12 फरवरी 2024 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

12 फरवरी 2024 (हम चुप रहेंगे)

 लाइट ...

अपने विकासपुरूष का ख्याल रखना नौकरशाह की ड्यूटी है। जिसके लिए नौकरशाह कुछ भी करने को तैयार है। जैसे पिछले दिनों ऐनवक्त पर हुक्म दनदना दिया। दूरभाष परहेलीपेड पर रात को लाइट लगाओं। ताकि उडनखटोला आसानी से उड सके। जबकि नियम और समय के हिसाब से यह आदेश बिलकुल बचकाना था। ऐसा हम नहीं, वर्दी मुख्यालय के गलियारों में बैठने वाले बोल रहे है। आदेश बिलकुल ... आग लगने पर कुंआ खोदने की तर्ज पर था। वर्दीवालों में तो यही चर्चा है। मगर हमको ऐसी चापलूसी पर अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

दु:खी ...

त्रेता और द्वापर युग में यह धर्म था। कुलगुरू को सम्मान और राजसी सुविधा मिलती थी। मगर कलयुग में कुलगुरू दु:खी है। तभी तो वह अपनी पीडा सुना रहे है। उनका दु:ख यह नहीं है। बंगला खाली करना पड़ा। इसके लिए तो वह खुश है। लेकिन जिस तरीके से नौकरशाही ने उनको दूरभाष पर निर्देश/ आदेश दिये। इसके चलते दु:खी है। चक्रम के गलियारों में तो यही चर्चा है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

पीरियड ...

कॉलेज के दिनों में पीरियड जरूर अटैंड किये होंगे। 45 मिनिट का एक पीरियड होता था। जहां यह आजादी होती थी। अगर लेक्चर पसंद नहीं आ रहा। तो पीरियड से गायब हो जाओं। मगर सरकारी नौकरी में ऐसा नहीं होता है। यहां पीरियड अपनी मर्जी से नहीं छोड़ सकते। भले ही प्रोफेसर (बॉस) कितना भी बकवास लेक्चर दे। संकुल के गलियारों में ऐसी चर्चा है। 90 मिनिट का पीरियड था। जो कि संकुल के तीसरे माले पर चला। प्रोफेसर की भूमिका में 7 जिलों के मुखिया थे और स्टूडेंट थे अपने इंदौरीलाल जी। 90 मिनिट के इस बकवास लेक्चर में छात्र पर भ्रष्टाचार तक के आरोप लगा दिये। जबकि अपने इंदौरीलाल जी ऐसे है नहीं। मगर बॉस इज ऑलवेज राइट... कहावत को याद रखकर वह चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है। 

तलाश ...

वर्दीवाले एक अधिकारी अनोखी तलाश में है। वर्दी आमतौर पर हरे रंग के कागज की तलाश में रहती है। लेकिन यह अधिकारी शांति और सूकुन की तलाश में है। सकारात्मक सोच वाले राजपत्रित अधिकारी है। मगर उनकी पदस्थापना श्रीकृष्ण की जन्मस्थली पर है। जहां पर हमेशा नकारात्मक उर्जा बहुतायत में रहती है। इनकी देखभाल करते-करते वर्दीवाले अधिकारी नकारात्मकता के शिकार हो गये। नतीजा शांति की तलाश में हैं। इसलिए पवनपुत्र की शरण में हर मंगलवार हाजिरी लगा रहे है। यह पवनपुत्र डॉक्टर के नाम से विख्यात है। उम्मीद है कि डॉ. पवनपुत्र उनकी तलाश खत्म करेंगे और इलाज कर देंगे। ऐसी शुभकामनाएं देते हुए, हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

परीक्षा ...

अपने स्मार्ट पंडित परीक्षा देकर आये है। जिसका मूल्यांकन अंकों के बदले 150 खोखे से होगा देश की राजधानी में यह परीक्षा हुई थी। जिसमें एक से एक महारथी शामिल थे। जिन्होंने अपनी टीम के साथ प्रजेंटेशन दिया। मगर अपने स्मार्ट पंडित अकेले ही किला लडाते रहे। बेहतरीन प्रदर्शन करके आये है। उम्मीद है कि वह इस परीक्षा में ना केवल पास होंगे बल्कि 150 खोखे का उपहार भी बाबा की नगरी को देंगे। जिसके लिए अग्रिम शुभकामनाएं देते हुए, हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

याद ...

संकुल के गलियारों में याद किये  जा रहे है। किसको याद किया जा रहा है। इसका खुलासा अंत में करेंगे। मगर याद करने वाले अधिकारी है। जो इन दिनों सुबह से देर रात तक दौड़ते है। किन्तु इसका हासिल उनको शून्य ही है। कई अधिकारियों को तो निर्देश ही समझ में नहीं आ रहे है। बेचारे अधिकारी हैरान-परेशान है। क्या करें यह सोचकर। कुछ अधिकारी तबादले की जुगाड में लगे है। तभी तो पुराने वाले अपने उत्तम जी को याद कर रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

हड़कंप ...

अपने स्मार्ट पंडित के एक आदेश से हड़कंप मचा हुआ है। इस आदेश ने कॉलोनी सेल में चल रहे खेल पर अंकुश लगा दिया। पेटियों में खेल होता था। मकान-बिल्डिंग निर्माण देखों। नोटिस दो-सेटिंग करों। जिसमें एक नगरसेविका माहिर हो गई थी। तबियत से माल कूटा। अब इस पर अंकुश लग गया है। तभी तो 2 फाइलों को लेकर हड़कंप मचा हुआ है। कारण ... पूरी सुपारी ली थी और टोकन भी ले लिया है। 5 से 10 पेटी के बीच। अब अड़चन पैदा हो गई। स्मार्ट पंडित के आदेश से। तो नगरसेविका झोन-6 में पहुंच गई। सीधे-सीधे हरे रंग के कागज अधिकारी को ऑफर कर दिये। बस यह काम कर दो। अब यह काम हुआ या नहीं? हमको पता नहीं। मगर शिवाजी भवन के गलियारों में नगरसेविका के इस कदम की खूब चर्चा है और हमको आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

पाला बदला ...

अपना फायदा देखकर पाला बदलने में शासकीय सेवक से बड़ा कोई नहीं हो सकता गिरगिट जैसे रंग बदलते है। जैसे कि झोन-6 में पदस्थ एक अधिकारी। जो कभी 5 में भी थे। उस वक्त अपने प्रथमसेवक की हाजिरी भरते थे। फिर 6 में गये। तब भी चापलूसी चरम पर थी। मगर अब वक्त बदल गया। तो इन्होंने भी पाला बदल लिया। अब प्रथमसेवक के खिलाफ खूब जहर उगल रहे है। बकौल किसी शायर... सांपों के मुकद्दर में वो जहर कहां होगा/ इंसान अदावत में जो जहर उगलता है...! इनके पास प्रथमसेवक के कई राज है। जो जल्दी ही सामने आयेंगे। ऐसा हम नहीं, बल्कि शिवाजी भवन वाले बोल रहे है। मगर हमको चुप रहना है।

परेशान ...

अपने बदबू वाले शहर के कमलप्रेमी दु:खी है। किसी अधिकारी से नहीं। बल्कि अपने ही माननीय डॉक्टर साहब से। जो कि सत्ता में रहते हुए संगठन की फिक्र ज्यादा करते है। जबकि कार्यकर्ता सत्ता का मजा लेना चाहते है। डॉ. साहब पूरी बात ही नहीं सुनते है। जबकि अपने विकासपुरूष भी यह बोल चुके है। अब आप सत्ता में है, संगठन में नहीं। लेकिन डॉ. साहब समझने को तैयार नहीं है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

पत्र ...

अपने प्रथमसेवक ने एक पत्र लिखा है। किसको? अपने विकासपुरूष को। जिसमें उन्होंने विकासपुरूष को परम आदरणीय से संबोधित किया है। जबकि एक वक्त था। विकासपुरूष को वह इग्नोर करते थे। ऐसा उनके करीबियों का कहना है। इस पत्र के पीछे का असली मकसद कुछ और है। जो कि प्रथमसेवक के आर्थिक हित से जुड़ा है। पत्र श्रमिक बस्ती के रहवासियों को आवास देने के लिए लिखा है। मगर पर्दे के पीछे का सच यह है। इस बस्ती में प्रथमसेवक का स्कूल संचालित होता है। जिसके लिए अनुदान मिलता है। अब अगर बस्ती उजडी तो स्कूल खत्म। मतलब अनुदान खत्म। इसीलिए आवास योजना की आड लेकर पत्र लिखा है। ऐसी चर्चा शिवाजी भवन के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको चुप ही रहना है।

सवाल ...

अपने पिस्तौलकांड नायक फिर चर्चाओं में है। अपने एक नये सवाल के लिए। सवाल प्राकृतिक संपदा वाले विभाग से जुड़ा है। जिसमें एक आईएएस की पदस्थापना के दौरान प्राप्त हुई शिकायतों सहित जिले की खदानों पर सवाल उठाया हैयह वही आईएएस अफसर है। जो कि दाल-बिस्किट वाली तहसील में पदस्थ थे। शिकायतों के चलते उनको हटाया गया था। अपने उत्तम जी के कार्यकाल में। इसकी आड में 250 खदानों पर भी सवाल दागा गया है। सवाल हुआ है तो जवाब भी देना है। जो कि हरे-हरे रंग के कागजों का होगा। ऐसा कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

हाजिर हो ...

रविवार को अपने विकासपुरूष का आगमन हुआ था। सरकारी विश्रामगृह में बैठक चल रही थी। तभी अपने विकासपुरूष ने ग्रामीण विकास विभाग के मुखिया को याद किया। 3 बार अंदर से आवाज आई। ग्रामीण मुखिया को भेजो। मगर दमदमा के ग्रामीण मुखिया नदारद थे। नतीजा ... जिले के मुखिया को अंदर जाकर जवाब देना पड़ा। इधर ग्रामीण मुखिया अनुमति लेकर गायब थे। लेकिन अंदरखाने की खबर है। अपने 7 जिलों के मुखिया ने फरमान जारी किया है। विकासपुरूष के प्रोटोकॉल में उनके सहित केवल जिले के मुखिया ही रहेंगे। बाकी विभागों के मुखिया नजर नहीं आना चाहिये। जिसके चलते संकुल से लेकर सभी विभागों में 7 जिलों के मुखिया को लेकर असंतोष पनप रहा है। देखना यह है कि अपने विकासपुरूष इस असंतोष को दबाने के लिए क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मेरी पसंद ...

युवाओं के लिए इन दिनों प्यार का सप्ताह चल रहा है। ऐसे में प्यार को लेकर किसी शायर ने क्या खूब लिखा है। तेरे घर से मेरे घर तक एक खुशबू की लकीर/ खींच दी जिसने उसी का नाम शायद प्यार है... बाकी हमको चुप रहना है।