29 मई 2022 (हम चुप रहेंगे )
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

सफाई ...
हमारे पाठक शीर्षक पढ़कर यह अंदाजा नहीं लगाये। यहां पर हम साफ-सफाई की बात नहीं कर रहे है, बल्कि सामान की सफाई की और इशारा है। पंजाप्रेमियों में इसकी चर्चा है। अपने कामरेड ने पद से हटते ही, सामान की सफाई कर दी। अंदरखाने की खबर है कि जाते-जाते मुख्यालय पर रखा कूलर और कुर्सियां उठाकर ले गये। जिसकी शिकायत सज्जन चुनाव प्रभारी के सामने हुई। प्रभारी ने अपने बिरयानी नेताजी से सवाल किया। जवाब मिला कि ... नई व्यवस्था करवा दूंगा। मगर सवाल यह है कि अपने कामरेड ने ऐसा क्यों किया। जिसको लेकर पंजाप्रेमी चुप है। तो हम भी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
कंजूसी ...
अपने 5 वीं पास पंजाप्रेमी नेताजी को कंजूसी भारी पड़ सकती है। 5 वीं पास नेताजी ग्रामीण के मुखिया है। जिनको प्रेसवार्ता की जिम्मेदारी दी गई थी। नेताजी ने कंजूसी के चक्कर में गलत होटल कर दिया। खबरची और सज्जन चुनाव प्रभारी परेशान हो गये। नतीजा 5 वीं पास को बदलने की चर्चा शुरू हो गई। लेकिन पंजाप्रेमी जनप्रतिनिधि चुप्पीलाल जी ने सलाह दी। चुनाव के पहले बदलना गलत संदेश जायेगा। नतीजा फिलहाल 5 वीं पास नेताजी की रवानगी टल गई है। अब देखना यह है कि चुनाव बाद कंजूस मुखिया को दंड मिलता है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
बंधन ...
पंजे का मोह त्यागकर कमलप्रेमी बनी नेत्री को लेकर चर्चा है। यह चर्चा पंजाप्रेमियों के बीच है। क्योंकि कमलप्रेमियों को तो पता ही नहीं है। चर्चा यह है कि कमलप्रेमी नेत्री ने अपने छोटे साहबजादे का विवाह बाले-बाले करवा दिया। आगे जिला-पीछे किला वाले जिले में रातों-रात 7 जन्मों ds बंधन में साहबजादे बंध गये। इस बात की भनक किसी को भी नहीं लगी। लेकिन पंजाप्रेमियों को लग गई। जिसकी चर्चा पंजाप्रेमी कर रहे है और कमलप्रेमी चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
जुगलबंदी ...
हमारा इशारा संगीत वाली जुगलबंदी की तरफ नहीं है। हम तो पर्दे के पीछे वाली जुगलबंदी की बात कर रहे है। जिसके इन 2 पात्रों से हमारे पाठक बहुत अच्छी तरह परिचित है। इनके नाम अपने पपेट जी और चुगलीराम जी है। इन दोनों के कार्यक्षेत्र भले ही अलग-अलग है। लेकिन पर्दे के पीछे वाली जुगलबंदी में दोनों मास्टर है। हालांकि दिखावा यही करते है। दोनों में कोई दूर-दूर तक रिश्ता नहीं है। फिर भी कोठी से स्मार्ट भवन और शिवाजी भवन से मंदिर के गलियारों में इनकी जुगलबंदी की चर्चा है। इस जुगलबंदी को लेकर हम आखिर क्या कर सकते है। बस ... अपनी आदत के अनुसार चुप ही रह सकते है।
गुस्सा ...
मंदिर के गलियारों में शुक्रवार से यह चर्चा है। मंदिर के महंतश्री गुस्सा है। सवाल यह है कि किससे और क्यों? तो इसका सीधा सा जवाब है। अपने चुगलीराम जी से। जिन्होंने महंतश्री को यह भरोसा दिलाया था। देश के प्रथम नागरिक से मुलाकात करने का सौभाग्य महंतश्री को जरूर मिलेगा। मगर जब सूची आई तो महंतश्री सहित समिति के सभी सदस्यों का नाम गायब था। बस ... फिर क्या था। शुक्रवार को महंतश्री ने अपने चुगलीराम जी की लू उतारी। शनिवार को सदस्यों ने गुस्सा दिखाया। लेकिन अपने चुगलीराम जी सबकुछ सुनकर भी चुप रहे। तो फिर हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप ही हो जाते है।
जंग ...
अपनी ही फौज को मारकर कोई जंग नहीं जीती जा सकती है। यह बात किसी सयाने ने कही थी। ऐसा हम नहीं, बल्कि शिवाजी भवन में बैठने वाले लोग कह रहे है। इशारा सीधे-सीधे अपने पपेट जी की तरफ है। जो लगातार एक के बाद एक विकेट चटका रहे है। कार्रवाई को लेकर कोई सवाल नहीं उठा रहा है। प्रशासनिक प्रक्रिया है। यह सब चलता रहता है। लेकिन अपने पपेट जी, दुराग्रह से पीडित है। उस पर कोढ में खाज वाली बात यह है कि चुगलीराम जी के इशारे पर कार्रवाई हो रही है। तभी तो शिवाजी भवन में यह बोला जा रहा है। अपनी ही फौज को मारकर जंग नहीं जीती जा सकती है। इस बात को शिवाजी भवन का भृत्य भी समझता है। लेकिन अपने पपेट जी नहीं। नतीजा ... अपने पपेट जी के दुराग्रह को लेकर सभी परेशान है, मगर चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
रोका ...
कमलप्रेमियों को अपने जुगाडूलाल जी याद है या नहीं? अगर याद नहीं है तो हम याद दिलाते है। अपने जुगाडूलाल जी वहीं है। जो कभी अपने लेटरबाज जी की जगह मुखिया के पद पर विराजमान थे। रविवार को संकुल में दोनों साथ-साथ दिखे। अपने लेटरबाज जी और जुगाडूलाल जी। दोनों ही हॉल के अंदर जाने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। तब उनको देखकर हमें, अपने जुगाडूलाल जी का सुनाया शेर याद आ गया। जो कभी उन्होंने सुनाया था। खूब समझते है यारा हम तेरी फितरत/ तुम हमें बुलाओं और दरबान हमें रोके। उनके साथ आज देश के प्रथम नागरिक के कार्यक्रम में यही हुआ। मगर गलती दोनों की थी। दोनों ही देरी से कार्यक्रम में पहुंचे। नतीजा ... अंदर जाने से रोक दिया गया। जिसके बाद दोनों ही चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
जिद्दी ...
अपने विकास पुरूष जिद्दी है। आज उन्होंने इसको साबित किया। फिर भले ही इसके लिए उनको 6-7 घंटे तक जुगाड बनाम मेहनत करनी पड़ी। मगर अपनी जिद को पूरा करके ही माने। रविवार की सुबह हेलीपेड से उनको बैरंग लौटना पड़ा। वजह ... अपने विकास पुरूष बिन बुलाये मेहमान थे। उनको देखकर खलबली मच गई। सुरक्षा का मामला था। तब अपने उम्मीद जी ने मोर्चा संभाला। अपने विकास पुरूष को समझाया। जिसके बाद वह वापस लौट गये। इसके बाद अपने विकास पुरूष ने कारकेट में अपनी गाड़ी घुसाई। यहां पर भी उनको असफलता ही मिली। सुरक्षा वालो ने उनको रोक दिया। नतीजा ... विकास पुरूष ने ठान लिया। हर हाल में विदाई के वक्त मौजूद रहना है। इस बार उनको सफलता मिल गई। विदाई के मौके पर विकास पुरूष मौजूद थे। फोटो भी अपलोड हो गई। बधाई भी मिलनी शुरू हो गई। यह चर्चा कमलप्रेमियों के बीच चल रही है। किन्तु ... हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।