07 नवम्बर 2022 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
बेइज्जती ...
अपने मुंह से अपनी तारीफ करना तो आम बात है। मगर खुद ही बोलकर अपनी बेइज्जती करवाना? वह भी अधिकारियों के सामने। ऐसा पहली दफा देखने को मिला। कालिदास समारोह शुभारंभ के पहले की घटना है। अपने बड़बोले नेताजी का आगमन हुआ था। जहां उनको 2 अधिकारी मिल गये। इन दोनों को देखकर अपने बड़बोले नेताजी को पुरानी घटना याद आ गई। 11 अक्टूबर के दिन की। महाकाल लोक से जुड़ी घटना है। जहां पर बड़बोले नेताजी को अंदर नहीं घुसने नहीं दिया था। क्योंकि देश के प्रथम सेवक का मामला था। अब कोई और होता तो पुरानी घटना को याद नहीं करता। लेकिन अपने बड़बोले नेताजी ने, 11 अक्टूबर को हुई अपनी बेइज्जती की याद दिलाई। जिसे सुनकर दोनों चतुर अधिकारियों ने अपनी चतुराई से बड़बोले नेताजी को शांत कर दिया। जैसे 11 अक्टूबर को किया था। उसके बाद दोनों अधिकारी चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
सबक ...
यह जरूरी तो नहीं है। कोई सबक सिखाये और सामने वाला उसे तत्काल सीख ले। अपने प्रदेश के प्रथम नागरिक ने सर्किट हाऊस पर सबक सिखाया था। 7 जिलों के मुखिया, अल्फा, डेल्टा, उम्मीद जी और कप्तान को। दूध बनाम शक्कर वाला। लेकिन यह सबक उस कमरे तक ही सीमित रहा। शाम को कालिदास संकुल में कार्यक्रम था। शुभारंभ और मप्र गान के समय तो सभी सोफे पर एडजस्ट हो गये थे। लेकिन इसके बाद एडजस्ट होना मुश्किल था। नतीजा ... 7 जिलो के मुखिया, अल्फा और डेल्टा बाहर निकल गये। 3 कुर्सी लगवाई और मस्ती मजाक करते नजर आये। जिसे देखकर चुप रहने वाले को सुबह का सबक याद आ गया। लेकिन हम किसी को जबरदस्ती तो सबक सिखा नहीं सकते है। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
वाणी ...
बाबा कबीरदास ने खूब लिखा है। ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये/ औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होए। यह दोहा सभी ने पढ़ा होगा। मगर शायद अपनी घमंडी मैडम ने यह दोहा नहीं पढ़ा। तभी तो उनकी वाणी से उनके मातहत तो परेशान रहते ही है। लेकिन दुकान लगाने आये व्यापारी भी उनकी वाणी सुनकर परेशान हो गये। शुक्रवार के दिन खुद यह नजारा हमारी आंखो ने देखा और उनकी वाणी सुनी। उनकी कर्कश वाणी सुनकर व्यापारी आश्चर्य चकित थे। लेकिन अपनी घमंडी मैडम को इससे कोई फर्क नहीं पडा। वह सार्वजनिक रूप से मातहतों और व्यापारियों को फटकार लगाते नजर आई। ताज्जुब की बात यह है कि उनका यह दोहरा व्यवहार समझ नहीं आता है। भद्रजनों के बीच जाकर उनकी यही वाणी मिश्री जैसी हो जाती है। जिसमें हम आखिर क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
हिम्मत ...
बात एक बार फिर अपनी घमंडी मैडम की है। घटना भी उसी मेले की है। जिसका शुभारंभ अपने प्रदेश के प्रथम नागरिक ने किया। हमेशा की तरह अतिथि देवों भव: परम्परा का पालन करना था। अतिथि को यादगार बतौर मोमेंटो देना था। जिसकी जुगाड वहीं लगी एक दुकान से हाथों-हाथ की गई। दुकानदार को भुगतान हुआ या नहीं? बाबा महाकाल ही जाने। मगर घमंडी मैडम की हिम्मत तब देखने में आई। जब घोषणा की गई। अब अतिथि को मोमेंटो, अपने 7 जिलों के मुखिया द्वारा प्रदान किया जायेंगा। अपने उम्मीद जी भी मौजूद रहेंगे। लेकिन घोषणा के ठीक उलट नजारा देखने को मिला। अपनी घमंडी मैडम ने ही मोमेंटो प्रदान कर दिया। 7 जिलों के मुखिया और उम्मीद जी को पता ही नहीं चला। इतना ही नहीं, शुभारंभ के अवसर पर विकास भवन के जनप्रतिनिधि सदस्यगण भी लापता नजर आये। वजह ... उनको ससम्मान बुलाया नहीं गया। अब इतनी हिम्मत तो कोई ऐरा-गैरा कर नहीं सकता है। अपनी घमंडी मैडम के अलावा। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
एक बनाम शून्य ...
1 रूपया लगाने पर अगर आपको 9 रूपये मिले? तो उसको क्या कहते है? इससे हमारे पाठक परिचित है। यह एक सामाजिक बुराई है। जिस पर अंकुश लगाने का काम वर्दी करती है। अपने कप्तान ने सख्ती से इस धंधे पर रोक लगा रखी है। इसलिए अधिकांश जगह 1 के बदले 9 का खेल बंद है। लेकिन दमदमा क्षेत्र में यह खुलकर चल रहा है। इसके पीछे संरक्षण एक युवा कमलप्रेमी नेता जी का है। जो कि इन दिनों प्रदेश में पदाधिकारी है। उन्होंने ने ही ऊपर से दबाव डलवाया है। जिसके चलते दमदमा का यह अल्पसंख्यक खुलकर धंधा कर रहा है। अपनी वर्दी, चाहकर भी हाथ नहीं डाल पा रही है। इधर युवा नेता को इस संरक्षण के बदले आर्थिक लाभ हो रहा है। ऐसा हम नहीं, बल्कि युवा कमलप्रेमी बोल रहे है। अब फैसला वर्दी को करना है। बात सच है या झूठ। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
रायता ...
मालवा में एक कहावत है। रायता फैलाना। जो कि इन दिनों शिवाजी भवन के गलियारों में खूब सुनाई दे रही है। इशारा अपने पपेट जी की तरफ है। जो कि जाने से पहले ऐसा रायता फैला गये। जिसे समेटना अब भारी पड रहा है। यह रायता कार्तिक मेले से जुड़ा है। जिसमें हर साल कबड्डी- कवि सम्मेलन- बॉडी बिल्डिंग व मुशायरा होते है। इनका बजट भी अच्छा खासा होता था। किन्तु अपने कार्यकाल में पपेट जी ने इन सभी का बजट घटा दिया। 1-2-3 पेटी का बजट कर गये। सीधी भाषा में रायता फैला गये। जिसको अब समेटना भारी पड रहा है। अंदरखाने की खबर है कि इन कार्यक्रमों से जुड़े संयोजक, समितियों से इस्तीफा देने वाले है। अपने प्रथम सेवक भी लाचार नजर आ रहे है। देखना यह है कि शिवाजी भवन के नये मुखिया,इस फैले रायते को कैसे समेटते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
किस्मत ...
अपने चुगलखोर जी की किस्मत वाकई जोरदार है। हमारे पाठक जरा ध्यान से पढ़े। हम यहां मंदिर वाले अपने चुगलीराम जी की बात नहीं कर रहे है। उनकी तो रवानगी हो चुकी है। एक आडियों के कारण। फिलहाल वह लंबे अवकाश पर है। हम यहां संकुल के चुगलखोर जी की बात कर रहे है। जो अपने पिछले कार्यकाल में खूब चर्चित रहे। इस कदर चर्चित हुए कि एक पटवारी ने उनके सामने अपने कपड़े उतार दिये थे। जिसको लेकर ग्राम देवताओं ने धरना-प्रदर्शन भी किया था। यह सब उनकी डिमांड वाली आदत के कारण हुआ था। अब उनकी फिर वापसी हो गई है। उनकी किस्मत भी जोरदार है। तभी तो उनके पास अतिरिक्त प्रभार है। मतलब ... दोनों हाथ में लड्डू है। तभी तो उनकी किस्मत की चर्चा संकुल के गलियारों में जोरो पर है। मगर यह सवाल भी उठ रहा है। अपने चुगलखोर जी पर, अपने उम्मीद जी मेहरबान क्यों है? इसकी वजह किसी को पता नहीं है। इसलिए सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
श्रृंगार...
भू-लोक के अधिपति बाबा महाकाल का हर रोज श्रृंगार होता है। रविवार को भी हुआ। ऊपर लगी तस्वीर उसी श्रृंगार की है। लेकिन भस्म रमैया बाबा महाकाल को नीला रंग क्यों लगाया गया? इसको लेकर मंदिर के गलियारों में नाराजगी के स्वर ऊभर रहे है। बाबा का श्रृंगार भांग-ड्रायफूड- केसर चंदन- सफेद भस्म से किया जाता है। इसमें कभी भी रंग नहीं मिलाया जाता है। इसके बाद भी रविवार की शाम के श्रृंगार में नीला रंग मिलाकर लगा दिया गया। जिससे भक्तों में आक्रोश है। अब देखना यह है कि अपने उम्मीद जी, जो खुद बाबा के भक्त है। ऐसे रंग वाले श्रृंगार पर रोक लगा पाते है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
चलते-चलते ...
राजधानी के प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है। प्रदेश के नये मुख्य सचिव अनुराग जैन हो सकते है? जो कि इन दिनों केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर है। वर्तमान मुख्य सचिव का कार्यकाल 30 नवम्बर को खत्म हो रहा है। इधर संकुल के गलियारों में चर्चा है कि ... अपने उम्मीद जी का नया ठिकाना, देवी अहिल्या की नगरी हो सकती है। देखना यह है कि यह दोनों चर्चाए कितनी सच निकलती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।