24 जून 2024 (हम चुप रहेंगे)
हजम नहीं हुई ...
ऑनलाइन गेमिंग का मामला किसी को भी हजम नहीं हो रहा है। खासकर राजधानी में बैठने वाले शीर्षस्थ स्तर पर। सवाल उठाने वाले भी वर्दीधारी है। जिनको वर्दी की कार्यशैली का अच्छा-खासा अनुभव है। वह दबी जुबान से पूछ रहे है। ऑनलाइन खेल में नगद इतना कौन रखता है। 2-5-10 पेटी नगद मिले? तो समझ आता है। लेकिन खोखो में नगदी मिले? असंभव है। असली कहानी कुछ और है। जिसे छुपाकर ऑनलाइन की कहानी परोसी गई है। जो कि हजम नहीं हो रही है। शीर्षस्थ वर्दीधारियों की शंका जायज है? मगर हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
डिमांड ...
बाबा की नगरी में पदस्थ होने वाले अधिकारी एक लाभ जरूर उठाते है। अपने कार्यकाल के दौरान आयुर्वेद मालिश का। उठाना भी चाहिये। स्वस्थ्य रहेंगे। तो ज्यादा दौड़ा-भागी से काम करेंगे। अस्पताल जा नहीं सकते हैं। इसलिए बंगले पर कर्मचारी को तलब किया जाता है। मगर आयुर्वेद तेल से घर की बेडशीट खराब होती है। इसलिए प्रबंधन से ही विशेष बेडशीट की डिमांड करते है। तो आश्चर्य होता है। क्या खुद के लिए जेब से इतना भी खर्च नहीं कर सकते है। इशारा एक आईएएस अधिकारी की तरफ है। जो पिछले सप्ताह देशभर में चर्चित हुए थे। ऐसी चर्चा आयुर्वेद के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
सोफा-कुर्सी- नीचे ....
पिछले सप्ताह एक उठावना था। स्वर्गवासी आत्मा को हमारी तरफ से शत-शत नमन। जिसमें जिले के सभी कमलप्रेमी मौजूद थे। इसमें अपने पहलवान भी थे। उठावना स्थल उनके घर के नजदीक था। इसीलिए जल्दी पहुंच गये। वहां पर पहले जाकर वीआईपी सोफे पर बैठ गये। मगर कुछ देर बाद उनको जगह बदलनी पड़ी। क्योंकि लगातार वीआईपी आ रहे थे। 2-3 दफा जगह बदली। फिर वहां से उठकर कुर्सी पर बैठ गये। यहां पर भी उनको कई दफा अपनी कुर्सी छोडऩी पड़ी। इसके बाद पहलवान, परिजनों के लिए आरक्षित कुर्सी पर बैठ गये। यहां भी वही हश्र हुआ। आखिरकार ऐसा मौका आया कि सोफा-कुर्सी छोडक़र नीचे बैठना पड़ा। ऐसा यह नजारा देखने वाले कमलप्रेमियों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
टिप्पणी ...
अभी-अभी अपने प्रथमसेवक के मंत्रिमंडल की बैठक हुई थी। जिसमें एक नगरसेवक ने लाइट के मुद्दे को उठाया। जिम्मेदार संविदा अधिकारी ने पलटकर करारा जवाब दिया। नगरसेवकों की पोल खोल दी। जिसे सुनकर .... निगम की बीमारी.... नाम से चर्चित नगरसेवक ने टिप्पणी कर दी। यह टिप्पणी समाज-सूचक थी। जो कि अपरोक्ष रूप से अपने विकासपुरूष के समाज पर की गई थी। इस टिप्पणी से बैठक में मौजूद सभी आश्चर्य में पड़ गये। मगर निगम की बीमारी .... की टिप्पणी सुनकर चुप रहे। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
नाराजगी ...
उसी मंत्रिमंडल की बैठक से निकलकर नाराजगी की जानकारी सामने आई है। जिस बैठक में समाज-सूचक टिप्पणी की गई थी। नाराजगी, प्रथमसेवक सहित सभी नगरसेवकों की है। जो इस बैठक में शामिल थे। यह सभी उस आईएएस अधिकारी से नाराज है। जो कि शिवाजी भवन के कामों में हस्तक्षेप कर रहे है। मीटिंग बुलाकर समय खराब करते है। काम प्रभावित हो रहे है। किसी ने सुझाव दिया। आईएएस के लिए एक विशेष सेल दस्ता गठित करके, एक अधिकारी नियुक्त कर दिया जाये। अब देखना यह है कि अपने स्मार्ट पंडित इस नाराजगी को कैसे दूर करते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दुखड़ा ....
तो आखिरकार अपने गजनी जी सस्पेंड हो गये। दूसरे माले के मुखिया ने उनको घर बैठा दिया। मगर कारण क्या है। आखिर ऐसा क्या हुआ। तो गंगा-दशहरा की घटना है। मंच पर अपने विकासपुरूष और 2 नंबरी नेताजी मौजूद थे। शिप्रा नदी किनारे। संगीत कार्यक्रम में देरी थी। इस दौरान चाय-नाश्ते की तलब लगी। मगर इसकी व्यवस्था नहीं थी। केवल पानी मौजूद था। जिसको लेकर दूसरे माले के मुखिया ने गजनी जी को तलब कर लिया। अव्यवस्था का कारण पूछा। फिर चेतावनी दे डाली। सस्पेंड करने की। फटकार के बाद गजनी जी सीधे वहां पहुंचे। जहां अपने कूल जी और इंदौरीलाल जी बैठे थे। दोनों के सामने अपना दुखड़ा रोया। खासकर अपने कूल जी के सामने। क्योंकि कूल जी ही गजनी जी के संरक्षक है। यह तक बोल दिया। सस्पेंड करना है तो कर दे। मुझे कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। उन्होंने अपनी पीडा इसलिए सुनाई थी। शायद ... कूल जी उनकी मदद करे। मगर दुखडा सुनकर कूल जी चुप रहे और गजनी जी निपट गये। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
जुगलबंदी ....
अपने जय-वीरू की जोड़ी की गजब जुगलबंदी है। दोनों आंखो के इशारे से एक-दूसरे की बात को समझ लेते है। कोई ईगो नहीं दिखाते। तभी तो दोनों ने गीली-जमीन पर ही योग कर लिया। वो भी पूरे 35 मिनिट। कोई ओर आईएएस- आईपीएस होता तो गीली जमीन पर योग नहीं करता। उल्टे नखरे दिखाता। गुस्सा करता। ऐसा यह नजारा देखने वालो का कहना है। तभी तो यह नजारा देखने वाले इस जुगलबंदी की तारीफ कर रहे है। तो हम भी जुगलबंदी को किसी की नजर ना लगे, कि दुआ करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
काजू बनाम बिस्किट ...
योग दिवस की ही घटना है। जिसमें कई वीवीआईपी आये थे। इन सभी के लिए काजू-किशमिश-बादाम का नाश्ता रखा गया था। जबकि बेचारे स्कूली छात्रों के लिए केवल बिस्किट। 5 हजार पैकेट की व्यवस्था थी। इतने ही छात्रों को योग दिवस में लाने का लक्ष्य था। मगर केवल 500 आये। वजह बारिश हो गई थी। जो आये थे, उनमें से कई छात्र बगैर बिस्किट पैकेट लिए चल दिए। बाकी 4500 पैकेट कहां गये। किसी को पता नहीं है। फूड विभाग 4500 पैकेट वापसी का इंतजार कर रहा है। देखना यह है कि पैकेट वापस आते है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
डर गये ...
रविवार सुबह की घटना है। अपने हाईनेस बच्चों को दवा पिलाने गये थे। 2 बूंद जिंदगी की। सारी तैयारियां थी। दवा-डॉक्टर-बच्चे और मीडिया। अपने हाईनेस ने 2-3 बच्चों को दवा पिलाई। सभी को 2 बूंद। मगर 1 बच्चे को पिलाते वक्त ड्राप्स पर दबाव ज्यादा हो गया। नतीजा ... 2 बूंद की जगह 3 गुना ज्यादा बूंदे बच्चे को पिला दी। इससे अपने हाईनेस सकपका गये। उन्होंने तत्काल बगल में खड़े डॉक्टर साहब की तरफ देखा। सवाल किया। कोई दिक्कत तो नहीं हो जायेंगी। डॉ. साहब ने उनको आश्वस्त किया। कुछ नहीं होगा। तब जाकर उनके चेहरे पर रौनक आई। इधर मीडिया ने कवरेज कर लिया था। जिसमें यह घटना और बातचीत भी रिकार्ड हो गई। तब हाईनेस ने आग्रह किया। यह नहीं चलना चाहिये। मीडिया भी मान गई। जिसके बाद सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
सपना ...
अपने विकासपुरूष का एक सपना है। एक सडक़ बनाने का। उनका यह ड्रीम्स प्रोजेक्ट है। जिसके लिए उनके साफ निर्देश है। जितनी जल्दी हो इसे पूरा करो। प्रोजेक्ट पुरा करने की जिम्मेदारी शिवाजी भवन की है। लेकिन उनके सपने में रोडा बना है। अपना संकुल भवन। जो कि अभी तक ग्रामीण क्षेत्र के किसानों का भू-अर्जन तय नहीं कर पाया है। जबकि शिवाजी भवन वाले इंतजार कर रहे है। अब देखना यह है कि मुआवजा कब तक तय हो पाता है। 3 महीने से ऊपर हो चुके है। उम्मीद है कि विकासपुरूष के सपने को जल्दी ही संकुल भवन पूरा करेंगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
तस्वीर ...
असली नेता वही होता है। जो कि मौके का फायदा उठाये। खासकर तस्वीर के लिए। पिछले सप्ताह यही हुआ। हेलीपेड पर। उडनखटोला योजना का शुभारंभ था। जो अपने विकासपुरूष ने किया। उडनखटोले तक कमलप्रेमी नहीं पहुंच सके। इसलिए थ्री-लेयर की सुरक्षा थी। यह वही जगह है। जहां से अपने पहलवान को वापस लौटना पड़ा था। कारण उनको रोक दिया गया था। लिस्ट में नाम नहीं होने के कारण। मगर बाकी कमलप्रेमी-जनप्रतिनिधि उडनखटोले तक पहुंच गये। जिसके बाद तस्वीर खिचवाने का लालच आ गया। तो सभी एक के बाद एक उडनखटोले में बैठ गये। तस्वीर खिचवाई और उतर गये। जबकि जिन्होंने टिकिट लिया था, वह दूर से खड़े होकर यह नजारा देखते रहे। तस्वीर खिचवाने वालो में अपने पिस्तौल कांड नायक-लेटरबाज जी और बहू जी भी शामिल है। उस दिन ससुर जी को मौका नहीं मिला। यह नजारा देखकर हवाई सेवा वाले हतप्रभ थे। मगर विकासपुरूष का गृहनगर है। इसलिए चुप रहे। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।