31 मार्च 2025 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का |

31 मार्च 2025 (हम चुप रहेंगे)

मथ्था पकड लिया ...

बुधवार को एक बैठक हुई थी। राजधानी से सीनियर आईएएस आये थे। अपने छोटे साहब। 2004 का सिंहस्थ भी करवा चुके है। मतलब शहर और सिंहस्थ की रग-रग से वाकिफ है। बैठक ले रहे थे। तब उनको अपना मथ्था पकडते देखा गया। वीडियों और फोटो सबूत है। सवाल यह है कि मथ्था क्यों पकड़ा? तो उनकी ही बानगी इसका जवाब पढिय़े। तुम्हारी संविदा अवधि बढाकर बड़ी गलती कर दी। यह तंज उन्होंने एक मुख्य अभियंता पर किया था। जिसके बाद अपना मथ्था पकड लिया। यह वही आईएएस है। जिन्होंने पिछले महीने बैठक में यह तंज किया था। इतना रायता फैला लिया- इसको समेट पाओंगे। इसके बाद बुधवार वाली बैठक में मथ्था पकडा। सबसे अहम बात यह है। भोजन टेबल पर उन्होंने 2004-2016 सिंहस्थ के कामों को याद किया। नसीहत देकर गये। 2028 सबसे बेहतर होना चाहिये। जिसे सुनकर भोजन टेबल पर मौजूद सभी अधिकारी इशारा समझ गये और चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।  

खिलाए-पिलाए ...

राजधानी से आकर आखिरकार बड़े साहब वापस चले गये। बड़े साहब का सभी को इंतजार था। क्योंकि राजधानी में उन्होंने जो क्लास ली थी। उसमें मास्टर प्लानिंग पर जोर था। वही देखने आये थे। अब मास्टर प्लानिंग के अनुसार उनको कुछ मिला या नहीं ? यह वही जानते है। मगर बैठक में उन्होंने एक अधिकारी की लू उतार दी। सीधे सवाल किया। निविदा खुल गई, फिर वर्क आर्डर रोकने की जरूरत क्या थी। मुख्य अभियंता को बोल दिया। किसलिए आर्डर रोका था। इंतजार था। ठेकेदार आकर खिलाए-पिलाए। तब आर्डर देंगे। उन्होंने उदाहरण दिया। अपनी दिल्ली पदस्थापना के दौरान का किस्सा सुनाया। वर्क आर्डर देने में महीनों लगते थे। किन्तु उन्होंने 24 घंटे में आर्डर दिलवाना शुरू कर दिया। जो अभी तक जारी है। बड़े साहब की इस फटकार के बाद सभी चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

परेशान ...

मंदिर का प्रोटोकॉल। मतलब बड़ी परेशानी। खासकर अलसुबह होने वाली आरती का प्रोटोकॉल। भोजन की टेबल पर यह मुद्दा गरमाया। अपने बड़े साहब के समक्ष। सरकारी विश्राम गृह में। टेबल पर जय-वीरू की जोडी, चटक मैडम जी, मंदिर के मुखिया और हिटलर जी मौजूद थे। बड़े साहब को प्रोटोकॉल की परेशानी बताई गई। इशारा ... कानून के जानकारों की दादागिरी की तरफ था। जिससे मंदिर प्रशासन दु:खी है। बड़े साहब ने ध्यान से शिकायत सुनी। फिर सुझाव दिया। बुक माय शो... की तर्ज पर अनुमति जारी क्यों नहीं करते। सीट नंबर तक रहे जिसमें। सारी झंझट खत्म हो जायेंगी। देखना यह है कि बड़े साहब के सुझाव पर कितना और कब तक अमल होता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

सिक्स लेन....

पिछले दिनों यह बात सामने आई थी। मंदिर जाने वाला ब्रिज सिक्स लेन में परिवर्तित होगा। मगर इसमें अब पेंच फस गया है। अंदरखाने की खबर है। राजधानी से बुधवार को आए सीनियर आईएएस को बता दिया गया है। सिंहस्थ 2028 में समय कम है। 9 महीने बारिश के निकालकर देखे तो बहुत कम। ऐसे में ब्रिज को सिक्स लेन में बदलना नामुमकिन है। बात सच है और सटीक भी । मगर मर्जी अपने विकासपुरूष की चलेगी। जिन पर बाबा की अनंत कृपा हैअगर विकासपुरूष ने ठान लिया तो सबकुछ होगा। वरना प्रशासन ने तो हाथ ऊंचे कर ही दिये है। ऐसी चर्चा बैठक के बाद अधिकारियों के बीच सुनाई दे रही है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

1980...

राजधानी से आये बड़े साहब बैठक ले रहे थे। उनको जानकारी दी गई। सिंहस्थ 2028 को लेकर। अपने कप्तान जी ने उनको बताया। 2028 को लेकर पार्किंग शहर से 50 से 100 किलोमीटर दूर तक बनाई जायेंगी। जिसे सुनकर बड़े साहब का जवाब बड़ा रोचक था। उन्होंने अपने विकासपुरूष के पद का जिक्र करते हुए कहां। विकासपुरूष ने 1980 से 2016 तक के सिंहस्थ देखें है। उनको सब पता है। कब-कहां-कैसे क्या करना है। इतना बोलकर बड़े साहब चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत केअ नुसार चुप हो जाते है।  

पीडा ...

अपने माननीय डॉ. साहब की पीडा मंच से उजागर हो गई। वह भी उस दिन, जिस दिन विकासपुरूष का जन्मदिन था। शाम को चिंतामण रोड पर मिनल समारोह था। उसी मंच से माननीय डॉ. साहब ने बोला। विकासपुरूष को 2003 में टिकिट मिला था। उन्होंने वापस कर दिया। मगर पार्टी के विरोध में कभी काम नहीं किया। हमेशा पार्टी हित में काम किया। किन्तु कुछ लोग इसके उलट होते है। टिकिट नहीं मिले तो पार्टी के विरोध में काम करने लगते है। इस पीडा से मैं खुद गुजरा हूं। उनका इशारा बदबू वाले शहर के दरबार की तरफ था। जो उसी दिन अंबोदिया में विकासपुरूष से मिले थे। जिसके चलते माननीय डॉ. साहब नाराज थे। पार्टी विरोधी की किसने मुलाकात करवाई। यह उनका सवाल था। इसीलिए ग्रामीण मुखिया से सीधे पूछा। मुलाकात वाली सूची में नाम किसने जुडवाया। ग्रामीण मुखिया ने साफ मना कर दिया। नतीजा ... शक अब पिस्तौल कांड नायक पर जा रहा है। ऐसा हम नहीं बल्कि कमलप्रेमी बोल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

भविष्य ...

सदन में अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले माननीय का भविष्य क्या होगा?  यह सवाल हमारा नहीं है। बल्कि कमलप्रेमी पूछ रहे है। क्योंकि नोटिस मिल चुका है। सीधे देश की राजधानी से। देने वाले संगठन के राष्ट्रीय मुखिया है। इससे नोटिस की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इधर सरकार को घेरने वाले माननीय माफी मांगने से इंकार कर रहे है। किन्तु जवाब तो देना होगा। जिसके बाद उनका भविष्य क्या होगा? क्या कमलप्रेमी रहेंगे या फिर रवानगी होगी। फैसला आने वाला वक्त करेगा। वैसे राजनीति में सही वक्त पर अपने विरोधी को पूरी तरह निपटाना ही राजनीति का नियम है। ऐसा जानकारों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

तभी वोट देंगे ...

किसानों की जमीन को लेकर हंगामा मचा हुआ है। बाबा की नगरी से राजधानी तक। सदन में अपने चरणलाल जी गला फाड-फाडकर चिल्लाये। फिर रो भी दिए। सदन से पहले चामुंडा माता चौराहे पर विरोध प्रदर्शन हुआ था। जिसमें पंजाप्रेमी प्रदेश मुखिया  आये थे। उसी दौरान की घटना है। धरना खत्म हो चुका था। चरणलाल जी सहित सभी पंजाप्रेमी नेता मौजूद थे। तब कुछ पंजाप्रेमियों ने सलाह दी। किसानों की जमीन जा रही है। तो जाने दो। जमीन जायेंगी। तभी तो पंजे को वोट देंगे। पंजाप्रेमियों की यह सलाह सुनकर अपने चरणलाल जी हतप्रभ रह गये। उन्होंने पलटकर जवाब दिया। लडाई लडेंगे। जिसके बाद उन्होंने सदन में मामला उठाया। रूदन भी किया। जिसको लेकर पंजाप्रेमी बोल रहे है। ज्यादा गला फाडकर चिल्लाने से और जब आपकी बात को तवज्जों नहीं मिले। तो आंसू आ ही जाते है। अब इसमें कितना सच है-कितना झूठ। पंजाप्रेमी जाने। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

बंद कमरे में ....

पिछले सप्ताह बंद कमरे में 4 बैठके हुई। पहली बैठक मंगलवार की शाम रूम नं. 615 में हुई। इंदौर रोड की एक होटल में। राजधानी से आये छोटे साहब के साथ। जिसमें जय-वीरू और तीसरे माले के मुखिया शामिल थे। अगले दिन सुबह छोटे साहब ने बैठक से पहले फिर बंद कमरे में चर्चा की। जिसके बाद बैठक ली। इसी बैठक में उन्होंने अपना मथ्था पकड़ा था। फिर वह राजधानी लौट गये। अगले दिन बड़े साहब आ गये। इन्होंने बैठक से पहले बंद कमरे में चर्चा की। दूसरे माले के मुखिया के कक्ष में। फिर बैठक ली। यह बैठक जल्दी निपट गई। क्योंकि समीक्षा के लिए कुछ था नहीं। औपचारिकता थी। इसके बाद फिर बंद कमरे में बैठक हुई। इस बैठक में देवी अहिल्या नगरी के अपने उम्मीद जी भी शामिल थे। 2 दिन में 4 बैठक बंद कमरे में हुई। मगर अंदर क्या खिचडी पकी। किसी को कुछ पता नहीं है। जिनको पता है। वह इसको लेकर चुप है। तो हम भी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

नहीं पता ...

जिले का शायद ही कोई अधिकारी होगा? जिसे वीआईपी गेस्ट हाऊस का पता मालूम नहीं होगा। सभी को जानकारी है। वीआईपी गेस्ट हाऊस अपने विकासपुरूष का ठिकाना है। लेकिन करंट वाले विभाग के मुखिया को यह पता ही नहीं है। वीआईपी गेस्ट हाऊस कहां पर स्थित है। इसका खुलासा 4 दिन पहले हुआ। जब उनको फोन लगाया गया। यह बताने के लिए कि वीआईपी कार्यालय में बिजली बार-बार जाती है। 2 मिनिट में वापस आ जाती है। ऐसा दिन में कई दफा होता है। यह सुनकर बिजली अधिकारी ने उल्टा सवाल किया। यह वीआईपी गेस्ट हाऊस कहां है। जिसे सुनकर फोन करने वाले अधिकारी आश्चर्य में पड गये। उन्होंने अपने गुस्से को जब्त किया। पता समझाया। थोडी देर बाद करंट विभाग से एक अधिकारी हाजिर हो गये। जिन्होंने आश्वासन दिया। अब ऐसा नहीं होगा। आश्वासन पाकर अधिकारी चुप हो गये। तो हम भी उस अधिकारी को, जिसे वीआईपी गेस्ट हाऊस नहीं पता, को हाथ जोडकर प्रणाम करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

औचित्य ...

अभिभावकों को लूट से बचाने के लिए पुस्तक मेला लगाया गया। वाह... बढिया काम किया। मगर स्कूल संचालकों की मोनोपाली से पालकगणों को नहीं बचा पाये। 10 प्रतिशत छूट सामान्य तौर पर कोई भी दुकानदार देता है। इसमें कोई नया तीर नहीं मार लिया। ताज्जुब की बात यह है। प्रशासन की नाक के नीचे संचालकों ने खेल कर दिया। किताबों की सूची पहले ही बाले-बाले अपने पसंदीदा दुकानदार को थमा दी थी। उसके पास समय था। उसने किताबे मंगवा ली। जबकि बाकी दुकानदारों को सूची का पता तब चला, जब रिजल्ट खुला। उस दिन किताबों की सूची चस्पा की गई। अब नया दुकानदार तो इतनी जल्दी  किताबे मंगवा नहीं सकता हैइसलिए पुस्तकें उसी दुकानदार से मिली। जिससे बरसों से पालकगण खरीदते आ रहे है। ऐसे में किताब मेला लगाने का औचित्य ही खत्म हो गया। प्रतिस्पर्धा ही नहीं थी। ऐसा उन पालकों का कहना है। जो खरीददारी करने किताब मेले में गये थे। पालकों की बात सच है। मगर हमको आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

गुत्थी ...

संकुल के गलियारों में चर्चा है। विकासपुरूष ने जब से चिंता जताई है। सिंहस्थ 2028 के कामों को लेकर। उसके बाद राजधानी से आईएएस अफसरों का आना शुरू हो गया है। एक के बाद एक नौकरशाह आ रहे है। बैठके होती है। अभी-अभी पहले छोटे साहब फिर बड़े साहब आकर गये है। मगर कामों की गुत्थी सुलझ ही नहीं पा रही है। उदाहरण दिये जा रहे हैहरियाखेड़ी प्रोजेक्ट अभी तक अधर में लटका है। जबकि अपने विकासपुरूष मोहर लगा चुके है। 17 ब्रिज निर्माण का मामला भी केवल कागजों पर ही दौड रहा है। इधर हरियाखेड़ी प्रोजेक्ट को लेकर स्मार्ट पंडित ने चुप्पी साध रखी है। तो हम भी उनकी तरह आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

तलाश ...

संकुल के गलियारों में दबी जुबान से एक अधिकारी की अनोखी तलाश की चर्चा है। मातहत इस अधिकारी को फटाफट जी के नाम से संबोधित करते है। कारण ... अधिकारी फोन पर या सामने मातहतों को यही बोलते है। फटाफट यह काम कर लो। यह उनका तकिया कलाम है। इसलिए मातहतों ने उनका नाम फटाफट जी कर दिया है। इन्हीं को एक मोची की तलाश है। जो उनके जूतों पर रोज पालिश कर सके। हालांकि बंगले पर कई कर्मचारी मौजूद है। लेकिन सभी ने इस काम को करने के बदले हाथ जोड लिए है। इसलिए तलाश जारी है। जो कब पूरी होगी। हमको पता नहीं। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मेरी पसंद ...

यकीन कीजिए किस पर/ यकीन में क्या है/ मुझे पता है मेरी आस्तीन में क्या है...