23 मई 2022 (हम चुप रहेंगे )

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

23 मई  2022 (हम चुप रहेंगे )

डमी ...

डमी शब्द का अर्थ तो हमारे पाठकगण समझते है। इसलिए हम सीधे मुद्दे की बात ही लिख देते है। बगैर कोई भूमिका बांधे। डमी की खबर मंदिर के गलियारों से है। जहां पर अपने चुगलीराम जी विराजमान है। उनको लेकर सुगबुगाहट है। कोई भी आदेश पर  वह तभी हस्ताक्षर करते है। जब पहले अपने आका फूलपेंटधारी को  वाटसअप पर आदेश भेज देते है। फिर उनको फोन करते है। बताते है कि ... कुछ भेजा है ... चेक कर लीजिए। उसके बाद वहां से जब सहमति मिलती है। तो तत्काल हस्ताक्षर कर देते है। इसीलिए मंदिर में डमी शब्द सुनाई दे रहा है। अब सवाल यह है कि हस्ताक्षर के पहले आदेश किसको जाता है। तो सभी का इशारा केसरिया झंडे वाले भवन की तरफ है। अब इसमें कितनी सच्चाई है। इसका फैसला हमारे समझदार पाठकगण खुद ही कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

जलपान ...

मिलकर उससे तकल्लुफ की/इक शहरी रस्म निभा आए/ झूठी हंसी की छांव में बैठे/थोड़ा सा जलपान किया...। कोठी के गलियारों में यह 2 लाइने सुनाई दे रही है। मगर कोठी के उस हिस्से में। जहां पर अपने 7 जिलों के मुखिया बैठते है। इशारा अपने पपेट जी की तरफ है। जिनके बुलावे पर 7 जिलों के मुखिया  रात के अंधेरे में पहुंचे। हालांकि टाइम डिनर का था। लेकिन अपने 7 जिलो के मुखिया ने केवल चाय- नाश्ता ही किया। बातचीत हुई। फिर वापस आ गये। अब सवाल यह है कि अपने 7 जिलो के मुखिया ने आज तक शिवाजी भवन की सीढिय़ा नहीं चढ़ी। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया। जो बंगले पहुंच गये। इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

अच्छा है ...

कुछ खुदा से डरो तो अच्छा है/ बोलना कम करो तो अच्छा है। किसी शायर का यह अशआर गुरूवार को सटीक साबित हुआ। एक वीसी के दौरान। जिसमें अपनी घमंडी मैडम सहित बाकी सभी मौजूद थे। ऑनलाइन वीसी चालू थी। मगर अपनी घमंडी मैडम   किसी विषय के लेकर अपने मातहतों से चर्चा कर रही थी। यह नजारा राजधानी में बैठी  मैडम ने भी देखा। उन्होंने चुप रहने की सलाह दी। जिसे घमंडी मैडम समझ नहीं पाई। मातहतों से बातचीत जारी रही।  तो दूसरी बार बोलना पड़ा।  कृपया चुप रहे। तब जाकर अपनी घमंडी मैडम ने मातहत से पूछा। किसके लिए बोल रहे है। मातहत ने समझाया कि अपने लिए इशारा है। तब जाकर बातचीत बंद हुई। अब अगर वीसी के बाद ग्रामीण भवन में यह बोला जा रहा है कि ... बोलना कम करो तो अच्छा है। इसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

मुखबिर ...

तस्वीर देखकर हमारे पाठक समझ जायेंगे। हम किस खेल की बात कर रहे है। इस खेल की आड़ में अभी-अभी 90 पेटी का हिसाब और 10 पेटी नगद वर्दी ने जब्त की है। जिसके लिए वर्दी को साधूवाद। इस खेल में युवा कमलप्रेमी नेता भी पकड़ा गये। मगर सवाल यह है कि वर्दी का मुखबिर कौन था। तो अंदरखाने की खबर है कि कमलप्रेमी संगठन के एक महामंत्री है। जिनका एक वर्दीधारी करीबी है। जो मेट्रो गली का ही निवासी है। कमलप्रेमियों में सुगबुगाहट है कि संगठन के पदाधिकारी ने ही  मुखबिरी की भूमिका निभाई। इनका जलवा शहर से लेकर राजधानी तक है। उन्ही के इशारे पर छापा पड़ा। एक खोखे का मामला उजागर हुआ। इसलिए हम एक बार फिर वर्दी को साधूवाद देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

किस्मत ...

अपने वजनदार जी की किस्मत पर इन दिनों कमलप्रेमी खूब चर्चा कर रहे है। लेकिन इस चर्चा में प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। वो इसलिए कि ... अपने वजनदार जी को इंसान की परख नहीं है। तभी तो अपना प्रतिनिधि किसी को भी बना देते है। जिसके चलते उनको बाद में बेइज्जती उठानी पड़ती है। पहला मामला ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ा है। जो कुछ महीने पुराना है। जहां उनके प्रतिनिधि ने अपने लेटरबाज जी पर बंदूक तान  दी थी। नशे में धुत्त थे। नतीजा  प्रतिनिधि को हटाना पड़ा। ताजा मामला जेंटलमेन गेम से जुड़ा है। जिसमें उनके प्रतिनिधि एक खोखे के हिसाब-किताब में धरा गये। इसीलिए कमलप्रेमी अपने वजनदार जी की किस्मत और इंसान की परख पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप ही रह सकते है।

दबिश ...

वर्दी ने दबिश देकर 1 खोखे का मामला उजागर किया। 10 पेटी नगद जब्त की। जिसके लिए हम साधूवाद पहले ही दे चुके है। लेकिन वर्दी की निगाह दौलतगंज क्षेत्र तरफ क्यों नहीं जा रही है। यह सवाल हम नहीं, बल्कि कमलप्रेमी कर रहे है। जहां पर  अपने 2 नम्बरी इंदौरी नेताजी के खास समर्थक की मदद से कसीनों का खेल चल रहा है। कमलप्रेमी नेताजी की शह पर युवा इकाई के एक पदाधिकारी यह ऑनलाइन गेम खिलवा रहे है। जो कि कमंडल की युवा इकाई में महामंत्री है। इस पर कब वर्दी की दबिश होगी। इसको लेकर कमलप्रेमी इंतजार कर रहे है। देखना यह है कि आखिर नजरे कब इनायत होती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

बंदी ...

अभी तक तो आमधारणा जनता में यही थी। प्रतिमाह बंदी का खेल केवल और केवल वर्दी का होता है। मगर अब इस धारणा को बदलना होगा। कम से कम शिवाजी भवन के गलियारों में चल रही चर्चा के बाद। अंदरखाने की खबर है कि शिवाजी भवन के 6 उपकेंद्रो से प्रतिमाह बंदी का सौदा हुआ है। सौदा करने वाले शिवाजी भवन के अपने खंजाची जी है। जिन्होंने सभी 6 उपकेंद्रो को लक्ष्य दिया है। प्रतिमाह सभी मिलाकर 1 पेटी का चढावा चढाए। अपने  खंजाची जी के आदेश का पालन शुरू भी हो गया है। 2 उपकेंद्र ने अपना-अपना नजराना भेट कर दिया है। जिसकी चर्चा शिवाजी भवन के गलियारों में सुनाई दे रही है। लेकिन हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

ग्रहण ...

अपने पपेट जी की यात्रा पर आखिर ग्रहण लग ही गया। ना जाने किसकी बददुआ लगी- किसने टांग अडा दी। वरना, आज वह 7 समंदर पार एक खूबसूरत जगह पर होते। जिसको साफ-सफाई- सुंदरता और फुटबाल के लिए जाना जाता है। सबकुछ तैयारी थी। हींग लगे ना फिटकरी... रंग चोखा... वाली यात्रा थी। अपने उम्मीद जी ने भी हरी झंडी दे दी थी। तालाबों के शहर में पत्र भी भेज दिया था। अनुमति के लिए। मगर यही से सारा खेल बिगड गया। अनुमति का पत्र जाने कहां दब गया। इधर अपने पपेट जी इंतजार में थे। अनुमति मिले और उड जाये। अब उल्टा हो रहा है। कहां 7 समंदर पार के सपने थे, और अब बाबा की नगरी में इस तपती धूप में भटकना पड रहा है। इसीलिए शिवाजी भवन के गलियारों में ग्रहण की चर्चा है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

कमाई ...

कचरे से भी धन कमाया जा सकता है। बशर्त आपके पास यह पॉवर हो। आप अपनी  कलम से कचरा मुक्त शहर का खिताब दे सके। तो फिर सीधे-सीधे 9 पेटी की कमाई हो सकती है। अंदरखाने की खबर तो यही है। वह भी शिवाजी भवन के गलियारों से। जहां पर अपने खजांची जी को देखकर, कर्मचारी दबी जुबान में फिल्म आंखे का गीत गुनगुना रहे है। दे दाता के नाम... तुझको अल्लाह रखे। जिसकी वजह यह है कि जगह-जगह से चंदा किया गया है। खिताब देने वाली टीम के लिए। अब देखना यह है कि 9 पेटी का चंदा, हमको खिताब दिला पाता है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चलते-चलते ...

शहर के पंजाप्रेमी रविवार की दोपहर बाद से ही किसी शायर का यह शेर खूब सुना रहे है। कौन जाने आंधी हवस की/ जिस्म से क्या ले जाये/ चोर के हाथ में/ संदूक की कुंजी दी है। मगर इशारा किस तरफ है। इसको लेकर चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।