22 जुलाई 2024 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

22 जुलाई 2024 (हम चुप रहेंगे)

10 पेटी ...

अंदरखाने की खबर है। जिस न्याय मंदिर से जीत हासिल हुई है और अल्पसंख्यक बिल्डर को जोरदार पटकनी दी है। अपने दूसरे माले के मुखिया ने। खोखो की कीमती जमीन बचा ली। जिसके लिए हमने पिछले सप्ताह उनको सेल्यूट और बधाई दी थी। उसी मामले में जीत के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े। जिसमें काफी नगदऊ खर्च करना पड़ा है। यह चर्चा आम है कि विधि के जानकारों की फीस चुकाने के लिए 10 पेटी से ज्यादा खर्च आया है। अब बात सच है या झूठ? फैसला हमारे पाठकगण खुद कर ले। क्योंकि हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

5 पेटी ...

ऊपर 10 पेटी की खबर पढ़ी। अब पढिय़े 5 पेटी की खबर। मगर दोनों खबर में अंतर है। 10 पेटी शासकीय हित में खर्च की गई। जबकि 5 पेटी का मामला उस ग्रामदेवता से जुड़ा है। जिसने जमीन के मामले का आर्डर गायब कर दिया था। इस ग्रामदेवता को हटाने के निर्देश हुए थे। शहरी क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्र में पदस्थ किया जाना था। तैयारी पूरी थी। किन्तु ग्रामदेवता ने 5 पेटी का चढ़ावा चढ़ा दिया। नतीजा ... शहरी क्षेत्र में ही उनका हल्का बदलकर मामला शांत कर दिया गया। लेकिन अपने दूसरे माले के मुखिया को जैसे ही जानकारी मिली। उन्होंने ग्रामदेवता को ग्रामीण क्षेत्र में अटैच कर दिया । मगर तब तक 5 पेटी ग्रामदेवता दे चुके थे। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। अब देखना यह है कि घर का भेदी ग्रामदेवता ग्रामीण क्षेत्र में पदभार संभालता है या दबाव डलवाता है। फैसला वक्त करेगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते  है।

फिक्स रेट ...

कई दुकानों पर यह लिखा देखा गया है। फिक्स रेट। मगर सरकार कामकाज में रेट फिक्स की लिस्ट बहुत कम सुनने को मिलती है। जैसा बकरा हो, वैसा काट लिया जाता है। एक ग्रामदेवता हैं। उन्होंने अपना हर काम का रेट फिक्स कर रखा है। नामांतरण- सीमांकन... 10 हजारी । इस चक्कर में इनके क्षेत्र के कई काम पेंडिग है। वजह इनका फिक्स रेट है। जबकि कस्बे में इतने काम लंबित नहीं है। यह वही ग्रामदेवता है। जिनकी अभी-अभी शिकायत हुई है। अपने दूसरे माले के मुखिया को। शिकायत करने वाले एक योगी जी है। जिनके साथ दूरभाष पर अभद्रता की गई है ऐसी चर्चा ग्रामदेवताओं के बीच चल रही है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

बेच दो ...

न्याय मंदिर से हार होने के बाद अपने अल्पसंख्यक बिल्डर परेशान है। कई जगह दस्तक दे रहे है। गुहार लगा रहे है। मदद करो। लेकिन उनको हर जगह यही सलाह दी जा रही है। इस लफडे से बाहर निकल जाओं। जमीन बेच दो। मुक्ति पाओ। अंदरखाने की तो यही पक्की खबर है। देखना यह है कि अल्पसंख्यक बिल्डर क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

कानक्लेव ...

एक हेल्थ कानक्लेव होने वाली है। कब होगी? यह तो पता नहीं है। मगर इस कानक्लेव के लिए भारी भरकम उगरानी की जा रही है। स्वास्थ्य से जुड़ी दुकानों पर जाकर 51-21-11 हजारी डिमांड की जा रही है। मोहब्बत से धमकी भी दी जा रही है। अगर मदद नहीं की ओर कुछ होता है। तो फिर आप खुद निपटना। ऐसी चर्चा स्वास्थ्य की दुकान चलाने वाले कर रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

बदलाव ...

खबर बिलकुल पक्की है। बदलाव होगा। जल्दी होगा। ऐसा हम नहीं, बल्कि युवा कमलप्रेमी बोल रहे है। इशारा उस आडियों की तरफ है। जिसके कारण युवा कमलप्रेमियों की भद पिट गई है। यह आडियों पिछले दिनों वायरल हुआ था। जिसमें 2 लोगों की आशालीन  बातचीत थी। दोनों एक-दूसरे को जिस भाषा में बोल रहे थे। वह लिखने योग्य नहीं है। इस आडियों के वायरल होते ही तालाबों की नगरी तक हड़कंप मच गया था। अपने लेटरबाज जी से रिपोर्ट तलब की गई थी। उन्होंने अपना फर्ज निभाया। जो सच था, ऊपर भेज दिया। तब तक युवा कमलप्रेमी मुखिया पर तलवार नहीं लटकी थी। मगर एक दूसरा आडियों आ गया। जिसमें वह खुद अपना आपराधिक रिकार्ड बयान कर रहे थे। बस ... इसके बाद बदलाव की मोहर लग गई। घोषणा जल्दी ही होगी। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

नोटिस...

अपने स्मार्ट पंडित ने ठान लिया है। कम्पाउंडिग के नाम पर हो रही वसूली पर रोक लगाकर रहेंगे। जिसके लिए उन्होंने नोटिस देने की तैयारी कर ली है। इसका मतलब सीधा और साफ है। स्मार्ट पंडित को पता है। वसूली गैंग में कौन-कौन शामिल है। जो अपनी जेब गर्म कर रहे है। इतना ही नहीं, स्मार्ट पंडित को यह भी पता है। इस वसूली अभियान में पर्दे के पीछे कौन है। देखना यह है कि अपने स्मार्ट पंडित के नोटिस का शिकार आखिर कौन-कौन होता है। ऐसा शिवाजी भवन में बैठने वाले बोल रहे है। जिसके लिए हम अपने स्मार्ट पंडित को अग्रिम शुभकामनाएं देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

बैकफुट ...

पंजाप्रेमियों का कहना है। जिले में कानून व्यवस्था खत्म हो चुकी है। उत्तर प्रदेश व बिहार की तर्ज पर अपराधी बेखौफ है। अभी-अभी गोलीकांड हुआ है। जिसके बाद पंजाप्रेमी एक्टिव हुए। सभी को संदेश भेजा गया। सोशल मीडिया पर। सोमवार को घेराव करेंगे। संकुल कार्यालय का। महामहिम के नाम ज्ञापन देंगे। फोन भी लगाये गये। पंजाप्रेमियों को। हाजिर होने का निवेदन किया गया। मगर 180 मिनिट बाद ही, संदेश भेजने वाले नेताजी बैकफुट पर आ गये। सवारी का बहाना लेकर, प्रदर्शन रद्द कर दिया। जिसको लेकर पंजाप्रेमी बोल रहे है। दबी जुबान से। सवारी तो बहाना है। खनिज का अपना धंधा बचाना है। पंजाप्रेमियों की बात में दम है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

लगाम ...

अपने दूसरे माले के मुखिया को इस प्रयास के लिए बधाई। सेल्यूट तब देंगे, जब व्यवस्था लागू होगी। बधाई, इसलिए उन्होंने कोशिश तो की। राजस्व न्यायालय में चलने वाली धांधली को मिटाने की। क्योंकि यह जगजाहिर है। न्यायालय में बैठकर अधिकारी मनमानी करते है। कानून को तोड़-मरोडकर , जो ऊंची बोली लगाता है। उसके पक्ष में पिछली तारीख में फैसला कर देते है। ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे। बेचारे फरियादी को पता ही नहीं चल पाता है। कब फैसला हुआ। कई मामलों में तो अपील तक नहीं कर पाता है। अब अगर राजस्व न्यायालय ऑनलाइन हो गये। तो अवैध कमाई पर लगाम लगेगी। देखना यह है कि ऑनलाइन व्यवस्था कितनी जल्दी लागू होती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मजबूरी ...

आखिर क्या मजबूरी है। अपने दूसरे माले के मुखिया की। जिन्होंने मंदिर का मुखिया, दमदमा वाले आईएएस को बना रखा है। जबकि अपने आईएएस जी का मन विचलित है। वह मंदिर की तरफ उतना ध्यान नहीं दे रहे हैं। जितनी उनसे अपेक्षा थी। अव्यवस्थाएं बरकरार है। बल्कि चरम पर है। ऐसी चर्चा मंदिर से लेकर संकुल के गलियारों तक सुनाई दे रही है। दबी जुबान से यह तक बोला जा रहा है। अपने आईएएस जी खुद इस पद से मुक्ति चाहते है। फिर भी उनको जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया  जा रहा है। इसके पीछे आखिर क्या मजबूरी है। हमको पता नहीं है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

आडियों ...

ग्रामीण क्षेत्र के कमलप्रेमियों में एक आडियों की जमकर चर्चा है। जिसमें लेन-देन की बात हो रही है। मामला एक जमीन से जुड़ा है। जिस पर एक किसान ने अतिक्रमण कर रखा है। जिस पर फसल बोई जाती है। लंबे समय से यह अतिक्रमण है। गांव वालो ने जमीन मुक्त कराने के लिए आवेदन किया है। अपने दूसरे माले के मुखिया से। यह जमीन खेल मैदान के लिए आरक्षित है।  किसान ने जमीन बचाने के लिए, एक माननीय सहित, कमंडल मुखिया, एक पूर्व उपाध्यक्ष को हरे-हरे रंग की भेट चढाई है। किसान करीब 5 पेटी दे चुका है। किसान ने अपनी तकलीफ जनपद उपाध्यक्ष को दूरभाष पर जाहिर की है। इसी का आडियों बना है। जनपद उपाध्यक्ष किसान को सांत्वना दे रहे है। कारण ... इनको भी भेट चाहिए। अब देखना यह है कि 5 पेटी खर्च करने के बाद, किसान को जमीन मिलती है या नहीं? फैसला अपने दूसरे माले के मुखिया करेंगे। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मेरी पसंद...

विष पी ले और जग की खातिर/ इतने भोले केवल मेरे महाकाल हैं...।    

सावन माह की चुप रहेंगे डाटकॉम के सभी पाठकों को अनंत शुभकामनाएं।