14 नवम्बर 2022 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
मंथन ...
हम समुद्र मंथन की बात नहीं कर रहे है। जो देवताओं और दानवों के बीच हुआ था। हम यहां महाकाल- लोक मंथन की बात कर रहे है। जिसको लेकर इसी सप्ताह पेशी है। राजधानी जाकर जवाब देना है। इस बीच एक नया मंथन (मामला) उजागर हो गया है। जिसकी शिकायत भी हो गई है। उसी जगह, जहां पर जवाब देने जाना है। जिसको लेकर स्मार्ट भवन के गलियारों में चर्चा है। मामला पानी निकालने से जुड़ा है। जिसको लेकर निविदा में कोई उल्लेख नहीं था। लेकिन 85 पेटी खर्च करके पानी निकाला गया। जिसमें सभी तृप्त हो गये। शिकायत मिलते ही आदेश हो गये है। संबंधित फाइल को पेश करने के। तभी तो स्मार्ट भवन के गलियारों में यह चर्चा आम है। एक मामला निपटा नहीं और दूसरा सामने आ गया। कोढ़ में खाज वाली स्थिति हो गई है। अब देखना यह है कि इस नये मामले से स्मार्ट भवन के कर्ताधर्ता कैसे निपटते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
रिवाइज ...
किसी भी निर्माण कार्य के लिए शासन ने प्रक्रिया निर्धारित कर रखी है। नियम बना रखे है। निविदा निकाली जाती है। अगर उसके बाद भी कार्य को रिवाइज करना है। तो नियमानुसार 25 प्रतिशत की बढोत्तरी की जा सकती है। किन्तु ऐसा नहीं हो सकता है। रिवाइज करने के नाम पर 200 या 300 प्रतिशत की वृद्धि कर दी जाये। इस नियम से सभी वाकिफ होते है। इसके बाद भी स्मार्ट भवन के गलियारों में ऐसा हुआ है। 2 खोखे की पहले निविदा निकली। फिर रिवाइज के नाम पर ... 3 दफा 1-1 खोखे की वृद्धि कर दी गई। बस नोटशीट लिखी और काम हो गया। इसके बाद भी काम पूरा नहीं हुआ। तो एक बार फिर निविदा निकाली गई। 2 खोखे की। सीधी सरल भाषा में लिखा जाये तो 2 खोखे का निर्माण कार्य बढ़ते-बढ़ते 8 खोखे तक पहुंच गया। लेकिन किस निर्माण कार्य में ऐसा किया गया? इसको लेकर सभी ने चुप्पी साध रखी है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
चोट ...
अपने उम्मीद जी के साथ गलत हुआ। ऐसा नहीं होना चाहिये था। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बीच काम किया। अपने पपेट और चुगलीराम जी गढ्ढा खोदते रहे। लेकिन उम्मीद जी ने समय पर काम पूरा करवाया। फेज-1 का लोकार्पण भी करवा दिया। कहीं कोई गडबडी नहीं हुई। खुद अपने मामा जी ने सभी के सामने बधाई दी थी। इसके बाद तो पुरूस्कार के हकदार थे। देवी अहिल्या की नगरी में पदस्थापना ही सर्वोत्तम पुरूस्कार होता। सभी को भरोसा भी था। मगर ऐन वक्त पर अपने उम्मीद जी के साथ चोट हो गई। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में उनके ही मातहत कर रहे है। मातहतों की बात में दम है। मगर अपने मामाश्री ने चोट कर दी। जिसमें मातहत हो या हम? कुछ नहीं कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
सेंटिगबाज ...
अपने युवा कमलप्रेमी गुमसुम नेताजी आजकल सेंटिगबाज हो गये है। ऐसा उनसे ही जुड़े युवा कमलप्रेमी बोल रहे है। उनको राजधानी की हवा लग गई है। जब तक जिले में पदाधिकारी थे। ईमानदारी से काम करते थे। लेकिन अब प्रदेश में पदाधिकारी है। तो खर्च बढ गये है। बेहतरीन कलफदार कपड़े - बेहतर फोन- और फिर दौरे पर भी जाना पडता है। जिसके लिए खर्च लगता है। इसीलिए तो उन्होंने रास्ता निकाला। दमदमा के एक अल्पसंख्यक, जो अवैध काम करता है। उसको संरक्षण दे दिया। नतीजा ...अच्छी खासी कमाई हो रही है। ऐसा गुमसुम युवा के करीबियों का कहना है। तभी तो आजकल जैसे ही गुमसुम नेता को युवा कमलप्रेमी देखते है। तो धीरे से बोल देते है। सेंटिगबाज जी आ रहे है। अब सच और झूठ का फैसला अपने युवा कमलप्रेमी खुद ही कर ले। क्योंकि हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
अनफिट ....
इन अनफिट शब्द के अर्थ से तो हमारे पाठकगण परिचित है। लेकिन अगर इस अनफिट के बाद जी लगा दिया जाये। तो फिर अनफिट जी को पढकर हमारे पाठक जरूर सोचेंगे? आखिर किसका नामकरण हो गया है। तो अनफिट जी की गूंज इन शिवाजी भवन के गलियारों में सुनाई दे रही है। इशारा किसकी तरफ है। इसे हमें लिखने की जरूरत नहीं है। क्योंकि, जिनके लिए यह बोला जा रहा है। उसकी शिवाजी भवन में इंट्री उस वक्त हुई थी। जब देश के प्रथम सेवक, लोकार्पण करने आये थे। अनफिट जी की यह बिग- इंट्री थी। कुछ कर दिखाने का सर्वोत्तम अवसर था। सभी ने यही सोचा था कि ... अब शिवाजी भवन की कार्यशैली में सुधार होगा। अपने पपेट जी, जो ढर्रा बिगाड गये है। उसको सही किया जायेगा। किन्तु आज 36 दिन पूरे होने वाले है। कुछ भी नहीं बदला है। फाइले डंप है। कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। इसीलिए तो हर किसी की जुबां पर अनफिट जी सुनाई दे रहा है। मातहतों का आंकलन गलत भी नहीं है। इसलिए हम भी अनफिट जी पर मोहर लगाते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मुखबिर ...
जिसने एक दफा वर्दी पहन ली। उसे मुखबिर पालने की आदत हो जाती है। फिर भले ही वह अपनी वर्दी भी उतार चुका हो। जैसे अपने पपेट जी। वर्दी उतारे समय हो चुका है। नये रूप में उनको हम सब देख चुके है। शहर से रवानगी भी हो चुकी है। लेकिन मुखबिर उनके आज भी है। शिवाजी भवन वाले तो यही बोल रहे है। इसके साथ यह भी चर्चा है। इस मुखबिर की जानकारी अपने अनफिट जी को भी नहीं है। यह वही मुखबिर है। जिसने अपने पपेट जी को ग्रुपों से रिमूव्ह किया था। इसके बाद भी कई ग्रुपों से आज भी पपेट जी जुड़े हुए है। राजधानी में बैठकर हर मामले की खबर रखते है। बाकी अंदर की खबर के लिए मुखबिर जिंदाबाद है। मुखबिर अहसान के तले दबे हुए है। क्योंकि अपने पपेट जी ही उनको लाये थे। तभी तो शिवाजी भवन में इस मुखबिर की चर्चा जोरो पर है। अब यह देखना रोचक होगा? अपने अनफिट जी इस मुखबिर की पहचान कर पाते है या नहीं? तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
समझौता ...
बड़े बेआबरू होकर मंदिर से निकाले गये अपने चुगलीराम जी के साथ कोई समझौता हुआ है? मंदिर के गलियारों में तो यही चर्चा है। अंदरखाने की खबर है कि ... हटाने के बाद चुगलीराम जी की कुछ फाइल सामने आई है। जिसमें अनियमितता के पक्के सबूत मिले। अगर यह उजागर हो जाते। तो ज्यादा बदनामी होती। इसलिए अपने चुगलीराम जी के संरक्षक को सच से अवगत करा दिया गया। जिसके बाद अच्छे पद के लिए फडफडा रहे अपने चुगलीराम जी बिलकुल शांत हो गये है। अवकाश पर निकल लिये। अब सवाल यह है कि आखिर समझौता किससे हुआ है? इसको लेकर कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। सवाल पूछने पर चुप रहने का इशारा कर देते है। तो हम भी इशारे का सम्मान करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
इंतजार ...
किसी शायर ने खूब कहा है। बजाये सीने के आंखो में दिल धड़कता है/ ये इंतजार के लम्हें अजीब होते है...! हालांकि शायर ने इस अशआर में इशारा प्रेमी की तरफ किया है। लेकिन हमारा इशारा एक लिस्ट की तरफ है। जो कि राजधानी से जारी होने वाली है। इस सूची का इंतजार वर्दी वालो को ज्यादा है। अंदरखाने की खबर है कि अपने अल्फा जी को भी बेसब्री से सूची का इंतजार है। बस अपने मामाजी की वापसी का इंतजार हो रहा है। जो कि इन दिनों अभ्यारण में है। उनकी वापसी के बाद ही सूची जारी होगी। अब देखना यह है कि अपने अल्फा जी का इंतजार आखिर कब खत्म होता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
बोलियां ...
कई प्रांतों में कई बोलियां (भाषा) बोली जाती है। मगर सबसे अनोखी बोली आंखो की होती है। शायर मंजर भोपाली का एक शेर है। गुफ्तगूं मोहब्बत में कीजिए इशारों से / लड़कियां तो आंखो की बोलियां समझती है...! यह अशआर इन दिनों शिवाजी भवन में सुनाई दे रहा है। बस ... इसमें लड़कियां नहीं है। बल्कि वहां के कर्मचारी है। जो कि इन दिनों अपने प्रथम सेवक की आंखो की बोलियां भली-भाती समझ चुके है। तभी तो प्रथम सेवक के आंख झपकाते ही समझ जाते है। जो निर्देश, फरियादी के सामने दिये है। उन निर्देशों पर कितना अमल करना है... कितना नहीं! कई चश्मदीद आंखो की बोलियों वाला नजारा, खुद अपनी आंखो से देख चुके है। तभी तो यह चर्चा है। अब देखना यह है कि ... प्रथम सेवक की आंखे आखिर कब तक बोलती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
खिचड़ी ...
बाबा महाकाल की नगरी में पौराणिक सप्तसागर भी है। इनमें से एक सागर का नाम श्रीकृष्ण की एक कथा के नाम पर है। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने पर्वत को अपनी ऊंगली पर उठा लिया था। अपने भक्तों की जान बचाई थी। उसी नाम के सागर को लेकर चर्चा है। संकुल के गलियारों में। दबी जुबान से बोला जा रहा है। अंदर ही अंदर इस सागर को लेकर कोई खिचड़ी पकी है। लेकिन खिचड़ी क्या पकी है। इसका खुलासा कोई नहीं कर रहा है। ज्यादा कुरेदने पर हमें इशारा किया जा रहा है। मुंह पर ऊंगली रखकर चुप रहने का। तो फिर हम भी अपने मुंह पर ऊंगली रखते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।