11 मार्च 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

चारों जुग परताप ...
हनुमान चालीसा का यह दोहा हमारे सभी पाठकों को याद होगा। संकुल के दूसरे माले पर इन दिनों हर कोई इस दोहे को रट रहा है। खासकर अधिकारी वर्ग। बेचारे करे भी क्या। इस दोहे में परताप से आशय बजरंगबली जी से नहीं है। दरअसल इस नाम के एक अदने से कर्मचारी है। वह भी सरकारी नहीं। निजी है। पद ड्रायवर का है। जो कि 02 नंबर का वाहन चलाते है। यह वही वाहन है। जो पिछले दिनों टक्कर लगने से क्षतिग्रस्त हुआ था। अपने परताप जी की मेहरबानी से। इनके पास वह पॉवर है। जो बजरंगबली जी के पास है। तभी तो किसी भी अधिकारी को फोन लगाकर डिमांड कर देते है। यह सामान चाहिये .... वह सामान भिजवा दो। बेचारे मातहत इस परताप के पॉवर के चलते हुक्म का पालन करते है और फिर चुप हो जाते है। तो हम भी ड्रायवर परताप जी के पॉवर को सेल्यूट करके, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
राम भरोसे ...
अकसर हम और आप यह बोलते है। सब रामभरोसे चल रहा है। इन दिनों अपने सरकारी भोपू के मुखिया भी यही बोल रहे है। वह भी दूरभाष पर। गुरूवार शाम 5 बजे की घटना है। भरतपुरी कार्यालय पर। अपने सरकारी भोपू के मुखिया वाहन से उतरे। दूरभाष पर बात करते-करते आगे बढ़े। दूसरी तरफ कोई मैडम थी। जिनको सरकारी भोपू के मुखिया बोल रहे थे। सब रामभरोसे चल रहा है मैडम। अब सवाल यह है कि अपने विकासपुरूष के गृहनगर में अगर सबकुछ रामभरोसे चल रहा है। तो हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
विवाद ...
पंजाप्रेमियों के युवराज का आगमन हो और विवाद ना हो? ऐसा संभव नहीं है। न्याय यात्रा लेकर आये युवराज इंगोरिया में रूके थे। अगले दिन सुबह शहर के पंजाप्रेमियों से मुलाकात होनी थी। 75 की लिस्ट थी। जो कि 21 की हो गई। अपने 5 वीं फेल नेताजी व सूरज अस्त-हम मस्त को इशारा मिला। इन लोगों को बुला लो। यही पर विवाद हुआ। गेट पर 5 वीं फेल नेताजी मौजूद थे। जिन्होंने अपने लोगों को अंदर कर दिया। मगर तोपखाना क्षेत्र के अल्पसंख्यक नेता की मदद नहीं की। नतीजा ... दोनों के बीच उन शब्दों का प्रयोग हो गया। जो कि लिखने योग्य नहीं है। ऐसा हम नहीं, बल्कि पंजाप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप रहना है।
लडाई ...
महाशिवरात्रि पर्व के दिन की घटना है। घटनास्थल प्रथमसेवक का बंगला है। जहां पर एक नगरसेविका के पति वीवीआईपी पास लेने पहुंचे थे। प्रथमसेवक के निजसचिव ने उनको 2 पास थमा दिये। जबकि उनकी डिमांड 4 की थी। इस पर नगरसेविका के परमेश्वर भडक गये। निजसचिव भी आक्रोश में आ गये। दोनों के बीच अशिष्ट शब्दों का प्रयोग हुआ। हाथापाई तक की नौबत आ गई। बीच-बचाव करके मामला शांत हुआ। जिस दिन यह घटना हुई। अपने विकासपुरूष शहर में मौजूद थे। उनको भी इस घटना से परमेश्वर पति ने अवगत करा दिया। अपने विकासपुरूष ने वक्त का इंतजार और चुप रहने की सलाह दी। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
कालापानी ...
जब हमारा देश आजाद नहीं हुआ था। तब कालापानी की सजा सुनाई जाती थी। उन वीर सपूतों को। जो कि आजादी के लिए लडते थे। उस वक्त कालापानी की सजा सबसे कुख्यात मानी जाती थी। मगर अब देश आजाद है। मगर अब भी एक कालापानी प्रदेश में मौजूद है। राज्य प्रशासनिक सेवा वाले इसे रामराजा नरेश जिले के नाम से जानते है। यहां पर पदस्थापना होना, मतलब कालापानी की सजा है। अभी-अभी ताजा शिकार अपने इंदौरीलाल जी हुए है। मगर गलती क्या हुई? कालापानी की सजा क्यों मिली? किसी को पता नहीं है। ऐसी मंदिर के गलियारों में चर्चा है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
रवानगी ...
शीर्षक पढ़कर यह अंदाजा नहीं लगाये। हमारा इशारा इंदौरीलाल जी की रवानगी की तरफ है। यह इशारा तो राजधानी से हुई रवानगी की तरफ है। रंगे हाथों पकडऩे वाले विभाग की तरफ। जिसके मुखिया महाकाल नगरी के निवासी है। जिन्हें अपने विकासपुरूष ने हाथों-हाथ फैसला लेकर घर बैठा दिया है। मगर यह तब हुआ। जब पिछले सप्ताह एक पेशी थी। अपने दूसरे माले के मुखिया को तलब किया था। महाकाल लोक को लेकर। जिसके बाद से ही राजधानी में चर्चा शुरू हो गई थी। माननीय की रवानगी जल्दी होगी। बस नये माननीय की तलाश थी। जैसे ही तलाश पूरी हुई। अपने विकासपुरूष ने एक पल की भी देरी नहीं लगाई। जिसके लिए उनको बधाई। बाकी हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है भाई।
नाराज ...
अपने उत्तर के माननीय वैसे तो शांत रहते है। मगर गुस्सा आने पर फिर बिफर जाते है। जैसे पिछले दिनों एक होटल संचालक पर बिफर गये। किस वजह से। पता नहीं। मगर इंदौर रोड की इस होटल पर उन्होंने नियम लागू करवा दिया। रात साढ़े 11 पर होटल बंद हो जाना चाहिये। वर्दी को फरमान था। इसलिए 2 दिन तक दबिश पड़ी। जबकि असली धंधा रात साढ़े 11 के बाद ही शुरू होता है। 2 दिन के अंदर होटल संचालक को समझ में आ गया। संचालक ने साम-दाम-दंड-भेद ... अपनाकर माफी मांगी। तब कहीं जाकर माननीय का गुस्सा शांत हुआ। यह वही होटल है। जो 15 साल पहले ढाबे के रूप में चर्चित था। मगर अब नियमों को ताक में रखकर शानदार होटल में तब्दील हो गया है। ऐसा हमारा नहीं, बल्कि कमलप्रेमियों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
बुलाते है ...
महाशिवरात्रि पर्व पर दिन में भस्मआरती होती है। जिसके लिए काफी मशक्कत होती है। हर कोई नंदी हाल में बैठना चाहता है। जिसमें अपने माननीय योर-ऑनर भी शामिल रहते है। इन सभी को ससम्मान बैठाया जाता है। इनके साथ अंगरक्षक भी रहते है। जो आरती का आनंद उठाते है। इस दफा अंगरक्षकों को रोक दिया गया। रोकने वाले एक राजपत्रित अधिकारी थे। जो कि भगवान विष्णु की सवारी के उपनाम वाले है। इनके रोकने से अंगरक्षकगण नाराज हो गये। किसी अंगरक्षक ने अपने माननीय को फोन लगा दिया। माननीय उस वक्त कुछ नहीं कहा। बस यही बोला ... जिन्होंने रोका है... उनको जल्दी ही कोठी के पीछे वाली बिल्डिंग में तलब करते है। अब देखना यह है कि वर्दीवाले अधिकारी की पेशी कब होती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दावा ...
महाशिवरात्रि की रात 1 बजे से अगले दिन रात 10 बजे तक का सरकारी आंकड़ा भले ही अपनी पीठ खुद थपथपा रहा है। मगर असलियत प्रशासन के हर अधिकारी को पता है। 2 से सवा 2 लाख भक्त ही दर्शन करने पहुंचे। जबकि सरकारी आंकड़े इससे 3 गुना ज्यादा बताये जा रहे है। कम भीड के लिए अधिकारी परीक्षा को कारण मान रहे है। लेकिन सच सभी को पता है। जितना लंबा मार्ग दर्शन के लिए बनाया और प्रचार करवाया। उसके चलते भक्तगणों ने दूरी बना ली। तभी तो मंदिर के गलियारों में शायर अदम गोंडवी का अशआर सुनाई दे रहा है। तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है/ मगर ये आंकड़े झूठे है ये दावा किताबी है...। शायर की बात में दम है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।