12 अगस्त 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
अवसर ...
सरकारी कर्मचारी वही माना जाता है। जो आपदा में भी अवसर खोज निकाले। जैसे राजस्व अभियान। यह एक अवसर है। इसका श्रीगणेश अपने विकासपुरूष ने किया है। मकसद है आमजनता को फायदा हो। जिसमें अधिकारियों को कोर्ट का निरीक्षण करना है। व्यवस्था देखनी है। मामले लंबित तो नहीं है। इसमें सुधार लाना है। अपने तीसरे माले के मुखिया इन दिनों दौरा कर रहे है। ईमानदारी से निरीक्षण करते है। किन्तु उनके पहले उनकी टीम जाती है। इस टीम का काम टीप बनाना है। इस टीप के नाम पर ही खेल हो रहा है। प्रति कोर्ट 5 हजारी का नजराना स्वीकार किया जा रहा है। रीडर को यह भुगतान करना पड़ता है। कई जगह से भुगतान लिया गया है। तभी तो तीसरे माले पर आपदा बनाम अवसर सुनाई दे रहा है। बात सच है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
डिमांड ...
अपने इंदौरीलाल जी की डिमांड है। कृपया गलत अर्थ ना निकाले। उनकी डिमांड हरे रंग वाले कागजों की नहीं है। यह डिमांड तो आजकल तीसरे माले पर सुनाई दे रही है। हम यहां जिस डिमांड की बात कर रहे है। उसमें इशारा अंगरक्षक (होमगार्ड) की तरफ है। बेचारे अपने इंदौरीलाल जी जब तक मंदिर के मुखिया थे। उनके अंडर में सैकड़ों अंगरक्षक थे। आगजनी कांड हुआ। इंदौरीलाल जी को हटा दिया। अब वह विकास संस्था के मुखिया है। उन्होंने होमगार्ड के लिए 2 दफा पत्र लिखा है। कमांडेट को। एसडीएम को भी होमगार्ड मिल जाता है। जबकि अपने इंदौरीलाल जी अपर कलेक्टर है। लेकिन कोई भी उनकी डिमांड पर ध्यान नहीं दे रहा है। अंदरखाने की खबर है। दूसरे माले से निर्देश है। होमगार्ड नहीं दिया जाये। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
नौकरी जायेगी ...
भले ही अब वह माननीय नहीं है। 144 मतों से हारे है। लेकिन तेवर किसी माननीय से कम नहीं है। तभी तो बैठक में खुलकर बोल दिया। अब तो इस सचिव की नौकरी जायेगी। सचिव की गलती यह है। उसने दमदमा पंचायत भवन से सिफारिश पत्र लिखवा लिया। यह बात अपने बडबोले नेताजी को अखर गई। बस फिर क्या था। तिरंगा अभियान की बैठक में आक्रोश जाहिर कर दिया। जनपद अध्यक्ष पति को खड़ा करके कहलवा दिया। अब सचिव की नौकरी जायेगी। कार्रवाई शुरू हो गई है। यह सब नजारा अपने लेटरबाज जी और बदबू वाले शहर के माननीय डॉ. साहब ने भी देखा। मगर दोनों अपने बड़बोले नेताजी के कारण चुप रहे। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
गेट नं. 4 ...
एक तरफ जहां बेचारे कमलप्रेमी वीआईपी पास के लिए तरसते रहे। दूसरी तरफ जय-वीरू की जोड़ी महाकाल लोक में जूझती रही। इस सब के बीच गेट नं. 4 वालों की चांदी हो गई। यह प्रवेश द्वार पंड़े-पुजारियों के लिए था। जहां पर किसी का ध्यान नहीं था। नतीजा ... पंड़े-पुजारियों ने अपने यजमानों को जमकर इंट्री दिलाई। वह भी मुहमांगी फीस लेकर। यह नजारा देखकर वर्दी भी पीछे नहीं रही। उसने भी बहती गंगा में हाथ धोए। ऐसा यह नजारा देखने वालों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
सपना ...
वर्दीवालों में चर्चा है। एक ख्वाब की। जो कि एक वर्दीधारी अधिकारी देख रहे है। यह अधिकारी संभवत: इसी महीने रिटायर हो रहे है। इनका एक सपना है। सेवानिवृत्त होने के बाद भी पॉवर बरकरार रहे। जिसके लिए मंदिर में पदस्थापना हो जाये। सुरक्षा का काम संभालने वाले पद पर। उनको पूरी उम्मीद है। उनके सपने को पूरा करने में अपने विकासपुरूष मदद जरूर करेंगे। फैसला वक्त करेंगा। सपना पूरा होगा या नहीं? तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
नाराज ....
नागपंचमी पर आज तक ऐसा नहीं हुआ। वीआईपी पास वितरण में कमी रखी गई हो। पिछले साल तक हजारों पास दिये जाते रहे। किन्तु इस दफा अंकुश था। सूची तैयार हुई। जो कि 1 हजार पर अटकी थी। फिर जाकर 2500 पर अटकी। इतने ही पास छपवाये गये। लेकिन धीरे-धीरे प्रेशर बढना शुरू हुआ। तो बाद में 3 दफा 500-500 की संख्या में पास छपवाये गये। इसके बाद भी कई कमप्रेमियों को वीआईपी पास नहीं मिले। बेचारे ... नाराज फूफा और जीजा की तरह बैठे रहे। दूरभाष पर शिकायत भी दर्ज कराई। मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। ऐसा वरिष्ठ कमलप्रेमी बोल रहे है। ताज्जुब की बात यह है कि जिनको पास मिले। उनको भी वर्दी ने वापस लौटा दिया। कारण... पास पर सील और हस्ताक्षर नहीं थे। जिसके चलते कमलप्रेमियों ने उच्चस्तर पर शिकायत की। तब कहीं जाकर वर्दी को निर्देश मिले। बगैर सील व हस्ताक्षर वाले पास मान्य है। कुल मिलाकर अव्यवस्था चरम पर थी। मगर सब चुप रहे। तो हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
कैसे घुसा ....
शायर फिराक जलालपुरी ने खूब कहा है। तू इधर-ऊधर की ना बात कर/ ये बता कि काफिला क्यूं लूटा/ मुझे रहजनों से गिला नहीं/ तिरी रहबरी का सवाल है...। यह अशआर इन दिनों वर्दी और संकुल के गलियारों में सुनाई दे रहा है। मगर फेरबदल के साथ। पूछा जा रहा है। ये बता कि काफिला क्यू घुसा...। क्योंकि चामुण्डा नगरी से आने वाले काफिले ने 1 या 2 बेरिकेड्स पार नहीं किये थे, बल्कि 4 अवरोधक उनके काफिले के लिए हटाये गये थे। हटाने वाली भी वर्दी थी। तभी तो काफिला सीधे महाकाल लोक तक पहुंच गया। बेरिकेड्स हटाने वाली वर्दी ऐसे काम कर रही थी, जैसे विकासपुरूष का काफिला आया था। लेकिन जब गलती पकड में आई। तो कप्तान ने चतुराई से मोर्चा संभाला और अपने मातहतों को बचाते हुए चालानी कार्रवाई करवा दी। तभी तो संकुल के गलियारों में सवाल उठाये जा रहे है। काफिला कैसे घुसा। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
निर्णय ...
विकासपुरूष के गृहनगर में आंदोलन/ प्रदर्शन कब करें? इसका निर्णय लेने में पंजाप्रेमी तारीख तय नहीं कर पाते है। ऐसा खुद पंजाप्रेमियों का कहना है। सावन की पहली सवारी के दिन ही आंदोलन रखा था। मैसेज भी कर दिये थे। फिर सावन का सहारा लेकर आंदोलन आगे बढ़ा दिया। इसके बाद राजधानी में बैठक हुई। जिसमें 5 वीं फेल पंजाप्रेमी नेता गायब थे। 13 अगस्त का दिन तय हुआ। खबरचियों को सूचना दी गई। फिर 14 अगस्त हो गया। आखिरकार अब 16 अगस्त का दिन आंदोलन के लिए तय हुआ है। मगर खुद पंजाप्रेमी मानने को राजी नहीं है। इस दिन आंदोलन होगा या फिर तारीख बढ़ेगी। फैसला वक्त करेंगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
इच्छा ...
अंदरखाने की खबर है। अपने दूसरे माले के मुखिया जाना चाहते है। कहां? तो देश की राजधानी में। सुगबुगाहट है कि दूसरे माले के मुखिया डेप्यूटेशन पर जाना चाहते है। उन्होंने अपनी इच्छा भी सही जगह बता दी है। बाकी बाबा महाकाल की मर्जी है। संकुल के गलियारों में तो यही चर्चा है। देखना यह है कि बाबा महाकाल उनकी इच्छा कब पूरी करते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
हाथ कट गये ...
फिल्म शोले का डॉयलाग याद होगा। ठाकुर के हाथ कट गये। कुछ ऐसा ही अपने प्रथमसेवक महसूस कर रहे है। पिछले साल उन्होंने इसी माह में अपना प्रथम कार्यकाल खूब उत्साह से मनाया था। बाबा के दरबार गये थे। पुस्तिका भेट की थी। अपने कार्यकाल की उपलब्धियों वाली। लेकिन इस साल प्रथमसेवक पूरी तरह चुप है। कोई तामझाम-तमाशा नहीं किया है। जिसको लेकर उनके करीबी बोल रहे है। ठाकुर के हाथ कट गये है। बात में दम है, मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
चलते-चलते ...
संकुल के गलियारों में चर्चा है। नामांतरण के नाम पर एक ग्रामदेवता ने 15 पेटी की डिमांड की थी। मामला करीब 1 महीने पुराना है। डिमांड करने वाली एक महिला ग्रामदेवता थी। जिन्होंने फरियादी को नियम-कायदों से खूब डराया। मगर फिर मात्र 10 हजारी में काम निपटा दिया। भरोसेमंद सूत्र तो यही कह रहे है। बाकी हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।