29 अगस्त 2022 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

29 अगस्त 2022 (हम चुप रहेंगे)

बचकर रहना ...

शिवाजी भवन के गलियारों में यह चर्चा सुनाई दे रही है। बचकर रहना... बचकर रहना। जिसके पीछे कारण अपने खंजाची जी द्वारा निकाला गया आर्डर है। आर्डर अपने पपेट जी के निर्देश पर निकाला है। जिसमें 2 कर्मचारियों के नाम है। इन दोनों को अपनी बहन जी के स्टॉफ में भेजा गया है। अपनी बहन जी सीधी-सरल है। राजनीतिक छल-प्रपंच से दूर रहती है। इसीलिए उनके स्टॉफ में एक मुखबिर की इंट्री हो गई है। जो कि आपसी बातचीत को मोबाइल पर रिकार्ड करने में माहिर है। जुगाड लगाकर इंट्री करवा ली। अब अगर भविष्य में कभी कोई गोपनीय बातचीत की रिकार्डिंग सामने आ जाये? तो कहा नहीं जा सकता है। ऐसा शिवाजी भवन वाले बोल रहे है। सच और झूठ का फैसला वक्त करेंगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

नाम तो होगा ...

बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा। गालिब चाचा के इस शेर पर पंजाप्रेमी  पूरी तरह अमल कर रहे है। अगर हमारी बात पर भरोसा ना हो तो मुख्यालय पर हुई बैठक का उदाहरण काफी होगा। जहां पर एक पराजित नगर सेवक ने खुलकर बोला। अपने चरणलाल जी के खिलाफ। सीधे साफ शब्दों में कहा। 2 खोखे अपने चरणलाल जी ने हारने के बदले में लिए। देने वाले अपने विकास पुरूष है। पराजित नगर सेवक की बात सुनकर हंगामा खड़ा हो गया। किसी को भी इस बात पर यकीन नहीं हुआ। इसके बाद यह अफवाह फैलाई जा रही है। पराजित नगर सेवक ने यह बात अपने बिरयानी नेताजी के इशारे पर कही। तभी तो पंजाप्रेमी गालिब को याद कर रहे है बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

खर्च कौन करे ...

अपने युवा पंजाप्रेमी इन दिनों आर्थिक तंगी से जूझ रहे है। अगर कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता आ जाये। तो सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है। आवभगत पर खर्च कौन करेंगा। तभी तो युवा पंजाप्रेमियों ने यह चाल चली। पिछले सप्ताह युवा पंजाप्रेमियों के राष्ट्रीय मुखिया का आगमन हुआ था। दर्शन करना मकसद था। बाबा के दरबार में मत्था टेका। उसके बाद उन्होंने बोल दिया। भूख लग रही है। अब मुसीबत खड़ी हो गई। 30-40 पंजाप्रेमी साथ थे। इन सबको अगर होटल ले जाते। तो खर्च करना पड़ता। इसलिए दिमाग लगाया। खर्च से बचने के लिए राष्ट्रीय नेता को अन्नक्षेत्र में भोजन करवा दिया। जहां केवल 8-10 पंजाप्रेमियों ने भोजन किया। जिसकी चर्चा अब युवा पंजाप्रेमी कर रहे है। लेकिन हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

असली जादूगर ...

मंच से आबरा का डाबरा... या... गिली-गिली-गो... फूंक मारो...। अकसर जादूगर यह करके जादू दिखाते है। लेकिन असली जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं होता है। कोई भी जादूगर, अपने जादू से, भू-माफियाओं को पीछे नहीं हटा सकता है। किन्तु अपने उम्मीद जी और सूरज जी ऐसे ही जादूगर है। जिन्होंने 4 भू-माफियाओं को अपना असली जादू दिखाया। इस तरह दस्तावेज बनाकर पेश किये। माननीय न्यायालय में।  जिसके चलते 4 भू-माफियाओं ने अपने दावे ही वापस ले लिये। साढ़े 4 खोखे की जमीन मुक्त हो गई। ऐसा जादू कोठी के इतिहास में पहली दफा देखने को मिला। इसीलिए उम्मीद जी और सूरज जी को जादूगर  बोला जा रहा है। अब देखना यह है कि बाकी शासकीय जमीनों को मुक्त कराने में दोनों जादूगर आगे क्या-क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

भविष्य ...

क्या अपने कमलप्रेमी दादा और ज्यादा प्रभावशाली होने वाले है? क्या वह राजधानी के सर्वोच्च बंगले में शिफ्ट होंगे? भले ही अभी यह दूर की कौडी लग रही है। लेकिन राजधानी से लेकर शहर के कमलप्रेमी  तो यही कयास लगा रहे है। चर्चा है कि संगठन अपनी रणनीति बदल रहा है। मिशन-2023 दलित पर आधारित होगा। इसीलिए अपने दादा का राजनीतिक बनवास खत्म किया गया है। दलित वर्ग में दादा एक निर्विवाद चेहरा है। अगर ऐसा होता है तो मिशन-2023 से पहले यूपी का फार्मूला लागू हो सकता है। चर्चा यह है कि दादा की ताजपोशी के साथ 2 उप मुख्यमंत्री बना दिये जाये। ताकि सभी को संतुष्ट किया जा सके। बहरहाल हमने पहले ही ऊपर लिखा है। यह दूर की कौडी है। मगर राजनीति में कब किसका भाग्य चरम पर आ जाये। कोई नहीं बता सकता है। इसलिए फिलहाल इसको कमलप्रेमियों का हसीन सपना बताकर, हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

घर नहीं बैठते ...

ज्यादा दिन नहीं हुए। जब अपने दादा को देखकर कमलप्रेमी बोलते थे। इस उम्र में भी यह घर नहीं बैठते है। आ-जाते है। ऐसा कई कमलप्रेमियों के मुंह से हमने खुद सुना। इसमें अपने लेटरबाज जी भी शामिल है। जिनको ऐसा बोलते हमने तो नहीं सुना। मगर अपने दादा के एक घनिष्ठ ने सुन लिया। युवा कमलप्रेमियों के एक कार्यक्रम में। तब अपने लेटरबाज जी ने दादा को देखकर ऊपर लिखी बाते बोली। इसके साथ यह भी बोला कि ... अब इनको मंच पर लाना पड़ेगा। उस वक्त बात आई-गई हो गई। क्योंकि दादा का राजनीतिक वनवास चल रहा था। मगर अब वक्त बदल गया। अपने दादा प्रभावशाली हो गये। नतीजा वही लेटरबाज जी, जो कल तक, दादा को देखकर ... घर नहीं बैठते है... बोलते थे। उन्हीं को दादा के इंतजार में मंच पर खड़े देखा गया। जिसे देखकर कमलप्रेमियों को पुरानी घटना याद आ गई। जिसकी चर्चा अब ग्रामीण कमलप्रेमियों की जुबान पर है। अब हम जुबान तो पकड़ नहीं सकते है। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

लाठी ना टूटे ...

अपने पपेट जी ने कमाल कर दिया। धोती को फाडकर रूमाल कर दिया। गजब की चाल चली। सांप भी मर गया ... लाठी भी नहीं टूटी। यह सब शिवाजी भवन वाले बोल रहे है। इशारा उस आर्डर की तरफ है। जिससे कर्मचारियों के हित जुड़े है। अभी तक कर्मचारी नेता भारी पड़ते थे। आये दिन समस्या और मांग लेकर हाजिर हो जाते थे। फाइले भी कर्मचारी हित की लंबित पड़ी थी। ऐसे में अपने पपेट जी और खंजाची जी ने दिमाग लगाया। ऐसा क्या करे कि ... सांप भी मर जाये... लाठी भी ना टूटे। बस ... रास्ता मिल गया। जो हर रोज परेशान करते थे। उन्हीं को शाखा का मुखिया बना दिया। अब करो ... कर्मचारियों के हितों की रक्षा। अब यह बात अलग है। खुद कर्मचारी नेता, पदावनत, अभियोजन स्वीकृति के शिकार हो चुके है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस ... अपने पपेट जी की  लाठी ना टूटे वाली नीति की तारीफ करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मत जाओं...

रविवार को एक बैठक हुई। पौधारोपण अभियान को लेकर। युवा कमलप्रेमियों की। अच्छी- खासी संख्या थी। जिसे देखकर प्रभारी खुश हुए। हालांकि, हटाये गये युवा मुखिया ने कोशिश बहुत की। कई युवाओं को धमकी दी। बैठक में नहीं जाने की। खुद भी आस-पास ही मंडराते रहे। मगर फिर भी युवा कमलप्रेमी बैठक में शामिल हुए। हटाये गये छोटा सराफा वाले मुखिया की बात नहीं मानी।   इधर खिसयानी बिल्ली खंबा नोचे, की तर्ज पर हटाये गये मुखिया ने वक्त को लेकर एक पोस्ट अपलोड कर दी। जिसकी चर्चा बैठक के बाद युवा कमलप्रेमियों में सुनाई दी। अब देखना यह है कि ... बड़े बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले... से परेशान हटाये गये मुखिया आगे क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

कठिन सवाल...   

कमलप्रेमी मिशन-2023 और 24 की तैयारी में लग गये है। राजधानी से एक एप आया है। जिसका नाम सरल-एप है। जिसमें कार्यकर्ताओं को आ रही परेशानियों को लेकर सवाल पूछा गया है। अधिकांश ने एक ही जवाब दिया है। कार्यकर्ताओं के काम नहीं होते है। केवल नेता और दलाल के ही होते है। अब देखना यह है कि इस कठिन सवाल पर, राजधानी के सरल-एप पर क्या प्रतिक्रिया होती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

अनुष्ठान ...

राजधानी में इन दिनों मरहूम डॉ. सागर आजमी की गजल का एक अशआर खूब सुनाई दे रहा है फिर आने वाला है तूफान नया कोई सहमे हुए बैठे है सब अपने मकानों में। इसी के चलते अनुष्ठान का दौर जारी है। दिल्ली-यूपी-चित्रकूट तक। पद का मोह मजबूर कर रहा है। अनुष्ठान करवाने के लिए। देखना यह है कि अनुष्ठान का फल मिलता है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चलते-चलते ...

राजधानी में चर्चा है। अपने नम्बर-1 जल्दी ही सिंधिया स्टेट की राजधानी में पदस्थ हो सकते है। सोमरस वाले विभाग में। जबकि तलाबों की नगरी में पदस्थ अपने बिट्टू जी को, होल्कर स्टेट भेजा जा सकता है। अपनी टर्मिनेटर मैडम को मां चामुण्डा नगरी भेजने की चर्चा है। चामुण्डा नगरी में पदस्थ अपने मौलेश्वर बाबा को सफाई में सिक्सर मारने की कमान दी जा सकती है। फैसला अपने मामाजी को करना है। तब तक हमको आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

मेरी पसंद ...

दिल में एक लहर सी उठी है अभी/ कोई ताजा हवा चली है अभी/ कुछ तो नाजुक मिजाज है हम भी/ और यह चोट भी नई है अभी/ वक्त अच्छा भी आयेगा नासिर/ गम ना कर जिंदगी पड़ी है अभी...।