04 नवंबर 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
चिराग तले ...
हमारे पाठक इस कहावत से वाकिफ हैं। चिराग तले अंधेरा होता है। इसको इन दिनों वर्दी याद कर रही है। इशारा एक सामाजिक बुराई की तरफ है। जो कि सदियों पुरानी है। महाभारत काल में भी धर्मराज और दुर्योधन ने इस बुराई के खेल को खेला था। जिसके कारण महाभारत युद्ध हुआ। यह सामाजिक बुराई इन दिनों उस जगह पनप रही है। जहां पर उडनखटोला उतरता है। यहां पर एक बैरेक की छत पर हर रात मजमा लगता है। पेटियों में दाव लगता है। कुछ दिनों पहले दबिश भी पड़ी थी। 4 लोगों को पकड़ा भी था। जिनको नोटिस दिये गये। इसकी भनक 2 खबरचियों को लगी थी। मगर उनको वर्दी की बदनामी का डर बताकर सेटिंग कर ली गई। खबरचियों की भी दिवाली मन गई। सुगबुगाहट तो यह भी है। अपने कप्तान तक भी खबर पहुंची थी। ऐसा हम नहीं, बल्कि वर्दी वाले बोल रहे है। मगर इस सच को दबा दिया गया। तभी तो चिराग तले की कहावत बोली जा रही है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
धमाका ...
अपने दूसरे माले के मुखिया ने जो धमाका किया। दिवाली के पहले। वह भी रात 11 बजे। यह धमाका कागज के बम का था। जिसे पढ़कर कई राजस्व अधिकारियों की नींद ही गायब हो गई थी। प्रशासनिक फेरबदल का यह बम इस कदर धमाकेदार निकला कि जो इंतजार में थे। गद्दी उनको मिलेगी। वह पूरी रात इस कागजी बम के धमाके की गूंज से परेशान रहे। अगले दिन सवाल उठा? आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी। दूसरे माले के मुखिया की। जो रात 11 बजे फेरबदल का बम फोड़ा। किसके इशारे पर यह सब हुआ। यह सब सवाल संकुल के गलियारों में सुनाई दे रहे है। सवालों में दम है। मगर जवाब किसी के पास नहीं है। इसलिए सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
चोट ...
अपने बाऊजी के साथ चोट हो गई। कमलप्रेमी संगठन की तरफ से। बेचारे .... प्रभारी बाऊजी को तवज्जों वैसे ही कम मिलती है। ऐसे में उनका नाम भी गायब होने लगा है। मिलन समारोह कार्यक्रम के आमंत्रण से। ऐसा अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। कमलप्रेमियों की बात सच है। क्योंकि आमंत्रण पत्र में अपने वजनदार जी, जोगी जी, हाईनेस, प्रथमसेवक और बहन जी का तो नाम था। किन्तु प्रभारी बाऊजी का नाम गायब था। यह किसके इशारे पर हुआ। इसको लेकर कमलप्रेमी चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
संवेदनशील ...
अपने विकासपुरूष संवेदनशील है। तभी उनको जैसे ही पता चला। तिलकेश्वर कार्यक्रम कोई व्यक्ति चोटिल हो गया है। जिसकी किसी ने भी सुध नहीं ली। किन्तु अपने विकासपुरूष को पता चल गया। उन्होंने तत्काल मंच पर ही दूसरे माले के मुखिया को बुला लिया। फिर उनके कान में निर्देश दिये। घायल का इलाज सर्वोत्तम होना चाहिये। कोई कोताही नहीं हो। विकासपुरूष के निर्देश के बाद तत्काल घायल व्यक्ति को बेहतर इलाज उपलब्ध कराया गया। ऐसा अपने कमलप्रेमी बोल रहे है और विकासपुरूष की संवेदनशीलता को लेकर कसीदे पड रहे है। तो हम भी उनकी संवेदना को सेल्यूट करके, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दिवाली ....
संकुल के गलियारों में चर्चा है। दिवाली किसकी अच्छी मनी? मतलब, लक्ष्मी माता किस पर मेहरबान हुई। तो ऊंगलियां अपने कटप्पा जी की तरफ उठ रही हैं। जिनके बंगले पर पैकेटस की भरपूर आवक हुई। मतलब ड्रायफ्रूट और मिठाई की। इसके पहले अपने कटप्पा जी ने प्राकृतिक संपदा के 3 स्थानों का निरीक्षण किया था। दिवाली के करीब 5-6 दिन पहले। तराना व उन्हेल जाकर। अब अपने कटप्पा जी निरीक्षण करने जाये और दिवाली नहीं मने? ऐसा संभव नहीं है। यह हम नहीं कह रहे है। बल्कि संकुल के गलियारों में ऐसी चर्चा है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
मुझे खेलने दो ...
अपने विकासपुरूष के हर शब्द के अनेक अर्थ निकलते है। जिसको समझना हर किसी के बस की बात नहीं होती। जैसे लोकार्पण कार्यक्रम में उन्होंने कहा। वह भी हंसते-हंसते। उस वक्त जब, अपने बहन जी ने उनको एक पत्र सौंपा। शतरंज खेल के लिए भी एक हॉल बनवाने के लिए। जिसे पढ़कर विकासपुरूष ने खुलकर कहा। यह तो बहुत जरूरी खेल है। कमलप्रेमियों से पूछा। तुम लोग शतरंज खेलते हो। खेल भी रहे हो। मगर अब मुझे खेलने दो। विकासपुरूष की बात सुनकर कमलप्रेमी खूब हंसे। लेकिन अब कमलप्रेमी बोल रहे है। दबी जुबान से। विकासपुरूष, शतरंज के खेल से अब किसको मात देना चाहते है? किसका नंबर है? कौन निशाने पर है? फैसला वक्त करेगा। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
पेशी ...
सरकारी जमीन को अपनी समझकर कॉलोनी काटने वाले भू-माफिया के मामले में पेशी है। आगामी 8 तारीख को। देश की राजधानी में। यह वही मामला है। जिसमें अपने दूसरे माले के मुखिया पर मानहानि का नोटिस जारी हुआ था। 12 वीं मंजिल के पास की जमीन का मामला है। जो कि सरकारी है। कीमत खोखो में है। भू-माफिया विशेषवर्ग से ताल्लुक रखते है। इसी मामले में जवाब पेश होना है। जिसकी पूरी तैयारी हो चुकी है। देखना यह है कि जवाब पर माननीय न्यायालय क्या रूख अपनाता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
किसलिए हटाया ...
अपने कप्तान जी ने पिछले सप्ताह सख्त कदम उठाया। जिसके लिए बधाई। एक 3 स्टारधारी को अचानक हटा दिया। लाइन भेज दिया। जिसके बाद वर्दी में सुगबुगाहट शुरू हो गई। आखिर किसलिए हटाया। क्योंकि जिनको हटाया गया। वह बहुचर्चित हत्याकांड की जांच कर रहे थे। जिनकी हत्या हुई। वह खोखो के मालिक थे। अच्छा-खासा धंधा था। भले ही गंदा था। इसी धंधे की बरामदगी में झोलझाल होने की खबर फैली। चोरी के बाद। नतीजा उच्चस्तर पर शिकायत हुई। जिसके बाद यह कदम उठाया गया। ऐसा हम नहीं, बल्कि वर्दी वाले दबी जुबान से कह रहे है। अब बात सच है या झूठ? हमको पता नहीं है। इसलिए हम भी चल रही चर्चा को लिखकर,अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
लू - उतारी...
जिले के एक अधिकारी हैं। जिनके पास 2 संभाग की जिम्मेदारी है। नये-नये कारखाने लगवाने की। इसके अलावा परिवहन का अतिरिक्त प्रभार है। मतलब ... काफी भरोसेमंद है। जुबान के इतने मीठे हैं। मिश्री की मिठास भी फीकी पड जाती है। शांत रहते है। शो-ऑफ नहीं करते हैं। इनकी लू पिछले दिनों दूसरे माले के मुखिया ने उतार दी थी। उस दिन, जब 6 घंटे बैठक चली थी। तब निनौरा हेलीपेड से गायब रहने को लेकर, अपने मिश्री जी की लू उतारी गई थी। जिसके बाद अपने मिश्री जी नाराज है। दूसरे माले के मुखिया से। ऐसी संकुल के गलियारों में चर्चा है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
नहीं बदले ...
अपने विकासपुरूष की आदत है। जो परपंरा शुरू करते है। फिर उसको कायम रखते है। फिर भले ही वह सूबे के मुखिया बन गये हों। तभी तो दिवाली की रात वह फ्रीगंज में घूमते नजर आये। इसके पहले भी वह हर दिवाली की रात को अपने क्षेत्र के शुभचिंतकों से मिलते रहे है। इसको उन्होंने कायम रखा। पैदल घूमे। बगैर किसी ताम-झाम के। लेकिन जब विकासपुरूष पैदल घूम रहे थे। तब 3 शीर्षस्थ अधिकारी अपने वाहन में बैठकर, मोबाइल देखते हुए, ठहाका लगा रहे थे। जबकि उनको विकासपुरूष के साथ घूमना चाहिये था। ऐसा हम नहीं, बल्कि अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। कमलप्रेमियों की बात में दम है। विकासपुरूष पैदल घूमे और संभाग के 3 अधिकारी बैठकर ठहाका लगाये? बात तो गलत है। मगर हम कर कुछ नहीं सकते हैं। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
शुभकामनाएं ...
हम दिवाली की शुभकामनाएं नहीं दे रहे हैं। वह तो हम पिछले सप्ताह ही अग्रिम दे चुके है। हमारी शुभकामनाएं तो अपने स्मार्ट पंडित जी के लिए है। जो कि विश्व-एक्स-पो में भाग लेने गये है। ऐसी शिवाजी भवन के गलियारों में चर्चा है। लेकिन कहां गये हैं। किस देश गये। हमको पता नहीं है। ना कोई बोलने को तैयार नहीं है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मेरी पसंद ...
आवाज दी थी मुझको पुकारा नहीं गया/ खुद्दार था पलट के दोबारा नहीं गया।