15 अगस्त 2022 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

15 अगस्त 2022 (हम चुप रहेंगे)

झंडावंदन से दूरी: ऐसी क्या थी मजबूरी .! मंदिर में चर्चा ..

उज्जैन। देश भर में सोमवार को आजादी का अमृत महोत्सव मनाया गया। घर-घर में तिरंगा  लहराया गया। महाकाल मंदिर में भी सुबह झंडावंदन हुआ। लेकिन इस झंडावंदन से मंदिर प्रशासक की दूरी रही। जिसके चलते मंदिर के गलियारों में यह चर्चा सुनाई दे रही है कि ... झंडावंदन से दूरी... आखिर ऐसी क्या थी मजबूरी... !

जो कभी नहीं हुआ। मंदिर के इतिहास में। वह सोमवार को हो गया। वह भी आजादी अमृत महोत्सव के मौके पर। देश 75 वीं आजादी की वर्षगांठ मना रहा था। इसलिए हर अधिकारी/ आम नागरिक तिरंगे को सलामी देने के लिए बेचैन था। लेकिन मंदिर प्रशासक  गणेश धाकड मंदिर कार्यालय पर हुए झंडावंदन में नजर नहीं आये। उनकी जगह मंदिर प्रबंध समिति के सदस्य व सहायक प्रशासनिक अधिकारी मूलचंद जोनवाल ने झंडावंदन किया। इस अवसर पर मंदिर कार्यालय के बाकी अधिकारी/ कर्मचारी मौजूद थे। मंदिर प्रशासक की गैर हाजिरी को लेकर दिनभर मंदिर के गलियारों में चर्चा रही।

चापलूसी ...

जिस वक्त युवा कमलप्रेमी मंदिर में अव्यवस्था से जूझ रहे थे। उस वक्त अपने चुगलीराम जी आखिर कहां थे? इस सवाल का जवाब युवा कमलप्रेमी खोज रहे है। कारण... अगर चुगलीराम जी  मौजूद होते, तो 18 युवाओं का भविष्य खराब नहीं होता। मंदिर के गलियारों में भी इसकी चर्चा है। सुगबुगाहट है कि जिस वक्त मंदिर के अंदर युवा कमलप्रेमी घुसने की जद्दोजहद कर रहे थे। उस वक्त अपने चुगलीराम जी शंख द्वार पर मौजूद थे। इंतजार कर रहे थे।  एक अतिविशिष्ट नागरिक का। जो कि भारत स्वाभिमान यात्रा संस्था चलाते है। वह दर्शन करने आये थे। उनके चक्कर में चुगलीराम जी यह भूल गये कि युवा कमलप्रेमियों के राष्ट्रीय मुखिया अंदर मौजूद है। नतीजा ... यह चर्चा आम है कि अगर अपने चुगलीराम जी इस चापलूसी में व्यस्त नहीं रहते तो 18 युवाओं का भविष्य नहीं बिगड़ता। मगर अपने चुगलीराम जी की आदत है। लोगों का जीवन बिगाडऩे की। शिवाजी भवन के अधिकारी/ कर्मचारी इसके गवाह है। इसलिए हम ज्यादा कुछ ना लिखकर, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

डरपोक ...

अपने चुगलीराम जी की कई खासियत है। जो कि धीरे-धीरे सामने आ रही है। एक खासियत अभी-अभी उजागर हुई है। जिसमें मंदिर के कर्मचारी डरपोक शब्द का उपयोग कर रहे है। पूछताछ में इशारे से बताया जा रहा है। मामला निलंबन से जुड़ा है। जिन 2 कर्मचारियों को निलंबित किया गया। उन दोनों को अपने चुगलीराम जी ने 180 मिनिट अपने कक्ष में बैठाकर रखा था। आर्डर निकल चुका था। लेकिन किसी को भी निलंबन आदेश नहीं दिया गया। नतीजा कागजों पर निलंबित कर्मचारी, आज भी ड्यूटी कर रहे है। इसी के चलते मंदिर के गलियारों में डरपोक-डरपोक शब्द सुनाई दे रहा है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस ... अपनी आदत के अनुसार चुप ही रह सकते है।

समझौता ...

अपने कप्तान जी बहुत शांतप्रिय है। विवादों से बचकर ही रहते है। साल में 1 दिन खुलने वाले मंदिर से जुडी  घटना है। जिसमें अपने सूरज जी और शहरी उप-कप्तान के बीच विवाद हो गया। मामला व्यवस्था से जुड़ा था। जिसके चलते अपने सूरज जी ने जोरदार नाराजगी दिखाई। शहरी उप-कप्तान को यह बात समझ में नहीं आई। उन्होंने सलाह को दरकिनार करते हुए, विवाद शुरू कर दिया। गर्मागर्म बहस हो गई। जिसकी सूचना अपने कप्तान जी तक पहुंची। नतीजा ... शांतप्रिय कप्तान ने दोनों पक्षों की बात सुनकर मामले को वहीं पर शांत कर दिया। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर ... हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

साजिश ...

अनुशासन के नाम पर 18 युवाओं का भविष्य खराब हो गया। लेकिन इसके पीछे साजिश किसकी थी। इस सवाल का जवाब किसी भी कमलप्रेमी के पास मौजूद नहीं है। यह जरूर बोला जा रहा है कि नियुक्ति के समय से ही विवाद शुरू हो गये थे। जिसके चलते शहरी युवा अध्यक्ष तो अपनी टीम भी घोषित नहीं कर पाये। युवा कमलप्रेमियों में शुक्रवार की सुबह से ही चर्चा थी। रवानगी पक्की है। अब सवाल यह है कि इस साजिश का सूत्रधार कौन था। जिसने राजधानी में प्रदेश मुखिया के कान में मंतर फूका। तो चर्चा यह है कि श्रीनगर से लौटे युवा कमलप्रेमी इन दिनों प्रदेश मुखिया के खास सिपहसालार है। जिनको युवा कमलप्रेमी खजांची जी बुलाते है। तो दूसरे अपने गुमसुम युवा है। दोनों ही आजकल प्रदेश  में पदाधिकारी है। इन्हीं दोनों पर युवा कमलप्रेमियों को शंका है। अब सच और झूठ का फैसला खुद युवा कमलप्रेमी कर ले। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

वायरल ...

सोशल मीडिया के इस युग में कब कौनसी बातचीत वायरल हो जाये? कुछ कहा नहीं जा सकता है। हाल ही में एक आडियों तिरंगा यात्रा को लेकर वायरल हो गया। जिसमें एक कमलप्रेमी से यात्रा में शामिल होने का आग्रह कोई कर रहा है। बातचीत ... कुछ यूं शुरू हुई। हेलो...कौन... अरे... आज तिरंगा यात्रा में आने वाले थे। सामने वाला सवाल करता है। कौन बोल रहे है... कहां से बोल रहे है। तो फोन लगाने वाला खुद को वजनदार जी का आदमी बताता है। जिसे सुनकर सामने वाला यह बोलता है। हमारी दुकान पर चोरी हुई थी... कब्जा हुआ... जिसका सीसीटीवी फूटेज ...! इसके बाद का आडियों वायरल नहीं हुआ। लेकिन बातचीत के मिजाज से अंदाजा लगाया जा सकता है। सामने वाले के आक्रोश का। यह भी तय है कि सामने वाले ने तिरंगा यात्रा से दूरी रखी। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस ... यही दुआ मांगते है कि ... अपने वजनदार जी, बगैर भेदभाव के आमजनता के काम आये। बाकी ... हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

चढ़ावा ...

शीर्षक पढ़कर हमारे पाठक समझ गये होंगे। हमारा इशारा किस तरफ है। चढावा तो मंदिर में ही चढता है। मगर, वह दर्शन करने आये भक्तों की मर्जी पर निर्भर करता है। जिसकी जितनी शक्ति- उतनी उसकी भक्ति। लेकिन कुछ चढावा गुप्त होता है। जिसकी किसी को कानो-कान खबर नहीं होती है। मंदिर के गलियारों में ऐसे ही चढावे की चर्चा सुनाई दे रही है। 44 पेटी के काम का मामला है। ठेकेदार को बकायदा आर्डर मिला था। उसने समय पर काम भी कर दिया। अब आया भुगतान का समय। तो अपने चुगलखोर जी के 2 पट्ठो ने डिमांड कर दी। चढावे की। जो कि ज्यादा और अनुचित थी। नतीजा ... ठेकेदार ने पहले अपने उम्मीद जी से मुलाकात करी। पूरा मामला बताया। अपने उम्मीद जी ने 50 प्रतिशत भुगतान के निर्देश दे दिये। लेकिन अपने चुगलीराम जी ने इस दौरान खेल कर लिया। भुगतान फाइल पर ऐसी टिप्पणी लिखवा दी। जिससे भुगतान खटाई में पड गया। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। यह भी चर्चा है कि जल्दी ही ठेकेदार एक प्रेस-कांफ्रेंस लेने वाले है। जिसमें अपने चुगलीराम जी का असली चेहरा उजागर होगा। अब इस मामले में कितना सच है... कितना झूठ। फैसला हमारे समझदार पाठक खुद कर ले। क्योंकि हम को तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

बेईज्जती ...

यह अत्यंत आपत्तिजनक है कि शिवाजी भवन के अधिकारी/ कर्मचारी ही शिवाजी भवन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आमंत्रित किये जाने के बाद भी उपस्थित नहीं होते है। यह संदेश शिवाजी भवन के सोशल मीडिया ग्रुप पर 13 अगस्त की रात को डाला गया था। कारण ... इसी दिन शाम 5 बजे टॉवर चौक पर आजादी अमृत महोत्सव का एक कार्यक्रम शिवाजी भवन ने रखा था। जिसमें सभी को उपस्थित रहने के निर्देश थे। हमें यह लिखने की जरूरत नहीं है कि ... यह आदेश सोशल मीडिया पर अपने पपेट जी के निर्देश पर ही डाला गया होगा। इसके बाद भी अधिकारी-कर्मचारी नहीं आये। नतीजा ... कार्यक्रम के बाद लाल चेहरे वाली (गुस्सा) इमोजी के साथ ऊपर लिखा गया संदेश डाला गया। जिसके बाद शिवाजी भवन में इस घनघोर बेईज्जती की चर्चा आम है। अब यह बेईज्जती किसकी हुई? यह हमें लिखने की जरूरत नहीं है। क्योंकि हमारे पाठक बहुत समझदार है। तो फिर हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

बदकिस्मत ...

हर किसी के लिए यह गर्व का पल होता है। खासकर अधिकारियों के लिए। उनको झंडावंदन करने का मौका मिले। लेकिन अपने पपेट जी इस मामले में बदकिस्मत है। तभी तो उनको दूसरी दफा भी यह मौका नहीं मिल पाया। पहला मौका जनवरी माह में आया था। मगर तब अपने पपेट जी किसी कारणवश झंडावंदन नहीं कर पाये। अब सोमवार को फिर अवसर आया। लेकिन यह अवसर उनके हाथ से फिसल गया। कारण ... इस दफा अपने प्रथम सेवक ने झंडावंदन किया। नतीजा ... शिवाजी भवन में यह चर्चा शुरू हो गई। बाबा महाकाल किसी को भी इतना बदकिस्मत नहीं बनाये। कि वह झंडावंदन भी नहीं कर पाये। अब शिवाजी भवन वालो कि जुबान तो हम पकड नहीं सकते है। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।