अज्ञानता या चतुराई, चुप रहेंगे हम तो 'भाई ' ...!

तस्वीर भी बोलती है  ...

अज्ञानता या चतुराई,  चुप रहेंगे हम तो 'भाई ' ...!

उज्जैन। सबसे पहले निगम आयुक्त और उनकी पूरी टीम को बधाई। आखिरकार उज्जैन को दिल्ली में पुरस्कार दिलवा कर लाये है। इसलिए अनंत बधाई के हकदार है। लेकिन पुरस्कार लेते वक्त की जो तस्वीर सामने आई। उसको लेकर उनके मातहतों में चर्चा शुरू हो गई। जिसका सार यह है कि ...अज्ञानता या चतुराई: चुप रहेंगे हम तो 'भाई '  ...!

ऊपर लगी तस्वीर पहली नजर में देखने पर सामान्य ही नजर आती है। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के मंत्री हरदीप पुरी के हाथों महापौर मुकेश टटवाल, अपर आयुक्त आदित्य नागर व उपायुक्त संजेश गुप्ता पुरस्कार ले रहे है। केन्द्रीय मंत्री के समीप ही राज्यमंत्री और हरी जेकेट पहने विभाग के सचिव मनोज जोशी खड़े है। जिनसे बतिया रहे है उज्जैन निगम आयुक्त अंशुल गुप्ता।

इसलिए चर्चा ...

यह सभी को पता है कि आयुक्त सहित पूरी टीम पुरस्कार लेने गई थी। तो आयुक्त का पहला दायित्व क्या होना था? उनको केन्द्रीय मंत्री के हाथों से पुरस्कार ग्रहण नहीं करना चाहिये था? लेकिन उन्होंने इसके उलट किया। क्या इसकी वजह यह है कि ... महापौर श्री टटवाल को गांधी प्रतिमा पहले मिलती और फिर महापौर निगमायुक्त को देते। जो कि शायद निगम आयुक्त को पसंद नहीं था? इसीलिए उन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर चतुराई दिखा दी। उन्होंने केन्द्रीय मंत्री के हाथों पुरस्कार नहीं लिया और केन्द्रीय सचिव मनीष जोशी के समीप जाकर खड़े हो गये। यहां यह लिखना जरूरी है कि ... केन्द्र में सचिव पद, प्रदेश के मुख्य सचिव स्तर का होता है। तभी तो शिवाजी भवन के मातहत फोटो पर सवाल उठा रहे है। सवाल वही है... अज्ञानता या चतुराई... चुप रहेंगे हम तो भाई।

 नियम का पालन ...

अब इस तस्वीर को देखिए। जो कि स्वच्छता में छक्का लगाने वाले इंदौर की है। महामहिम राष्ट्रपति के हाथों से निगमायुक्त प्रतिभा पाल पुरस्कार ले रही है। उनके समीप इंदौर महापौर पुष्यमित्र, सांसद शंकर लालवानी सहित इंदौर संभागायुक्त, कलेक्टर आदि खड़े है। प्रोटोकॉल का पूरा पालन हो रहा है। केवल इंदौर ही नहीं बाकी 11 शहरों को भी पुरस्कृत किया गया। सभी ने प्रोटोकाल का पालन किया। महामहिम के बाद केन्द्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने पुरस्कार देना शुरू किया। उनके द्वारा जिस टीम को भी पुरस्कृत किया गया। वहां के अधिकारियों ने नियम का पालन किया। पुरस्कार लिया... और फिर राज्यमंत्री व सचिव का अभिवादन करके मंच से उतर गये। केवल उज्जैन नगर निगम अपवाद रहा और फोटो सामने आते ही चर्चा शुरू हो गई। अब इसके पीछे की वजह क्या है? इसका फैसला पाठक अपने स्व-विवेक से कर ले।

नगर निगम में चर्चा ....पिछले साल 12 ... इस साल 17 ... आखिर क्या है लफड़ा ... !

उज्जैन। हमारे पाठकों से निवेदन है। हेडिंग पढ़कर यह नहीं सोचे। हम अपने सफाई मित्रों और अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे है। आलोचना करना मकसद नहीं है। उद्देश्य केवल उस सच को उजागर करना है। जिस पर चलते हुए निगम यह गलती दूसरी बार कर बैठा है। तभी तो पिछले साल 12 वें स्थान पर थे और इस साल 17 वें स्थान पर आये है।

भरोसा ही नहीं हो रहा है। आखिर स्वच्छ भारत मिशन में गलती क्या हो रही है। जो आगे बढऩे के बदले ... इस साल हम 5 नम्बर और पीछे रैंकिंग में खिसक गये।  2020-21 में उज्जैन नगर पालिका निगम पूरे देश में 12 वें नम्बर पर था। जबकि इस साल 21-22 का  परिणाम आया। तो हमारा नम्बर 17 वें स्थान पर है। दोनों दफा  सिटीजन वाली श्रेणी है। ऐसे में कार्यशैली पर यह सवाल उठना लाजिमी है। क्या नगर निगम की कार्यशैली ... 2 कदम आगे... 4 कदम पीछे वाली है। जिस पर निगम चल रहा है।

पता लगाये ...

12 नम्बर से 17 नम्बर यूं तो ज्यादा है। लेकिन श्रेणी के हिसाब से पीछे खिसके है। इसके पीछे कारण क्या है? विदित रहे कि कोई भी शहर तभी आगे बढ़कर खिताब हासिल कर पाता है। जब उस शहर की आम जनता और जनप्रतिनिधि जागरूक होते है। इंदौर का सिक्सर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। केवल और केवल सरकारी मशीनरी के भरोसे प्रथम तो छोडि़ए... अंडर-10 में भी आना संभव नहीं होता  है। जनप्रतिनिधि और आम जनता स्वच्छता मिशन को लेकर उदासीन रहते है। यही वजह है कि 12 वे से 17 वे स्थान पर उज्जैन को आना पड़ा है। ऐसे में यह जरूरी है कि ... गलतियों का पता लगाया जाये और उसे फिर ना दोहराया जाये।

मार्गदर्शन ...

विदित रहे कि उज्जैन पिछले 2 सालों से लगातार सिटीजन श्रेणी में ही पुरस्कार प्राप्त कर रहा है। 3 स्टार श्रेणी के साथ।  जिसको लेकर भले ही नगर निगम खुद अपनी पीठ थपथपा ले और जनता भी खुश हो सकती है। मगर ईमानदारी से अगर सोचा जाये तो कार्यप्रणाली में सुधार की जरूरत है। खासकर समन्वय और मार्गदर्शन की। निचले स्तर तक सफाई मित्रों से उच्च अधिकारी का समन्वय देखने को नहीं मिलता है। इसके साथ ही वरिष्ठ अनुभवी अधिकारियों के मार्गदर्शन की भी जरूरत है। यहां यह लिखना जरूरी है कि ... वर्तमान उज्जैन कलेक्टर  आशीषसिंह, इंदौर निगमायुक्त रहते हुए नम्बर-1 का खिताब ले चुके है। अगर उनसे मार्गदर्शन लिया जाता, तो भले ही उज्जैन अंडर-10 में नहीं आता, लेकिन उसकी रैंकिंग 12 से 17 वे स्थान पर भी नहीं जाती।

चुनौती ...

अपने विकास पुरूष को आज तक किसी ने चुनौती नहीं दी। राजनीति और दूरदृष्टि में कोई उनके पासंग नहीं बैठता है। हर चाल का तोड उनके पास होता है। पहली बार उनको डांडिया की आड में चुनौती दी है। देने वाले उनके घुर विरोधी है। कमलप्रेमियों में चर्चा है कि विकास पुरूष से प्रताडि़त सभी विरोधी एकजुट हो गये है। तभी तो सभी ने अपने-अपने होर्डिंग्स से विकास पुरूष की तस्वीर को हटा दिया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ और ना ही देखने में आया। कमलप्रेमी दबी जुबान से यह बोलते रहते है। अगर दक्षिण में कार्यक्रम करना है, तो विकास पुरूष की तस्वीर लगाना अनिवार्य है। अगले साल मिशन 2023 है। जिसके चलते सभी विरोधी ताल ठोक रहे है। अब देखना यह है कि अपने विकास पुरूष इस चुनौती को ... कब कैसे और कहां ... जड़ से खत्म करते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

शिकायत ...  

भले ही अगले साल मिशन-2023 है और कमलप्रेमी संगठन इसकी तैयारी में  लगा है। लेकिन सत्ता सुख के चलते अब एक-दूसरे को निपटाने का काम शुरू हो गया है। जिसके ताजा शिकार अपने लेटरबाज जी हुए है। गुरूवार को संगठन के  3 मुखिया मौजूद थे।  कोर ग्रुप की बैठक थी। इंदौर रोड वाली एक होटल में। वहीं पर लेटरबाज जी की शिकायत हुई है। हमारे कमलप्रेमी गुप्तचर का यह दावा है। शिकायत कार्यशैली के साथ-साथ 1 खोखा 30 पेटी लेन-देन  को लेकर हुई है। चर्चा है कि 1 खोखा उसने दिया है, जिसने अपनी अनपढ़ धर्मपत्नी को ग्रामीण विकास का मुखिया बनाया है। वहीं 30 पेटी शिक्षित महिला को उप- मुखिया बनाने के नाम पर दिये गये है। लेन-देन हुआ या नहीं? इसकी पुष्टि तो लेने और देने वाला ही कर सकता है। किन्तु यह तय है कि लेटरबाज जी को हटाने के लिए यह शिकायत हुई है। शिकायत को संगठन कितनी गंभीरता से लेता है। इसका फैसला तो तभी होगा। जब अपने लेटरबाज जी की फाइल निपटेंगी। कब और कैसे फाइल निपटती है। इसका इंतजार अब कमलप्रेमी चुप रहकर कर रहे है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

ज्ञानी ...

अपने मामाश्री पूरी फौज के साथ आये थे।  पिछले सप्ताह। नये संकुल में बैठक थी। इस बैठक की तस्वीर जब सामने आई। तो हर कोई सवाल कर रहा था। सवाल यह था। आखिर ... वह कौन ज्ञानी था... जिसने बाबा की तस्वीर ऐन वक्त पर लगाने की सलाह दी। क्योंकि जब बैठक व्यवस्था बनाई गई। तब तक ऐसा कोई आदेश/ निर्देश नहीं था। अंदरखाने की खबर है कि मंगलवार की सुबह तक किसी के दिमाग में यह विचार नहीं था। बाबा की अध्यक्षता में बैठक होनी है। फिर अचानक ही किसी ने ज्ञान दे दिया। अगर अच्छा संदेश देना है। तो बाबा को मुखिया बनाकर बैठक की जाये। राजधानी वालो को यह ज्ञान गले   उतर गया। ताबडतोड़ व्यवस्था की गई। संदेश भी अच्छा गया। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। इसमें सच कितना है और झूठ कितना। फैसला हमारे पाठक खुद कर ले। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

अवकाश ...

आगामी 11 अक्टूबर को महाकाल- लोक का लोकार्पण होगा। यह तो सभी  को पता है। लेकिन यह किसी  की जानकारी में नहीं है। एक अधिकारी इस मौके से बचना चाहते है। वह कोई ऐसी जुगाड लगाने की योजना बना रहे है। ताकि उनको 3 दिन का अवकाश मिल जाये। हालांकि शासन- प्रशासन ने अवकाश पर  रोक लगा रखी है। फिर अंदरखाने की खबर है कि ... अधिकारी महोदय पक्के जुगाडू है... और कोई ना कोई ऐसा रास्ता निकाल लेंगे। जिससे की वह लोकार्पण कार्यक्रम से दूरी बना सके। अधिकारी, अवकाश पर इसलिए जाना चाहते है। क्योंकि उनको डर है कि ... अगर कोई भूल-चूक हो गई ... तो उसकी गाज उन पर गिर सकती है। अब देखना यह है कि अवकाश की जुगाड में लगे अधिकारी कौनसा रास्ता निकालते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

किधर जायेंगे ...

किसी शायर ने खूब कहा है। अब तो घबरा के कहते है कि मर जायेंगे/ मर  के भी चैन ना आया तो किधर जायेंगे। यह अशआर इन दिनों बाबा के दरबार में सुनाई दे रहा है। इसके पीछे इशारा अपने चुगलीराम जी की तरफ है। जो आजकल बाबा से दूर है। जिस तरीके से उनकी रवानगी हुई है। उससे वह दु:खी है। तभी तो प्रचारित करवा रहे है। अब मुझे बाबा की नगरी में नहीं रहना है। मेरा मन उचट गया है। मुझे जाना है। यही वजह है कि मंदिर के गलियारों में ... किधर जायेंगे- किधर जायेंगे... सुनाई पड रहा है। अब देखना यह है कि अपने चुगलीराम जी किधर जाते है और कहां जाकर उनको चैन मिलता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चोट ...

अपने सीधे-साधे विकास पुरूष के साथ चोट हो गई। वह भी सीधे राजधानी से। जिसमें सहयोगी बन गये अपने पहलवान और ढीला-मानुष। मामला युवा कमलप्रेमी की नियुक्ति से जुड़ा है। जिसको लेकर सीधे ऊपर से आदेश हो गये। अपने विकास पुरूष को कानो-कान खबर नहीं हुई। वह अपने 2 नाम आगे बढा रहे थे। इस बीच नियुक्ति हो गई। जैसे ही विकास पुरूष को पता चला। उन्होंने अपने ढीला-मानुष को फोन ठोक दिया। सवाल किया कि ... किसकी सहमति से नियुक्ति हुई। चतुर ढीला-मानुष ने अज्ञानता प्रकट कर दी और ऊपर वालो पर रायता ढोल दिया।  जिसके चलते कमलप्रेमियों में इस चोट की चर्चा जोरो पर है। तर्क दिया जा रहा है कि स्थानीय स्तर पर भी विरोधी एकजुट हो गये है और राजधानी से भी यही संकेत मिल रहे है। अब देखना यह है कि अपने साथ हुई इस चोट को लेकर अपने विकास पुरूष क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

आदत ...

अपने कमलप्रेमियों को असरदार जी याद होंगे। या फिर वह इन दिनों लूप-लाइन में पडे है। इसलिए उनको भूल गये है। कभी नगर जिले के मुखिया थे। तब उन्होंने अपने मामाश्री से परिवहन सेवा के परमिट लेने में कोई कोताही नहीं बरती। जब-जब मामाश्री का आगमन होता था। वह परमिट को लेकर निवेदन कर लेते थे। जिसके चलते एक बार हवाई पट्टी पर मामाजी ने बोल दिया था। कितने परमिट लोगे। कुछ समय बाद अपने असरदार जी का कार्यकाल खत्म हो गया। लेकिन उनकी आदत अभी भी बरकरार है। तभी तो हेलीपेड पर उन्होंने अपने मामाजी से आग्रह कर लिया। इस बार मामला परमिट का नहीं, बल्कि कुर्सी का था। प्राधिकरण को लेकर असरदार जी ने आग्रह किया। जिसे सुनकर मामाजी ने पलटकर कहा। अभी कुछ भी नहीं और उडन खटोले में बैठ गये। यह सुनकर अपने असरदार जी चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

राशि किसने ली ...

फायर शमन अनुमति के नाम पर आखिर किसने राशि वसूली। 1 पेटी के अंदर का खेल हुआ है। स्मार्ट अधिकारी मौका निरीक्षण करने गये थे। तब फरियादी ने खुद आगे रहकर इसका खुलासा किया। इतनी राशि दे चुका हूं... फिर भी अनुमति नहीं मिल रही है। जिसे सुनकर स्मार्ट अधिकारी चौक गये। उन्होंने फाइल पर गहरी नजर डाली। तो और ज्यादा विसंगति सामने आ गई। नतीजा, इस्तीफा देने वाले अधिकारी, मसाज प्रेमी और ईमानदार महिला अधिकारी को नोटिस थमा दिये है। देखना यह है कि स्मार्ट  अधिकारी इस मामले में कितनी निष्पक्षता से जांच करते है और सच का पता लगाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।