27 जून 2022 (हम चुप रहेंगे )

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

27 जून 2022 (हम चुप रहेंगे )

वक्त ...

इंसान का बस समय खराब होना चाहिये। फिर ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है। ऐसी कहावत है। अपने आराधना प्रेमी का वक्त तो लंबे समय से खराब चल रहा है। तभी तो पिछले 15 सालों से हर चुनाव में उनका टिकिट पक्का होता है। ऐसा वह खुद बोलते है। मगर फिर उनका खराब वक्त  आड़े आ जाता है। इस दफा शहर के प्रथम सेवक की दौड़ में थे। लेकिन  उत्तर-दक्षिण ने एकता दिखा दी। जिसके बाद अपने आराधना प्रेमी यह दुआ मांगते रहे। किसी भी तरह से अधिकृत प्रत्याशी का नामांकन खारिज हो जाये या फिर कोई करवा दे। उसको 1 खोखा इनाम दूंगा। उनकी यह बात अपने विकास पुरूष तक पहुंच गई। जिन्होंने राजधानी तक यह बात पहुंचा दी। अब कमलप्रेमी अपने आराधना प्रेमी के मजे ले रहे है। वैसे हम बता दे। अपने आराधना प्रेमी ऋषि नगर के फूलपेंटधारी को 19 पेटी उधार दिये बैठे है। इसलिए उनकी 1 खोखे वाली बात को मजाक में नहीं लेना चाहिये। बहरहाल आराधना प्रेमी का वक्त खराब है। तो हम भी उनके सम्मान में अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है। 

मूड ...

आज मेरा मूड अच्छा है। अगर कोई स्वीकृति की फाइल हो तो करवा लो। यह लाइने इन दिनों शिवाजी भवन के गलियारों में सुनाई दे रही है। इशारा अपने पपेट जी की तरफ है। एक बैठक का मामला है। उपयंत्रियों की बैठक थी। जिसमें अपने पपेट जी ने किसी उपयंत्री को देखकर ऊपर लिखी बात बोली। मगर दूसरे पल ही बाकी उपयंत्रियों को फटकार लगा दी। पूछ लिया... परीविक्षा अवधि  खत्म हो गई तुम लोगों की। जवाब मिला... जी सर। इस पर पपेट जी ने कहा। अच्छा हुआ... वरना 1-1 साल और बढ़ा देता। अपनी पिछली पोस्टिंग का उदाहरण भी दे दिया। जहां उन्होंने किसी को सजा दी थी। जिसके बाद से ही मूड अच्छा है - मूड अच्छा है। फ्रीगंज की होटल से लेकर शिवाजी भवन तक यह सुनाई दे रहा है। मगर किस उपयंत्री के लिए मूड अच्छा है। यह बताने को कोई तैयार नहीं है। सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

प्रतिनिधि ...

अपने पपेट जी की आदत है। लफड़े वाली जगह वह खुद नहीं जाते है। बल्कि अपने प्रतिनिधि को भेज देते है। इन दिनों उनके प्रतिनिधि अपने खंजाची जी है। 2 घटनाएं हुई है। पहली राजधानी के शिवाजी नगर बस स्टाप की है। जहां पर खंजाची जी गये थे। उस दिन, जिस दिन अपने मामाजी आये थे। राजधानी में 1 पंथ 2 काज कर आये। पहला काम एक गोपनीय पत्र देना था। जो खंजाची जी ने पहुंचा दिया। दूसरा काम पेशी से जुड़ा था। जहां पर भी कुछ कागजात देने थे। दोनों काम प्रतिनिधि ने सफलता से किये। अब दूसरी घटना, जो इसी शहर की है। अखाड़ा परिषद से जुड़ी है। जिसके मुखिया आये थे। उनसे मिलने अपने उम्मीद जी और कप्तान जी पहुंचे। अपने पपेट जी को भी आना था। मगर पपेट जी ने अपने प्रतिनिधि को भेज दिया। यह देखकर अपने उम्मीद जी ने नाराजगी दिखाई। नतीजा प्रतिनिधि ने अपने पपेट जी को फोन लगाया। स्थिति से अवगत कराया। बेचारे पपेट जी ... तुरंत भागे। जैसे ही पपेट जी पहुंचे। उम्मीद जी और कप्तान जी रवाना हो गये। ऐसा अपने खंजाची जी के करीबी बोल रहे है। उसके बाद क्या हुआ। जिसको लेकर सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

शिकायत ...

अभी तक तो अपने चुगलीराम जी से केवल मंदिर वाले ही परेशान- त्रस्त थे। मगर अब फूलपेंटधारी भी चुगलीराम जी से परेशान हो चुके है। ऐसा हम नहीं, बल्कि केसरिया झंडे वाले भवन से निकलकर आ रही खबरे बोल रही है। अंदरखाने की खबर है। अपने राजभोग जी पिछले दिनों बाहर गये थे। नर्मदा किनारे लगे शिविर में शामिल होने। 8-10 दिन का प्रवास था। वहां से लौटने के बाद की घटना है। फूलपेंटवालो में सुगबुगाहट है। अपने राजभोग जी से कुछ स्वयंसेवकों ने मुलाकात करी। इस मुलाकात में अपने चुगलीराम जी की कार्यप्रणाली को लेकर शिकायत हुई। राजभोग जी ने पूरी गंभीरता से शिकायते सुनी। उसके बाद अपने चुगलीराम जी को तलब कर लिया। लगभग 2-3 घंटे तक क्लास ली। जिसके बाद अपने चुगलीराम जी में परिवर्तन आ गया है। अब मंदिर में स्वयंसेवकों को भी अहमियत दी जा रही है। ऐसा फूलपेंटधारी ही बोल रहे है। जिसके लिए हम अपने राजभोग जी को साधूवाद देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

हिम्मत ...

सेल्यूट- सेल्यूट- सेल्यूट। अपने पपेट जी की हिम्मत को। जिन्होंने बर्रे के छत्ते में हाथ डालने की हिम्मत दिखाई। पूरे ढाई खोखे नुकसान का मामला उजागर किया। नोटिस भी जारी किये। वाकई हिम्मत का काम है। ऐसा शिवाजी भवन वाले बोल रहे है। क्योंकि यह मामला अपरोक्ष रूप से विकास पुरूष से जुड़ा है। नगरीय सेवा का संचालन विकास पुरूष के अनुज ही करते आ रहे है। यह बात सभी पता है। इसके बाद भी पपेट जी ने शिकंजा कसा। वह भी यह जानते हुए कि प्रभावशाली विकास पुरूष से जुड़ा मामला है। जिसके लिए वाकई 56 इंची सीना चाहिये। जो अपने पपेट जी के पास है। मगर एक कहावत और सुनाई दे रही है। अगर सांप के बिल में हाथ डालो- तो बिच्छू का मंतर भी याद होना चाहिये। अब देखना यह है कि अपने हिम्मतवीर पपेट जी इस कांड को किसी अंजाम तक पहुंचा पाते है या उसके पहले रवानगी होती है। इसका फैसला अगस्त माह में होगा। तब तक हम तो 56 इंची सीने की तारीफ करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

जीत-हार ...

नगरीय निकाय चुनाव में कौन जीतेगा- हारेगा। इसका फैसला तो अगले महीने होगा। जनता किसको शिवाजी भवन सौंपेगी। कमलप्रेमी या पंजाप्रेमी को। मगर अपने बिरयानी नेताजी का गणित कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहा है। अपने बिरयानी नेताजी का  मानना है। जिन-जिन वार्डो में उनके चहेते उतरे है। उनमें से 2 दर्जन की जीत पक्की है। बाकी पर मुकाबला है। लेकिन जहां-जहां अपने चरणलाल जी के चहेते मैदान में है। वहां पर हार पक्की है। जिसके बाद पंजाप्रेमियों में यह चर्चा है। अपने बिरयानी नेताजी एक बार फिर बांस पर बांस फसा रहे है। वह चरणलाल जी के साथ होने का दिखावा कर रहे है। अंदर ही अंदर कोई अलग खिचड़ी पक रही है। अब देखना यह है कि परिणाम के बाद अपने बिरयानी नेताजी का गणित कितना सटीक साबित होता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चंदाखोरी ...

चुनाव और चंदाखोरी का रिश्ता ठीक वैसा ही है। जैसे चोली और दामन का साथ। दोनों एक-दूसरे के पूरक होते है। बस... अंतर यह होता है। सत्तादल को सरकारी मदद मिल जाती है। जबकि विपक्षी दल को जुगाड करनी पड़ती है। पहले बात करते है। कमलप्रेमी अर्थात सत्तादल की। अंदरखाने की खबर है कि इस दफा संगठन ने आर्थिक मदद करने पर रोक लगा दी है। सीधे ऊपर से निर्देश है। प्रथम सेवक के चुनाव में खर्च स्थानीय स्तर पर ही अरेंज करना है। राजधानी  से केवल इतनी सुविधा मिली है। उन कमाऊ विभागों से मदद ली जा सकती है, जहां पर लक्ष्मी बरसती है। इन सभी से चंदा ले सकते है। जबकि अपने चरणलाल जी को अपनी व्यवस्था खुद करनी पड़ रही है। सूत्रों का कहना है कि चरणलाल जी के समर्थक, अधिकारियों को फोन लगा रहे है। आर्थिक मदद की गुहार के लिए। कई अधिकारियों के पास फोन पहुंचे है। मगर हम पहले ही लिख चुके है। चुनाव व चंदे का रिश्ता अटूट है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चंदे की वसूली पर चुप हो जाते है।

पिम्प ...

यह शब्द अंग्रेजी भाषा का है। जिसका अर्थ समझने के लिए हमारे पाठकगण गूगल ट्रांसलेट का सहारा ले सकते है। वैसे हमारे पाठक बहुत समझदार है। इसलिए अधिकांश इसका अर्थ समझते है। आम बोलचाल की भाषा में इसका अर्थ दलाल भी निकलता है। मगर, पिम्प के मायने अलग अर्थ में लिये जाते है। ऐसा हम नहीं, बल्कि पंजाप्रेमी ही बोल रहे है। उनका इशारा जिस तरफ है। वह हमारे पाठक समझ गये होंगे। कारण यह है कि जिस पिम्प को पंजाप्रेमी संस्था ने नगर सेवक का टिकिट दिया है। वह टिकिट अपने चरणलाल जी के कोटे का माना जा रहा है। जिसके चलते यह चर्चा सुनाई दे रही है। टिकिट के बदले पिम्प जी ने वादा किया है। वह प्रथम सेवक के चुनाव में 25 पेटी खर्च वहन करेंगे। यह बाते भी पंजाप्रेमी दबी जुबान से बोल रहे है। अब सच और झूठ का फैसला हमारे समझदार पाठक खुद कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

खीज ...

कभी-कभी हम सभी- कही ना कही- खीज उतारते है। यह तभी होता है, जब इंसान के मन के विपरीत काम हो जाये। तो इंसान दूसरों को नीचा दिखाने के लिए खीज उतारता है। जैसे शनिवार को मंदिर के गलियारों में किसी ने खीज उतारी। गलियारों में अचानक ही होर्डिंग नजर आने लगे। जिसमें प्रोटोकॉल व्यवस्था के लिए जिम्मेदारों के नाम- नम्बर अंकित थे। इसके पहले कभी ऐसा कोई होर्डिंग कभी नहीं लगाया गया। हमारे एक पाठक ने फोटो भी हमें भेजा। मगर फोटो से बड़ा सवाल यह है कि .... आखिर किसके इशारे पर यह खीज उतारी गई। ताज्जुब की बात यह है कि फिर फटकार लगी। नतीजा ... तत्काल होर्डिंग हटा दिये गये। मगर किसने लगवाये- किसके इशारे पर यह खेल हुआ... इसको लेकर मंदिर के गलियारों में सभी चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

साधूवाद ...

इस तस्वीर को ध्यान से देखिए। जिसे पढ़कर हमारे पाठकों को सबकुछ समझ में आ जायेगा। पिछले सप्ताह हमने शुभचिंतक शीर्षक से इसे लिखा था। उसी शुभचिंतक ने फिर हमें संदेश भेजा। इस बार संदेश अलग था। हमारे शुभचिंतक जी हमको उस व्यक्ति से मिलवाने वाले थे। रविवार के दिन। जिसके पास कोई आडियों है। जिसे हमारा बताया जा रहा है। तो हम उस शुभचिंतक को साधूवाद देते हुए किसी शायर की चंद लाइने लिखकर चुप हो जाते है।

सिर को कटा दिया मगर ऐसा नहीं किया/ मैने कभी जमीर का सौदा नहीं किया/ तलवार मेरे सिर पर लटकती है इसलिए / मैने किसी अमीर को सजदा नहीं किया...