11 दिसंबर 2023 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
देख लेंगे ...
तुमको देख लेंगे... देख लेंगे... देख लेंगे। यह पढ़कर हमारे पाठक यह अंदाजा नहीं लगाये। हम किसी को देख लेने की चेतावनी दे रहे है। हम तो कलमघिस्सू है। देख लेंगे ... बोलने वाले तो अपने पंजाप्रेमी है। जो कि मतदान के बाद से ही, खुलकर धमकी दे रहे थे। संकुल में बैठने वाले अधिकारियों को। दूरभाष पर बोलते थे। 3 तारीख को देख लेंगे। तुम सभी को। यह चेतावनी सुनकर अधिकारी अचंभित थे। परिणाम आने से पहले ही जब पंजाप्रेमी खुलकर धमकी दे रहे थे। तो अगर सत्ता में आ जाते, फिर तो महाकाल ही मालिक था। शायद इसीलिए बाबा महाकाल ने इन अधिकारियों की प्रार्थना सुन ली। नतीजा ... पंजाप्रेमियों को ऐसा सबक सिखाया। जो कल तक देख लेंगे बोल रहे थे। अब मुंह छुपाते फिर रहे है। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
लायसेंस ...
तस्वीर देखकर हमारे पाठक समझ गये होंगे। हमारा इशारा किस लायसेंस की तरफ है। सरकारी नियम है। आमआदमी भी एक दिन की सोमरस पार्टी के लिए लायसेंस ले सकता है। लेकिन इसके लिए तगड़ी सिफारिश और निर्धारित शुल्क जमा कराना होता है। फिर कुछ घंटो तक गार्डन/ होटल में खुलकर बार चला सकते है। हमारे पाठकों के दिमाग में यह सब पढ़कर सवाल उठ रहा होगा। हम यह नियम क्यों बता रहे है। क्या सोमरस का समर्थन कर रहे है। तो हम क्लीयर कर देते है। हमारा इशारा पिछले दिनों हुई एक कथा की तरफ है। जिसे एक बिल्डर ने प्रायोजित किया था। कथा मोटीवेशनल नेत्री की थी। जो कि इंदौर रोड के किसी रिसोर्ट में ठहरी थी। उनके साथ कई वीवीआईपी भक्त थे। जो वहीं रूके थे। इन भक्तों की सुविधा के लिए एक दिन का बार लायसेंस लिया गया था। फिर सोमरस की पार्टी हुई। जिसमें मांसाहारी भोजन भी शामिल था। ऐसी चर्चा बिल्डर लॉबी कर रही है। मगर हमको आदत के अनुसार चुप रहना है।
वसूली ...
सरकारी विभागों में वसूली आम बात है। जिसे आमजनता भ्रष्टाचार कहती है। जबकि वसूली करने वाले इसे शिष्टाचार कहते है। लेकिन देश के भविष्य छात्रों के लिए आने वाली राशि से वसूली केवल और केवल भ्रष्टाचार है। ऐसा हम नहीं, बल्कि उस विभाग के कर्मचारी बोल रहे है। जो इस वसूली से दु:खी है। वसूली प्रतिमाह आने वाली कुल राशि का 10 प्रतिशत है। उन होस्टलों से वसूली होती है। जहां जनजाति के छात्र अध्ययन करते है। प्रोटोकॉल के नाम पर। वसूली करने वाला एक ड्रायवर है। जो कि जिला और सहायक आयुक्त कार्यालय के नाम पर उगरानी करता है। ताज्जुब की बात यह है। ड्रायवर 10 प्रतिशत के अलावा 1 प्रतिशत अपने लिए भी करता है। यह वही विभाग है। जिसका प्रभार अभी-अभी अपने उत्तम जी ने, संकुल की जिज्जी को दिया है। अब देखना यह है कि अपनी जिज्जी इस वसूली पर कैसे रोक लगाती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
वादा ...
मेडिकल कॉलेज की जमीन का मामला याद होगा। जिसको लेकर 7 जिलो के मुखिया ने समीक्षा की है। पिछले सप्ताह। अपने उत्तम जी भी मौजूद थे। समीक्षा जमीन को लेकर थी। जहां अपने उत्तम जी ने वादा कर लिया है। जमीन के मामले में स्टे 30 दिनों के अंदर हट जायेंगा। इस मामले को लेकर विरोधी पक्ष ने एक नोटिस भी जारी किया है। अपने उत्तम जी को। इधर ताज्जुब की बात यह है। जमीन को लेकर अमल दराज करने का मामला अभी तक लंबित है। अब देखना यह है कि अपने उत्तम जी कैसे इस मामले को निपटाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
धंधा ...
मंदिर के गलियारों में चर्चा है। एक धंधे की। जिसमें सुरक्षाकर्मी शामिल है। यह धंधा भस्मार्ती भभूत बेचने का है। एक पुडिया की कीमत 500 रूपये है। पुडिया बेचने का काम सुरक्षा से जुड़ी एक महिलाकर्मी करती है। जिनकी ड्यूटी अकसर नंदीहॉल के आसपास लगती है। दिनभर में 10 से 20 पुडिया भस्मार्ती भभूत के नाम पर भक्तों को टिका दी जाती है। अंदर की खबर यह है। मैडम... अपने घर से कंडे की राख की भभूत बनाकर लाती है। बाहर से आये भक्तों को 500 रूपये में थमा देती है। इस काम में कुछ और सदस्य भी शामिल है। ड्यूटी खत्म होने तक 5-10 हजार का धंधा हो जाता है। जो आपस में बाट लिया जाता है। अब देखना यह है कि ... अपने इंदौरीलाल जी इस धंधे को पकड़ पाते है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
खौफ ...
इस शीर्षक का अर्थ हमारे पाठक, हमसे बेहतर समझते है। मगर वह यह नहीं जानते है। आखिर किसका खौफ है। तो इशारा अपने पिस्तौल कांड नायक की तरफ है। जिनसे केवल कमलप्रेमी ही खौफ नहीं खा रहे है। बल्कि उनके कार्यालय के पडोसी भी खौफ में है। तभी तो पिस्तौल कांड नायक की जीत के बाद सहमे हुए है। नतीजा उन्होंने अपने ऑफिस को बेचने का विज्ञापन सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया है। ऐसा हम नहीं, बल्कि अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। सच-झूठ का फैसला हमारे समझदार पाठक खुद कर ले। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
ईमानदारी ...
सबसे पहले बधाई। किसको। अपने बदबूवाले शहर के डॉक्टर साहब को। जिन्होंने पंजाप्रेमी को हराकर साबित कर दिया। विनम्रता से बड़ा कोई हथियार नहीं होता है। हालांकि डॉक्टर साहब को हराने के लिए कमलप्रेमी दरबार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर भी डॉक्टर साहब ने चुप्पी साधे रखी। नतीजा ... जीत हासिल हुई। इसके बाद अभी-अभी डॉक्टर साहब ने ईमानदारी दिखाई। 7 पेटी संगठन को वापस कर दी। उनकी इस ईमानदारी को हमारा सेल्यूट। मगर बदबू वाले शहर में एक गीत सुनाई दे रहा है। ये पब्लिक है सब जानती है। गीत इसलिए कमलप्रेमी गुनगुना रहे है। क्योंकि उनको पता है। 13 पेटी में चुनाव लडना असंभव: है। पर्दे के पीछे आई राशि कई गुना ज्यादा थी। जिसे खर्च करके चुनाव जीता गया है। ऐसा कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
धाक ...
दक्षिण के कमलप्रेमी इन दिनों यह अशआर खुलकर सुना रहे है। शायर नदीम शाद को याद कर रहे है। जिनका यह शेर है। आपसे पहले उनको भी इस मिट्टी में डाल दिया/ आपसे पहले जो दुनियां में धाक जमाया करते थे...! इशारा किस तरफ है। यह हमारे समझदार पाठकगण खुद सोच-समझकर फैसला करें। मगर हम यह क्लीयर कर दें। इशारा 25 हजारी जीत की तरफ है। जो मतगणना से पहले किया था। बाप का दूध पिलाने वाले ने। अब कमलप्रेमियों की जुबान तो हम पकड़ सकते नहीं है। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
विरोध ...
पंजाप्रेमियों में अब विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं। खासकर इस कड़ी हार के बाद। पंजाप्रेमी हार का ठीकरा संगठन के मुखिया पर फोड रहे हैं। अपने 5 वीं फेल नेताजी और सूरज अस्त- हम मस्त पर। दोनों को हटाने को लेकर पंजाप्रेमी एकजुट हो रहे है। वजह... पंजाप्रेमियों ने मान लिया है। कमल को जितवाने के पीछे, संगठन के मुखिया की निष्क्रियता रही है। इन्हीं के कारण इतनी बुरी तरीके से हारे है। पंजाप्रेमी उदाहरण दे रहे है। सूरज अस्त- हम मस्त का। जिनके बूथ से कमल को जीत मिली है। अब देखना यह है कि राजधानी में बैठे पंजाप्रेमी क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
हाइनेस...
इस हाइनेस शब्द का क्या मतलब होता है। तो आप गूगल-बाबा पर जाकर सर्च कर सकते है। हम तो सीधे आपको यह बताते है। कमलप्रेमी आखिर किसको हाइनेस बुलाते है। तो 3 तारीख को चुने गये उत्तर के माननीय हाइनेस है। पहले इनके करीबी इस नाम से बुलाते थे। अब चुनने के बाद हर कोई हाइनेस बुला रहा है। इधर हाइनेस भी उसी तरह व्यवहार कर रहे है। अपने-अपने लोगों को लड्डू थमा रहे है। जिनको यह लड्डू मिल रहे है। वह सभी दक्षिण के निवासी है। जबकि चुनाव जितवाने में उत्तर के कमलप्रेमियों ने दिन-रात मेहनत की। फिर भी लड्डू दक्षिण वालो को मिल रहे है। तभी तो उत्तर वाले कमलप्रेमी अपने हाइनेस को लेकर चर्चा कर रहे है। अगर अभी से हाइनेस का यह व्यवहार है। तो आगे के 5 साल हमारा क्या होगा? देखना यह है कि अपने हाइनेस जी, उत्तर के कमलप्रेमियों को कब लड्डू थमाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मेरी पसंद ...
जमीं पे घर बनाया है/ हम जन्नत में रहते हैं।
हमारी खुशनसीबी है/ हम भारत में रहते हैं।।