28 अक्टूबर 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
सपना ...
हर सपना सच नहीं होता है। मगर कभी-कभी सच भी हो जाता है। जानकार कहते है। सुबह-सुबह का देखा सपना सच हो जाता है। हमको तो पता नहीं है। लेकिन संकुल के गलियारों में एक सपने की चर्चा है। जिसे एक महिला कर्मचारी ने देखा। अलसुबह। सपना अपने दूसरे माले के मुखिया को लेकर था। जिसमें उन्होंने देखा। दूसरे माले के मुखिया का तबादला हो गया है। महिला कर्मचारी ने यह बात किसी को बताई। फिर बात एक कान से दूसरे कान तक होती हुई संकुल के गलियारों में सुनाई देने लगी। किन्तु सपना किसने देखा? इसको लेकर कोई भी महिला कर्मचारी का नाम बताने को तैयार नहीं है। सपने की चर्चा जोरों पर है। यह सपना सही साबित होगा या नहीं? फैसला विकासपुरूष करेंगे। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
बोलियां समझती है...
किसी शायर ने बहुत खूब कहा है। गुफ्तगू मोहब्बत में कीजिए इशारों से/ लडकियां तो आंखों की बोलियां समझती है...। यह शेर इन दिनों संकुल से लेकर स्मार्ट भवन के गलियारों में सुनाई दे रहा है। इशारा पिछले दिनों हुई एक बैठक की तरफ है। जो कि अपने वजनदार जी ने ली थी। बैठक में नये-नये आये अधिकारी मौजूद थे। जिनके नयन, एक ग्रामीण विकास विभाग की अधिकारी से मिल गये। बस फिर क्या था। नयनो की भाषा पूरी बैठक में चलती रही। जिसे बैठक में मौजूद कई लोगों ने देखा। मगर सब चुप रहे। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
अनुरोध ...
अपने कमलप्रेमी अनुरोध कर रहे है। जो कि खुद को कर्मचारी मानते है। उनका अनुरोध अपने विकासपुरूष से है। कमलप्रेमी केवल 2 बातों का अनुरोध कर रहे है। पहला मंदिर और दूसरा वर्दी। कमलप्रेमी चाहते हैं। उनके जो परिचित आते है। यह इच्छा रखते है। बाबा के दर्शन सुगमता से हो जाये। लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती है। जिसको संगठन की तरफ से जिम्मेदारी है। वह अपनी होटल में मस्त रहते है। छोटे कार्यकर्ता का तो फोन ही नहीं उठाते है। दूसरा अनुरोध वर्दी से जुड़ा है। अगर कोई कार्यकर्ता को वर्दी रोकती है। तो वह अपने कमंडल के परिचित पदाधिकारी को फोन करता है। पदाधिकारी की बात वर्दी सुनती नहीं है। जिसके चलते विवाद होते है। कमलप्रेमी अपने विकासपुरूष से गुहार लगा रहे है। बस इन दो बातों की मदद करवा दे। देखना यह है कि विकासपुरूष इस अनुरोध पर क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दबाव ...
विकासपुरूष के गृहनगर में कार्रवाई करना, हिम्मत का काम है। खासकर दिवाली के मौके पर। अभी-अभी मावा पकड़ा गया। नकली-असली? फैसला वक्त करेगा। अधिकारी की हिम्मत को सेल्यूट। क्योंकि पकड़ते ही फोन आने लगे। बेचारे अधिकारी आश्चर्य में थे। खुद आरोपी ने दो दफा ऐसी जगह से फोन लगवा दिये। जिसकी कल्पना पकडऩे वाले अधिकारी को नहीं थी। फिर भी कार्रवाई करने वाले ने कदम पीछे नहीं हटाये। विनम्रता से इंकार किया और चुप हो गये। तो हम भी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मुस्कुराहट ...
अपने दूसरे माले के मुखिया गंभीर रहते है। हर रोज बैठक लेते है। वह भी लंबी-लंबी। लेकिन बैठक के दौरान उनके चेहरे पर मुस्कान देखने को नहीं मिलती है। किन्तु गुरूवार को हुई बैठक में उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। कारण ... किसी माननीय ने बोल दिया। बिजली विभाग का लाईनमेन भी कलेक्टर होता है। यह सुनकर बैठक लेने आये आलाधिकारी और दूसरे माले के मुखिया भी मुस्कुरा दिये। ऐसा बैठक में मौजूद, यह नजारा देखने वालो का कहना है। किन्तु हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
5 साल और परीक्षा ...
एक बार फिर उसी बैठक की बात करते है। जिसमें दूसरे माले के मुखिया मुस्कुराये थे। बैठक में मौजूद माननीयों के अलावा वीसी के माध्यम से संभाग के माननीय भी जुड़े थे। किसी का कोई कंट्रोल नहीं था। जिसका मन होता। वही बोल रहा था। अधिकारियों की लू उतारी जा रही थी। निशाने पर जलजीवन मिशन व बिजली विभाग था। माननीयगण जिस तरीके से व्यवहार कर रहे थे। उससे अपने एसीएस साहब यह बोलने पर मजबूर हो गये। उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा। मगर साफ-साफ कहा। आप लोग हर 5 साल में परीक्षा देते है। जबकि अधिकारी केवल 1 दफा परीक्षा देता है। आलाधिकारी के इस व्यंग्य को जो माननीय समझ गये। वह इसे सुनकर चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दीवार ...
शीर्षक पढ़कर शायद हमारे पाठकों को याद आ जाये। पिछले महीने दीवार गिरी थी। बारिश के कारण। जिसमें 2 की मौत हो गई थी। इसको लेकर जांच बैठी थी। 3 विभागों पर शक की उंगली उठी थी। तीनों को अपनी-अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी। सबसे पहले पर्यटन की आई। उसके बाद स्मार्ट पंडित और इंदौरीलाल जी की। रिपोर्ट के बाद फैसला होना था? आखिर दोषी कौन था। किन्तु आज तक अंतिम रिपोर्ट, अपने दूसरे माले के मुखिया के पास नहीं पहुंची है। अपने कटप्पा जी को फुर्सत नहीं है। फायनल रिपोर्ट पेश कर पाये। देखना यह है कि रिपोर्ट कब पेश होती है और उस पर क्या कार्रवाई होती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
घबराहट ...
पिछले सप्ताह अपने विकासपुरूष आये थे। रात्रि विश्राम किया। फिर जब राजधानी जाने की तैयारी हो रही थी। तब अचानक उन्होंने बोल दिया। मीडिया से बात करेंगे। उसके बाद जायेंगे। विकासपुरूष का फरमान सुनकर दूसरे माले के मुखिया और चटक मैडम जी तत्काल दौड़े। स्मार्ट भवन के दूसरे तल पर । देखा तो पूरा हॉल गंदगी से सराबोर था। उस पर एक मुसीबत यह थी। अगर विकासपुरूष को दूसरे तल पर ले जाना था। तो लिफ्ट खराब थी। ऐसे में घबराहट होना स्वाभाविक था। इसलिए प्रथम तल पर मीडिया से मुलाकात करवाई गई। विकासपुरूष को लिफ्ट वाले रास्ते के बदले, प्रथम गेट से ले जाने की व्यवस्था की गई। ताकि लिफ्ट की खराबी का पता नहीं चले। ऐसी स्मार्ट भवन के गलियारों में चर्चा है। मगर हमको आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
गायब ....
कमलप्रेमियों में चर्चा है। अपने विकासपुरूष के आगमन पर। कमलप्रेमी मुखिया के गायब रहने की। जिनको ढीला-मानुष बोला जाता है। वह आजकल नजर नहीं आते है। जबकि अपने विकासपुरूष हर सप्ताह आते है। ढीला-मानुष के गायब रहने को लेकर तरह-तरह की चर्चा कमलप्रेमी कर रहे है। इधर उनके एक शुभचिंतक का कहना है। उनको विकासपुरूष के आगमन की खबर ही नहीं होती है। अब सच क्या है और झूठ क्या? फैसला खुद अपने कमलप्रेमी कर लें। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
कद ...
अपने विकासपुरूष की आदत है। अच्छी आदत। वह अपने पुराने साथियों का ध्यान रखते है। जब मौका मिलता है। कोई दायित्व थमा देते है। जैसे अभी-अभी किया। एक साथी को प्रदेश में तो दूसरे को जिले का दायित्व सौंप दिया। संगठन चुनाव को लेकर। जिसे जिले का प्रभारी बनाया है। वह उनके परिषद के दिनों के साथी है। बदबू वाले शहर के निवासी है। जबकि प्रदेश में जिनको भेजा है। उन पर तो विकासपुरूष की असीम कृपा जगजाहिर है। दोनों का कद बढाकर विकासपुरूष ने साबित किया। दोस्ती निभाना उनको आती है। ऐसा अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
अलग-अलग ...
प्रशासनिक हल्कों में जय-वीरू की जोड़ी मशहूर है। दोनों अकसर साथ नजर आते है। फिर किसी वीआईपी से मुलाकात का मौका हो या सार्वजनिक कार्यक्रम। दोनों साथ ही दिखते है। मगर रविवार को दोनों अलग-अलग गये। सरकारी विश्रामगृह में। अपने जिले के प्रभारी बाऊजी से मिलने। बंद कमरे में पहले अपने कप्तान जी ने करीब 20 मिनिट तक चर्चा की। फिर निकल गये। उसके बाद दूसरे माले के मुखिया पहुंचे। उन्होंने बाऊजी से औपचारिक मुलाकात की। जय-वीरू का अलग-अलग मुलाकात करने आना? सरकारी विश्रामगृह में चर्चा का विषय बन गया। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
शुभकामनाएं ...
दिवाली पर्व की हमारे सभी पाठकगणों को अग्रिम शुभकामनाएं। अगली मुलाकात दीप पर्व के बाद होगी। इस बीच संकुल के गलियारों में चर्चा है। अधिकारियों की दिवाली मनेगी या नहीं ? इशारा अपने विकासपुरूष के आगमन को लेकर है। मगर हमकों अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।