20 मई 2024 (हम चुप रहेंगे)

20 मई 2024 (हम चुप रहेंगे)

अनुभव ...

अपने दूसरे माले के मुखिया को पहली दफा ऐसा अनुभव हुआ होगा? अभी-अभी 16 मई को। जब वह बच्चों के साथ तारामंडल गये थे। 30 मिनिट का शो देखने। इस शो के दौरान 2 दफा लाइट गुल हुई। जिसके चलते दूसरे माले के मुखिया भी बेचैन हो गये। उनका संभवत: पहला अनुभव था। लाइट जाने पर कैसा लगता है। तभी तो उन्होंने फोन लगाकर फटकार लगा दी। व्यवस्था सुधारने के लिए। मगर व्यवस्था में सुधार हुआ या नहीं। यह हमको नहीं पता। लेकिन यह पता है। उसी दिन चुप रहेंगे डॉटकॉम ने बिजली गुल होने का मुद्दा उठाया था। अब देखना यह है कि बिजली विभाग पर अपने दूसरे माले के मुखिया का कितना जोर चलता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

आसार ...

संकुल के गलियारों में आसार नजर आ रहे है। यह आसार बगावत की तरफ इशारा कर रहे है। खुलकर तो कोई कुछ नहीं बोल रहा है। मगर 3 अशआर सुनाई दे रहे है। 1. वो डसते तो हैं मगर जहर नहीं छोड़ते/ कुछ तो लिहाज रखते है मेरी आस्तीन में पलने का...। 2. सारी शिकायते तेरे लहजे से है/ लफ्जों पे तो एतराज कर ही नहीं रहा हूं...। 3. तेरे मेरे बीच कोई अनबन नहीं है/ बस अब पहले जैसा मन नहीं है...। अब इन अशआर के माध्यम से इशारा किस तरफ है। इसको लेकर सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चेतावनी ...

कोई भी अननोन नंबर से अगर फोन आता है। तो उसको उठाये। मैं खुद भी चेक करूंगा। 1 महीने से ज्यादा की कोई भी शिकायतें पेंडिग नहीं रहना चाहिए। ग्राम के गणमान्य नागरिकों से जीवंत संपर्क रखे। जिनको एक ही जगह काम करते-करते 8 साल हो चुके है। उनकी सूची बनाकर भेजी जाए। यह चेतावनी है। अपने दूसरे माले के मुखिया की। जो उन्होंने मतदान खत्म होने के अगले दिन हुई बैठक में दी। सभी ग्राम देवताओं को। यह भी साफ-साफ बोल दिया। हरे-हरे रंग के कागज लेना बंद कर दो। वरना ठीक नहीं होगा। देखना यह है कि इस चेतावनी का कितना असर ग्राम देवताओं पर होता है। वह हरे रंग का मोह छोड़ पाते है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चिराग तले ...

शीर्षक पढक़र हमसे ज्यादा समझदार पाठकगण समझ गये होंगे। हम कौन सी कहावत की तरफ इशारा कर रहे है। इसलिए हम कहावत को छोडक़र सीधे मुद्दे पर आते है। अपने दूसरे माले के मुखिया ने चेतावनी दी है। गलत काम नहीं करने और हरे-हरे रंग के कागजों से बचने की। मगर उनको शायद पता नहीं है। एक राजस्व अधिकारी ने इस काम के लिए 2 दलाल नियुक्त कर रखे है। उनकी कोर्ट में जैसे ही कोई आवेदन आता है। वहां बैठे दोनों दलालों में से कोई एक फरियादी से संपर्क करता है। सौदा करता है। फिर काम आसानी हो जाता है। यह वही अधिकारी है। जिनके कारण चिन्हित प्रति के काम में गडबडी हुई थी और कक्ष क्रं. 110 में 24 घंटे तक काम चला था। संकुल के गलियारों में तो यही चर्चा है। जो कि सच भी है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

शिकार ...

अपने स्मार्ट पंडित जिस शिकार को चुनते है। उसको फिर छोड़ते नहीं है। शिकार लाख जतन कर ले। आखिरकार तीर(कलम) से वह मर ही जाता है। जैसे अभी-अभी एक उपयंत्री शिकार हो गये। जिसका खुलासा 6 मई को ही चुप रहेंगे ने कर दिया था। स्मार्ट पंडित ने उपयंत्री को पहले ही चुन लिया था। बस सही वक्त का इंतजार था। जैसे ही आया, शिकार कर लिया। ऐसा हम नहीं, बल्कि शिवाजी भवन वाले बोल रहे है। मगर हमको चुप ही रहना है।

लिफ्ट ...

पिछले दिनों अपने विकासपुरूष आये थे। रात्रि विश्राम भी किया। अगले दिन दुर्गा प्लाजा पहुंचे थे। अपने वीर जी से मिलने। यहां पर लिफ्ट लगी थी। विकासपुरूष तो पहुंच गये। मगर एक वर्दीधारी अधिकारी लिफ्ट में फंस गये। उनकी लिफ्ट का दरवाजा खुला ही नहीं। बेचारे परेशान हो गये। क्योंकि यह हमेशा विकासपुरूष की चापलूसी में लगे रहते है। ऐसी चर्चा वर्दीवाले कर रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

2010 ...

आखिरकार, फर्जी बिल कांड में जांच शुरू हो गई है। एसआईटी का आगमन देवी अहिल्यानगरी में हो गया है। जांच कमेटी ने 1 घंटे तक बैठक ली। जिसमें उन्होंने निर्देश दिए। सन् 2010 से रिकार्ड निकालकर तत्काल राजधानी भेजे। एक फार्मेट देकर गये है। अपने मि. ईवनिंग। इस फार्मेट में पूरी जानकारी भेजनी है। पिछले 13 सालों की। बैठक में अपने उम्मीद जी भी मौजूद थे। जो आजकल अहिल्यानगरी के मुखिया है। अब देखना यह है कि फर्जी बिल कांड में पिछले 13 सालों से पदस्थ रहे कौन-कौन अधिकारी लपेटे में आते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

परेशान...

संकुल के गलियारों में बैठने वाले कई राजस्व अधिकारी परेशान है। उनकी परेशानी का कारण अभी-अभी कमलप्रेमी बने नेता है। जो कि कभी पंजाप्रेमी थे। इनके फोन को राजस्व अधिकारी उठाते नहीं थे। मगर अब कमलप्रेमी बन गये है। तो फोन करके परेशान कर रहे है। ताजा मामला पिछले सप्ताह का है। जिसमें एक एसडीएम को फोन करके गोल-मटोल जी ने बोल दिया। हमारा नंबर सेव कर लो। अब हम कमलप्रेमी है। ऐसे एक नहीं अनेक नये-नये कमलप्रेमी है। जो कि पंजाप्रेमी रहते हुए दलाली का काम करते थे। अब कमलप्रेमी बन गये है तो वापस अपना धंधा शुरू करना चाहते है। इसलिए ग्राम देवताओं की शिकायते कर रहे है। बेचारे ग्राम देवता और राजस्व अधिकारी परेशान है। मगर कर कुछ नहीं सकते है। इसलिए चुप है। तो हम भी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

प्रकरण ...

फर्जी कागजातों और आरक्षण की आग में प्लाट लेने वाले 2 खबरची इन दिनों निशाने पर है। उनके द्वारा प्रस्तुत किये कागजातों की जांच बारीकी से की जा रही है। जिससे यह तय माना जा रहा है। इन दोनों पर जल्दी ही प्रकरण दर्ज हो सकता है। फैसला आने वाला वक्त करेंगा। मगर इसकी चर्चा मीडिया में सुनाई दे रही है। लेकिन हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

रिकवरी ...

कोई जरूरी नहीं है। रिकवरी केवल हेल्थ की हो? कभी-कभी चुनावी खर्च की रिकवरी भी की जाती है। ऐसा हम नहीं, बल्कि पंजाप्रेमी बोल रहे है। इशारा अपने चरणलाल जी की तरफ है। जिन्होंने मिशन-2023 में किये गये खर्च की रिकवरी 2024 में की है। 23 में दिल खोलकर खर्च किया था। मगर 24 में 23 में किये गये खर्च की रिकवरी चंदे के रूप में कर ली है। अब बात सच है या झूट? फैसला खुद पंजाप्रेमी कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

फेरबदल ...

पंजाप्रेमियों में चर्चा है। मिशन-2024 का रिजल्ट आने के बाद फेरबदल होगा। 5 वीं फेल नेताजी की विदाई होना पक्का है। उनकी जगह अपने चरणलाल जी ने राखी बंधन वाले जीजा जी का नाम आगे बढाया है। ऐसा पंजाप्रेमी बोल रहे है। देखना यह है कि जीजाश्री मुखिया बनते है या इंदौर रोड ग्रामीण में रहने वाले निनौरा के युवा नेता। फैसला वक्त करेंगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चर्चा ...

शिवाजी भवन के गलियारों में चर्चा है। स्वर्गीय चिंतक- विचारक रजनीश के विचार की। जिसमें उन्होंने कहा था। बस इतना ध्यान रखिए कि जब आप नहीं थे। तब भी दुनिया आराम से चल रही थी और जब आप नहीं होंगे तब भी चलती रहेगी। ये जो थोडी देर का आपका होना है, इसे उपद्रव बनाने के बजाय उत्सव बनाने में अपनी ऊर्जा लगाए। मगर इस विचार से इशारा किसकी तरफ है। इसको लेकर सब चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मेरी पसंद ...

मैं हूं कमजोर मगर इतना भी कमजोर नहीं/ टूट जाएं न कहीं तोडऩे वाले मुझकों ...