए ही यह दस्ताने पहनती है। मगर हर 5 मिनिट के अंदर सरिया इतना गर्म होता है कि इन दस्तानों के बाद भी हाथों में जलन होने लगती है। इसकी एक मात्र वजह यह है कि ठेकेदार द्वारा मजदूर महिलाओं को गुणवत्ता वाले स्पंजदार दस्ताने नहीं दिये गये है। जो दस्ताने पहनकर महिलाएं काम कर रही है, वह भी उनकी निजी संपत्ति है। ठेकेदार ने बस ... सरिया पकड़ा दिया। ठोको और Covle( कोवल) स्टोन पर लगी सीमेंट को खुरचो। अब सवाल यह है कि करोड़ो रूपये खर्च करके कारिडोर बना है। तो क्या इन महिलाओं के हाथों को सुरक्षित रखने के लिए ठेकेदार द्वारा बेहतर दस्ताने नहीं दिये जा सकते थे? जिससे मजदूर महिलाओं को पीडा नहीं होती? (देखे वीडियों)।
यह नजारा देखकर ही महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की कविता याद आ गई थी। जिसमें हमने इलाहबाद के पथ पर की जगह ... कारिडोर के अंदर शब्द फिट कर दिया। जिसके लिए निराला जी की आत्मा और उनके प्रशंसकों से हम माफी चाहते है।