16 दिसम्बर 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

ग्रहण ...
अपने विकासपुरूष को अनगिनत सेल्यूट। जिन्होंने अपने उद्बोधन से हर किसी का दिल जीत लिया। तालिया बजाने पर मजबूर कर दिया। मौका था ओवरब्रिज के भूमिपूजन का। जहां विकासपुरूष ने कडवा सच बोला। जो कि हर नागरिक के दिल की आवाज थी। उन्होंने साफ-साफ कहा। बाबा की नगरी को ग्रहण लगा हुआ था। पिछले 15-17 सालों से। राहू-केतू आडे आ रहे थे। मगर अमावस्या के बाद चांद निकलता है। कृष्ण पक्ष का चांद। जो कि विकास की गंगा का प्रतीक है। अब विकास की गंगा बह रही है। ग्रहण हट चुका है। अपने विकासपुरूष के यह कहते ही जोरदार तालियां बजी। जो इस बात का इशारा थी। वाकई, विकास को ग्रहण लगा हुआ था। जिसे अपने विकासपुरूष ने पद संभालते ही दूर कर दिया है। विकास राकेट की रफ्तार से दौडने लगा है। जिसके लिए शहरवासी और हम विकासपुरूष को दिल से धन्यवाद देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
डिमांड ...
मंदिर के गलियारों में चर्चा है। एक डिमांड की। जो कि 10 पेटी की है। इशारा दुर्लभ दर्शन कराने वालो का दावा करने वालो की तरफ है। इस कंपनी का स्लोगन है। पहले दर्शन-फिर दुर्लभ दर्शन। कंपनी का अपना यह व्यापार लगातार खूब पनप रहा है। दिन दूनी- रात चौगुनी कमाई हो रही है। दुर्लभ दर्शन के लिए कोई नियम कायदा नहीं था। इस पर अब अंकुश लगा है। तभी तो यह चर्चा अब सुनाई दे रही है। दुर्लभ दर्शन वालो से 10 पेटी की डिमांड की गई है। मगर किसने की है। इसको लेकर कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है। सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
तस्वीर दिखाओं ...
जमाना सोशल मीडिया का है। कुछ भी करो-पोस्ट अपलोड करो। अगर किसी हस्ती ने आपको बुलाया? टिकिट दिया? उडनखटोले का? तो जनता तभी मानेंगी। जब आप तस्वीर अपलोड करेंगे। उस हस्ती के साथ। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। इशारा एक पुजारी जी की तरफ है। जिन्होंने आपला-मानुष राज्य के मुखिया का हवाला देकर बयान दिया था। जाने से पहले खूब प्रचार किया। मुझे बुलाया है-मुझे बुलाया है। मगर जब वापस आये तो एक भी तस्वीर अपलोड नहीं की। जिसके चलते उनके साथी पुजारीगण बोल रहे है। दबी जुबान से। तस्वीर दिखाओं-तस्वीर दिखाओं। मगर वापस लौटे पुजारी जी चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
रिकार्ड ...
वैसे तो रिकार्ड हमेशा बनाया जाता है। मगर अपने दूसरे माले के मुखिया ने इसके उलट किया। पहली दफा ऐसा हुआ है। उन्होंने अपना ही रिकार्ड तोड दिया। अभी तक यही देखा है। अगर वह मुख्यालय पर मौजूद है। तो कोई बैठक रद्द नहीं करते हैं। अगर विकासपुरूष है तो बात अलग है। खासकर साप्ताहिक बैठक। सोमवार वाली। मगर पिछले सप्ताह ना जाने क्या हुआ। दूसरे माले के मुखिया बंगले पर थे। सभी मातहत तैयार थे। साप्ताहिक बैठक के लिए। अचानक बैठक रद्द होने का मैसेज ग्रुप में आ गया। जिसके बाद खोजबीन शुरू हो गई। कारण पता करने की कोशिश हुई। फिर तो जितने मुंह-उतनी बातें सुनाई दी। लेकिन कौनसी बात सच है-कौन सी अफवाह? इसका हमको पता नहीं है। किन्तु यह सच है। दूसरे माले के मुखिया ने अपना ही रिकार्ड तोड दिया है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
आवेदन ...
वर्दी का काम है। आवेदन आये तो उसकी जांच करे। मगर कभी-कभी इसके उलट होता है। वर्दी जांच के बदले आवेदन को दबा देती है। ऐसा हम नहीं, बल्कि अपने पंजाप्रेमी बोल रहे है। इशारा एक पंजाप्रेमी नेत्री की तरफ है। जिनके खिलाफ आवेदन वर्दी को मिला है। उन पर गंभीर आरोप लगाये है। फरियादी ने लिखा है। उसकी बेगम का दूसरी जगह बगैर तलाक लिए निकाह करवा दिया गया। जिसमें पंजाप्रेमी नेत्री की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह आवेदन दिए 10 दिन हो गये है। देखना यह है कि अब वर्दी इस पर क्या कदम उठाती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
असहयोग ...
आज राजधानी में घेराव है। पंजाप्रेमियों का। जिसको लेकर पिछले सप्ताह बैठक भी हुई थी। दावे और वादे किए गये थे। लेकिन अब पुराने पंजाप्रेमियों ने इस आंदोलन से दूरी बना ली है। खासकर राजा और नाथ के समर्थकों ने ठान लिया है। राजधानी नहीं जाना है। इसे असहयोग आंदोलन का नाम दिया है। पंजाप्रेमियों की बातों पर अगर यकीन किया जाये? तो खुद अपने बिरयानी नेताजी ने मन बना लिया है। वह असहयोग करेंगे। मतलब नहीं जायेंगे। अब अगर अपने बिरयानी नेताजी नहीं जा रहे है, तो बाकी का अंदाजा लगाया जा सकता है। पंजाप्रेमियों की बात में दम है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
दूरी ....
अभी-अभी एक राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता संपन्न हुई है। जिसे मलखंब के नाम से जाना जाता है। इस खेल को पिछले कुछ सालों से लगातार बढावा दिया जा रहा है। आजादी और गणतंत्र पर्व पर भी इसका प्रदर्शन होता है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर की यह स्पर्धा मजाक बन गई। अतिथि तक नहीं आये। समापन में भी कोई माननीय नहीं पहुंचा। नतीजा ... दूसरे माले के मुखिया को बुलाना पडा। तब जाकर समापन हुआ। जिसके बाद यह सवाल उठ रहा है। आखिर इस दूरी की वजह क्या थी? तो इशारा अपने पिपली राजकुमार की तरफ है। इसीलिए सभी ने दूरी बनाई थी। बात सच है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
भाग्यशाली ...
कमलप्रेमी संगठन में उस भाग्यशाली की तलाश हो रही है? जो अब संगठन का नया मुखिया होगा। मगर यह भाग्यशाली कौन होगा? इसका फैसला संभवत: आगामी 21 दिसंबर या इसके बाद होगा। संगठन की गाइडलाईन के हिसाब से साल के अंतिम दिन तक मोहर लगना है। कमलप्रेमियों के बीच 3 नामों की चर्चा है। संजय-आनंद व राजेन्द्र। इन तीनों में से किसके नाम पर मोहर लगेगी? फैसला 21 या 31 तक होगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
बच गये-बच गये ....
प्रशासन के अधिकारियों में रविवार को बच गये-बच गये की चर्चा सुनाई दी। इशारा आज होने वाली साप्ताहिक बैठक की तरफ है। जो कि पहली दफा, जिला मुख्यालय के बदले ग्राम पंचायत में होने वाली थी। दाल-बिस्किट वाली तहसील में। इस तहसील अपनी चटक मैडम जी 3 दिन पहले गई थी। विकासपुरूष के जनकल्याण शिविर की समीक्षा करने। उसके बाद ही यह संदेश ग्रुप में डला था। साप्ताहिक बैठक इस बार दाल-बिस्किट तहसील के ग्राम पंचायत भवन में होगी। तहसील के राजस्व व विकास विभाग ने पूरी तैयारियां कर ली। फिर अचानक ना जाने क्या हुआ। रविवार की दोपहर में फिर मैसेज डाला गया। बैठक मुख्यालय पर ही होगी। जिसके बाद सभी अधिकारी बच गये-बच गये की रट लगा रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
बेगाना ...
उस मय से नहीं मतलब/ दिल जिससे हो बेगाना/ मकसूद है उस मय से/ दिल में ही जो खिचती है...! शायद यह गजल हमारे पाठकों को याद होगी। नहीं याद आई। तो याद दिला देते हैं। गुलाम अली ने गाया है। हंगामा है क्यूं बरपा/ थोडी सी जो पी ली है/ डाका तो नहीं डाला/ चोरी तो नहीं की है...! अब याद आ गई होगी यह गजल। इन दिनों यह हर सरकारी कार्यालय में सुनाई दे रही है। खासकर सोमरस वाले विभाग में। जो कि गजल के साथ-साथ ग्लेनलिवेट की 6 बोतलों का जिक्र कर रहे है। जिनका एक पार्टी में उपयोग हुआ है। पिछले इतवार की रात में। रातभर जश्न मना। मगर कौन-कौन पार्टी में शामिल था। इसको लेकर सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
गोपनीय चर्चा ...
आज अपने विकासपुरूष अल्पसमय के लिए आये थे। वापसी में हेलीपेड पर जब वह उडनखटोले में बैठ गये थे। तब अपने दूसरे माले के मुखिया ने उनसे कुछ गोपनीय चर्चा की। इस दौरान कप्तान जी पीछे खडे थे। बिलकुल चुपचाप। बाकी सभी दूर खड़े थे। 2 बार दूसरे माले के मुखिया ने विकासपुरूष को कुछ जानकारी दी। यह जानकारी क्या थी? यह किसी को भी पता नहीं है। इसलिए सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।