23 दिसम्बर 2024 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

23 दिसम्बर 2024 (हम चुप रहेंगे)

चेतावनी ...

पता नहीं यह बात कितनी सच है- कितनी झूठ? मगर प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर कमलप्रेमी तक इसकी चर्चा कर रहे है। इशारा मंदिर की तरफ है। जो इन दिनों सुर्खियों में है। घटना इसी महीने की है। विकासपुरूष का आगमन हुआ था। जब उनको खबर मिली थी। मंदिर में बगैर अनुमति निर्माण हो रहा है। शिखर दर्शन पथ पर। विकासपुरूष सवाल किया। किसकी अनुमति से निर्माण हो रहा है। जिसके बाद नोटिस जारी हुआ। नोटिस का जवाब बाद में आया। उसके पहले निर्माण हटाया गया। इसके बाद क्या-क्या उजागर हुआ है। यह सबको पता है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

खोज ...

मंदिर के गलियारों से संकुल तक। खोजबीन चल रही है। आखिर वह दानदाता कौन है? जिसने मंदिर में कक्ष बनाने की इच्छा जाहिर की थी। इसके लिए आवेदन भी दिया होगा। कितनी राशि खर्च हुई। इस दानदाता का नाम तो सबको पता है। लेकिन मामला उजागर होने के बाद दानदाता, हिमालय की गुफा में जाकर बैठ गये है। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। असली सच क्या है। यह सबको पता है। मगर सब चुप है। तो हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

खुशी ...

संकुल से लेकर सभी विभाग के अधिकारी खुश है। इस कदर खुश है कि अपने जज्बात छुपा नहीं पा रहे है। दूसरे माले के मुखिया को धन्यवाद दे रहे है। जिन्होंने पहली दफा इस समस्या पर ध्यान दिया। तभी तो हर अधिकारी खुश है। खुलकर कह रहे है। दूसरे माले के मुखिया हमेशा यही व्यवस्था बनायेंगे। तो हर कार्यक्रम को सभी मिलकर सफल बनाऐंगे। इशारा अपनी चटक मैडम जी की तरफ है। जिनको पहली दफा शहर से दूर रखा गया। जिसके चलते कार्यक्रम सफल रहा। ऐसा उन सभी का कहना है। जो पार्क कार्यक्रम में शामिल थे। इन अधिकारियों की बात में दम है। इसलिए हम भी कार्यक्रम के नोडल सहित सभी को बधाई देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

नाम हटाया ....

पार्क के कार्यक्रम में अपने विकासपुरूष को पहुंचते हुए काफी देर हो गई थी। वजह उनकी व्यस्तता थी। 4 बजे का समय तय था। जिसमें शाम को पहुंचे। जिसके चलते डर पैदा हो गया। कहीं एकत्रित जनता अचानक उठकर ना चल दे। पहले ऐसा हो चुका है। नतीजा ...भाषण देने वालो के नाम हटाये गये। जिनके नाम हटाये। दोनों राजधानी में पदस्थ आईएएस अफसर थे। जिनको विकासपुरूष से पहले उद्बोधन देना था। नाम हटाने का काम अपने दूसरे माले के मुखिया ने किया। जिसके लिए उनको बधाई देते हुए, हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

अहिल्या नगरी तक ....

वैसे तो विकासपुरूष को दूसरे जिले की सीमा तक छोडने का नियम है। मगर शनिवार की रात को ऐसा नहीं हुआ। जय-वीरू की जोड़ी (कप्तान व दूसरे माले के मुखिया) देवी अहिल्या नगरी तक गये। । वजह एक दानदाता से मिलाना था। जो कि मंदिर में 50 खोखे का काम करवाना चाहते है। दानदाता ने विकासपुरूष से आग्रह किया था। इसलिए विकासपुरूष अपने साथ जय-वीरू की जोड़ी को लेकर गये। ऐसा अपने विकासपुरूष के करीबी का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

चिंता ....

अपने विकासपुरूष भले ही सूबे के सर्वोच्च पद पर है। मगर उनको इस बात की जानकारी है। सरकारी कार्यक्रमों में भीड कैसे लाई जाती है। खासकर, स्कूली बच्चों को लेकर उनकी चिंता ज्यादा रहती है। तभी तो शनिवार दोपहर में उन्होंने निर्देश दिये। अपने जिले के प्रभारी बाऊजी को। वह योग कार्यक्रम में चले जाये। वहां पर स्कूली बच्चें सुबह से बैठे है। विकासपुरूष वीसी के कारण व्यस्त थे। अगर वह जाते तो शाम हो जाती। बेचारे बच्चे परेशान हो जाते। बच्चों की इतनी चिंता रखने वाले विकासपुरूष को हम साधुवाद देते हुए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

डिमांड...

खेत-खलिहान वाले विभाग के मुखिया से डिमांड की गई। हरे रंग के कागजों की। पूरे 100 हरे रंग के कागज मांगे गये। डिमांड सुनकर खेत वाले विभाग के मुखिया सकपका गये। फिर ऐसे गायब हुए कि फोन तक बंद कर लिया। घटनास्थल सरकारी विश्रामगृह बताया जा रहा है। डिमांड करने वाले एक निज सचिव है। इसके साथ दबी जुबान में यह भी चर्चा है। निज सचिव के व्यवहार से हर कोई दु:खी है। जिसके चलते ज्ञापन देने तक की नौबत आ गई है। ऐसा हम नहीं, बल्कि व्यवहार से दु:खी कर्मचारी बोल रहे है। अब इसमें कितना सच है... कितना झूठ? हमको कुछ नहीं पता। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

आसन ...

हमारा इशारा योग वाले आसन की तरफ नहीं है। हम तो संतश्री के किसी भी जगह बैठने से पहले बिछाये जाने वाले आसन की बात कर रहे है। पार्क वाले कार्यक्रम की घटना है। जिसमें अपने जोगी जी शामिल थे। गेरूआ वस्त्रधारी। सहज-सरल-विनम्र संत है। शिप्रा तट के किनारे निवास है। अपनी परपंरा के अनुसार जहां भी जाते है। अपना आसन साथ ले जाते है। उसी पर बैठते है। मगर शनिवार को ऐसा नहीं हो पाया। वह कुर्सी पर विराजमान हो गये। उसके बाद उनका सहयोगी आसन लेकर आया। अब सबके सामने उठकर आसन पर बैठना अपने जोगी जी को पसंद नहीं था। इसलिए उन्होंने सहयोगी को आंखो के इशारे से समझा दिया। वापस जाओं। सहकर्मी चुपचाप लौट गया। ऐसा यह नजारा देखने वालो का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

गौशाला ...

पानी पिलाने से लेकर, लाइन चलाने तक, फिर निरीक्षक और अंत में प्रभारी का कार्य संभालने वाले को अब गौशाला याद आ रही है। अच्छे-खासे गौशाला के प्रभारी थे। मगर मति मारी गई। जो वापस जुगाड लगाकर कमाई के चक्कर में बाबा के दरबार पहुंच गये। अब पकड़े गये। 15 पेटी का लेनदेन उजागर हुआ है। वह भी ऑनलाइन। अब उनको अपनी गौशाला और वहां बिताये दिन याद आ रहे है। ऐसा हम नहीं, बल्कि उनके करीबी बोल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। हम तो बस बाबा तुलसी के दोहे... प्रभु जाको दारूण दु:ख देई/ ताकि मति पहले हर लेई... को याद करते हुए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।