ऐसे होता है विकास: खाद-ठिया हुआ बर्बाद ...!

जनहित मुद्दा ...

ऐसे होता है विकास: खाद-ठिया हुआ बर्बाद ...!

उज्जैन। बहादुरगंज स्थित खाद- ठिया क्या किसी ने देखा है? जनहित से जुड़ा यह सवाल है। महापौर हर रोज सुबह-सुबह घूम रहे है। आयुक्त नगर निगम भी गाहे-बगाहे निरीक्षण करते रहते है। मगर क्या कभी खाद- ठिया की दुर्दशा को जाकर देखा है। करोड़ो की लागत से बना यह भवन नगर निगम की दूरदर्शी योजना पर सवाल उठा रहा है? कितने कुशल- दक्ष इंजीनियर  नगर निगम में काम करते है। तभी तो 12 साल बाद भी आज तक खाद- ठिये की एक भी दुकान नहीं बिक पाई है। जनता के पैसे को बर्बाद करने का प्रत्यक्ष प्रमाण है खाद- ठिया।

दरअसल बहादुरगंज खाद- ठिया का मामला हमको भी पता नहीं था। मगर 9 सितम्बर को  नगर पालिका निगम का कार्यवाही विवरण एक शुभचिंतक ने भेज दिया। जिसके पाइंट नंबर- 9 पर खाद- ठिया का जिक्र था। (देखे स्क्रीन शॉट) जिसे पढ़कर गुरूवार को जाकर खाद-ठिया देखा। उसकी दुर्दशा देखकर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे है। कारण ... लगभग 12 साल पहले बना खाद-ठिया भवन, आजकल शाम ढलते ही शराबी- कबाबी और चरसियों का अड्डा बन गया है। ताज्जुब की बात यह है कि पिछले 12 सालों में नगर निगम यहां की एक भी दुकान नहीं बेच पाया है। जबकि दावा नगर निगम का यह है कि ... हम जनहित में योजना बनाकर काम करते है।

बाहर भी निकलिए ...

वातानूकुलित कक्ष में बैठकर निर्देश देना बहुत आसान काम है। लेकिन खाद- ठिया को लेकर निर्देश देने से पहले निगम आयुक्त अंशुल गुप्ता ने कभी इस ठिये का निरीक्षण भी किया है? यह सवाल निगम के गलियारों में दबी जुबान से सुनाई दे रहा है। ऐसा कर दो- वैसा कर दो- आज ही रिपोर्ट प्रस्तुत कर दो। यह सब कहने में कितनी देर लगती है। किन्तु वस्तुस्थिति  जाकर देखने के लिए समय देना और एयर कंडीशन से बाहर निकलना पडता है। गंदगी से भरपूर खाद-ठिये की दुर्गंध को सहन करना पडता है। यह सब सवाल निगम में दबी जुबान से पूछे जा रहे है। मातहत यह तक बोल रहे है कि ... संभवत: आयुक्त महोदय को तो यह भी पता नहीं है कि आखिर किस स्थान पर यह खाद- ठिया बना है? कब बना था और क्यों बनाया गया था? वैसे यह खाद- ठिया क्षीरसागर स्थित कांग्रेस मुख्यालय से आर्य समाज मार्ग की तरफ जाते वक्त सामने ही नजर आता है। मगर वहां सालों से ना कोई निगम का अधिकारी और ना ही कोई निगम का जनप्रतिनिधि गया है।

आरआर जारोलिया

इनकी देन है ...

इस शहर को विकास की यह सौगात बनाकर देने वाले आरआर जारोलिया है। जो कभी   नगर निगम में पदस्थ थे। आजकल संयुक्त संचालक कार्यालय नगरीय प्रशासन भरतपुरी में कार्यपालन यंत्री है। इनकी इंजीनियरिंग कमाल की है। तभी तो खाद- ठिया बनाते वक्त इन्होंने जरा भी नहीं सोचा? भविष्य को ध्यान में रखकर। अगर करोड़ों की लागत से बनने वाले भवन को गहराई में बनाया गया। तो इसके अंदर बरसात का पानी जमा होगा। यह बात एक सामान्य इंसान भी सोचता है। भले ही उसने इंजीनियरिंग की कोई डिग्री नहीं ली हो? लेकिन जनता का पैसा है? कोई पूछने वाला नहीं है? तो बर्बाद करने में क्या जाता है ? कौन पूछने वाला है? यहां यह लिखना जरूरी है कि यह भवन उनके लिए बनाया गया था। जो दौलतगंज में सड़क किनारे सब्जी की दुकान लगाकर बेचते थे। निर्माण के वक्त तत्कालीन प्लानर आरआर जारोलिया ने कोई ध्यान नहीं दिया। पूरा भवन गड्डे के अंदर बनवा दिया। भराव नहीं करवाया। जिसके चलते आज तक खाद-ठिया आबाद नहीं हो पाया है। (देखे वीडियों )।