पद गया लेकिन मोह बरकरार , हम तो चुप रहेंगे 'सरकार' ...!

उज्जैन। महाकाल मंदिर प्रशासक को पद से हटाये हुए आज 6 दिन हो रहे है। मप्र शासन ने अचानक ही प्रशासक को हटा दिया था। उसी दिन रात को नये प्रशासक ने पदभार भी संभाल लिया था। जिसके बाद होना तो यही चाहिये था। बंगले पर लगी पदनाम पट्टिका (नेम-प्लेट ) को हटा दिया जाता। किन्तु हटाये गये प्रशासक का पदनाम मोह बरकरार है। जिसको रविवार की दोपहर में चुप रहेंगे डॉट-कॉम ने खुद अपनी आंखो से जाकर देखा और तस्वीर खीची।
मंदिर प्रशासक गणेश धाकड को जिस तरीके से अचानक हटाया गया। उसको लेकर आज भी चर्चाओं का दौर जारी है। कारण तलाश किये जा रहे है। सबकी अपनी-अपनी राय है। 21 सितम्बर की दोपहर में आर्डर निकला था। जिसकी किसी को भी कल्पना नहीं थी। मंदिर में यह चर्चा आम है कि ... खुद प्रशासक श्री धाकड को उम्मीद नहीं थी कि उनको हटाया भी जा सकता है। मगर शासन ने फैसला लिया और संदीप सोनी को मंदिर प्रशासक बना दिया। नये प्रशासक के पदभार संभालने के अगले दिन श्री धाकड ने मंदिर का वाहन लौटा दिया। इसके साथ ही वह मंदिर के सोशल मीडिया ग्रुपों से खुद अलग हो गये। किन्तु उनका प्रशासक पदनाम से अभी तक मोह बरकरार है। तभी तो रविवार की दोपहर में उनके उदयन मार्ग स्थित बंगले के बाहर लगी नेम प्लेट में यह लिखा हुआ है। गणेश धाकड... मंदिर प्रशासक। (देखे बंगले की तस्वीर)
दबदबा ...
पॉवरफूल गणेश धाकड को भले ही प्रशासक के पद से हटा दिया गया है। लेकिन उनका दबदबा आज भी बरकरार है। जिसका प्रमाण यह है कि ... पदनाम पट्टिका के अलावा बंगले के बाहर आज भी सुरक्षाकर्मी मौजूद है। सुरक्षाकर्मी, उनके प्रशासक रहते हुए बंगले पर 8-8 घंटे की शिफ्ट में काम करते थे। हालांकि इस वक्त सुरक्षाकर्मी यूनिफार्म में ड्यूटी नहीं कर रहे है। सूत्र का कहना है कि ड्यूटी करने वाले यह सुरक्षाकर्मी केएसएस कंपनी के है। जिनके पास मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था का दायित्व है। पदनाम पट्टिका नहीं हटाना और मंदिर सुरक्षाकर्मी का उनके बंगले पर आज भी मौजूद रहना, यह साबित करता है। पूर्व प्रशासक गणेश धाकड का दबदबा आज भी बरकरार है।
केबिनेट बैठक होगी ...
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान मंगलवार को उज्जैन आ रहे है। उनके साथ मंत्रिमंडल भी रहेंगा। क्योंकि मंगलवार को उज्जैन में ही केबिनेट बैठक होने वाली है। जिसको लेकर प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां शुरू हो गई है। बैठक, संभवत: प्रशासनिक संकुल में होगी। जानकारों का कहना है कि पिछले 20 साल में कभी भी केबिनेट बैठक उज्जैन में नहीं हुई है। यह पहली बार है कि शहर में केबिनेट बैठक होने जा रही है। जिसमें आगामी 11 अक्टूबर को लेकर कुछ महत्वपूर्ण फैसले होंगे। बैठक शिव-दृष्टि के लोकार्पण को लेकर हो रही है। जिसके लिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आगमन होने वाला है।
फोन रख...
अपने मामा जी, वैसे कभी सार्वजनिक गुस्सा जाहिर नहीं करते है। पिछले 19 सालों में खुद हमने उनको बहुत कम गुस्सा होते देखा। खासकर कमलप्रेमियों पर गुस्सा होने का यह दूसरा अवसर था। इसके पहले एक दफा सर्किट हाऊस पर आक्रोश दिखा था। मगर हेलीपेड पर पहली बार इस कदर आक्रोशित होते देखा। जब वह वापस जा रहे थे। तब उनकी निगाह फोन कर रहे कमलप्रेमी पर इनायत हुई। पूर्व जनप्रतिनिधि है। जिनको हम पिस्तौल कांड का नायक लिखते है। वह फोन पर बतिया रहे थे। यह देखकर अपने मामाश्री ने उनको फटकार लगा दी। वह भी सभी के सामने। मामा जी के आक्रोश का अंदाजा यह पढ़कर लगाये। उन्होंने पिस्तौल कांड नायक को सीधे- साफ शब्दों में बोला। फोन रख-फोन रख। उनका यह रौद्र रूप देखकर वहां मौजूद सभी हतप्रभ हो गये। पिस्तौल कांड नायक ने तत्काल फोन बंद किया। जेब में रखा और चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
भोजन ....
हमारे पाठक शीर्षक पढ़कर अंदाजा नहीं लगाये। हम कमलप्रेमियों के स्लोगन की बात कर रहे है। बैठक- भोजन- विश्राम। हम तो युवा पंजाप्रेमी नेता द्वारा कराये गये भोजन की बात लिख रहे है। लिखना इसलिए जरूरी है। क्योंकि घटना श्राद्ध- पक्ष- भोजन से जुड़़ी है। पिछले सप्ताह एक बैठक थी। युवा पंजाप्रेमी संगठन की। जिसके लिए राजधानी से प्रभारी आये थे। बैठक हो गई। इसके बाद भोजन करवाना था। तो सवाल उठा। खर्च कौन करेंगा। सभी ने एक-दूसरे का चेहरा देखकर हाथ ऊंचे कर दिये। जिम्मेदारी अपने बिरयानी नेता जी के रिश्तेदार की थी। वही युवा पंजाप्रेमी संगठन के मुखिया है। उनको उसी दिन किसी के घर पर श्राद्ध-भोजन करने जाना था। नतीजा ... राजधानी से आये नेताजी को भी ले गये। श्राद्ध पक्ष का भोजन करवा दिया। इसके पहले एक राष्ट्रीय नेता को अन्न क्षेत्र में भोजन करवा चुके है। वजह ... खर्चा कौन करे। इस बार श्राद्ध पक्ष का लाभ मिल गया। 10 रूपये भी खर्च नहीं हुए, अन्न क्षेत्र की तरह। ऐसा पंजाप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको आदत के अनुसार चुप रहना है।
आजादी ....
अपने चुगलीराम जी को मंदिर में काम करने के लिए आजादी चाहिये थी। जिसके लिए उन्होंने अपने धर्म पिता से सिफारिश करवाई थी। धर्म पिताश्री के कारण ही वह इस पद पर विराजमान हुए थे। इसीलिए चुगलीराम जी ने फिर वहीं से सिफारिश लगवाई। उस वक्त, जब अपने मामाश्री मंदिर पहुंचे थे। मामा जी के साथ ओएसडी भी थे। जो कभी 7 जिलो के मुखिया थे। कोविड कार्यकाल में। इन्हीं को देखकर धर्मपिता ने बोल दिया। अपने दत्तक पुत्र का नाम लेकर। जिसको हम चुगलीराम जी के नाम से जानते है। पिताश्री ने कहां कि ... इनको काम करने की आजादी मिल जाये। यह संदेश मामाश्री तक पहुंचा देना। अब ओएसडी जी ठहरे बेहद बुद्धिमान। उन्होंने पलटकर कह दिया। आप ही बोल दीजिए। मैं मामा जी तक संदेश पहुंचा देता हू। आप मिलना चाहते है। यह बुद्धिमानी जवाब सुनकर धर्म पिता जी ने कहा कि ... आप ही बता देना। इस घटना के 3 दिन बाद, अपने चुगलीराम जी को लंबी आजादी मिल गई। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। सच-झूठ का फैसला पाठक कर ले। क्योंकि हमको आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
वापस आऊंगा ...
अपने चुगलीराम जी के आत्मविश्वास की दाद देनी होगी। जो अब भी अपने पट्ठो से यह प्रचारित करवा रहे है। मैं वापस आऊंगा। जबकि उनको खुद पता है। अब यह असंभव है। उनके आकाओं ने भी हाथ ऊंचे कर दिये है। क्योंकि संरक्षण देने वालो को सच पता चल गया है। यह वह कड़वा सच है। जिसे खुफिया सेवा देने वालो ने पकड़ा है। तभी तो अपने मामा जी ने तत्काल हटा दिया। सबको खबर है। मन की बात करने वाले ... सेवक आने वाले है। इसलिए खुफिया सेवा देने वाले एक्टिव है। उन्होंने हर उस इंसान पर नजर रखी है। जो कि व्यवस्थाओं से जुड़ा है। इसी निगाहबीनी में अपने चुगलीराम जी हत्थे चढ गये। उनका एक ऐसा संवाद सामने आ गया। जिसका सीधा-सीधा असर अपने मामा जी की उज्जवल छबि पर पढ़ सकता था। इस बातचीत के दौरान यह भी सच उजागर हो गया। अपने चुगलीराम जी तो पक्के मांगीलाल है। जो कि खुलकर मांगते है। अपना प्रभाव दिखाने के लिए बड़े नामों का सहारा भी लेते है। उनकी इस कार्यशैली का खुलासा होते ही हड़कंप मच गया। फैसला लेने से पहले चुगलीराम जी के संरक्षण दाताओं को भी सच बताया गया। संरक्षण देने वाले समझ गये। गलत व अयोग्य इंसान की मदद कर रहे थे। नतीजा ... उन्होंने भी हटाने की सहमति प्रदान कर दी। हरी झंडी मिलते ही ... बड़े बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले... की तर्ज पर विदाई हो गई। अब भले ही चुगलीराम जी, अपनी इज्जत बचाने के लिए प्रचारित करवा रहे है। मैं वापस आउंगा...? मगर चुगलीराम जी की अंर्तआत्मा, अगर है तो, यह जानती है। ऐसा होना अब बिलकुल संभव नहीं है। इसलिए हम तो जनाब वसीम बरेलवी के अशआर... वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से/ हम एतबार ना करते तो और क्या करते... को याद करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दो-प्रेमी...
हमारा मतलब वह कतई नहीं है। जो शीर्षक पढ़कर हमारे पाठकों के दिमाग में आया होगा। हम प्रेमी युगल की बात नहीं कर रहे है। हमारा इशारा तो शिवाजी भवन के उन दो-प्रेमी की तरफ है। जिनकी जुगलबंदी आजकल चर्चाओं में है। इनमें से एक मसाज-प्रेमी है। तो दूसरे स्ट्रीट- डॉग प्रेमी है। इन दोनों के बीच आयु का भी अच्छा- खासा फर्क है। फिर भी दोनों के बीच इन दिनों कुछ ज्यादा पट रही है। शिवाजी भवन में तो यह तक चर्चा है। आजकल दोनों प्रेमी ... हम प्याला-हम निवाला बने हुए है। इसलिए तो इनको देखकर अब शिवाजी भवन वाले दबी जुबान से बोल रहे है। वह देखो ... दो-प्रेमी आ रहे है। अब मारने वाले का तो हाथ पकड सकते है, लेकिन बोलने वाले की जुबान नहीं। इसलिए हम भी अपनी जुबान को आदत के अनुसार चुप कर लेते है।
अंडर-10 ...
बधाई-बधाई-बधाई। अपने पपेट जी और खजांची जी को। शिवाजी भवन के गलियारों में इन दिनों बधाई की गूंज सुनाई दे रही है। इशारा राष्ट्रपिता की जयंती वाले दिन की तरफ है। इस दिन स्वच्छता का परिणाम आने वाला है। जिसको लेकर पपेट जी और खजांची जी आशांवित है। दोनों को पूरी उम्मीद है। इस दफा देश में अवंतिका नगरी का नाम अंडर-10 में होगा। अगर ऐसा होता है तो वाकई शिव- दृष्टि की यह मेहरबानी होगी। देखना यह है कि अपने पपेट जी और खजांची जी की मेहनत क्या रंग लाती है। तब तक हम एक बार फिर अग्रिम बधाई देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
रस ...
इंसान की जिंदगी में रस का बड़ा महत्व है। रसहीन जिंदगी कोई भी नहीं जीना चाहता है। रस के कई प्रकार होते है। जिसका जैसा चरित्र होता है। वह उसी रस में अपनी जिंदगी के मजे लेता है। हम चुप रहेंगे कॉलम के एक प्रिय पात्र है। जिनको हमारे सभी पाठक बहुत पसंद करते है। यह अभी-अभी उस शहर की यात्रा करके लौटे है। जिसके अंत में रस शब्द लगा है। उनकी वापसी के बाद से चर्चा का बाजार गर्म है। सुगबुगाहट है कि पाठकों के प्रिय पात्र अधिकारी के साथ 2 रसभरी भी गई थी। निरीक्षण करके प्रिय पात्र तो वापस आ गये। लेकिन दोनों रसभरी उस शहर चली गई। जहां पर 3 नदियों का संगम होता है। अब यह प्रिय पात्र कौन है? हमारे समझदार पाठक समझ गये होंगे। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
चलते-चलते ...
हमारे पाठकों को याद होगा। अगस्त माह में विवाद हुआ था। तब अपने चुगलीराम जी मुखिया थे। उन्हीं के ऑफिस में विवाद हुआ था। जिसकी शिकायत अपने उम्मीद जी को हुई थी। मामले की जांच हुई। रिपोर्ट अपने उम्मीद जी तक पहुंच गई है। दोषी ... गणपति बप्पा के भक्त साबित हुए है। चर्चा तो यही है। मगर फिलहाल हमें इस मामले में चुप ही रहना है।