18 नवंबर 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
अच्छे-अधिकारी ...
प्रशासन में अच्छे- अधिकारी किसे माना जाता है? जो कि सच्चे हो। जनहित में काम करे। अच्छे अधिकारी की यही परिभाषा होती है। तभी तो राजधानी में हुई बैठक में अच्छे अधिकारी पर चर्चा हुई। प्रशासन के टॉप-बॉस सिंहस्थ की समीक्षा कर रहे थे। बैठक में तीसरे-दूसरे माले के मुखिया,कप्तान जी, चटक मैडम जी, इंदौरीलाल जी आदि मौजूद थे। टॉप-बॉस ने साफ लफ्जों में कहा। विकासपुरूष के गृहनगर में अच्छे अधिकारी भेजे जाये। ऐसे अधिकारी भेजे जाये, जो सिंहस्थ पूर्ण कराये। ध्यान रखे कि ऐसे अधिकारी नहीं भेजे जाये, जो 2-3 साल में रिटायर हो रहें हों? मगर कलेक्टर को तो 5 साल के लिए तो नहीं भेज सकते हैं। इतना कहकर वह चुप हो गये। तो हम भी अच्छे अधिकारियों के इंतजार में, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मुखालफत ...
वर्दी का मतलब अनुशासन। हुक्म मानना। कोई सवाल नहीं करना। मगर जब हुक्म के पालन में 3 वर्दीधारी लाइन में जमा हो जाये। तो मुखालफत होने लगती है। यह हम नहीं कह रहे हैं। बल्कि वर्दी में सुगबुगाहट है। दबी जुबान से बोला जा रहा है। जुलूस निकालने की अनुमति ऊपर से मिली थी। इशारा कप्तान जी की तरफ है। फिर भूल-चूक हुई तो कप्तान ने अपने ही फौज के प्यादे मार दिये। यह गलत तरीका है। इसीलिए उनकी कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
ट्रोल ...
दीवार कांड याद होगा। जिसमें मौते हुई थी। नतीजा एक 3 स्टारधारी पर गाज गिरी थी। उनको लाइन भेज दिया। जबकि उनकी कोई गलती नहीं थी। जिसके बाद से वह अभी तक लाइन हाजिर है। कप्तान से गुहार लगा चुके है। मेरी क्या गलती थी। मुझे सजा क्यों? मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। जिसको लेकर वर्दी में चर्चा है। दीवार कांड के बाद अपने कप्तान जी जमकर ट्रोल हुए थे। नतीजा वह नाराज है। इसीलिए 3 स्टारधारी अभी तक लाइन में पड़े हुए है। ऐसा वर्दी वाले बोल रहे है। सच और झूठ का फैसला, खुद हमारे पाठक कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
निकल भागा ...
अपने वजनदार जी के करीबी की कार तोड़ी गई थी। वर्दी से तत्काल एक्शन लिया। फूटेज देखे। आरोपी को पकड लिया। तोड-फोड करते वक्त आरोपी ने जो कपड़े पहन रखे थे। वह भी जप्त कर लिये। स्टेशन लेकर आ गये। फिर वर्दी अपने काम में लग गई। नतीजा मौका देखकर, पकड़ाया आरोपी अपने जप्त कपड़ो के साथ चुपचाप निकल भागा। ऐसा वर्दी वालो का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
बुद्धि बनाम दर्शन ...
गुरूवार को एक बैठक संपन्न हुई। कृषि-उद्यानिकी-पशु-दुग्ध-सहकारिता आदि की। बैठक लेने राजधानी से टॉप अधिकारी आये थे। बैठक में संभाग के सभी जिलो के मुखिया भी मौजूद थे। तीसरे माले के मुखिया भी हाजिर थे। बैठक लंबी चली। उस दिन दूसरे माले पर लघु मेले का माहौल था। इस बैठक में 2 टिप्पणी राजधानी से आये टॉप अधिकारी ने की। पहली ....प्रभु ऐसी बुद्धि सबको दे। दूसरे ... आपके दर्शन करके धन्य हुआ। उन्होंने बगैर किसी का नाम लिए यह व्यंग्य किया था। जिसको तीसरे माले से जोड़ा जा रहा है। ऐसी चर्चा बैठक के बाद आईएएस वर्ग में सुनाई दे रही है। बात सच है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
निर्देश या नसीहत ...
राष्ट्रगान भूलने का किस्सा याद होगा। हमारे पाठकों को। जिसमें अपने विकासपुरूष ने याद दिलाकर,प्रशासन की इज्जत बचाई थी। उसी दिन की घटना है। घटना स्थल हेलीपेड है। मुख्य अतिथि का उडनखटोला, उडने के बाद का। विकासपुरूष ने अल्फा जी- कप्तान जी और तीसरे व दूसरे माले के मुखिया को अलग बुलाया। चारों के साथ बात की। इस दौरान विकासपुरूष के चेहरे पर नाराजगी के भाव थे। ऐसा यह नजारा देखने वालो का कहना है। विकासपुरूष ने इस दौरान निर्देश दिये या नसीहत ? इसको लेकर सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
कबूल है ..
वर्दीधारी इन दिनों बोल रहे है। कबूल है-कबूल है। इशारा एक आरोपी की तरफ है। जिसको सादी वर्दी वाली शाखा ने उठाया था। अब उठाया तो खातिरदारी तो होनी ही थी। जो जमकर हुई। पूछताछ भी हुई। मगर नतीजा जीरो निकला। तो वर्दी के हवाले किया। सबसे पहले कृष्ण मंदिर इलाके वाली मैडम को सौंपा। जिन्होंने साफ इंकार कर दिया। मेरे यहां कबूल नहीं। दबाव पड़ा तो खुद ही लाइन हाजिर हो गई। इसके बाद सेंट्रल इलाके की वर्दी ने भी कबूल नहीं किया। कारण ...कबूल करना, मतलब भविष्य में आ बैल मुझे मारना साबित होगा। इसलिए सभी ने इंकार कर दिया। आखिरकार ... मां चामुंडा की नगरी जाने वाले रास्ते की वर्दी ने कबूल किया। मगर वहां भी मातहतों ने हाथ ऊंचे कर दिये। खुद 3 स्टारधारी को प्रथम सूचना के लिए कम्प्यूटर पर बैठना पड़ा। ऐसा वर्दी बोल रही है, हम नहीं। अब यह सच है या झूठ। हमको पता नहीं है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
बिछड़े ....
अपने प्रभारी बाऊजी निष्कपट हैं। राजनीति में होते हुए भी, छल-कपट से दूर। जो दिल में है-वही जुबान पर। तभी तो मंच से बोल दिया। उनको विकासपुरूष ने जिले का प्रभारी बनाया। यहां आकर उनको अपना बिछड़ा हुआ भाई मिल गया। मेले में बिछडा हुआ। उन्होंने अपने बिछड़े भाई का नाम भी लिया। जो उस वक्त मंच पर मौजूद थे। अपने दूसरे माले के मुखिया। उनके बिछड़े हुए भाई है। लेकिन कप्तान जी नहीं थे। वरना मेले में उनको एक और बिछड़ा हुआ भाई मिल जाता। ऐसा अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। हालांकि कमलप्रेमी यह भी बोल रहे है। मौका मिलने पर, बाऊजी अपने भाईयों की बुराई भी करते है। मगर चलता है। भाई तो मानते है। इसलिए दोनों भाई भी चुप रहते है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
जलवा ...
अपने गब्बर जी जलवा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। बाबा के दरबार में जब से उनकी वापसी हुई है। बदले-बदले सरकार की तर्ज पर ... उनकी तूती बोल रही है। कोई उनके सामने अब कुछ भी नहीं है। उनका फरमान ही अंतिम होता है। अब उन्होंने धीरे-धीरे बाहर पैर निकालने शुरू कर दिये है। तभी तो हरिहर मिलन की रात उन्होंने कृष्ण मंदिर में जलवा दिखाया। गर्भगृह की दहलीज़ पर बैठकर। जबकि सभी ट्रस्टी बाहर थे। ताज्जुब की बात यह है। जैसे बाबा के गर्भगृह में शोला पहनकर जाने का नियम है। वैसे ही हरि-पूजा के नियम है। गर्भगृह में सभी पुजारी धोती और शोला पहने थे। लेकिन गब्बर जी का जलवा है। वह पेंट-शर्ट में अंदर बैठे थे। अपना जलवा दिखा रहे थे। ऐसी चर्चा कृष्ण मंदिर के पुजारियों में है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
दु:खी ...
जिले के दो अपर कलेक्टर दु:खी है। एक अपने कटप्पा जी तो दूसरे स्मार्ट पंडित। दोनों के दु:ख अलग-अलग है। अपने कटप्पा जी चोटिल हो गये है। डॉक्टरी सलाह है। 7 दिन का विश्राम। पूरी तरह वाला। मगर यह संभव नहीं है। विकासपुरूष का गृहनगर है। यहां 24 घंटे 7 दिन काम होता है। ऐसे में आराम? असंभव? संकुल के गलियारों में ऐसी चर्चा है। वहीं दूसरी तरफ अपने स्मार्ट पंडित। अभी-अभी विदेश यात्रा से लौटे है। 3 दिन की कार्यशाला थी। 4 दिन पड़ोसी देश घूम आये। उसके बाद आये। तब भी उनके चेहरे पर खुशी नजर नहीं आ रही है। परेशान नजर आ रहे है। किसी पीडा से गुजर रहे है। ऐसा अपने शिवाजी भवन वाले बोल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
नोटिस ...
शासकीय सर्विस के दौरान नोटिस मिलना आम बात है। हर अधिकारी/कर्मचारी को कभी ना कभी नोटिस मिलता है। लेकिन कोई वाजिब कारण के चलते। मगर क्या, केवल हंसने के कारण किसी को नोटिस मिला है? ऐसा आज तक तो नहीं हुआ है। मगर अभी-अभी ऐसा हुआ है। ई-गर्वनेस के सहायक प्रबंधक को नोटिस मिला। जो कि जनसुनवाई में हंसते हुए देखे गये थे। नतीजा ... अपर कलेक्टर ने कारण बताओं नोटिस थमा दिया। अगले महीने 4 दिसंबर के समक्ष होकर जवाब देना है। किन्तु यह मामला हमारे जिले का नहीं है। बल्कि छतरपुर जिले का है। जिसकी चर्चा सभी जिलों में हो रही है। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।
सच क्या है ....
हरिहर मिलन की एक घटना चर्चा में है। मगर दबी जुबान से। घटनास्थल चौबीस खम्बा से पटनी बाजार के बीच का है। सवारी के आगे-आगे वर्दीधारी अधिकारी चल रहे थे। व्यवस्था बनाते हुए। भीड को हटाते हुए। इस दौरान उन्होंने बेरिकेड्स के पीछे खडे 2 युवकों को पीछे हटाया। हटाने के लिए ताकत दिखानी पड़ी। तो हाथापाई हो गई। लंबे बालधारी लड़के ने पलटकर प्रहार कर दिया। बस फिर क्या था। दोनों को पकड़कर तत्काल ईनाम दिया गया। अच्छे तरीके वाला। उसके बाद दोनों को एम्बुलेंस के पीछे चल रही टवेरा वाहन में बैठा लिया गया। घटना के बाद हाथापाई से पीडित अधिकारी दु:खी है। ऐसा घटना देखने वालो का कहना है। अब इस घटना का सच क्या है? इसको लेकर कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
बधाई ...
अपने उत्तम जी याद हैं । जो पिछले साल जिले के मुखिया थे। विकासपुरूष के गद्दी संभालते ही उनकी रवानगी हो गई थी। लगभग 10 महीने तक वनवास काटा। जिसके बाद अपने विकासपुरूष ने आखिरकार उनकी सुध ली। अब वह चुनाव ड्यूटी के बाद कृषि के क्षेत्र में अपना जलवा दिखायेंगे। जिसको लेकर उनके साथ जिले में काम करने वाले सभी अधिकारी खुश है और बधाई दे रहे हैं। तो हम भी अपनी तरफ से बधाई देकर, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
आपत्ति ...
एक तरफ कमलप्रेमी संगठन सक्रिय सदस्य बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। जिसको लेकर 2 दिन से कमलप्रेमी मुख्यालय पर भीड लग रही है। महिदपुर-घट्टिया व नागदा से भी कई लोग सक्रिय सदस्य का फार्म भरकर गये थे। लेकिन रविवार को इसमें आपत्ति लग गई। अंदरखाने की खबर है। अपने बडबोले नेताजी, पिस्तौल कांड नायक व डॉ. साहब रविवार को मुख्यालय आये थे। आने की वजह अपने विरोधियों को सक्रिय सदस्य बनने से रोकना था। जिसमें उनको सफलता भी मिली है। ऐसा हम नहीं, बल्कि कमलप्रेमी बोल रहे है। जो कि सच बोल रहे है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मेरी पसंद ...
आईना कहता है कहना तो नहीं चाहिये था/ तू अभी तक जिंदा है रहना तो नहीं चाहिये था।