हंगामा है क्यों बरपा, चप्पल जो पहनी है ... !
उज्जैन। उज्जैन के संभागीय कमिश्नर ने शिप्रा तट पर चप्पल पहनकर शिवलिंग पर जल चढ़ा दिया। फोटो वायरल हुए और हंगामा हो गया। अगर जान-बूझकर ऐसा किया तो शर्मनाक है। मगर, ऐसा संभव नहीं है। और गलती से हुआ है तो भोलेनाथ भाव देखते हैं, आवरण नहीं। जिन भगवान शिव पर चप्पल पहन कर जल चढ़ाया गया, उन्होंने भी जल चढ़ाने का भाव देखा होगा, पैरों की चप्पल नहीं।
शीर्ष अधिकारी हैं, जिम्मेदार हैं, हिंदू हैं और भी जानें क्या-क्या। जो आरोप लग रहे हैं, वो इन्हीं सब बातों के आधार पर लगाए जा रहे हैं। मगर आरोप लगाना अलग बात है। सोचिए, जिम्मेदार पद पर बैठे एक शीर्ष अधिकारी क्या ऐसी बेवकूफाना हरकत जान-बूझकर करेंगे। अगर हां, तो फिर महाकाल ही उनका फैसला करेंगे। लेकिन, अगर नहीं, तो फिर ये अपराध नहीं, हड़बड़ी में हुई एक गलती भर है। इतना हंगामा मचाना भी ठीक नहीं।
चप्पल है, चमड़े की चप्पल भी है तो क्या। आचार्य शंकर ने भज गोविंदम् भजन में लिखा है,यत् तन मांसवसादि विकारम् यानी ये शरीर ही मांस, चमड़ी और वसा आदि विकारों से बना है। जब जीवित मांस-चमड़ी से लोटा पकडक़र जल चढ़ाना पुण्य है तो फिर गलती से पहनी गई चप्पल पर इतना हंगामा क्यों?
इतना बुरा तो खुद महाकाल को भी नहीं लगा होगा, जितना महाकाल की नगरी के कुछ लोग हल्ला मचा रहे हैं। एक आदमी की भूल को तूल देकर उसे मूल काम से भटकाना कहां की समझदारी है। चप्पल को वहीं छोड़िए, जहां उसकी जगह है। भाव को देखिए, अगर कमिश्नर ने जान-बूझकर किया है तो ये अपराध है, जो अक्षम्य है। मगर, गलती से हुआ है तो गलती ही है। इसकी क्षमा भी है और प्रायश्चित भी।
भोलेनाथ की नगरी में रहने वालों को इतना दोष देखने का अधिकार नहीं है। क्योंकि ये भोलेनाथ का स्वभाव नहीं है। वो भी दोष नहीं देखते। क्षमा भाव रखते हैं।
अच्छा होगा कि दो पल के लिए गलती से पहनी गई चप्पल को हम अपने दिमाग में लंबे समय ना अटकाए रखें। हमारा दिमाग भोले नाथ पर चढ़ते बहते जल की तरह निर्मल हो, ना कि चप्पल की तरह दूषित। चप्पल को छोड़िए। शिप्रा के शुद्ध जल और जल की शुद्धि पर फोकस कीजिए।