अच्छी व्यवस्था से खुश, महाकाल भक्तगण जूते-चप्पल छोड़ गये ...!

अच्छी व्यवस्था से खुश,  महाकाल भक्तगण  जूते-चप्पल छोड़ गये ...!

उज्जैन। खबर की हेडिंग पढ़कर शायद हम चुप रहेंगे डाटकॉम के पाठकगण, हमको मुर्ख समझे! उनके दिमाग में यह सवाल आ सकता है। ऐसा भी कहीं होता है? अगर अच्छी व्यवस्था है? तो भक्तगण अपने जूते-चप्पल छोड़कर क्यों जायेंगे? वह भी तब, जब बाबा महाकाल के दर्शन के लिए आये है। कोई शनिचरी अमावस्यां पर तो दर्शन करने नहीं आये थे? जो जूते-चप्पल छोडऩा जरूरी हो...!

सर्वविदित है कि नये साल 2023 के पहले दिन 4 से 5 लाख भक्तों ने दर्शन किये है। यह आंकड़ा भी जनसंपर्क विभाग  द्वारा जारी किया गया है। इसके साथ ही प्रेसनोट में यह भी उल्लेखित है। दर्शनार्थियों ने व्यवस्था की सराहना की। अब सरकारी दावा है। तो गलत हो नहीं सकता है। लेकिन मंदिर के गलियारों में दर्शन व्यवस्था कितनी बेहतर थी? इसको लेकर शायर अदम गौंडवी के एक अशआर को तोड़-मरोडकर सुनाया जा रहा है। खासकर सरकारी प्रेसनोट को लेकर। अशआर कुछ इस प्रकार है तुम्हारे प्रेसनोट में व्यवस्था बेहतर दिखा दी है/ मगर ये आंकड़ा झूठा है ये दावा किताबी है।

लाख टके का सवाल ...

बहुत साधारण सा सवाल है। हम उज्जैन वाले भी कई धार्मिक स्थानों पर जाते है। सह-परिवार जाते है।  मगर ... क्या जिस धार्मिक स्थल पर जाते है। वहां पर अपनी मर्जी से जूते-चप्पल छोड़कर  नहीं आते है? कोई मजबूरी ही होगी? तभी चप्पल-जूते छोडऩा पडते होंगे? अगर ऐसा होता है। तो व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। 1 जनवरी को जिन-जिन भक्तगणों को अपने-अपने जूते-चप्पल मजबूरी में छोडऩा पड़े। क्या वह मंदिर की व्यवस्था को लेकर खुश होंगे? इसका उत्तर हम उज्जैन वालो को दिमाग से नहीं दिल से सोचकर देना होगा। तभी हम मंदिर की व्यवस्था के प्रति इंसाफ कर पायेंगे।

प्लानिंग कमजोर ...

मंदिर के गलियारों में यह चर्चा दबी जुबान से मातहत कर रहे है। प्लानिंग में चूक हुई। तभी तो भक्तगणों को अपने जूते-चप्पल छोड़कर जाना पड़ा। क्योंकि बाहर से आये भक्तों को पता ही नहीं था। उनके जूते-चप्पल कहां से वापस मिलेंगे। इसलिए उन्होंने छोडऩा ही बेहतर समझाऐसे में यह तो पक्का है। भक्तगणों ने प्रशासन और प्रबंधन को दुआएं तो नहीं दी होंगी? मंदिर के कर्मचारियों को 1 जनवरी के दिन ही, मंदिर के पूर्व प्रशासक सोजानसिंह रावत बहुत याद आये। जो कि प्रबंधन कला में माहिर है अगर वह होते तो ऐसी व्यवस्था बनाते कि ... किसी भी भक्तगण को जूते-चप्पल छोड़कर नहीं जाना पड़ता। बहरहाल जूते-चप्पल की तस्वीरे आज सोमवार की है। जिसको लेकर यह चर्चा है कि ... कई जगह से जूते-चप्पलों के ढेर को वाहन में भरकर किसी अज्ञात स्थान पर भेजा गया। देखें वीडियों।