07 अप्रैल 2025 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का |

सीधी बात ...
तुम्हारी बहुत शिकायते आ रही है। ज्यादा हीरो मत बनो। शिवाजी भवन का ठेका नहीं ले रखा तुमने। उल्टी-सीधी खबरे छपवाते हो। पार्टी की इज्जत खराब होती है। तुम कमलप्रेमी रहो या ना रहो। कमल संस्था चलती रहेगी। जब जाओं तो मिलते हुए जाना। यह संवाद शुक्रवार की दोपहर में हुए। कमलप्रेमी मुख्यालय पर। सीधी बात करने वाले अपने दालवाले नेताजी थे। निशाने पर थे 2 नंबरी नगरसेवक। दालवाले नेताजी की सीधी बात ने नगरसेवक के चेहरे की हवाईयां उडा दी। देखने वालो का कहना है। नगरसेवक को बस रोना नहीं आया। वरना हालात तो यही हो गई थी उनकी। ऐसा उन कमलप्रेमियों का कहना है। जिन्होंने यह पूरा दृश्य अपनी आँखों से देखा और कानों से सुना। कमलप्रेमियों की बात सच है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
दु:खी ....
अपने कमलप्रेमी इन दिनों बहुत दु:खी हैं। दु:ख की वजह अपने महंत बाबा है। जो कि अपने विकासपुरूष के साथ उडनखटोले में उड आये है। उसके बाद से उनके तेवर बदले-बदले है। खासकर मंच पर आसीन होने के लिए। वह कोई नियम-कायदा नहीं मानते है। बस सीधे मंच पर जाकर विराजमान हो जाते है। भले ही वह अपेक्षित हो या नहीं। बाबा महंत पुराने पंजाप्रेमी है। बाद में कमलप्रेमी बन गये। लेकिन आदते आज भी पंजाप्रेमी वाली है। जबकि कमलप्रेमी संगठन में अनुशासन का बड़ा महत्व है। जिसको बाबा अपने ठेंगे पर रखते है। यह सब देखकर पुराने और नये कमलप्रेमी दु:खी है। ताज्जुब की बात यह है कि विकासपुरूष के जन्मदिन पर बाबा ने विज्ञापन छपवाया। उसमें अपने नेता श्रीमंत को ही गायब कर दिया। जबकि श्रीमंत के दम पर ही बाबा इस मुकाम पर है। ऐसा कमलप्रेमियों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
1 पंथ 2 काज ....
इस कहावत से हमारे सभी पाठक परिचित है। इसका फायदा अभी-अभी जय वीरू की जोड़ी ने उठाया। तपती दोपहरी में 2 पहिया वाहन पर निकल लिये। एक धार्मिक यात्रा की व्यवस्थाओं का निरीक्षण करने। गर्मी के इस मौसम में एयरकंडीशन वाहन छोडकर, दुपहिया वाहन पर घूमना। मीडिया को तो पसंद आएगा ही। तो वही हुआ। हर जगह तस्वीरे छपी। यह हुआ 1 पंथ। दूसरा काम हिडन(छुपा) था । दरअसल यह वही वाहन था। जो दूसरे माले के मुखिया ने अभी-अभी खरीदा था। सवा 2 पेटी खर्च करके। अब नया वाहन है। उसको चलाना भी जरूरी है। शहर में इतना चला नहीं पाते। वाहन चलेगा तभी तो समयावधि में सर्विसिंग पर भेज पायेंगे। इसीलिए 2 पहिया वाहन से यात्रा की गई। ऐसी चर्चा यात्रा में साथ गये मातहतों के बीच सुनाई दे रही है। बात सच है। मगर हमको आदत के अनुसार चुप रहना है।
3-3
तीन-तीन अपर कलेक्टर मौजूद थे। नदी किनारे। इसके बाद भी चूक हो गई। वह भी विकासपुरूष के कार्यक्रम में। भविष्य में ऐसी गलती नहीं होनी चाहिये। यह संवाद है अपने दूसरे माले के मुखिया के। जो उन्होंने गुडीपडवा वाले दिन व्यक्त किये। निशाने पर थे। अपनी चटक मैडम जी, फटाफट जी और स्मार्ट पंडित। रामघाट की घटना है। सूर्य को जल अर्पण करने के बाद विकासपुरूष को रामघाट की तरफ आना था। दत्त अखाडा की तरफ से। तब मोटरबोट गायब थी। अधिकारियों को पता ही नहीं था। ऐसा कोई प्लान भी था। खैर जैसे-तैसे मोटरबोट की जुगाड हुई। ताबड-तोड में। विकासपुरूष सवार होकर रामघाट पर उतरे। जहां उन्होंने देखा। मंदिर के शिखर पर ध्वज नहीं लहरा रहे है। पुताई भी नहीं हुई है। गंदगी फैली हुई है। जिसको लेकर उन्होंने नाराजगी जाहिर की। जिसके बाद दूसरे माले के मुखिया ने शाम को क्लास ली और साफ कह दिया। भविष्य में कोई गलती ना हो। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
शिकायत ...
एक तरफ जहां विकासपुरूष ने नदी पर नाराजगी जाहिर की थी। वहीं दूसरी तरफ दूसरे माले के मुखिया को शिकायत हुई। शिकायत करने वाले डिप्टी कलेक्टर से लेकर तहसीलदार तक थे। लिखित के अलावा मौखिक शिकायत भी की गई। जो प्रोटोकॉल से जुड़ी है। विकासपुरूष की ड्यूटी में तैनात दूसरे विभाग के अधिकारी लापता रहते है। राजस्व अधिकारियों को सहयोग नहीं करते। मंदिर के प्रोटोकॉल को लेकर भी शिकायत हुई। एक तहसीलदार को रोक दिया गया। कार्ड दिखाने पर भी प्रवेश नहीं दिया। एक नायब तहसीलदार मैडम के साथ तो इससे भी ज्यादा बुरा हुआ। बेचारी .. रात ढाई बजे वीआईपी ड्यूटी करने मंदिर पहुंची थी। उनको भी मंदिर की आरती में जाने से रोका गया। इसके अलावा यह भी शिकायत हुई है। पिछले महीने विकासपुरूष का जब आगमन हुआ था। तो उनके कारकेट में पानी की व्यवस्था नहीं की गई। जिस मैडम की जिम्मेदारी थी। उन्होंने मना कर दिया। अब देखना यह है कि इन सभी शिकायतों का निराकरण कैसे होता है। किसको सजा मिलती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
नहीं दूंगा ...
अपने विकासपुरूष किसी भी शासकीय कार्यक्रम में शामिल होते है। तो नियम यही कहता है। जिस मंच पर कार्यक्रम है। उसकी पूरी जांच की जाए। मजबूती परखी जाये। जिसके बाद लोनिवि द्वारा प्रमाण-पत्र दिया जाता है। किन्तु नदी वाले कार्यक्रम के मंच का प्रमाण-पत्र देने से इंकार कर दिया। विभाग के मुखिया ने। सीधे शब्दों में बोल दिया। दूसरे माले के मुखिया को। नहीं दूंगा प्रमाण-पत्र। जिसे सुनकर दूसरे माले के मुखिया नाराज नहीं हुए। उल्टे उन्होंने कहां। वाकई यह रिस्की है। इतना कहकर वह चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
खुश ...
तो आखिरकार दाल-बिस्किट वाली तहसील के एसडीएम अब खुश है। बेचारे लंबे समय से दु:खी थे। कारण ... रहने का कोई ठिकाना नहीं था। रेस्ट हाऊस में डेरा डालकर अपने दिन गुजार रहे थे। कई दफा गुहार लगा चुके थ। मैडम जी .... बंगला खाली कर दो। मैडम ने खूब इंतजार करवाया। आखिर उनको रहम आ गया। बंगला तो पूरा खाली नहीं किया, मगर अपना सामान उठाकर एक कमरे में रख दिया। बाकी कमरे की चाबी सौंप दी। हम बता दे कि यह वही एसडीएम है। जिन्होंने एक रात वाहन में सोकर गुजारी थी। जब अपने विकासपुरूष का कार्यक्रम दाल-बिस्किट वाली तहसील में हुआ था। बहरहाल अब एसडीएम साहब के चेहरे पर खुशी की लहर है। ऐसा उनको देखने वालो का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
लाज बचाई ...
बडी जगहँसाई हो सकती थी। वह भी विकासपुरूष के गृहनगर में। मंदिर के प्रसिद्ध लड्डू को लेकर। कारण .. दाल का स्टाक खत्म हो गया था। केवल एक दिन का शेष बचा था। यह उस दिन की बात है। जब जय-वीरू की जोडी 2 पहिया वाहन पर निकली थी। उसी दिन पाइंट मिला। अपने फटाफट जी को । संदेश था कि अगर दाल की व्यवस्था नहीं हुई। तो लड्डू यूनिट में काम बंद हो जायेगा। पाइंट मिलते ही जय-वीरू को छोडकर फटाफट जी मंदिर पहुंचे। पता चला कि सप्लायर का भुगतान बाकी है। करीब 30-40 पेटी। इसलिए उसने हाथ खड़े कर दिये है। अपने फटाफट जी 3 घंटे तक इस मसले को सुलझाते रहे। आखिर सफलता मिल गई और लाज बच गई। इसलिए हम उनको इस शुभ काम की बधाई देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
ऑनलाइन...
संकुल का दूसरा माला ऑनलाइन होने जा रहा है। दूसरे माले के मुखिया ने कह दिया है। अब वह कोई भी फाइल कागजों पर नहीं देखेंगे। सबकुछ ऑनलाइन होना चाहिये। 21 अप्रैल अंतिम तिथि दी है। जिसके चलते हड़कंप मचा हुआ है। बेचारे बाबू परेशान है। कारण ... ऑनलाइन फाइल करने के लिए स्कैनर की जरूरत है। ढेरो फाइले है। जबकि स्कैनर उतनी संख्या में नहीं है। तभी तो संकुल के गलियारों में चर्चा है। पहले सुविधा दीजिए- फिर काम लीजिए। बाबूओं की बात में दम है। देखना यह है कि दूसरे माले के मुखिया कितनी मदद करते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
सवाल ...
अपने विकासपुरूष ने पिछले सप्ताह शुभारंभ किया था। एक होटल का। मंदिर के समीप वाली। मगर उसके पहले ही होटल का कमरा आफ द रिकार्ड बुक हुआ। पूरी रात के लिए। जिसमें अखिल भारतीय सेवा के एक दंपत्ति ने रात गुजारी। किंग- क्वीन सुइट में। ऐसा अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। सवाल उठा रहे है। शुभारंभ के पहले सुइट कैसे बुक हुआ? जिसका हमारे पास कोई जवाब नहीं है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
पूजा-पाठ ...
सोमरस पर रोक क्या लगी। शहर का एक प्रतिष्ठित क्लब मुसीबत में पड गया है। कल तक जहां महफिले जमती थी। आज वहां उल्लू उड रहे है। ताशपत्ती और सोमरस के शौकीन परेशान है। खासकर वह, जो वर्षो से हर शाम क्लब में बैठकर शराब-कबाब का आनंद लेते थे। क्लब का सदस्य बनने के अच्छी-खासी रकम खर्च करते थे। अब रकम भी डूब गई और शाम भी रंगीन नहीं हो रही है। ऐसे में कुछ सदस्य बोल रहे है। अब क्लब में धार्मिक आयोजन सुंदरकांड- हनुमान चालीसा आदि शुरू कर देना चाहिए। इस बहाने एकत्रित तो होंगे। सुझाव अच्छा है। मगर इस पर अमल होना मुश्किल है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
किस्मत
राजनीति में मुकाम हासिल करने के लिए कर्म के साथ साथ किस्मत का भी योगदान होता है।उस पर अगर विकास पुरुष मेहरबान हो जाए तो फिर वक्त बदलते देर नही लगती।अपने मेट्रो गली वाले नेताजी की किस्मत जल्दी बदल सकती है। अंदरखाने की खबर है कि उनको जल्दी कोई नई जिम्मेदारी मिल सकती है।जिसमे वह समन्वयक की भूमिका में नजर आ सकते हैं।ऐसा हम नही कह रहे हैं, बल्कि प्रशासनिक अधिकारी कयास लगा रहे हैं।बाकी सब कुछ अपने विकास पुरुष पर निर्भर करता है।जिनको फैसला करना है।इसलिए हम भी वक्त का इंतजार करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
मेरी पसंद ...
उसूलों की किताबें पढ़ रहा था/ मैं कल माँ की आँखें पढ़ रहा था...।