07 अगस्त 2023 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
डर ...
अभी तक तो यही देखने- सुनने में आता था। अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों का डर होता है। लेकिन आजकल उल्टा हो रहा है। तभी तो सर्किट हाऊस पर यह उलटा नजारा दिखा। उस वक्त, जब केन्द्रीय कृषि मंत्री आये थे। शिवाजी भवन के मुखिया उनसे मिलने गये थे। यह मुलाकात अकेले में होनी थी। किन्तु जब मुलाकात का मौका आया। तो उनके साथ जनप्रतिनिधि भी घुस गये। केन्द्रीय कृषि मंत्री भी यह नजारा देखकर हतप्रभ रह गये। वह कुछ बोल नहीं पाये। जिसके बाद कमलप्रेमी ही बोल रहे है। अधिकारियों से डरते है हमारे जनप्रतिनिधि। कमलप्रेमियों की बात में दम है। मगर, हम क्या कर सकते है। बस, अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
हड़कंप ...
विक्रमादित्य प्रशासनिक संकुल के गलियारों में हड़कंप मचा हुआ है। एक तहसीलदार की वापसी पर। जिनको हमारे पाठक चुगलखोर जी के नाम से जानते है। इनकी अभी-अभी वापसी हुई है। अभी तक यह ग्रामीण इलाके में पदस्थ थे। लेकिन जैसे ही राजधानी से तबादला सूची जारी हुई। इनकी लॉटरी खुल गई। अपने उत्तम जी ने कार्यविभाजन किया। तो चुगलखोर जी संकुल में विराजमान हो गये। जिसके चलते अब सभी राजस्व अधिकारी डरे हुए है। तभी तो अपने चुगलखोर जी के सामने अब सभी चुप रहते है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
क्या दोंगे...
अभी-अभी एक समिति आई थी। राजधानी से। पॉवरफुल समिति। जिसने विकास कार्यो का जायजा लिया। समिति के साथ एक अधिकारी आये थे। जिनकी यह जिम्मेदारी थी। समिति के सदस्यों को कोई तकलीफ ना हो। इसीलिए सदस्यों को होटल में ठहराया गया। जिसके बाद यह अधिकारी इस जुगाड में लग गये। वापसी में उपहार क्या मिलेगा। उनकी मंशा थी कि ... चांदी या सोने का उपहार मिले। जिसके लिए उन्होंने खूब कोशिश करी। लेकिन विदाई के वक्त महाकाल की तस्वीर- भैरवगढ़ बटिक की चादर ही मिली। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
फीस ...
इस धरती का हर पालक अपने बच्चों के लिए कमाता है। मां-बाप इसलिए कड़ी मेहनत करते है। ताकि अपने बच्चो की फीस चुका सकें । अगर बच्चे को पेंटिंग का शौक है। तो उसकी फीस भी अपनी मेहनत की कमाई से अदा कर सके। मगर एक उच्च अधिकारी इसके उलट काम करते रहे। अपने उच्च पद का फायदा उठाकर। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी है। तभी तो उन्होंने पेंटिंग सिखाने का खर्च एक कार्यालय को सौंप दिया था। इस कार्यालय की जिम्मेदारी थी। 3 हजार रूपये प्रतिमाह पेंटिंग टीचर को देना। मजबूरी में संकुल स्थित कार्यालय से यह भुगतान होता रहा है। ऐसी चर्चा इस उच्च अधिकारी के तबादला होने के बाद सुनाई दे रही है। लेकिन हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
दलाल ...
शीर्षक पढ़कर हमारे पाठक समझ ही गये होंगे। आखिर मामला क्या है। दलाल हर जगह पाये जाते है। मगर इन दिनों संकुल के गलियारों में यह संख्या काफी बढ गई है। कम से कम 1 दर्जन से ज्यादा दलाल सक्रिय है। जो कि खुलकर सुपारी ले रहे है। हर काम करवाने का दावा करते है। बस ... फीस उनकी मनपसंद होनी चाहिये। यह दलाल ना तो अधिवक्ता है और ना ही पक्षकार। इसके बाद भी सकुंल के गलियारों में बैठने वाले बाबूओं से लडते-भिडते रहते है। शिकायत करने की धमकियां देते है। वीडियो बनाते है। तभी तो तहसील से लेकर एसडीएम कार्यालय के बाबू इनसे परेशान है। गुहार लगा रहे है। अपने उत्तम जी से। इन दलालो से मुक्ति दिलाओं-प्रकरण दर्ज करवाओं। देखना यह है कि अपने उत्तम जी क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दौड लगवाई ...
अभी-अभी पंजाप्रेमियों के युवराज को सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिली है। जिसकी खुशी हर पंजाप्रेमी के चेहरे पर नजर आ रही है। फैसला आते ही अपने सूरज अस्त-हम मस्त... पंजाप्रेमी मुखिया एक्टिव हो गये थे। टॉवर चौक पर जश्न मनाया। ढोल बजे-पटाखे फूटे। यही पर अपने सूरज अस्त-हम मस्त ने दौड लगाई। जिसे देखकर पंजाप्रेमी व मीडिया हंस रही थी। इस जश्न में उत्तर से दावेदार पंजाप्रेमी भाभी जी भी शामिल थी। जिनके मीडिया से मधुर संबंध है। तभी तो इधर टॉवर चौक से जुलूस शहीद पार्क के लिए बढा, उधर भाभी जी का इंटरव्यू शुरू हो गया। तब तक अपने सूरज अस्त-हम मस्त को पता नहीं था। आगे जाकर उनको अहसास हुआ। पलटे तो देखा। भाभी जी का इंटरव्यू हो रहा है। बस फिर क्या था। जुलूस छोड़कर दौड लगा दी। सभी को अपने साथ लेकर गये। अब पंजाप्रेमी बोल रहे है। भाभी जी को बधाई- दौड लगवाई। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
धोबी- पछाड ...
यह दाव किस खेल में आजमाया जाता है। यह हमारे समझदार पाठकों को समझाने की जरूरत नहीं है। तो सीधे मुद्दे की बात पर आते है। जिसमें इशारा अपने विकास पुरूष की तरफ है। जो कि इस धोबी-पछाड दाव का शिकार हो गये। हालांकि पूरी सेटिंग की थी। इस खेल का अखिल भारतीय स्तर पर मुखिया बनने के लिए। देश के सभी राज्यों के प्रतिनिधि मतदान करने वाले थे। इसके पहले इस खेल के राष्ट्रीय मुखिया का अभी-अभी महाकाल नगरी में आगमन हुआ था। उनके साथ अपने विकास पुरूष परछाई की तरह हर वक्त रहे। दर्शन भी करवाये। तभी यह सेटिंग जमी थी। नतीजा ... अपने विकास पुरूष नामांकन वाले दिन देश की राजधानी पहुंच गये थे। किन्तु इस खेल के माहिर 22 राज्यों ने अचानक ही धोबी-पछाड दाव खेल दिया। ऐसा हम नहीं, बल्कि अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। उनकी बात सच है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
खौफ ...
यह लिखने में हमें कोई शक- शुबह नहीं है। अपने बडबोले नेताजी का खौफ, संगठन पर भी है। धमकी देने में बडबोले नेताजी ने पीएचडी कर रखी है। फिर धमकी देने का मामला मंच से हो या अकेले में। वह बाज नहीं आते है। अभी-अभी संगठन ने विस्तारक भेजे है। जिले की प्रत्येक विधानसभा में। जिनका काम हर घटना पर नजर रखना, जनता से मिलना और ऊपर रिपोर्ट भेजना है। अपने बडबोले नेताजी ने अपनी विधानसभा के युवा विस्तारक को बुलवाया। फिर उसकी क्लास ली। सीधे लफ्जो में बोल दिया। कहीं नहीं जाना है- चुपचाप बैठो और ऊपर रिपोर्ट भी, जो मैं बोलू.... वही भेजना है। बेचारा नई उम्र का विस्तारक डर गया। उसमें खौफ बैठ गया। नतीजा ... विस्तारक ने विधानसभा छोड़कर अपना डेरा-तंबू फ्रीगंज मुख्यालय पर ही डाल दिया है। खौफ के चलते उन्होंने उस तरफ पैर करके ही सोना छोड दिया है। ऐसा कमलप्रेमी बोल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप ही रह सकते है।
फाइल अटकी ...
आमजनता, जनप्रतिनिधि इसलिए चुनती है। ताकि वह शहर व जनहित में फैसला ले सके। लेकिन अगर कोई जनप्रतिनिधि इसमें रोडा अटकाए। तो फिर क्या होगा। ऐसा ही एक मामला दबी जुबान से सुनने में आ रहा है। इशारा शहर की स्ट्रीट लाईट के रख-रखाव से जुड़ा है। जिसकी फाइल लंबे समय से अटकी है। हालांकि सरकारी एजेंसी को रख-रखाव का काम दिया जा चुका है। किन्तु इस पर मोहर लगना बाकी है। अंदरखाने की खबर है। रख-रखाव से जुड़ी फाइल शिवाजी भवन की अपनी बहन जी तक गई थी। पिछले साल। मगर उसके बाद यह फाइल अटक गई है। कारण ... मामला 90 खोखे से जुड़ा है। ऐसा हम नहीं, बल्कि शिवाजी भवन वाले बोल रहे है। अब फाइल क्यों अटकी है। इसका खुलासा करने की हमें जरूरत नहीं है। क्योंकि हमारे पाठक हमसे ज्यादा समझदार है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
इंसाफ ...
कभी-कभी कुदरत खुद इंसाफ करती है। अपने अनोखे तरीके से। जैसे एक अपर आयुक्त का इंसाफ किया। जो कि सोशल मीडिया ग्रुप पर लंबे-लंबे मैसेज लिखते रहते थे। जिनको पढ़कर शिवाजी भवन के अधिकारी- कर्मचारी अपना माथा पकड लेते थे। अब अचानक ही अपर आयुक्त को फोन से डर लगने लगा है। कोई बीमारी ने जकड लिया है। तभी तो उन्होंने ग्रुप में मैसेज डाला। मुझे डॉक्टरों ने फोन उपयोग करने से मना किया है। इसलिए साढ़े 10 से साढ़े 5 तक अपने कार्यालय में सभी से मिलूंगा। शनिवार-रविवार अवकाश रहता है। इसलिए निवास पर मिलूंगा। अब वाट्सअप संदेशो का इंतजार ना करे- अपना-अपना काम करे। फोन से ज्यादा महत्वपूर्ण मेरा जीवन है। अपर आयुक्त के इस मैसेज के बाद शिवाजी भवन में खुशी के साथ चुप्पी है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
विदाई ...
अकसर, तबादला होने के बाद मातहतो द्वारा शानदार विदाई दी जाती है। मगर, दाल-बिस्किट वाली तहसील में रविवार को सामान्य पार्टी हुई। उस युवा आईएएस को विदाई दी गई। जो अपना सामान लेने आये थे। उनके लिए विशेष तौर पर 20 दाल-बिस्किट मंगवाये गये। रेस्टहाऊस पर यह पार्टी हुई। इस पार्टी में कौन-कौन शामिल था। इसका खुलासा तो नहीं हो पाया है। लेकिन दुकान से दाल-बिस्किट जरूर मंगवाये गये थे। इसकी पुष्टि हुई है। बहरहाल, उम्मीद है कि युवा आईएएस इस दाल-बिस्किट का स्वाद आजीवन याद रखेंगे। बाकी हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
हम चुप रहेंगे ...
इस तस्वीर को गौर से देखिए। पिछले सप्ताह की है। हर तस्वीर कुछ बोलती है। तो हमारे पाठकगण खुद अंदाजा लगाये। तस्वीर को देखकर। आखिर क्या हुआ होगा। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
चलते-चलते ...
देर से मैं खड़ा हूं उलझन में/ ये नदी कैसे पार की जाये...! महाकाल लोक रूद्रसागर को लेकर एक अधिकारी की यह टिप्पणी बहुत कुछ कह रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।