एक फोन आया और बदल गया नाम ...?
भाजपा में चर्चा ...

उज्जैन। नगर निगम सभापति के लिए आखिरकार वरिष्ठ पार्षद कलावती यादव चुन ली गई। भाजपा में पहले ही इसकी चर्चा थी। उच्च शिक्षा मंत्री की बहन होने के चलते, वह ही इस पद की दावेदार होंगी। जिसके लिए 30 साल इंतजार करना पड़ा। लेकिन इसके पहले लोकशक्ति पर बैठक हुई। जिसमें भाजपा के सभी पार्षद शामिल थे। नाम की घोषणा के पहले एक फोन आया। जिसके बाद वरिष्ठ पार्षद के नाम की घोषणा हो गई। इसी के चलते भाजपा में चर्चा है कि ... एक फोन आया और बदल गया नाम ...?
नगर निगम में सभापति कौन होगा। इसका अंदाजा तो सभी भाजपा नेताओं को था। मगर फिर भी आखिरी दम तक कुछ दावेदार अपनी-अपनी कोशिश में लगे रहे। इनमें से 3 पार्षदों का दावा है कि उनका नाम ऊपर से फायनल हो चुका था। जिसमें से किसी एक नाम की घोषणा लोकशक्ति पर होने वाली थी। भाजपा के सभी 37 पार्षद समय पर लोकशक्ति पहुंच गये थे। भाजपा जिलाध्यक्ष विवेक जोशी घोषणा करने के लिए खड़े भी हो गये थे। उन्होंने बोलना शुरू किया। तभी अचानक उनका फोन बज गया।
अंदर गये और...
भाजपा पार्षदों में चल रही चर्चा पर अगर यकीन किया जाये। अगर 1 मिनिट और फोन नहीं बजता। तो निगम सभापति के लिए कोई ओर नाम सामने आता। जिलाध्यक्ष विवेक जोशी अपनी बात पूरी करते। उसके पहले फोन बजा। उन्होंने कहा कि ... जरूरी फोन है। जिसके बाद वह अंदर चले गये। थोड़ी देर में वापस आ गये। उसके बाद उन्होंने घोषणा करी कि ... पार्टी की तरफ से निगम सभापति की उम्मीदवार श्रीमती कलावती यादव होंगी। इसी दौरान उनके वाटसअप पर राजधानी से श्रीमती यादव के नाम का पत्र भी आ गया। घोषणा सुनकर महामंत्री संजय अग्रवाल आदि हार-फूल ले आये और स्वागत कर दिया।
पहल ...
लोकशक्ति कार्यालय से भाजपा पार्षद और महापौर सभी नगर निगम पहुंचे। जहां पर चुनाव होने वाले थे। कलेक्टर आशीषसिंह ठीक 10 बजे निगम कार्यालय पहुंच गये। निगमायुक्त अंशुल गुप्ता, अपर आयुक्त आशीष पाठक और आदित्य नागर पहले ही मौजूद थे। नगर निगम में भाजपा के 37 व कांग्रेस के 17 पार्षद चुनकर आये है। निर्वाचन को टालने व नई परिपार्टी बनाने के उद्देश्य से सभापति प्रत्याशी कलावती यादव ने पहल की। वह निगम में नेता प्रतिपक्ष के कार्यालय खुद पहुंची। उनके साथ महामंत्री विशाल राजोरिया थे। राजेन्द्र वशिष्ठ व कांग्रेस जिलाध्यक्ष रवि भदौरिया ने उनका स्वागत किया। 1 मिनिट तक चर्चा हुई और श्रीमती यादव वापस लौट गई। प्रस्ताव लेकर आई थी कि ... निर्विरोध सभापति का चुनाव करवा लिया जाये। जिलाध्यक्ष ने सभी कांग्रेसी पार्षदों से बातचीत करी। प्रस्ताव बताया। उसके बाद फैसला लिया कि ... सभापति के चुनाव होंगे।
1 बिका ...
37 भाजपा और 17 कांग्रेस पार्षद है। कुल 54 पार्षद है। जब सभापति का परिणाम आया तो कांग्रेस प्रत्याशी श्री कुवाल को केवल 16 मत मिले। जबकि कांग्रेस के 17 पार्षद है। भाजपा प्रत्याशी श्रीमती यादव को महापौर मुकेश टटवाल का मत मिलाकर 39 वोट मिले। अब सवाल यह है कि आखिर वह कौन कांग्रेसी पार्षद है। जिसने पार्टी के साथ दगाबाजी की। यहां यह लिखना जरूरी है कि मतदान से पहले सभी कांग्रेसी पार्षदों को दोनों प्रत्याशियों के नाम लिखकर कागज पर दिये गये। जिसके बाद सभी से कांग्रेसी प्रत्याशी का नाम भी पढ़वाया गया। इसके बाद भी कांग्रेस में फूट हो गई और 1 पार्षद बिक गया।