पुरूस्कार की बधाई, अब इस गरीब की भी गुहार सुनो ...!

पुरूस्कार की बधाई, अब इस गरीब की भी गुहार सुनो ...!

उज्जैन। कलेक्टर आशीषसिंह को बधाई। जिन्होंने महाकाल लोक निर्माण में दिन-रात मेहनत की। नतीजा ... सोमवार की शाम को उन्हें राजधानी में सम्मानित किया गया। महामहिम राज्यपाल व मुख्यमंत्री ने। बधाई... पुरूस्कार मिलने की है। जिसके वह हकदार है। लेकिन वह इससे बेहतर पुरूस्कार के हकदार हो सकते है...! बशर्ते अगर वह चाहे तो? जिसके लिए उनको केवल उस गरीब परिवार की गुहार सुननी होगी। जिसका 11 वर्षीय मासूम बच्चा, दीवाली के अगले दिन मौत का शिकार हो गया। नादानी के चलते, बम फोडते वक्त।

जिन गरीबों के आंचल में दुआओं के सिवा कुछ भी नहीं/ उन गरीबों की दुआओं में असर होता है... किसी शायर का यह शेर कहारवाडी निवासी अशोक पिता प्रभुलाल कहार पर बिलकुल सटीक बैठता है। तभी तो उनकी गुहार में छुपी हुई दुआ नजर आ रही है। बशर्ते ... प्रशासन या जनप्रतिनिधियों के पास ऐसा दिल हो? जिसमें संवेदना हो? वरना यह तय है कि इस गरीब की गुहार में किसी को भी दुआ नजर नहीं आने वाली है? जो आर्थिक मदद मिलने पर कहार परिवार द्वारा दी जायेंगी।

इसलिए गुहार ...

सर्वविदित है कि 25 अक्टूबर को सूर्यग्रहण था। उसी दिन दोपहर की घटना है। कहारवाडी निवासी अशोक के 11 वर्षीय पुत्र ऋतिक की मौत हो गई थी। दर्दनाक मौत। रस्सी बम पर स्टील का ग्लास रखकर मासूम ने जला दिया था। नतीजा ... इधर बम फटा ... उधर ग्लास के टुकडे हुए। एक टुकडा ऋतिक के गले में जाकर फस गया था। लहूलूहान हो गया था ऋतिक। जब तक घर वाले अस्पताल लेकर भागते। देर हो चुकी थी। पिता अशोक गोताखोर है। आमदानी का कोई जरिया भी नहीं है। क्षिप्रा नदी में भक्तगण जो चिल्लर फेकते है। उसे तलाश करके घर चलाते है। ईमानदारी से इस परिवार को आर्थिक मदद मिलनी चाहिये। मगर कोई भी गरीब की गुहार सुनने वाला नहीं है।

नहीं मिले मंत्री ...

ऐसा नहीं है कि यह परिवार मदद की गुहार नहीं लगा रहा है। 28 अक्टूबर को अशोक कहार, उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. यादव के कार्यालय पहुंचे थे। इत्तफाक से मंत्री यादव कार्यालय पर मौजूद नहीं थे। कार्यालय वालो ने आवेदन ले लिया। आश्वासन भी दिया। मंत्री जी मदद करेंगे। लेकिन आज तक ना कोई संदेश मिला है और ना ही कोई आर्थिक सहायता।

संवेदना दिखाये...

हमारे शहर में उच्च शिक्षा मंत्री सहित सांसद अनिल फिरोजिया व उत्तर विधायक पारस जैन भी निवास करते है। लेकिन इनके द्वारा कब मदद की जायेंगी। इसका कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन प्रशासन तो हाथों-हाथ मदद करके संवेदना दिखा सकता है। गत 27 अक्टूबर को चुप रहेंगे डॉट कॉम ने खबर भी प्रकाशित की थीघर का चिराग बुझ गया... कोई तो मदद को आगे आये... ! लेकिन आज तक किसी ने मदद नहीं की है। मंगलवार को पिता अशोक कहार ने बताया कि अभी तक .... किसी भी जनप्रतिनिधि या प्रशासन ने उनकी सुध नहीं ली है। ऐसे में अब संवेदनशील कलेक्टर ही आशा की किरण नजर आ रहे है। शायद ... वह पुरूस्कार मिलने की खुशी में ही इस गरीब परिवार की गुहार सुनकर मदद कर दे।