19 जुलाई 2022 (हम चुप रहेंगे )
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
उधारी ...
चुनाव के दौरान टिकिट वितरण के बाद यह चर्चा थी। अपने पहलवान ने एक टिकिट उसको दिलवा दिया। जिसने उनकी 40 पेटी की उधारी चुका दी थी। उस वक्त 20 पेटी देने की चर्चा थी। नतीजा प्रत्याशी बना दिया। जिसका कमलप्रेमियों ने खूब विरोध किया। वार्ड में उसे बाहरी बताया गया। इस प्रत्याशी की पंजाप्रेमी प्रत्याशी से खूब झड़पे हुई। मतदान की पूर्व रात्रि में योगेश्वर टेकरी पर भी भिडंत हुई थी। मगर इसके बाद भी पहलवान के कोटे वाला प्रत्याशी आखिरकार जीत गया। पहलवान की बाकी उधारी भी मिल जायेगी। लेकिन विजय प्रत्याशी से टेंट वाला दु:खी है। 85 हजारी उधारी चुनाव के दौरान हुई। रिजल्ट के पहले 45 हजारी पर समझौता हुआ। मगर तब 11 हजारी देने की पेशकश हुई थी। अब जबकि रिजल्ट आ गया है। प्रत्याशी भी जीत गया है। तो ऐसे में टेंट वाले को अपनी उधारी डूबती हुई नजर आ रही है। ऐसा उस वार्ड के कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
शिकायत ...
अब शिकायत की खबर मंदिर के गलियारों से। जहां पर इसकी दबी जुबान से खूब चर्चा है। इस चर्चा के केन्द्र बिंदू अपने चुगलीराम जी है। जिनको लेकर एक अनाम शिकायत हुई है। शिकायत सीधे अपने मामाजी को भेजी गई है। भेजने वाली मंदिर में कार्यरत महिला कर्मचारी है। शिकायत को हस्त लिखित नहीं भेजते हुए टाइप करके भेजा है। जिसमें अपने चुगलीराम जी पर बहुत गंभीर आरोप लगाये है। शिकायत में वीडियों और फोटो बतौर सबूत होने का भी उल्लेख है। अब इस शिकायत में सच कितना है? झूठ कितना है? इसका फैसला तो बाबा महाकाल करेंगे या फिर अपने मामाजी। हम तो कोई सच और झूठ का फैसला करने वाले है नहीं। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दबाव ...
कभी कभार वर्दी पर ज्यादा दबाव बनाना, एक कहावत को चरितार्थ कर सकता है। कहावत यह है कि ... गये थे नमाज पढऩे... रोजे गले पड़ गये। धारा 34 के एक आरोपी के साथ ऐसा ही हुआ। वर्दी ने सट्टे के आरोप में पकड़ा था। जिसमें जमानत आसानी से मिल जाती। मगर सटोरिये के कनेक्शन उच्च लेबल के थे। राजधानी तक। जिसके लिए 10 पेटी प्रतिमाह का भुगतान उच्च लेबल पर करते थे। बस इसी का फायदा उठाकर, वर्दी पर दबाव बनाया। इधर-उधर और न जाने किधर-किधर से फोन लगवा दिये। स्थानीय स्तर पर एक पंडित जी भी है। जो कि राजधानी में मुंह लगे है। उन्होंने भी खूब दबाव बनाया। नतीजा ... वर्दी ने अपना कर्तव्य दिखा दिया। 34 के अलावा 420 भी लगा दी। ढेर सारी सिमों के उपयोग के नाम पर। अब सटोरिये जी, श्रीकृष्ण की जन्मस्थली में शरण लिये हुए है। जिसके लिए हम वर्दी को साधूवाद देकर, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
भेदी ...
घर का भेदी- लंका ढहाये। इस कहावत से हर कोई परिचित है। मगर अभी हाल ही में इस कहावत से वर्दी को बहुत मदद मिली। जिसने छिपाकर रखे गोल्ड की पोल खोल दी। वर्दी तो केवल सट्टा पकडऩे गई थी। उसको इस बात की जानकारी आखिर कैसे लगी। फला-फला जगह की तीसरे नम्बर की टाइल्स खोखली है। बजाकर देखोंगे। तो आवाज आयेंगी। उसको हटाने पर खजाना मिलेगा। वर्दी ने ऐसा ही किया। खजाना मिल गया। अब सवाल यह है कि आखिरकार घर का भेदी कौन है। जिसने यह अंदरखाने की खबर दी। अब यह भेदी कौन था? उसने क्यों यह खबर दी? इससे हमारा क्या लेना-देना। हम तो बस वर्दी के अच्छे काम की तारीफ करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
लात ...
अपने उम्मीद जी बाल-बाल बच गये। रविवार की शाम की घटना है। पंजाप्रेमियों का आक्रोश चरम पर था। अपने उम्मीद जी भी पूरी हिम्मत से सामना कर रहे थे। हर सवाल का जवाब दिया। इस बीच एक मौका ऐसा आया। जब उनको चारों तरफ से घेर लिया था। वर्दी भी मौजूद थी। सुरक्षा घेरा भी था। मगर किसी पंजाप्रेमी ने नीचे से घुसने की कोशिश की। उम्मीद जी के पैर की तरफ हाथ बढाया। इरादा गलत ही था। लेकिन अपने उम्मीद जी के साथ रहने वाले बटालियन के सुरक्षाकर्मी की नजर पड गई। उसने तत्काल अपने पुलिस के बूट से ऐसी लात जमाई। नतीजा ... अपने उम्मीद जी को गिराने आया, पंजाप्रेमी खुद लात खाते ही भागा। इधर अपने सूरज जी भी धक्के का शिकार हुए। बेरिकेड्स के सहारे बच गये। पंजाप्रेमियों की इस हरकत पर हम आखिर क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
साबित ...
तो अपने विकास पुरूष ने एक बार फिर खुद को साबित किया। ठीक 2018 की तरह। जब सभी कमलप्रेमी बोल रहे थे। खुद अपने मामाजी ने हेलीपेड पर पूछ लिया था। जीत जाओंगे। विकास पुरूष ने गर्दन हिला दी थी। अब नगरीय निकाय चुनाव में विकास पुरूष ने फिर इतिहास दोहराया। टिकिट वितरण के बाद खूब असंतोष था। कमलप्रेमी सवाल उठा रहे थे। दक्षिण की मनमर्जी, विकास पुरूष को भारी पड़ेगी। लेकिन राजनीति के चतुर खिलाड़ी विकास पुरूष ने साबित कर दिया। वह लंगड़े घोडो पर दाव नहीं खेलते है। उनको अंदाजा था कि कौन जीत सकता है। इसीलिए तो 19 नगर सेवक बनवाकर ले आये। जिसका फायदा उनको सभापति की कुर्सी के लिए मिलना पक्का है। जल्दी ही शिवाजी भवन के अंदर अपनी बहन जी की तूती बोलेगी। ऐसा अब कमलप्रेमी बोल रहे है। जिसका फैसला वक्त करेंगा। लेकिन विकास पुरूष ने खुद को साबित कर दिया है। जिसके लिए हम केवल साधूवाद देकर, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
लाज ...
आखिरकार उज्जैन के लाल (अभी नामकरण नहीं समझे) की लाज बच गई। अपने चरणलाल जी की किस्मत ही खराब थी। अगर 2-3 ईवीएम उत्तर की और बाकी रहती। तो उज्जैन के लाल की मिट्टी पलीत होने में कोई कसर नहीं बची थी। शुरूआत से ही खुद कमलप्रेमी यह बोल रहे थे। पंजाप्रेमी चरणलाल जी बाजी मार लेंगे। अपने चरणलाल जी ने भी आखिरी दम तक सबकी सांसे रोके रखी। फिर किस्मत से हार गये। लेकिन उनकी इस किस्मत को लिखने वाले अपने आराधना भवन वाले थे। जिन्होंने मतदान के 2 दिन पहले हिंदूत्व के मुद्दे को खूब उछाला। सोशल मीडिया के सहारे। उदयपुर कांड याद दिलाया। जिसने मतदाताओं की आत्मा को झकझोर दिया। जिसका परिणाम यह निकला कि उज्जैन के लाल की लाज बच गई। यह सब हम नहीं, बल्कि खुद कमलप्रेमी बोल रहे है। कमलप्रेमियों की बात में दम भी है। लेकिन हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
पहाड़ा ...
दाल-बिस्किट वाली तहसील के कमलप्रेमी इन दिनों एक पहाड़ा याद कर रहे है। पहाड़ा 7 अंक वाला है। जिसके 14 पर जाकर कमलप्रेमी अटक जाते है। इससे आगे नहीं बढ़ते है। इस पहाड़े का आशय अभी-अभी आये परिणाम से जुड़ा है। जिसमें 7 नम्बर से एक नेत्री को टिकिट मिला था। अपने लेटरबाज जी की मेहरबानी से। इसी तरह 14 का मामला है। यहां से कमल प्रत्याशी को राजधानी की सिफारिश पर टिकिट मिला था। समर्पित कार्यकर्ता को नहीं दिया। उन्होंने बागी होकर चुनाव लड़ा। जब रिजल्ट आया तो 7 और 14 दोनों धराशायी हो गये। तभी तो दाल-बिस्किट वाली तहसील के कमलप्रेमी 7 दुनी 14 बोल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
चलते-चलते ...
कमलप्रेमियों का दावा था कि रिजल्ट के बाद दाल-बिस्किट वाली तहसील से मैडम का हटना पक्का है। इसी तरह वर्दी वाले एक युवा अधिकारी को लेकर भी हटाने की चर्चा है। देखना यह है कि कमलप्रेमी इस मकसद में कामयाब होते है या नाकाम। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।