21 अक्टूबर 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
रिकार्ड ...
अपने दूसरे माले के मुखिया ने रिकार्ड बना दिया। ऐसा रिकार्ड, जो आज तक उनसे पूर्ववर्ती कोई मुखिया नहीं बना पाया। 6 घंटे से ज्यादा लगातार बैठक लेने का। जिसमें से 4 घंटे तक उनके निशाने पर लोनिवि था। बेचारे बाकी सवा सौ अधिकारी चुपचाप बैठे रहे। 12 बजे से शाम 6 बजे बाद मुक्ति मिली। भूख मिटाने के लिए केवल एक कचौरी मिली। ताज्जुब की बात यह है कि 4 घंटे तक लोनिवि अधिकारी से माथा-पच्ची चलती रही। यह नजारा देखकर वहां मौजूद बाकी सभी अधिकारी अपनी-अपनी किस्मत को कोस रहे थे। ऐसा हम नहीं, सोमवार को बैठक से निकले अधिकारियों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
मुर्दाबाद ...
घटना करीब 20-25 दिन पुरानी है। समय रात 2 बजे का है। घटनास्थल अपने प्रथमसेवक के बंगले का है। जहां पर उनके नाम को लेकर मुर्दाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगे थे। इसके पहले प्रथमसेवक को नारे लगाने वालो ने फोन किया था। प्रथमसेवक ने नींद में कुछ ऐसा उल्टा जवाब दे दिया। जिसके चलते 1 दर्जन युवकों ने रात 2 बजे धरना दे दिया। नारेबाजी शुरू कर दी। वर्दी को सूचना मिली। तत्काल सायरन बजाते हुए गाडी पहुंच गई। धरना खत्म करवाया। मामला गौ-रक्षकों से जुडा था। इसलिए कोई कार्रवाई नहीं हुई। दोनों पक्षों ने चुप्पी साध ली। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
ड्रायफ्रूट ....
लड्डू को लेकर पिछले दिनों दक्षिण भारत का मंदिर सुर्खियों में था। उस मंदिर के लड्डू के बाद, अगर देशभर में कोई लड्डू विख्यात है। तो अपने बाबा के मंदिर का। जिसमें ड्रायफ्रूट की कमी है। ऐसा हमारा नहीं, बल्कि अपने विकासपुरूष का कहना है। घटना पिछले दिनों की है। जब देश की प्रथम नागरिक का आगमन हुआ था। उस वक्त अपने विकासपुरूष ने लड्डू चखा था। तब उन्होंने साफ-साफ कहा था। ड्रायफ्रूट की कमी है। इस लड्डू में। विकासपुरूष की बात सुनकर वहां मौजूद सभी आश्चर्य में पड गये। मंदिर के गब्बरसिंह भी मौजूद थे। उन्होंने जरूर कुछ सफाई दी। लेकिन विकासपुरूष ने मोहर लगा दी थी। ड्रायफ्रूट कमी की। जिसके बाद लड्डू में सुधार आया या नहीं? इसका फैसला भी अपने विकासपुरूष को ही करना होगा। उनका इंतजार हो रहा है। देखना यह है कि कब वह आकर लड्डू चखते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
कर्मचारी...
हमें अब कार्यकर्ता नहीं समझे? हम कार्यकर्ता नहीं है ? बल्कि कर्मचारी हैं। कमलप्रेमी संगठन के। यह पीडा है। उन समर्पित कार्यकर्ताओं की। जो इन दिनों रोज-रोज के टारगेट से दु:खी है। इशारा सदस्यता अभियान की तरफ है। कार्यकर्ता दबी जुबान से बोल रहे है। जैसे बैंक वालो को रोज-रोज टारगेट मिलते है। वैसे ही हमको। हर रोज नये-नये फरमान। कभी 50-कभी 105-फिर माननीय का लक्ष्य-फिर सक्रिय 100 सदस्य। हर रोज टारगेट बदलते है। नवरात्रि हो- दशहरा या फिर रविवार। संगठन को कोई मतलब नहीं। 24 घंटे 7 दिन। कार्यकर्ता को कर्मचारी बना दिया है। वह भी बगैर वेतन के। ऐसी चर्चा कमलप्रेमी-कर्मचारी (कार्यकर्ताओं) के बीच सुनाई दे रही है। बात सच है। मगर हम कुछ नहीं कर सकते है। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
क्यों हटाया ...
अपने वजनदार जी ने अचानक अपने सभी प्रतिनिधियों को हटा दिया। बकायदा एक पत्र जारी किया। जिसमें उन्होंने दूसरे माले के मुखिया को सूचित किया। उनके द्वारा नियुक्त किये गये सभी प्रतिनिधि तत्काल हटाये जाते है। अब सवाल यह है ?आखिर अपने वजनदार जी ने यह कदम क्यों उठाया? तो अंदरखाने की खबर है। जिसकी चर्चा कमलप्रेमी कर रहे है। दरअसल, वजनदार जी शिकायत करने गये थे। उच्च स्तर पर। विषय था कि अधिकारीगण उनकी बात नहीं सुनते हैं। जहां शिकायत करने गये थे। वहां से उनको उल्टे बताया गया। उनके नियुक्त प्रतिनिधिगण जमकर वसूली कर रहे है। अधिकारीगण परेशान है। बेचारे वजनदार जी, शायद यह सुनकर सकपका गये होंगे? एक कहावत याद आ गई होगी। गये थे नमाज पढऩे-रोजे गले पड़े...। जिसके बाद वही हुआ। लेटर जारी हुआ। सभी प्रतिनिधि हटा दिये गये। ऐसी चर्चा कमलप्रेमियों के बीच सुनाई दे रही है। जिससे हमको क्या लेना-देना। हमारा तो काम है बस, अपनी आदत के अनुसार चुप रहना।
जलवा ...
अपने कमलप्रेमी (कर्मचारी) खुलकर बोल रहे है। जलवा हो तो ऐसा। ना कोई पद- ना कोई दायित्व। संगठन की तरफ से भी कोई जिम्मेदारी नहीं। मगर फिर भी जलवा, चुने गये माननीय से भारी। अपने हाईनेस से भी ज्यादा। तभी तो कोई भी कार्यक्रम हो। सरकारी या सामाजिक। मंच पर उनको जगह मिलती है। भले ही अपने ढीला-मानुष जी को नहीं मिले। हमारे पाठकों को उत्सुकता हो गई होगी? आखिर ऐसा कौन है। जिसको बगैर पद- बगैर दायित्व के इतना सम्मान मिल रहा है। तो हम खुलासा कर देते है। यह है अपने कमलप्रेमी होटल वाले भय्या। चिंतामण रोड वाले। जिनका जलवा इन दिनों चरम पर है। कमलप्रेमी इनको भविष्य के संगठन मुखिया के रूप में देख रहे है। जिसके लिए वह योग्य भी है। तो हम भी उनकी योग्यता और जलवे को सेल्यूट करते हुए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
शाखा लगाते थे ...
बेचारी वर्दी परेशान है। अपनी ड्यूटी करे या फिर कमलप्रेमियों से निपटे। जो कि जरा-जरा सी बात पर एकत्रित हो जाते है। विकासपुरूष का हवाला देकर धमकाते है। तो वर्दी ने भी इसका रास्ता खोज लिया है। जिसको नाम दिया है। शाखा लगाते थे-हम भी संघ से जुड़े है। हमारे पिता जी या पूर्वज संघ से जुड़े थे। गुरूवार को कोयला फाटक पर घटना हुई। युवा कमलप्रेमी पहुंच गये। विवाद हुआ। वीडियों वायरल हुआ। जिसके बाद समझौता हो गया। इस घटना में भी संघ और शाखा का जिक्र ऑफ रिकार्ड आया। ऐसा कई दफा हो चुका है । वर्दी ने मौका देखकर संघ और शाखा के नाम पर अपनी जान बचानी शुरू कर दी है। ऐसी चर्चा युवा कमलप्रेमियों के बीच सुनाई दे रही है। जिसमें कितना सच है- कितना झूठ? फैसला हमारे पाठकगण खुद कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
सजा ...
पिछले सप्ताह दशहरे पर विकासपुरूष आये थे। उनका उडनखटोला निनौरा उतरना था। हेलीपेड बनाया भी था। मगर जब उडनखटोला उतरा। तो बेरिकेड्स हवा में उड गये। यह विफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण था। जिसको लेकर नाराजगी भी जाहिर की गई। दूसरे माले के मुखिया ने गंभीरता से इसको लिया। प्रस्ताव बनाकर भेज दिया। कार्रवाई के लिए। तीसरे माले के मुखिया को। अब दोषी अधिकारी को सजा देने का काम तीसरे माले के मुखिया का है। लेकिन अभी तक कोई सजा नहीं सुनाई गई है। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
वसूली ....
गरबा के नाम पर वसूली। किसी नेता या उसके प्रतिनिधि ने नहीं की है। यह काम तो एक स्कूल संचालक का है। जिसने स्कूल में दो दिवसीय गरबा आयोजन किया था। तपोभूमि इंदौर रोड पर। जिसके लिए टीचर व छात्रों को फरमान जारी किया गया। टारगेट दिया गया। 500-1000 कीमत वाले पास बेचने के लिए। 5-5 पास का लक्ष्य दिया था। इसके साथ चेतावनी भी दी गई। अगर पास नहीं बेचे तो टीचर की सेलरी से राशि काटी जायेगी। पास बेचने के लिए फोन भी किये गये। एक फोन चुप रहेंगे डाटकॉम के पास भी आया था। इस स्कूल के संचालक एक चिकित्सक है। अच्छी-खासी कमाई होती है। इसके बाद भी गरबे के नाम पर शिक्षकों से वसूली की धमकी दी गई है। देखना यह है कि शिक्षकों के वेतन से राशि काटी जाती है या नहीं? तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
असली मुखिया ...
जिले का असली प्रशासनिक मुखिया कौन है? अपने दूसरे माले वाले या फिर दमदमा वाली चटक मैडम जी। माफ कीजिए। यह सवाल हमारा नहीं है। बल्कि संकुल से लेकर दमदमा के गलियारों में बैठने वालो का है। मातहत अधिकारी पशोपेश में है। किसका हुक्म माने? खासकर तब, जब अपने विकासपुरूष शहर में होते है। तब ड्यूटी कर रहे मातहत परेशान हो जाते है। किसकी सुने? दोनों तरफ से फटकार मिलती है। यही वजह है कि सवाल उठाये जा रहा है? असली मुखिया कौन? जिसको लेकर हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।
टक्कर ...
विकासपुरूष का जब-जब आगमन होता है। तो उनके काफिले में गाडियों की भीड होती है। पीछे-पीछे दौडते रहते है। प्रशासन और वर्दी तो ड्यूटी करती है। लेकिन कमलप्रेमी भी अपना जलवा दिखाने के चक्कर में गाडी घुसा देते है। जो कि नियम विरूद्ध है। मुसीबत तब हो जाती है। जब गाडियां टकरा जाती है। रावण दहन वाले दिन भी यही हुआ। गुजरात दौरे से वापस आये विकासपुरूष, नये सर्किट हाऊस में थे। जहां से उनका काफिला चला। खाकचौक की तरफ। भरतपुरी आरटीओ चौराहे पर ही टक्कर हो गई। अपने डेल्टा जी-कप्तान जी और स्मार्ट पंडित जी के वाहन की। एक के पीछे एक गाडी थी। आगे वाली को ब्रेक लगा। बस फिर क्या था। तीनों वाहन संभलते-संभलते भी टकरा गये। जिसके बाद डेल्टा जी के वाहन कारकेड से अलग कर दिया गया। इस टक्कर की रिपोर्ट राजधानी तक भेजी गई। ताज्जुब की बात यह है। ऐसा कोई पहली दफा नहीं हुआ है। पहले भी जबरदस्ती घुसना, टक्कर होना, गलत जगह पायलेट वाहन के घुसने की घटना हो चुकी है। इसके बाद भी वर्दी द्वारा सख्ती नहीं की जा रही है। जिसमें हम क्या कर सकते है। हम तो बस बाबा महाकाल से यही दुआ करेंगे कि विकासपुरूष के वाहन से कोई टक्कर ना हो। बाकी हमें अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
धुलाई ...
हम यहां कपड़ो की धुलाई की बात नहीं कर रहे है। ना ही किसी डिटरजेन्ट पाउडर की तारीफ कर रहे है। हमारा इशारा तो इश्क के चलते हुई धुलाई की तरफ है। मामला एक नगरसेवक से जुडा है। जो कि ग्रामीण क्षेत्र के है। उस जगह के, जहां से मावा बनकर सब दूर जाता है। वहां के एक नगरसेवक का लंबे समय से प्रेमप्रसंग चल रहा था। उनको लगता था कि किसी को कुछ पता नहीं है। मगर इश्क और मुश्क (खुशबू) छुपते नहीं है। इसलिए पता सबको था। बस मौके का इंतजार था। अष्टमी वाले दिन गरबा खेलते वक्त आंखो के इशारे हुए। फिर दोनों गायब हो गये। एक होटल पहुंच गये। कमरा भी ले लिया। जिसके बाद नजर रखने वाले पहुंच गये। तबीयत से प्रेमी नगरसेवक की धुलाई की। कुछ लोगों ने वीडियों भी बना लिए। अपनी इज्जत बचाने के लिए नगरसेवक ने समझौता किया। 10 तारीख की यह घटना है। 10 पेटी में समझौता हुआ है। लेकिन इश्क में धुलाई की चर्चा मावा बनाने वाले शहर में हर किसी की जुबान पर है। देखना यह है कि जिन्होंने वीडियो बनाये, आखिर वह कब वायरल होते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
रवानगी ...
पिछले 3-4 दिनों से यह सुगबुगाहट सुनाई दे रही थी। राजधानी से लेकर संकुल के गलियारों तक। कोई दबी जुबान से, तो कोई इशारों में अपनी बात कह रहा था। मगर सभी के निशाने पर थे। अपने दूसरे माले के मुखिया। जिनकी रवानगी की चर्चा सब कर रहे थे। इस पर रविवार को राजधानी के एक बल्लम खबरची ने भी मोहर लगा दी। खबर लिखकर। कुछ जिलों के मुखिया बदले जाने है। जिसमें अपने दूसरे माले के मुखिया का भी उल्लेख था। किन्तु अंतिम फैसला अपने विकासपुरूष करेंगे। जो कि रविवार की रात को अपने गृहनगर में थे। जब वह राजधानी जायेंगे। तब क्लियर होगा? रवानगी होती है या नहीं? तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
देख लेंगे ...
अभी-अभी 3 दिन पहले प्रशासन ने सख्त कदम उठाया। सरकारी जमीन को खाली कराया। कई मकानों पर बुलडोजर चले। इस कार्य को करने में एक एसडीएम की महत्ती भूमिका रही। जिन्होंने हर वक्त सुबह से शाम तक खड़े रहकर सबका आक्रोश झेला। अपने कटप्पा जी भी समय-समय पर मौजूद रहे। शनिवार को एसडीएम के पास एक फोन आया। करने वाले थे विशेष वर्ग के धर्मगुरू। जिन्होंने पहले तो नाराजगी दिखाई। फिर न्यायालय तक ले जाने की चेतावनी दी। अंत में उन्होंने विनम्र एसडीएम को धमकी दे डाली। देख लेंगे। ऐसा हमारे भरोसेमंद सूत्रों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
327 ...
हम किसी कानून की धारा का जिक्र नहीं कर रहे है। हमको तो पता भी नहीं है। 327 कोई धारा-वारा है। हमारा इशारा तो कमलप्रेमियों के उस अभियान की तरफ है। जिसमें सबको लक्ष्य दिया गया था। सदस्य बनाने का। इसमें अपने प्रथमसेवक को 10 हजारी टारगेट था। मगर खबर छपी। 1200 बनाने की। लेकिन असली अंदरखाने की खबर है। करीब 4 दिन पुरानी। तब आंकडा केवल 327 था। मतलब यह कि 1200 का आंकडा मिथ्या था? ऐसा हम नहीं, बल्कि कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
चलते-चलते ...
बाबा के गर्भगृह में दर्शन कांड के बाद, जो सफाई पेश की जा रही है। उसको लेकर मंदिर के कर्मचारी शायर वसीम बरेलवी को याद कर रहे है। उस अशआर के साथ। जिसमें उन्होंने कहा है। वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से / मैं एतबार ना करता तो और क्या करता... ! बाकी हमको चुप ही रहना है।