मंगलवार को समझाया: बुधवार को हटाया ...!

अजीब इत्तेफाक....

मंगलवार को समझाया: बुधवार को हटाया ...!

उज्जैन। कालो के काल- बाबा महाकाल ... भूलोक के अधिपति - अवंतिकानाथ ... कब और कैसे न्याय करते है। इसको कोई नहीं समझ सकता है। उनकी तीसरी पलक कब खुल जाये, वह भी जरा सी। इसकी भनक किसी को नहीं लगती है। लेकिन अपनी पलक खोलने से पहले दयालू बाबा महाकाल पूरा मौका देते है। सुधरने का ... अपनी गलतियों पर पश्चताप करने का। इसके बाद भी अगर कोई नहीं सुधरता है। तो दंड देने में देर नहीं लगाते है। बेआबरू होकर पद से हटाये गये प्रशासक को लेकर मंदिर के गलियारों में यही चर्चा है। तभी तो हर कोई बोल रहा है। मंगलवार को समझाया: बुधवार को हटाया ...!

आखिरकार महाकाल महाराज ने अपने तीसरे नेत्र को बुधवार के दिन जरा सा खोल ही दिया। तभी तो जिस घडी का मंदिर के गलियारों में लंबे समय से इंतजार था। वह शुभ घडी आ गई। बुधवार की दोपहर बाद गणेश धाकड को प्रशासक पद से रवानगी दे दी गई। जबकि उनकी  उच्च स्तर तक गहरी पकड थी और ख्वाब 2027 तक इस पद पर  रहने के  थे। लेकिन 1 साल होते ही उनकी विवादित कार्यप्रणाली ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह को मजबूर कर दिया। वैसे भी उनकी नियुक्ति दबाव के चलते हुई थी। यह सब चर्चा मंदिर के कर्मचारी अब कर रहे है। विदित रहे कि उनके कार्यकाल में एक के बाद एक ऐसी कई घटनाएं सामने आई थी। जिसके चलते मंदिर की राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी हुई थी। चुप रहेंगे डॉट-कॉम ने समय-समय पर उन घटनाओं को उजागर भी किया था।

आखिरी नसीहत ...

कलेक्टर आशीषसिंह की कार्यशैली हमेशा समन्वय वाली रही है। सबको साथ लेकर चलो... विवादों से दूर रहो... और जनहित में काम करते रहो। जबकि इसके उलट प्रशासक श्री धाकड का कार्यशैली रही। फिर भी कलेक्टर ने समन्वय बनाकर रखा। कई मौको पर उन्होंने प्रशासक की गलतियों को नजरअंदाज किया। तो मौका पडने पर फटकार लगाने में भी नहीं चूके। समन्वय वाली नीति को प्रशासक ने कमजोरी समझ लिया। तभी तो मंगलवार को कलेक्टर ने उनको अपनी आखिरी नसीहत दी थी। मंदिर समिति अध्यक्ष की हैसियत से कलेक्टर बैठक ले रहे थे। जिसमें प्रबंध समिति के सदस्य भी शामिल थे। इस बैठक में कलेक्टर ने आखिरी दफा अपना रौद्र रूप, नसीहत के साथ दिखाया था। बैठक में शामिल एक सूत्र का ऐसा कहना है। सूत्र के अनुसार कलेक्टर ने मंदिर प्रशासक को साफ लफ्जों में कहा था। आप हर व्यवस्था में दखलंदाजी ना करे... अगर कोई परेशानी हो तो सीधे मुझे बताये।

मेरी मर्जी ...

मंगलवार को बैठक हुई थी। जहां कलेक्टर ने जो नसीहत, फटकार के साथ दी। वह ऊपर लिखी जा चुकी है। लेकिन सवाल यह है कि कलेक्टर ऐसा बोलने पर मजबूर क्यों हुए। इसके पीछे मंदिर के तत्कालीन प्रशासक का एक आदेश था। जो कि 18  सितम्बर को निकाला था। इसमें उन्होंने प्रोटोकॉल के कर्मचारी मनीष शर्मा का मंदिर में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया था। सत्कार शाखा के कर्मचारी पर आरोप लगाया था। उन्होंने प्रशासक का दूरभाष पर आदेश नहीं माना और कार्यालय में हाजिर होने से मना कर दिया। जिसके चलते आदेश क्रमांक 3035 निकालकर प्रतिबंध लगा दिया। इसी के चलते  तत्कालीन मंदिर प्रशासक को कलेक्टर ने नसीहत दी थी। इसके अगले दिन दोपहर बाद अचानक ही प्रशासक को हटाने के आदेश हो गये। नतीजा मंदिर के गलियारों में अब यह चर्चा आम है कि ... अपनी मनमर्जी से काम करने वाले प्रशासक को ... मंगलवार को समझाया... बुधवार को हटाया।