26 फरवरी 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
असमंजस ...
नौकरशाही असमंजस में है। आखिर क्या करें? जाना उचित होगा या नहीं? इशारा एक विवाह समारोह की तरफ है। जो कि राजधानी में होने जा रहा है। अपने नम्बर-1 के घर खुशी का मौका है। लेकिन महाकाल और देवी अहिल्यानगरी के नौकरशाह असमंजस में है। इन सभी को निमंत्रण मिला है। आशीर्वाद देने पधारे। मगर मुसीबत है। अगर जाते है तो निशाने पर होंगे। क्योंकि यह वही नम्बर-1 है। जिनकी मामाजी की सरकार में तूती बोलती थी। इनके केवल एक फोन पर अधिकारी बदल जाते थे। मगर अब यह लूप लाइन में है। सरकार के निशाने पर हैं। इसीलिए नौकरशाही असमंजस में है। जाएं या नहीं? अब देखना यह है कि कौन-कौन पुराने संबंध निभाता है। खुफियां जासूस निगाह जरूर रखेंगे। ऐसा हमारा नहीं, बल्कि जिन-जिन को निमंत्रण मिला है, उनका कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
गुहार ...
अपने विकासपुरूष का हमेशा से इस पर जोर रहा है। आमजनता के स्वास्थ्य से खिलवाड ना हो। खाद्य सामग्री में मिलावट बर्दाश्त नहीं होगी। इसके बाद भी पकड़ाया गया नकली मावा नष्ट नहीं हो पा रहा है। यह मावा अपने उत्तम जी के कार्यकाल में पकड़ा गया था। हजारों क्विंटल। जिसकी जांच मैसूर प्रयोगशाला में करवाई गई। साबित हो गया। मावा नकली है। विनिष्टकरण के आदेश भी हो गये। इसके बाद भी इसे नष्ट नहीं किया जा रहा है। जिसको लेकर संकुल के गलियारों में चर्चा है। आखिर किसके दबाव में मावा नष्ट नहीं किया जा रहा है। तभी तो अपने विकासपुरूष से गुहार लगाई जा रही है। उम्मीद है कि विकासपुरूष इस मामले में संज्ञान लेंगे। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
वक्त ...
तुलसीदास ने लिखा था। तुलसी नर क्या बड़ा/ समय बड़ा बलवान/ भीलां लूटी गोपियां/ वही अर्जुन वही बाण...। यह दोहा इन दिनों सोमरस विभाग में सुनाई दे रहा है। इशारा 34/2 और फरार सोमरस सेठ की तरफ है। जिन्होंने 2017 से 2019 तक इस धारा का खूब उपयोग किया। पॉवर में थे। उनके गुर्गे दुकानों के आसपास खड़े रहते थे। जिसने विरोधी दुकान से एक-दो पेटी माल खरीदा। उसको आगे जाकर पकड़ लेते। फिर सीधे 34/2 में प्रकरण दर्ज करवा देते थे। सोमरस विभाग के कारिंदे हरे-हरे रंग के गुलाम थे। तत्काल पी-8 काट देते थे। ताज्जुब की बात यह है। हर दफा गवाह वही होते थे। उनका पता नईसड़क की कुटी होता था। खोजबीन अगर की जाये। तो ऐसे कई मामले उजागर होंगे। पी-14 से भी इसकी पुष्टि की जा सकती है। जिसे अभियोजन पंजी बोलते है। तभी तो सोमरस वाले वक्त बलवान की चर्चा कर रहे है। बात सही भी है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मुलाकात ...
अपने विकासपुरूष पिछले सप्ताह बाबा की नगरी में थे। उनसे मिलना अब आसान नहीं है। लेकिन वह जिससे मिलना चाहें, चुपचाप मुलाकात कर सकते है। ऐसा हम नहीं, बल्कि वर्दीवाले बोल रहे है। इशारा ...शिवाजी पार्क में रहने वाले ज्योतिषाचार्य की तरफ है। जिनसे मिलने के लिए अपने विकासपुरूष ने गोपनीयता रखी। केवल 5 गाडियों का काफिला पहुंचा। करीब 25 मिनिट तक ज्योतिषाचार्य से मुलाकात की। फिर काफिला सरकारी विश्राम गृह पर आकर रूक गया। इस मुलाकात को लेकर वर्दीवालो में दबी जुबान से चर्चा है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
चैलेंज ...
बदबूवाले शहर के ताऊजी याद है। हमारे पाठक उनको भूले तो नहीं होंगे। आजकल दक्षिण राज्य के प्रथम नागरिक है। अपने उन्ही ताऊजी को चैलेंज दिया है। देने वाले उनके ही परमप्रिय शिष्य है। जिन्हें दरबार नाम से कमलप्रेमी बुलाते है। दरबार 2023 में टिकिट कटने से अभी तक नाराज है। इसलिए उन्होंने परिषद में बगावत करवा दी। जबकि अपने ताऊजी की रिश्तेदार परिषद की मुखिया है। नतीजा अपने लेटरबाज जी को बदबूवाले शहर जाकर बगावत को रोकना पड़ा। ऐसा हम नहीं, बल्कि बदबू वाले शहर के कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
नियम ...
वैसे कहने के लिए नियम सबके लिए समान होते है। मगर यह केवल पढऩे और सुनने के लिए है। जिसके पास पॉवर होता है। वह नियम से हटकर काम करना अपनी शान समझता है। ऐसा शिवाजी भवन वालो का कहना है। तभी तो अपने प्रथमसेवक ने अपनी शान दिखा दी। इशारा सांची पार्लर की तरफ है। जो कि चारधाम के सामने स्थापित करवा दिया। नियम से हटकर। ताकि ज्यादा से ज्यादा अर्थ कमाया जा सके। जबकि नियमानुसार यह पार्लर जयसिंहपुरा में स्थापित होना था। किन्तु पॉवर दिखाकर नियम को ताक में रख दिया गया। ऐसा उनके करीबी केबिनेट सदस्यों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
मेहरबान ...
संकुल के गलियारों में चर्चा है। एक अधिकारी के मेहरबान होने की। अधिकारी जिस पर मेहरबान हुए है। वह एक आउटसोर्स एजेंसी है। जिसके मुखिया ने जाने क्या जादू किया। जिसके चलते कंपनी को दिया जाने वाला प्रतिमाह सेवा शुल्क 0.5 प्रतिशत से बढ़ाकर सीधे 10 प्रतिशत कर दिया गया। आदेश भी निकाल दिया। 7 दिन के अंदर अनुबंध संपादित करे। जबकि अगर सेवा शुल्क बढ़ाना था तो 1 या 2 प्रतिशत बढ़ाते। नियमानुसार तो नई निविदा निकालनी थी। मगर ऐसा नहीं हुआ। इस मेहरबानी के पीछे मकसद ... निजहित बताया जा रहा है। अब देखना यह है कि दूसरे माले पर बैठने वाले मुखिया जी इस मामले में क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
आक्रोश ...
सिहंस्थ 2028 को लेकर एक बैठक हुई थी। पिछले सप्ताह। संकुल के दूसरे माले पर। जिसमें संत-महात्मा आदि हाजिर थे। अपने इंदौरीलाल जी भी थे। मंदिर के महंतश्री भी मौजूद थे। इस बैठक में उस वक्त आक्रोश उजागर हो गया। जब सभी संतों ने एक सुर में अपने इंदौरीलाल जी पर आक्रोश जाहिर किया। सभी का कहना था। यह फोन नहीं उठाते हैं। हमको परेशानी होती है। यह आक्रोश देखकर जिले के मुखिया आश्चर्य में पड गये। हालांकि मंदिर के महंतश्री ने अपने इंदौरीलाल जी बचाव किया। जिसके बाद मुखिया ने तत्काल बैठक समाप्त कर दी। ऐसी चर्चा संकुल के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
आशीर्वाद ...
अपने प्रथमसेवक ने अभी-अभी आशीर्वाद मांगा। किनसे ? अपने विकासपुरूष से। सरकारी विश्रामगृह में पहुंचकर। खुद आगे रहकर बताया। आज उनका प्रकट उत्सव है। पहले आपसे आशीर्वाद मिल जाये। फिर बाबा का आशीर्वाद लेने जाऊंगा। प्रथमसेवक की यह बात सुनकर अपने विकासपुरूष मुस्कुरा दिये और फिर चुप हो गये। ऐसा वहां मौजूद यह नजारा देखने वालो का कहना है। अब देखना यह है कि अपने विकासपुरूष का आशीर्वाद, अपने प्रथमसेवक को कितना फलीभूत होता है? कारण ... प्रथमसेवक आज भी 2 नाव पर सवार है। फैसला वक्त करेंगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
अवकाश ...
वैसे तो शासकीय कैलेंडर में रविवार अवकाश होता है। लेकिन अफसरों के नसीब में अब अवकाश, चांद से तारे तोड़कर लाने जैसा है। ऐसा संकुल में बैठने वाले सहित सभी विभागों के अफसरों का मानना है। अवकाश के दिन अकसर बैठक रखी जाती है। इस रविवार भी सुबह से संदेश था। व्यापार मेले को लेकर बैठक होगी। शाम 5 बजे। संकुल के दूसरे माले पर। सभी तैयार थे। फिर मैसेज आया। साढ़े 5 बजे बैठक होगी। फिर निर्देश मिले। दशहरा मैदान पर ही बैठक होगी। सभी अफसर तत्काल पहुंच गये। अचानक फिर मैसेज आया। अपरिहार्य कारणों से बैठक रद्द की जाती है। बेचारे अफसर क्या करते और क्या बोलते। इसलिए मन ही मन कोसते हुए चुपचाप लौट गये। उनकी पीडा को हम समझ सकते है। मगर कर कुछ नहीं सकते। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
हतप्रभ ....
अपने पंजाप्रेमी हतप्रभ है। अपने बुआजी के उठाये गये कदम से। जिन्होंने आज सभी को चौका दिया। सभी पदो को छोड़कर। अचानक उठाये उनके इस कदम से पंजाप्रेमी कई कयास लगा रहे है। कुछ पंजाप्रेमी दबी जुबान से बोल रहे है। आखिर ऐसा क्या हो गया? क्या कोई नब्ज पकड ली गई, या फिर संकेत है। अपनी बुआजी निकट भविष्य में कमलप्रेमी हो सकती है? ऐसा हम नहीं, बल्कि अपने पंजाप्रेमी बोल रहे है। फैसला वक्त करेगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
बधाई ...
ऊपर लगी तस्वीर देखिए। जो वर्दी की सबसे बेहतर पोस्ट है। वर्दी ही नहीं, हमदर्दी भी ... से भी लाख गुना अच्छी पोस्ट। जिसके लिए वर्दी को अनगिनत सेल्यूट ... बधाई देकर ... हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
चलते-चलते ...
अपने स्मार्ट पंडित इन दिनों महाकवि तुलसीदास के पदचिन्हों पर चल रहे है। जिन्होंने यह लिखा था। विनय ना मानत जलाधि/ गये तीन दिन बीति/ बोले राम सकोप तब /भय बिनु होय ना प्रीति...। तभी तो लगातार अवैध निर्माण पर बुलडोजर चला रहे है। ऐसा शिवाजी भवन वालो का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।