14 अप्रैल 2025 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का |

14 अप्रैल 2025 (हम चुप रहेंगे)

अनोखी गुहार...

अपने विकासपुरूष से हर कोई गुहार लगाता है। आमजनता का हक भी हैजिसे विकासपुरूष पूरा भी करते है। मगर पहली दफा अनोखी गुहार सुनने को मिल रही है। वह भी संकुल के गलियारों से। गुहार लगाने वाले प्रशासनिक अधिकारीगण है। जो दबी जुबान से यह गुहार लगा रहे है। अपनी चटक मैडम जी को जितना जल्दी हो सके। किसी जिले का मुखिया बना दो। अब सवाल यह है कि ऐसी गुहार क्यों लगाई जा रही है। तो सोमवार को हुई बैठक का उदाहरण दिया जा रहा है। वैसे यह साप्ताहिक बैठक अपने दूसरे माले के मुखिया लेते है। पिछले सप्ताह वह करीब 20 मिनिट देरी से आये। उनकी जगह अपनी चटक मैडम जी आ गई। आकर सीधे जिले के मुखिया की कुर्सी पर विराजमान हो गई। जबकि नियम यही है कि बॉस की कुर्सी पर कोई मातहत नहीं बैठता है। बल्कि उसके बगल वाली कुर्सी पर बैठकर मीटिंग लेता है। किन्तु चटक मैडम जी ने उसी कुर्सी पर बैठकर बैठक लेनी शुरू कर दी। यह नजारा देखकर वहां मौजूद सभी अधिकार आश्चर्य में थे। हालांकि थोड़ी देर बाद दूसरे माले के मुखिया आ गये। मैडम जी को कुर्सी से उठना पड़ा। जिसके बाद ही प्रशासनिक अधिकारी यह अनोखी गुहार लगा रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

तिल का ताड़ ....

इस कहावत का सीधा-सीधा अर्थ यह है। छोटी से बात का बतंगड बनाना। अपनी चटक मैडम जी ने यही किया। घटना उस दिन की है। जब दूसरे माले के मुखिया देश की राजधानी गये थे। उसी दिन रेलवे की एक टीम आई थी। जिसको दौरा कराने की जिम्मेदारी सहायक यंत्री पर थी। जो शिवाजी भवन में पदस्थ है।  उनकी अचानक तबीयत खराब हो गई। फोन बंद मिला। बाहर से आई टीम ने मैडम से संपर्क किया। बस टीम से यह गलती हो गई। मैडम ने इस बात का तिल से ताड बना दिया। उन्होंने सीधे दूसरे माले के मुखिया को सूचना दी। जहां से स्मार्ट पंडित तक सूचना गई। पंडित जी ने किसी दूसरे से समन्वय करा दिया। इसके बाद मामला शांत हो जाना था। लेकिन इसके उलट हुआ। यह शिकायत तीसरे माले के मुखिया तक पहुंच गई। उन्होंने भी स्मार्ट पंडित से सवाल किया। कार्रवाई करने के निर्देश दिये। नतीजा ... सहायक यंत्री के निलंबन का प्रस्ताव भिजवा दिया गया। यहां पर तीसरे माले के मुखिया ने संवेदना दिखाई । स्मार्ट पंडित को सलाह दी। निलंबन करना ठीक नहीं है। शोकाज नोटिस देकर मामला निपटा दो। पंडित जी ने सलाह मान ली। जिसके बाद तीसरे माले पर तिल का ताड बनाने की चर्चा सुनाई दे रही है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

धूल झोंकना...

कमलप्रेमी संगठन स्थापना दिवस मना रहा है। किस दिन- क्या-क्या करना है। इसको लेकर पत्र जारी हुआ है। पाइंट नंबर 6 और 7 में साफ लिखा है। सक्रिय कार्यकर्ता दिवस मनाना होगा। सभी सदस्यों को आमंत्रण देकर बुलाना है। यह कार्यक्रम 8 अप्रैल को होना था। मगर पिस्तौलकांड नायक ने सबकी आंखो में धूल झोक दी। उन्होंने 5 अप्रैल को ही यह सम्मेलन मना लिया। वह भी हींग लगे ना फिटकरी की तर्ज पर। 5 को प्रदेश के उप मुख्यमंत्री आये थे। एक भूमिपूजन करने। कार्यक्रम सरकारी था। जिसका फायदा उठाया गया। मुख्य अतिथि के आगमन से पहले मंच पर एक बैनर लगा दिया। सक्रिय कार्यकर्ता सम्मेलन। फोटो खिचवा लिए। पोस्ट भी अपलोड कर दी। बस हो गया संगठन के आदेश का पालन। नतीजा कमलप्रेमी खुलकर बोल रहे है। इसे कहते है आंखो में धूल झोंकना। संभवत: यह बात ऊपर तक भी पहुंची। तभी तो रविवार को फिर से सक्रिय कार्यकर्ता सम्मेलन बुलाया गया। कमलप्रेमी मुख्यालय पर। जिसमें भीड दिखाने वाली रही। ऐसा कमलप्रेमियों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

मुझे मार ...

यह कहावत पाठकों को याद होगी। आ बैल मुझे मार। जिसे इन दिनों वर्दी वाले दबी जुबान से बोल रहे है। इशारा विशाखा समिति की जांच की तरफ है। इस कांड में वर्दी की जल्दबाजी ने उस कहावत को चर्चा में ला दिया। जो ऊपर लिखी गई है। अंदरखाने की खबर है। जिन धाराओं में ताबड़-तोड प्रकरण दर्ज किया गया। अब उसे साबित करना वर्दी के लिए जी का जंजाल साबित हो रहा है। सूत्रों का कहना है। शिकायत मिलते ही वर्दी एक्टिव हो गई थी। निर्देश दिये गये। ठोक-बजाकर प्रकरण बनाओं। जांच अधिकारी व दो राजपत्रित अधिकारी की देखरेख में रिपोर्ट तैयार हुई। सोशल मीडिया पर उसकी कापी शीर्ष अधिकारी को भेजी गई। यहीं से आ बैल मुझे मार कहावत ने इंट्री ली। वर्दी ने ठोक-बजाकर प्रकरण बनाया। इस बीच कही से फोन आ गयानिर्देश मिले कि देखभाल और सच का पता लगाकर ही कायमी करना। शीर्ष अधिकारी ऊपर से मिले निर्देश का पालन करते, तब तक उन धाराओं में प्रकरण दर्ज हो गया। जिसको साबित करना वर्दी के लिए असंभव है। नतीजा .... निगाहें जिज्जी की रिपोर्ट की तरफ है। उनकी रिपोर्ट पर ही वर्दी की लाज टिकी है। देखना यह है कि जिज्जी की रिपोर्ट क्या खुलासा करती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

प्रतिज्ञा ...

अपने विकासपुरूष ने प्रतिज्ञा ली थी। करीब 20 साल पहले। जब भी अवसर आयेंगा। वह महाकाल की नगरी में विकास की गंगा बहा देंगे। बाबा ने भी उनकी प्रतिज्ञा की लाज रखी। सूबे का मुखिया बना दिया। तभी तो विकास की गंगा धीरे-धीरे मूर्तरूप में नजर आने लगी है। विकास के रास्ते में आने वाली हर बाधा को हटाया जा रहा है। संकुल और शिवाजी भवन मिलकर काम कर रहे है। किन्तु प्रतिज्ञा में बाधक संगठन के ही दूसरे दल बन रहे है। अधिकारियों को खुलेआम धमकी देते है। सोशल मीडिया पर नागदेवता से डरने का श्राप तक दे  रहे है। जबकि एक दिन पहले बैठक हुई थी। अपने फटाफट जी की मौजूदगी में । सभी पक्षों ने सहमति दी। नतीजा ... भय्या और जिज्जी सुबह 4 बजे कार्रवाई करने पहुंच गये। सुबह से शाम और फिर रात हो गई। तब जाकर सफलता मिली। लेकिन अब अधिकारियों में निराशा का माहौल है। कारण ... अभी 52 स्थल और हटाने है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो विकासपुरूष की प्रतिज्ञा कैसे पूरी होगी। अधिकारियों की बात सही है। देखना यह है कि विकासपुरूष अब कौनसा रास्ता निकालते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है। 

मंथन ...

हमारा इशारा समुद्र मंथन की तरफ नहीं है। जिसम रत्न, विष और अमृत निकला था। हम तो बौद्धिक मंथन की बात कर रहे है। जो कि गुरूवार की दोपहर में हुआ। वह भी 60 मिनिट से ज्यादा। बंद कमरे में यह मंथन हुआ। अपने विकासपुरूष और बड़े प्रचारक जी के बीच में। बगल के कमरे में तीसरे व दूसरे माले के मुखिया, कप्तान जी, चटक मैडम जी, स्मार्ट पंडित, इंदौरीलाल और हिटलर जी इंतजार करते रहे। इस मंथन के लिए विकासपुरूष पैदल चलकर गये थे। उनके वीआईपी गेस्ट हाउस से चंद कदम की दूरी पर। जहां पर प्रचारक जी इंतजार कर रहे थे। बंद कमरे की बैठक में क्या चर्चा हुई। इसका खुलासा कोई माई का लाल नहीं कर सकता है। केवल प्रचारक जी और विकासपुरूष को ही पता है। 60 मिनिट तक क्या मंथन हुआ। किन्तु कयास लगाये जा रहे है। जल्दी ही होने वाले प्रशासनिक फेरबदल को लेकर चर्चा हुई है। फैसला सूची आने पर होगा।  तब तक इस मंथन को लेकर हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

तलाश ...

शायद हमारे पाठकों को याद होगा?  हमने तलाश शीर्षक से लिखा था। अपने फटाफट जी को तलाश है। एक मोची की। जिसके लिए खूब कोशिश की। किन्तु उनकी यह तलाश पूरी अभी तक नहीं हो पाई है। नतीजा ... झाडू लगाने वाले कर्मचारी को ही यह जिम्मेदारी फिलहाल दी गई है। हालांकि उनकी दूसरी तलाश पूरी हो गई है। एक बड़े बंगले की। फटाफट जी को एक बंगला पसंद आ गया है। आर्थिक मामले पकडऩे वाले मुखिया का। जिसमें क्या-क्या काम करना है। उसके लिए निर्देश दे दिये है। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

मुफ्त का चंदन ...

बड़ी मशहूर कहावत है। मुफ्त का चंदन- घिस मेरे नंदन। यह कहावत मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। जिसमें इशारा एक वाहन के दूसरे जिले में जाने की तरफ है। वाहन में डीजल मंदिर की दान राशि से लिया जाता है। यह वाहन भोपाल जाने वाले मार्ग पर हर सप्ताह जाता है। शुक्रवार के दिन। जहां से एक अधिकारी इसमें सवार होकर आती है। सोमवार को वापस वाहन छोडऩे जाता है। तभी तो मुफ्त का चंदन ....कहावत को याद किया जा रहा है। इसके साथ यह भी बोला जा रहा है। जो कोई भी फटाफट उस वाहन का नंबर बताएगा- वह ईनाम पाएगा। ईनाम कितना होगा। इसको लेकर बोलने वाले चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

बंटी-बबली ...

मंदिर के गलियारों में बंटी-बबली की इन दिनों चर्चा है। यह बंटी-बबली विशेषतौर पर व्यवस्था सुधारने के लिए भेजे गये थे। लेकिन दोनों ही व्यवस्था के बदले फोटो खिचवाने और रील डालने में व्यस्त रहते है। ऐसा हम नहीं कह रहे है। बल्कि मंदिर वाले दबी जुबान से बोल रहे है। लेकिन बंटी-बबली कौन है। इसको लेकर सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

नहीं रोकते तो ...

घटना करीब 10 दिन पुरानी है। घटनास्थल कमलप्रेमी मुख्यालय है। जहां पर 2 कमलप्रेमी उपाध्यक्ष भिड गये। विवाद के समय अपने दाल वाले नेताजी व अन्य मौजूद थे। सभी ने मिलकर हाथापाई की नौबत आने से पहले रोक दिया। जिनमें विवाद हुआ। उनमें एक श्रीमंत समर्थक है। कमलप्रेमी बने ज्यादा साल नहीं हुए है। जबकि दूसरे पुराने कमलप्रेमी है। विकासपुरूष के कट्टर समर्थक है। पुराने उपाध्यक्ष का अपने ही एक सहयोगी से व्यापारिक विवाद हो गया था। जिससे विवाद हुआ, उसने हवाई फायर कर दिये थे?  ऐसी चर्चा कमलप्रेमियों के बीच है। यह घटना करीब 30 दिन पुरानी है। इसी घटना को लेकर अपने दाल वाले नेताजी ने पुराने उपाध्यक्ष से कुछ पूछ लिया। जिसको लेकर पुराने कमलप्रेमी को शंका हो गई। श्रीमंत समर्थक उपाध्यक्ष पर। उनको लगा कि यही इस घटना को तूल दे रहे है। बस फिर क्या था। दोनों के बीच पहले तू तू -मैं मैं और फिर हाथापाई की नौबत आ गई। यह देखकर वहां मौजूद कमलप्रेमियों ने बीच बचाव किया। अगर नहीं रोकते तो विवाद बढ जाता। ऐसा हम नहीं, बल्कि अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। जो कि सच बोलते है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

शिकायत ...

शायद यह दूसरी या तीसरी शिकायत है। जो कि उडनखटोले के उतरने वाले पाइंट से हुई है। जब-जब विकासपुरूष का आगमन होता है। नियमानुसार पानी सहित बाकी व्यवस्था पहले ही हो जाना चाहिये। सीधी भाषा में किसी को याद नहीं दिलाना पड़े। यह व्यवस्था अधूरी है। किन्तु इसके उलट हो रहा है। हर दफा याद दिलाना पड़ता है। प्रशासन के सोशल मीडिया ग्रुप पर लिखकर। कारकेट लग चुका है। लेकिन पानी की व्यवस्था अभी तक नहीं हो पाई है। उसके बाद ही पानी की व्यवस्था होती है। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

स्वागत है ...

बाबा महाकाल की नगरी में नये कलेक्टर रौशनसिंह का स्वागत है। श्री सिंह इसके पहले नगर निगम आयुक्त रह चुके है।