10 जून 2024 (हम चुप रहेंगे)
भीड़ ...
अपने वजनदार जी को बधाई। जिन्होंने साबित कर दिया। वह सहज-सरल-मृदभाषी और लोकप्रिय नेता है। तभी तो खुद का ही रिकार्ड तोड़ दिया। मिशन-2024 में। इसके लिए एक बार फिर बधाई। मगर उनकी जीत के बाद चर्चा है। खासकर मीडिया और कमलप्रेमियों में। उनके विजय जुलूस में इतनी कम भीड़ क्यों थी? यह सवाल मीडिया और कमलप्रेमी दोनों उठा रहे है। वह तो भला हो, दाल-बिस्किट वाली तहसील के कमलप्रेमियों का। जिन्होंने मौजूद रहकर जुलूस की लाज बचा ली। अब ऐसा क्यों हुआ? कमलप्रेमी गायब क्यों रहे? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। तो हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
सहजता ...
बात उसी जुलूस की है। जिसमें भीड़ बहुत कम थी। इसमें अपने माननीय डॉ. साहब भी शामिल थे। बदबू वाले शहर के। जो कि इस जीत के सूत्रधार है। लेकिन उन्ही डॉ. साहब को मौका नहीं दिया गया। विजय रथ पर सवार होने का। बेचारे पीछे-पीछे पैदल चल रहे थे। ऐसा कमलप्रेमियों का कहना है। डॉ. साहब सहज-सरल है। इसलिए चुप रहे। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
वसूली ...
उधारी वसूलना भी हिम्मत का काम है। खासकर किसी पूर्व माननीय से। जो कल तक पंजाप्रेमी थे। मगर अब कमलप्रेमी। जिनको उधारीलाल जी के नाम से सभी जानते है। इन पर पंजाप्रेमी नेताजी की उधारी थी। करीब 5 पेटी। जिसमें से आखिरकार ढाई पेटी की वसूली हो गई है। बाकी पंजाप्रेमी नेताजी ने माफ कर दिये है। ऐसा हम नहीं, बल्कि पंजाप्रेमी बोल रहे है। बात सच है। वसूली हुई है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
आम ...
बोया पेड़ बबूल का... आम कहां से होए। अपने प्रथमसेवक इन दिनों इस कहावत की तर्ज पर दुखडा सुनाते फिर रहे है। उनकी कोई नहीं सुनता। शासन-प्रशासन। 200 खोखे की योजना बनाकर भेजी थी। मगर केवल 30 खोखे ही स्वीकृत हुए। वह भी केवल दक्षिण में। तभी तो प्रथमसेवक खुलकर बोल रहे है। मुझे नजरअंदाज किया जा रहा है। दूसरे माले के मुखिया और स्मार्ट पंडित भी उनकी नहीं सुनते है। प्रथमसेवक के इस दुखड़े को लेकर चर्चा आम है। बोए पेड़ बबूल के... आम कहां से होए...। ऐसा मीडिया वाले बोल रहे है। जिनके आगे प्रथमसेवक ने अपना रोना रोया था। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
बदलाव ....
प्रदेश के पंजाप्रेमी मुखियां के बदलने की चर्चा चल रही है। कितनी सच साबित होगी? इसका फैसला वक्त करेगा। बदलाव होगा या नहीं। अगर बदलाव होता है। तो देवासगेट के होटल वाले भय्या की किस्मत जाग सकती है। उनके करीबी रिश्तेदार प्रदेश के मुखिया बन सकते है। जिसके चलते उनकी होटल पर फिर से जमावड़ा लग सकता है। अपने बिरयानी नेताजी भी फिर से होटल पर अड्डा जमा सकते है। इसी तरह अपने चरणलाल जी भी होटल पर नजर आयेंगे। ऐसा हम नहीं, बल्कि पंजाप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
मोह...
क्या कोई ऐसा जनप्रतिनिधि देखा है? जिसे अपने पद से मोह नहीं हो? अगर नहीं देखा है तो हम उनका नाम बताते है। हम उन्हें प्रथमसेवक के नाम से संबोधित करते है। उनका खुद का कहना है। मुझे पद से मोह नहीं है। यह बात उन्होंने एक बैठक में कही है। वहीं इस बैठक में अपनी नाराजगी भी जाहिर की है। उनकी नाराजगी, दूसरे माले के मुखियां से है। प्रथमसेवक का कहना है। पूरा शिवाजी भवन 1 व्यक्ति के इशारे पर दौडता रहता है। जिसके बाद बैठक में मौजूद सभी का कहना है। प्रथमसेवक ... आ बैल मुझे मार.... वाली कहावत पर चल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
खींचतान ...
सडक़ निर्माण करने वाले विभाग में खींचतान मची हुई है। क्योंकि ऊपर की कमाई कोई भी इंजीनियर नहीं छोडऩा चाहता है। इसीलिए तो इस विभाग तीनों इंजीनियर एक-दूसरे की टांग खीचने में लगे है। जुगाड कर रहे है। किसी भी तरह से ज्यादा से ज्यादा सडक़ बनाने का काम उनको मिले। जिसके लिए एक-दूसरे की पोल खोलने को भी तैयार है। सीधी भाषा में कहा जाये तो .... एक-दूसरे को भ्रष्टाचारी बता रहे है। निर्माण विभाग के गलियारों में तो यही चर्चा है। अब देखना यह है कि किस इंजीनियर को सफलता मिलती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
ड्राइंग बदली ...
एक बार फिर उसी निर्माण विभाग की बात है। जिसने अपना कार्यालय बचाने के लिए खेल कर लिया है। अंदरखाने की खबर है। फ्रीगंज ब्रिज के चौड़ीकरण की ड्राइंग चुपचाप बदल दी गई है। पहले चौड़ीकरण ब्रिज चढते वक्त लेफ्ट की तरफ होना था। मगर इसमें निर्माण विभाग के कार्यालय टूट जाते। इसलिए नई ड्राइंग बनाई गई। जिसमें अब राइट साइट की तरफ से चौड़ीकरण होगा। जिसके चलते निर्माण विभाग के कार्यालय सलामत रहेंगे। ऐसी चर्चा निर्माण विभाग के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
दौलताबाद ...
इतिहास में दर्ज यह तुगलकी कहानी हमारे पाठकों को याद होगी। एक पागल राजा ने अपनी राजधानी बदली। तो प्रजा को भी साथ लेकर गया। फिर वापस दिल्ली लेकर आया। यह कहानी इन दिनों मंदिर से लेकर संकुल के गलियारों में सुनाई जा रही है। इशारा .... ई- रिक्शा की तरफ है। जिसको लेकर बवाल मचा हुआ है। जबकि इसका बहुत साधारण उपाय है। मंदिर के 1 किलोमीटर के दायरे में कोई भी ई-रिक्शा नहीं जायेगा। ऐसा एक आदेश निकाल दिया जाये। मंदिर सक्षम है। वह 100 ई- रिक्शे खरीद ले और चारों तरफ बने स्टॉप सेंटर से भक्तों को मंदिर तक ले जाये। प्रति भक्त 5 रूपये का शुल्क निर्धारित कर दे। आय भी होगी और ई- रिक्शा वालो का टंटा साफ हो जायेगा। क्योंकि सारा झगडा महाकाल मंदिर तक जाने का है। इसी में कमाई होती है। जब यही बंद हो जायेगा। तो ई- रिक्शा वाला मामला हल हो जायेगा। मगर इस मामले को दौलताबाद बना दिया गया है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
फटकार ...
शीर्षक पढक़र हमारे पाठक यह सोचे कि ... किसको फटकार पड़ी और किसने लगाई। इसके पहले हमारी तरफ से विकासपुरूष को बहुत-बहुत बधाई। जिन्होंने इतिहास रच दिया। प्रदेश में क्लीन- स्वीप करके। जिसके लिए उनकी दिन-रात की मेहनत और दूरदर्शिता है। जिसने पंजाप्रेमियों को खाता तक नहीं खोलने दिया। इससे विकासपुरूष ने पूरे देश में बाबा की नगरी का नाम रोशन किया है। तो बधाई तो बनती है। अब बात फटकार की। पिछले सप्ताह मतगणना से पहले विकासपुरूष आये थे। सरकारी विश्राम गृह में बैठे थे। बतिया रहे थे। अपने कमलप्रेमियों के साथ। इसी दौरान कोई शिकायत हुई। जिसके बाद जाते-जाते उन्होंने एक आलाधिकारी को फटकार लगाई। यह अधिकारी अपने परमसखा के साथ बगल वाले कक्ष क्रं. 2 में बैठे थे। इसके पहले वजनदार जी ने इन अधिकारी को लेकर पूछा था। कहां बैठे है। मगर यह अधिकारी कौन है। जिसको फटकार लगी और उनके परमसखा ने अपने विकासपुरूष के गुस्से को शांत कर दिया। इसको लेकर संकुल से लेकर कंट्रोल रूम तक कोई भी नाम बताने को तैयार नहीं है। बस सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
हनुमान ...
अपने वजनदार जी का हनुमान कौन है? यह सवाल इन दिनों कमलप्रेमियों की जुबान पर है। मीडिया से चर्चा के दौरान उत्तर के हाईनेस ने इस हनुमान को लेकर टिप्पणी भी की थी। क्योंकि अपने वजनदार जी ने अपने राइट हेंड को डॉन कहकर बुलाया था। जिस पर हाईनेस ने पलटकर कहा था। यह तो हनुमान है तुम्हारा। अब यह हनुमान कौन है? खोज का विषय है। जल्दी ही हनुमान कौन है। इसका खुलासा होगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है
मेरी पसंद ...
फकीरी ला ही देती है हुनर चुप रहने का/ अमीरी जरा सी भी हो तो शोर बहुत करती है...!