21 अगस्त 2023 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
घबराहट ...
कल्पना कीजिए जरा। अगर आप किसी बैठक में है। ऊंचे ओहदे पर है। बैठक चल रही है। अचानक कोई ऐसा फोन आ जाये। वह भी वीडियो कॉल। जिसे आप सभी से छुपाना चाहते है। मजबूरी में फोन उठाना पड़े। सामने से किसी की दिलकश आवाज आये। हेलो-हेलो। तो घबराहट तो होगी ही। कुछ ऐसा ही प्रवासी विधायक की बैठक में हुआ। अपने द्विअर्थी संवाद वाले नेताजी को वीडियो कॉल आ गया। जो उन्होंने उठा भी लिया। मगर फिर याद आया। वह बैठक में मौजूद है। तो बेचारे घबरा गये। हडबडी में फोन कैसे बंद करें। यह भी भूल गये। उधर सामने से दिलकश आवाज हेलो-हेलो की आती रही। जिसे वहां मौजूद सभी ने सुना। बेचारे द्विअर्थी संवाद वाले नेताजी की घबराहट देखने लायक थी। ऐसा बैठक में मौजूद कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप रहना है।
टोपी ...
इस टोपी का अर्थ तो हमारे पाठक समझते है। मालवी में अकसर बोला जाता है। टोपी पहना दी। ऐसी ही टोपी के शिकार अभी-अभी एक कमलप्रेमी नेता हुए है। टोपी पहनाने वाले अपने लालाजी है। जिन्होंने एक होटल में कार्यक्रम रखा था। मगर खर्चा कौन उठाता। तो उन्होंने घट्टिया क्षेत्र के नेताजी को यह कहकर टोपी पहना दी। मिशन-2023 के लिए सूची में नाम जुड़वा दूंगा। बेचारे नेताजी बातो में आ गये। खर्चा उठा लिया। लेकिन 4 दिन बाद ही प्रत्याशी घोषित हो गये। अपने पिस्तौल कांड के नायक। अब खर्चा करने वाले नेताजी अपना दर्द कमलप्रेमियों को सुना रहे है। जिसकी चर्चा कमलप्रेमी कर रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
मजाक ...
यह जरूरी नहीं है। किसी का मजाक बनाने के लिए कुछ बोला जाये। कभी-कभार दूसरे तरीके से भी मजाक बनाया जा सकता है। शिवाजी भवन के अधिकारी इसी तरीके को आजमाते है। बगैर कुछ बोले ही नगर सेवकों का मजाक बनता है। जैसे 100 पेज का एजेंडा जारी किया। मगर अंग्रेजी भाषा में। वह भी पीडीएफ में। बेचारे .. नगर सेवकों का अच्छा-खासा मजाक बन जाता है। अपनी इस पीडा को नगर सेवक किसी से कह भी नहीं पाते है। बस चुप रह जाते है। तो हम भी उनके मजाक पर अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
बीमारी ...
हमारा आशय शरीर की बीमारी से नहीं है। बल्कि यह तो एक नारा है। जो शिवाजी भवन में अकसर सुनने को मिलता है। नारा यह है। नगर निगम की बड़ी बीमारी ....................! इस खाली स्थान में एक नगरसेवक के नाम का जिक्र होता है। ऐसा अधिकारी और साथी नगरसेवकगण बोलते है। बड़ी बात तब हो गई। जब एक बैठक में यह बीमारी वाला नारा भी लग गया। उस बैठक में वह नगरसेवक भी मौजूद थे। जिन्हें यह नारा समर्पित है। उनका नाम कोई लेता... इसके पहले ही सबको याद आ गया। बीमारी बैठक में मौजूद है। तो सभी चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
काम नहीं करना ...
हमारे पाठको को पिछले सप्ताह का नाराज वाला कॉलम शायद याद होगा। जिसमें हमने अपने उत्तम जी की नाराजगी का उल्लेख किया था। यह घटना उस अधिकारी से जुड़ी है। जो अब अपने उत्तम जी से नाराज है। तभी तो उन्होंने कही पर यह बोला है। अब उत्तम जी के साथ काम नहीं करूंगा। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। न्यूटन के तीसरे नियम का हवाला दिया जा रहा है। क्रिया की प्रतिक्रिया। अब बात सच है या झूठ। कहने और सुनने वाले को पता होगा। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मुझे ही पता नहीं ...
घटना राजधानी की है। उस वक्त की है। जब पहली सूची जारी हुई। मिशन-2023 की। हड़कंप मचना था... तो मचा। कमलप्रेमी संगठन के मुखिया भी अचंभित थे। उनके छर्रे ... उनसे ज्यादा अचंभित। किसी मुंहलगे ने पूछ लिया। भाईसाहब ... यह क्या हो गया ... कैसे हो गया। अब बारी भाईसाहब की थी। उन्होंने जो जवाब दिया। उसे सुनकर प्रश्न करने वाले ने माथा ठोक लिया। जवाब यह था। खुद मुझे पता नहीं था। ऐसा होगा। इसके बाद एक फोन उज्जैन आया। संगठन के कद्दावर महामंत्री का। जिनका आदेश था। प्रत्याशियों का जोरदार स्वागत होना चाहिये। तब जाकर अपने लेटरबाज जी एक्टिव हुए। जोरदार स्वागत हुआ। ऐसा हम नहीं, बल्कि कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
पर्दे के पीछे ...
पिछले सोमवार की घटना है। जब पंजाप्रेमी संगठन के मुखिया आये थे। बाबा के दर्शन करने। उस दौरान उनको हरिफाटक ब्रिज पर तख्तियां दिखाई गई। जिस पर लिखा था। निर्दलीय को टिकिट मत दो। जिसके बाद पंजाप्रेमियों में सुगबुगाहट शुरू हो गई। दबी जुबान से बोला जा रहा है। निर्दलीय मतलब ... दमदमा की मीठी गोली ओर उत्तर की भाभीजी। मगर सवाल यह है। इन तख्तियों को दिखवाने के पीछे कौन पंजाप्रेमी नेता थे। तो इशारा अपने होटलवाले भय्या और छोटा बटला जी की तरफ है। क्योंकि होटलवाले भय्या को दक्षिण और छोटा बटला जी को उत्तर का सपना इन दिनों लगातार आ रहा है। तभी तो तख्तियों का सहारा लिया गया। ऐसा अपने पंजाप्रेमी बोल रहे है। पंजाप्रेमियों की बात में दम है। किन्तु हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
सियार बनाम बिल्ली ...
अपने वजनदार जी के एक बयान पर पलटवार हुआ है। अपने पंजाप्रेमियों की तरफ से। क्योंकि वजनदार जी ने बयान दिया। जब सियार की मौत आती है तो वह शहर की तरफ भागता है। उनका इशारा अपने पंजाप्रेमी चरणलाल जी की तरफ था। जिसके बाद पंजाप्रेमी बोल रहे है। खिसयानी बिल्ली- खम्बा नोचे। इसमें इशारा अपने वजनदार जी की तरफ है। जिनकी दिली इच्छा थी। मिशन-2023 के लिए उनको टिकिट मिल जाये। लेकिन उनकी जगह अपने मैकेनिक जी को टिकिट मिल गया। तभी तो वह सियार वाली कहावत बोल रहे है। जबकि हकीकत बिल्ली वाली है। ऐसा हम नहीं, बल्कि पंजाप्रेमी बोल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
असरदार
चोरी-चोरी ....
चुनावी माहौल में हर नेता, कोई भी कार्यक्रम जोर-शोर से करता है। अखबारों से लेकर सोशल मीडिया पर प्रचार करता है। लेकिन अपने कमलप्रेमी असरदार जी, चोरी-चोरी कार्यक्रम कर रहे है। वह भी धार्मिक कार्यक्रम। पिछले सप्ताह दक्षिण के एक गांव में सुंदरकांड का आयोजन रखा था। करीब 500 श्रद्धालू शामिल थे। भोजन भी था। किन्तु इस कार्यक्रम का कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया गया। इसको लेकर कमलप्रेमियों की अपनी सोच है। एक तो विकास पुरूष का क्षेत्र और दूसरा चुनावी माहौल। अपने असरदार जी मिशन-2023 की दौड में है। शायद ... वाहे गुरू और राम जी की कृपा हो जाये। तभी तो चोरी-चोरी कार्यक्रम करवा रहे है। ऐसा कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
चाचा चौधरी
भविष्यवाणी ...
हमारे चाचा चौधरी तो पाठकों को याद होंगे। जिन्होंने सेवानिवृत्त होने के बाद, कमलप्रेमी संगठन ज्वाइन कर लिया है। अभी-अभी उज्जैन आये थे। कमलप्रेमियों की बैठक में शामिल हुए थे। उनको लेकर अपने 2-नम्बरी इंदौरी नेताजी ने भविष्यवाणी की थी। सन् 2018 से पहले। हेलीपेड पर। जब दोनों आमने-सामने आ गये थे। तब इंदौरी नेताजी ने कह दिया था। विधानसभा सीट तलाश कर लो- टिकिट मैं दिलवा दूंगा। यह सुनकर अपने चाचा चौधरी जी चुपचाप निकल गये थे। लेकिन अब इंदौरी नेताजी की भविष्यवाणी सही साबित हो सकती है। बशर्त अपने इंदौरी नेताजी टिकिट दिलाने के वादे पर कायम रहे। क्योंकि अब चाचा चौधरी कमलप्रेमी है। देखना यह है कि इंदौरी नेताजी टिकिट दिलवाते है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
खोजबीन ...
संकुल के गलियारों में खोजबीन चल रही है। एक ट्रस्ट के पंजीयन नम्बर की। 1977 में बना था यह ट्रस्ट। जिसके अध्यक्ष अपने 7 जिलो के मुखिया व सचिव अपने उत्तम जी है। अभी-अभी ट्रस्ट की बैठक हुई थी। जिसमें विक्रम कीर्ति मंदिर को लेकर फैसला लेना था। मगर कोई फैसला नहीं हुआ। बस ट्रस्ट के पंजीयन नम्बर की खोजबीन जरूर शुरू हो गई है। इसके बाद ही फैसला होगा। विक्रम कीर्ति मंदिर किसका होगा? इसलिए फिलहाल हम इस विषय को लेकर अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
आंख खोलिए ...
मरहूम शायर डॉ. सागर आजमी का एक शेर है। जाने कब की सुबह हो चुकी/ चलिए उठिये खूब सो लिए/ सारा शहर खाक हो चुका/ अब तो अपनी आंख खोलिए... ! यह अशआर इन दिनों शिवाजी भवन में सुनाई दे रहा है। मगर फेरबदल के साथ। यह बोला जा रहा है। सारा शहर गड्ढा हो चुका/ अब तो अपनी आंख खोलिए... ! इशारा अपने प्रथम सेवक और शिवाजी भवन के मुखिया की तरफ है। देखना यह है कि दोनों की आंखे कब खुलती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
पकड़ा गये ...
एक दौर था। जब खत लिखकर प्यार जताया जाता था। किसी शायर ने कहा भी है। इस दौर के आशिक को क्या पता/ रख देते थे खत में कलेजा निकाल के ... ! अकसर खत पढऩे के बाद फाड/ जला दिया जाता था। ताकि कोई सबूत नहीं रहे। लेकिन यह दौर सोशल मीडिया का है। जिसमें प्यार के लिए चेटिंग की जाती है। जिसे आशिक डिलीट नहीं करते है। नतीजा पकड़े जाते है। जैसे एक वर्दीधारी अधिकारी इस चेटिंग के सहारे पकड़ा गये। इनका अभी-अभी जिले से तबादला हुआ है। घरवालो ने पकड़ा था। तो मैरिज ब्यूरों संचालिका तक पहुंच गये। फिर दोनों को आमने-सामने बैठाकर बातचीत से मामला सुलटा दिया। घर की बात घर में रह गई। ऐसी चर्चा वर्दीवालो के बीच सुनाई दे रही है। किन्तु वर्दीधारी अधिकारी कौन था। इसको लेकर वर्दी चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मेरी पसंद ...
एक पाठक ने हमको अशआर भेजा। जो हमको तो पसंद आया। शायद हमारे सभी पाठकों को पसंद आये। गौर फरमाएं... जो बात घर में हुई थी/ वो अब बाजार में है/ कोई तो सुराख यकीनन मेरी दीवार में है... बाकी हमको आदत के अनुसार चुप ही रहना है।