प्रशासक की 'गुहार' : नहीं कर सकते हम वीआईपी 'सत्कार'
उज्जैन- महाकाल मंदिर के गलियारों में चर्चा है। मंदिर प्रशासक के एक पत्र की। जो कि कार्यालय श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति से जारी हुआ है। करीब 15 लाइन की सरकारी भाषा वाले पत्र का मूल सार यही है। अब नहीं कर सकते हम वीआईपी सत्कार- प्रशासक ने लगाई गुहार। इस पत्र को पिछले महीने के अंतिम दिनों में लिखा गया था। जिसकी पुष्टि मंदिर के भरोसेमंद सूत्र कर रहे है।
महाकाल मंदिर में दूसरी दफा प्रशासक बनकर आए गणेश धाकड ने अपनी कार्यशैली से अंचभित कर दिया है। इस दफा वह अपने धाकड अंदाज में है। तभी तो खुलकर एक पत्र लिख दिया। जिससे प्रशासन और मंदिर प्रशासन में समन्वय के बदले गहरी खाई नजर आ रही है। मंदिर के गलियारों में दबी जुबान से सब बोल रहे है। अति विशिष्टजनों को प्रोटोकॉल/ सुरक्षा आदि की जवाबदारी अब मंदिर प्रशासन नहीं उठायेगा।
यह लिखा पत्र में ....
भरोसेमंद सूत्रों का अगर यकीन किया जाए। तो प्रशासक ने कडक भाषा में पत्र लिखा है। ऐसा पहली दफा किसी प्रशासक ने पत्र लिखा है। प्रशासन की जिला सत्कार शाखा को साफ-साफ लफ्जों में प्रशासक ने निर्देश दिये है।
1. मंदिर में अतिविशिष्ट अतिथि, मशहूर हस्तियां, राजनेता व अन्य प्रसिद्ध लोगों का लगातार आगमन होता रहता है।
2. इन माननीय अतिविशिष्टों का मंदिर आने का कार्यक्रम मंदिर प्रशासन को नहीं मिलता है।
3. सूचना के अभाव में अतिथियों को वह प्रोटोकॉल नहीं मिल पाता। जिसके वह हकदार है। तुरत-फुरत में व्यवस्थाएं की जाती है। जो कि पर्याप्त व सही नहीं होती है।
4. अतिविशिष्टों को सुरक्षा/ प्रोटोकॉल आदि अपनी मर्जी से कर्मचारी देते है।
5. इस पत्र का सबसे महत्वपूर्ण बिंदू यही है। जो कि विशिष्टजनों के शोला पहनाने-स्वागत-सत्कार से जुडा है। इसके लिए 3 कक्ष आरक्षित किये गये है। जिनमें मंदिर प्रोटोकॉल के कर्मचारी नियुक्त किये गये है। इन कक्षों के अलावा मंदिर परिक्षेत्र में किसी भी स्थान पर शोला पहनाने-बदलवाने-स्वागत-सत्कार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। अगर इन कक्षों के अतिरिक्त कहीं और अतिथियों को शोला पहनाने- बदलने की व्यवस्था होती है। तो मंदिर प्रशासन इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा।
शीतयुद्ध ...
इस बिंदू को लेकर मंदिर के गलियारों में चर्चा है। कई दफा ऐसा होता है। अतिविशिष्ट अतिथिगण, मंदिर के महंत विनीत गिरी जी के आश्रम में पहले जाते है। मुलाकात के बाद अतिथिगण वहीं पर शोला पहनते और बदलते है। इसीलिए 5 नंबर के बिंदू को महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। मंदिर के गलियारों में दबी जुबान से यह चर्चा आम है। यह अघोषित शीतयुद्ध चल रहा है। मंदिर में यह भी चर्चा है कि पिछले सोमवार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सपरिवार दर्शन करने गये थे। उस दौरान पूजा के बाद वह महंत श्री के आश्रम में गये। उनके साथ संघ से सेवानिवृत्त विनोद जी व एक अन्य भी थे। मंदिर प्रशासक श्री धाकड अंदर नहीं गये थे। मगर उनको कुछ देर बाद मंहत श्री के आश्रम में बुलाया गया था। अंदर क्या चर्चा हुई। इसको लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है।