12 दिसम्बर 2022 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

12 दिसम्बर 2022 (हम चुप रहेंगे)

दिल बेरहम ...

माले मुफ्त - दिल बेरहम...! इस कहावत से हमारे पाठक परिचित होंगे। इसलिए हम सीधे मुद्दे की बात करते है। मामला नवम्बर माह का है। जब अपने पपेट जी का तबादला हो गया था। उसी दौरान 2 रूम 1 होटल में बुक करवाये गये। 1 रूम का किराया 70 हजारी था। बनारस शहर में रूम बुक हुए थे। मगर  इनका उपयोग नहीं हुआ। लेकिन जिसके माध्यम से रूम बुक करवाये गये। उसको भुगतान के लिए पापड़ बेलना पड़ गये। रूम कैंसिल करवाने की सूचना भी नहीं दी गई। दोनों रूम स्मार्ट भवन के निर्देश पर बुक करवाये गये थे। नतीजा ... बुक करवाने वाले ने गुहार लगाई। आखिरकार, पिछले दिनों भुगतान हो गया। अब भुगतान किसने किया... किस मद से किया... इसको लेकर सभी चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

डर ...

बाबा तुलसीदास लिख गये है। भय बिन प्रीत ना होये गुसांई। इस दोहे की चर्चा शिवाजी भवन के गलियारों में सुनाई दे रही है। इशारा एक पंजाप्रेमी नगरसेवक और अपने खजांची जी की तरफ है। पंजाप्रेमी नगरसेवक ने खजांची जी की शिकायत की थीभ्रष्टाचार को लेकर। जिसके बाद इस मामले में नया मोड आ गया। नगरसेवक के मकान को लेकर पुरानी शिकायत पर नोटिस जारी हो गया। नगर सेवक ने दूसरे की जमीन पर मकान बना रखा है। यह नगरसेवक, अपने दमदमा के मीठी गोली वाले नेताजी के चेले है। जैसे ही नोटिस जारी हुआ। नगरसेवक में डर बैठ गया। उन्होंने गुहार लगाई। खजांची जी से समझौता करने को तैयार हो गये। शिकायत वापस लेने की बात भी कही। तभी तो शिवाजी भवन में इस पंजाप्रेमी नगरसेवक को देखकर डर की चर्चा सुनाई दे रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।  

साफगोई...

अपने कमलप्रेमी पहलवान, अपनी साफगोई के लिए जाने जाते है। काम होगा या नहीं। सीधे-सीधे बोल देते है। ताजा मामला नगरसेवक को चाकू मारने से जुड़ा है। जिसमें समझौते को लेकर अपने कमलप्रेमी पहलवान के पास फोन आया फोन करने वाले भी पंजाप्रेमी पहलवान है। जिन्होंने गुहार लगाई। अपने स्वजातीय बंधुओं को बचाने के लिए। लेकिन अपने कमलप्रेमी पहलवान ने साफ लफ्जों में इंकार कर दिया। यह जवाब सुनकर पंजाप्रेमी पहलवान चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

खौफ ...

क्या शहर में वर्दी का खौफ पूरी तरह खत्म हो गया है! यह सवाल आमजनता का है। जबकि अपने विकास पुरूष का यह गृह जिला है और अपने कप्तान भी काफी सख्त मिजाज है इसके बाद भी गुंडो के हौसले बुलंद है। मेले में मर्डर, घर में घुसकर नाक काटना और नगरसेवक को चाकू मारना। इन 3 घटनाओं से तो यही साबित हो रहा है। शहर में वर्दी का खौफ बचा नहीं है। इसके पीछे आखिर क्या कारण है। तो आमजनता में यह चर्चा आम है। वर्दी और गुंडो के बीच गहरा याराना है। अब देखना यह है कि अपने विकास पुरूष और सख्त मिजाज कप्तान, अपनी वर्दी का खौफ (रूतबा) वापस दिलवा पाते है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है। 

ख्वाब ...

मिशन-2023 के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई है। सभी की निगाहें अपने पहलवान की सीट पर है। इसीलिए तो मिशन-उत्तर के नाम से सोशल मीडिया पर एक ग्रुप बनाया गया। यह ग्रुप एक संतश्री के लिए बनाया गया था। कट्टर हिन्दूवादी संत है। उनका ख्वाब है। मिशन-उत्तर। टेलीग्राम पर ग्रुप बना था। मगर फिर 2 दिन के अंदर ही ग्रुप को डिलीट कर दिया गया। जिसका कारण बताने को कोई तैयार नहीं है। पूछने पर, हिन्दूवादी कट्टर संत की तरफ इशारा करके, जवाब देने वाले चुप हो जाते है। तो हम भी संतश्री के ख्वाब पर, कोई टिप्पणी नहीं करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

वोटगिरी ...

रविवार की अलसुबह कोठी रोड पर खूब चहल-पहल थी। कई नये चेहरे नजर आये। इन चेहरो में अधिकांश कमलप्रेमी थे। जो इतनी ठंड में भी रजाई- सुख छोड़कर आये थे। आखिर ... मामला अपने विकास पुरूष का था। जिन्होंने इस  आयोजन से अपने चाचा चौधरी जी की याद दिला दी। अपने चाचा चौधरी ने ही इस राहगिरी की शुरूआत की थी। भव्य स्तर पर पहला आयोजन हुआ था। शहरवासी उमड पड़े थे। मगर, आज पहले जैसा जनसैलाब नहीं था। यह बात हम नहीं, बल्कि खुद कमलप्रेमी ही बोल रहे है। इसके साथ ही दबी जुबान से कह रहे है। इसका नाम बदलकर वोटगिरी कर देना था। अब बोलने वालो की जुबान तो हम पकड नहीं सकते है। इसीलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चोट ...

अपने विकास पुरूष के साथ फिर चोट हो गई। ऐसा दूसरी दफा हुआ है। इस 1 साल के अंदर। पहली चोट इसी साल दीपोत्सव पर्व पर हुई थी। जिसकी व्यवस्था पूरी अपने मामाश्री और उम्मीद जी के हाथ में थी। इस साल के अंत से पहले एक बड़ा कार्यक्रम होने वाला है। जिसमें अपने परम पूज्य जी सहित केन्द्र के मोटा भाई, अपने मामाजी और कई नामी-गिरामी हस्तिया मौजूद रहेंगी।  3 दिवसीय कार्यक्रम है। जल विषय पर। जिसके संयोजक अपने विकास पुरूष बनना चाहते थे। ऐसी कमलप्रेमियों में चर्चा है। लेकिन मामाजी ने अपने उदासीन बाबा की संस्था को जिम्मेदारी सौंप दी। नतीजा .... कमलप्रेमी इसे अपने विकास पुरूष के साथ हुई चोट की संज्ञा दे रहे है। वह भी एक साल में दूसरी दफा। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

चेला शक्कर ...

गुरू गुड और चेला शक्कर। यह कहावत इन दिनों अपने पंजाप्रेमी याद कर रहे है। कहावत याद करने का कारण भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ा है। कहावत में गुरू अपने बिरयानी नेताजी है। जबकि चेला, काले कोटधारी है। जो कभी पक्के कमलप्रेमी थे। भगवाधारी साध्वी के खास थे। सुश्री साध्वी प्रदेश की मुखिया रह चुकी है। उनसे मोह भंग हुआ तो काले कोटधारी, अपने बिरयानी नेताजी के चेले बन गये। इन्ही के पास यात्रा की यातायात व्यवस्था थी। इसलिए, यात्रा के युवराज से मिलने का मौका इनको मिल गया। जबकि, अपने बिरयानी नेताजी को कॉलेज के बाहर से बैरंग लौटना पड़ा था। तभी तो पंजाप्रेमी गुरू गुड- चेला शक्कर ... इस काले कोटधारी चेले को देखकर बोल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

आदेश ...

अपने मामाजी पिछले दिनों आये थे। बहुत अल्प प्रवास पर। श्रद्धांजलि देने। तब वह एक आदेश दे गये थेमिल- मजदूरों से हो रही अवैध वसूली पर रोक लगाने का। कार्यवाही करने का। अपने पहलवान ने उनके समक्ष मजदूरों से 5 प्रतिशत वसूली का कांड उजागर किया था मगर, उस आदेश पर क्या हुआ? यह किसी को पता नहीं है। जबकि मजदूरों से भुगतान के बदले अवैध वसूली की गई। इसका पता सभी को है। अपने विकास पुरूष और पहलवान को भी दीवाली मिलने आये मजदूरों ने तो विकास पुरूष से खुलकर शिकायत की थी। जिसके चश्मदीद अपुन खुद है। मगर कोई कार्यवाही नहीं हुई। नतीजा ... अपने मामाजी तक मामला पहुंच गया। किन्तु उनके आदेश के बाद भी, कार्यवाही करने वाले चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

दु:खी ...

अपने युवा कमलप्रेमी इन दिनों दु:खी है। उनके दु:ख की वजह 2 है। पहला दु:ख इस बात का है। युवा कमलप्रेमी संस्था के नये मुखिया भी लाचार और बेबस  निकले। उन्होंने अपनी नई टीम जल्दी बनाकर, घोषणा का वादा किया था। किन्तु, वह भी पुराने मुखिया के तरह ही निकले। जो बगैर टीम बनाये ही विदा हो चुके है। नये मुखिया भी अपनी टीम की घोषणा कब करेंगे? कोई नहीं बता सकता है। मगर युवा कमलप्रेमियों का दु:ख घोषणा से ज्यादा स्वागत से जुड़ा हैनये मुखिया को अपना स्वागत करवाने का कुछ ज्यादा ही शौक है। उनके इस शौक के चक्कर में, उनके ही साथी, अब उनको स्वागत जी के नाम से पुकारने लगे है। अब, युवा मुखिया को, अगर ... स्वागत जी-स्वागत जी के नाम से पुकार रहे है। तो हम इसमें क्या कर सकते है। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप ही रह सकते है।

सांठ-गांठ ...

शिवाजी भवन सांठ-गांठ के लिए कुख्यात है तभी तो एक ऐसी कंपनी पर मेहरबानी की जा रही है। जो कि शिवाजी भवन को माननीय उच्च न्यायालय तक ले गई। जहां से कंपनी को फटकार भी लगी और जुर्माना भी। इसके बाद भी कंपनी से सांठ-गांठ जारी है। शिवाजी भवन में चर्चा है कि ... स्वच्छता का काम करने वाली इस कंपनी पर एक अधिकारी मेहरबान है। तभी तो 1-1 महीने का कार्यकाल बढ़ाया जा रहा है। जबकि नई निविदा निकले ढाई महीने हो चुके है। नई कंपनी को नियमानुसार टेंडर मिल चुका है। केवल कार्यआदेश देना बाकी है। फिर भी, हर दफा सांठ-गांठ करके, पुरानी ही कंपनी से काम करवाया जा रहा है। ताज्जुब की बात यह है कि ... इस सांठ-गांठ में कुछ कमलप्रेमी नगरसेवक भी शामिल है। क्योंकि उनकी जेब गर्म करती है कंपनी। अब देखना यह है कि ... शिवाजी भवन के अपने अनफिट जी, इस सांठ-गांठ को रोक पाते है या नहीं। क्योंकि फाइल एक बार फिर कार्यकाल बढ़ाने के लिए आगे बढ़ चुकी है और हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।