22 अप्रैल 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

उपहार...
कभी-कभी वर्दी भी उपहार देती है। खुश होकर नहीं, बल्कि मजबूरी में। फिर मामला खबरची से जुड़ा हो। वो भी बड़ा खबरची। जिसका मोबाइल चोरी हो गया है। रिपोर्ट दर्ज हुई। मगर तमाम कोशिश के बाद भी मोबाइल नहीं मिला। ऐसे में यही रास्ता शेष बचता है। बल्लम खबरची से अगर दोस्ती रखना है। सुर्खियों में रहना है। तो उपहार में अच्छी कीमत वाला मोबाइल गिफ्ट कर दो। वर्दी ने यही रास्ता अपनाया। इससे दोनों खुश है। ऐसा हम नहीं, बल्कि वर्दीवाले दबी जुबान से बोल रहे है। मगर खबरची कौन है। नाम पूछने पर चुप हो जाते है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
नाराजगी ...
संकुल के गलियारों में नाराजगी के स्वर सुनाई दे रहे है। इशारा दूसरे माले पर बैठने वाले की तरफ है। जो आजकल चिडचिडेपन के शिकार हो गये है। जब भी मौका मिलता है। बैठकों में अपना आक्रोश निकाल देते है। बेचारे ... मातहत चुपचाप सुनते है। फिर बाहर निकलकर अपनी-अपनी स्टाइल में नाराजगी प्रकट करते है। हालात अब बदतर हो रहे है। दबी जुबान में मातहत बोल रहे है। किसी दिन पलटकर किसी ने जवाब दे दिया । तो क्या होगा। मातहतों की बात में दम है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
मजबूरी ...
एक तरफ जहां राजस्व मातहत फटकार के चलते नाराजगी जाहिर कर रहे है। वही दूसरी तरफ मातहतों की आदते मुखिया को मजबूर कर देती है। फटकार लगाने के लिए। ताजा मामला सिहंस्थ की बैठक का है। तीसरे व दूसरे माले के मुखिया संयुक्त बैठक ले रहे थे। ऐसे में ऊर्जा विभाग के अधिकारी ने वह काम कर दिया। जिसका अधिकार दूसरे माले के मुखिया को है। ऊर्जा अधिकारी ने सिहंस्थ क्षेत्र घोषित कर दिखाया। यह देखकर दूसरे माले के मुखिया ने बोल दिया। यह काम मेरा है या तुम्हारा... और फिर फटकार लगा दी। ऐसा घटना देखने वालो का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
पिकनिक ...
मिशन-2024 चल रहा है। हर अधिकारी के पास काम है। मगर 4 अधिकारी पिकनिक मना रहे है। जिनमें 3 डिप्टी कलेक्टर और 1 तहसीलदार है। इनकी भी मजबूरी है। इनके पास ना तो कोई काम है और ना ही बैठने के लिए कक्ष। इसलिए चारों आराम से मुफ्त में मिली पिकनिक का आनंद उठा रहे है। देखना यह है कि दूसरे माले के मुखिया इन चारों को कोई काम थमाते है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
डबल रेट...
संकुल के गलियारों में चर्चा है। एक विभाग की। जहां पर काम करवाने के अब डबल रेट हो गये है। प्राकृतिक संपदा वाले इस विभाग की मुखिया एक मैडम है। जिसका कार्यालय उदयन मार्ग पर है। मैडम की पदस्थापना मिशन-2023 के पहले अपने बडबोले नेताजी ने करवाई थी। जिसके बाद नई सरकार का गठन हो गया। विकासपुरूष मुखिया बन गये। नतीजा मैडम के तेवर बदल गये। अब उन्होंने हर काम के दुगने रेट कर दिये है। उनके इस कदम से मातहत परेशान है। मगर कर कुछ नहीं सकते है। इसलिए चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
नामांतरण ...
एक नामांतरण होने की पूरी तैयारी हो गई थी। दूसरे माले के मुखिया ने भी हरी झंडी दे दी। क्योंकि मामला न्यायालय आदेश से जुड़ा था। मगर नामांतरण होता। उसके पहले ही सच का खुलासा हो गया। अपने कूल जी ने दस्तावेज दिखा दिये। साबित कर दिया। सरकारी जमीन पर कालोनी काटी गई है। यह कालोनी शहर की सबसे ऊंची बिल्डिंग (12 मंजिला) के समीप वाली है। जिसके बाद नामांतरण प्रक्रिया खारिज कर दी गई। अब अल्पसंख्यक बिल्डर परेशान है। इधर जल्दी ही इस मामले में शासन के पक्ष में फैसला आने वाला है। जिसके बाद बने हुए मकानों पर बुलडोजर चलना तय है। बस वक्त का इंतजार है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
पढ़े-लिखे ...
किसी अनपढ़ को समझाना ज्यादा आसान होता है। पढ़ा-लिखा इंसान खुद को अतिज्ञानी समझता है। तभी तो वह मुर्खो जैसी बात करता है। ऐसी चर्चा शिक्षा विभाग के गलियारों में सुनाई दे रही है। इशारा ... उन पढ़े-लिखों की तरफ है। जिन पर अभी-अभी 2-2 पेटी का जुर्माना हुआ है। जिसके बाद यह पढ़े-लिखे अचानक अनपढ़ों जैसा व्यवहार करने लगे है। धमकी दे रहे है। न्यायालय जाने की। जबकि नियम यह कहता है। पहले राज्य स्तरीय समिति में अपील करना होगी। वह भी 15 दिन के अंदर। अगर वहां से न्याय नहीं मिलता है। तब कानून का सहारा लिया जा सकता है। मगर पढ़े-लिखे अनपढ़ यह बात समझने को तैयार नहीं है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
ग्रह...
इंसान के जीवन में ग्रहों का बड़ा महत्व है। कब कौन-सा ग्रह- किस राशि में आकर बैठ जाये। यह कोई नहीं जानता है। मगर इन दिनों अपने इंदौरीलाल जी की कुंडली में एक साथ 3 ग्रह आकर बैठ गये है। राहु-केतु और शनि। तभी तो बेचारे एक के बाद एक परेशानी झेल रहे है। पहले तबादला हुआ। फिर जैसे-तैसे वापसी हुई। इसी दौरान आग लग गई। इसके बाद भी जैसे कुछ कमी बाकी थी। तो 28 खोखे के भ्रष्टाचार का मामला उजागर हो गया। जिसमें अपने इंदौरीलाल जी का नाम भी आया है। यह मामला उस शहर का है। जिसने स्वच्छता में सातवां आसमान छुआ है।तभी तो मंदिर के गलियारों में यह चर्चा है। उनकी कुंडली में राहु-केतु-शनि ने डेरा डाल दिया है। देखना यह है कि अपने इंदौरीलाल जी इन ग्रहों को शांत कराने के लिए कौनसी पूजा करवाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
वसूली ...
संकुल के गलियारों में दबी जुबान से चर्चा है। वसूली होने की। करने वाले कई शाखाओं के प्रभारी है। इनको लाला जी के नाम से पीठ पीछे बुलाते है। दूसरे माले के मुखिया को इन्होंने जाने क्या पट्टी पढाई। इसलिए कमाऊ-शाखाओं का प्रभारी बना दिया। जिसके बाद इनकी वसूली की खबरे संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। कई लोग परेशान है। मगर कुछ कर नहीं सकते है। इसलिए चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दबदबा ...
अच्छा और सफल अधिकारी वही होता है। जिसके आदेश का पालन निर्धारित समयावधि में हो। तभी उसका दबदबा बरकरार माना जाता है। अपने स्मार्ट पंडित ने एक आदेश निकाला था। फरवरी माह के अंतिम दिन। जिसमें सांची पार्लर की जांच के निर्देश थे। 15 दिनों में जांच पूरी होनी थी। इस जांच के लपेटे में अपने प्रथमसेवक भी आ रहे थे। नतीजा जांच दल ने आज तक जांच ही शुरू नहीं की। तभी तो शिवाजी भवन के गलियारों में चर्चा है। स्मार्ट पंडित का दबदबा कम हो गया है। देखना यह है कि अब स्मार्ट पंडित क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
सीधी बात ...
अब तो लाल भी आ गया है। चुनाव बाद काला भी आ जायेगा। यह सभी आप लोगों के बीच घुसने की कोशिश करेंगे। मगर हमको इन सभी से दूरी बनाकर रखनी है। यह नये-नये कमलप्रेमी है। मतलब अभी जूनियर है। जबकि हम सभी सीनियर है। इन नये लोगों से दरी बिछवानी है। ऐसे अल्फाज इन दिनों कमलप्रेमी बोल रहे है। इशारा अभी-अभी कमलप्रेमी बने अपने उधारीलाल जी व उनके साथियों की तरफ है। यह सब बोलने वाले एक माननीय है। उनकी सीधी बात में दम है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
सवाल ...
अपने प्रथमसेवक ने सवाल पूछा है। अपने स्मार्ट पंडित से। वह भी पत्र लिखकर। आचार संहिता विषय पर। जिसके बाद प्रथमसेवक की अज्ञानता पर सवाल खड़े हो रहे है। सवाल खड़े करने वाले उनके ही करीबी है। जो यह पूछ रहे है। जनहित के कामों को लेकर पत्र लिखने वाले प्रथमसेवक, अपने निजहित के काम के लिए पत्र नहीं लिखते है। बल्कि सीधे आदेश देते है। जैसे कि वाहन के लिए दिया। आचार संहिता में उनका वाहन जमा हो चुका है। नतीजा उसी एजेंसी से दूसरा वाहन तत्काल बुलवा लिया। इसके लिए उन्होंन कोई पत्र नहीं लिखा। ना किसी से पूछा। आचार संहिता में वाहन मिलता है या नहीं। प्रथमसेवक के करीबियों के सवाल में दम है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।