09 सितम्बर 2024 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

09 सितम्बर 2024 (हम चुप रहेंगे)

आक्रोश ...

अपने अल्फा जी को हमने हमेशा शांतचित और प्रसन्न मुद्रा में देखा हैकभी उनका आक्रोश नहीं देखा था। मगर बाबा की आखिरी सवारी में वह भी नजर आ गया। पहली दफा उनको इतने आक्रोश में देखा। इस कदर कि तेजी से सीढिया चढ़कर उन्होंने एक सुरक्षाकर्मी को पकड़ा। उसकी कालर पकडकर रोका। फिर आक्रोश में एक वर्दीधारी को आवाज लगाई और सुरक्षाकर्मी को वर्दी के हवाले कर दिया। हवाले करते वक्त उन्होंने कुछ निर्देश भी दिये। मगर क्या, वह दूर होने के कारण सूत्र सुन नहीं पाया। लेकिन घटना आंखो देखी है। मीडिया में तो यही चर्चा है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

चर्चा ...

शाही सवारी में कमलप्रेमियों ने एक नजारा देखा। जिसके पात्र अपने पंजाप्रेमी चरणलाल और कमलप्रेमी लेटरबाज जी है। दोनों सवारी के दौरान साथ-साथ थे। यह देखकर कमलप्रेमी आश्चर्य में थे। अब साथ-साथ चले तो आपस में बात भी हुई होगी। लेकिन क्या चर्चा हुई। इसकी किसी को जानकारी नहीं है। किन्तु कमलप्रेमी कयास लगा रहे है। कहीं अपने चरणलाल जी भी, अपने उधारीलाल जी तरह भविष्य में पाला तो नहीं बदलने वाले है? हालांकि चरणलाल जी कट्टर पंजाप्रेमी है। लेकिन राजनीति में कभी भी- कुछ भी हो सकता है। जैसे अपने उधारीलाल जी ने पाला बदला, वैसे चरणलाल जी भी बदल सकते है? ऐसा हम नहीं बल्कि कमलप्रेमी बोल रहे है। अब किसी की जुबान तो हम पकड नहीं सकते है। तो अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

दु:खी ...

अपने विकासपुरूष के विजन (दूरदर्शिता) के हम सभी कायल है। तभी तो उन्होंने पहली दफा बाबा की हर सवारी में नयापन पेश किया। कभी बैंड दल- तो  कभी नृत्य दल। ताकि शहरवासी हर सवारी में आनंद उठा सके। किन्तु अंतिम सवारी में सब गुड-गोबर हो गया। एक तरफ जहां बाबा के दर्शन करने आये भक्तगण, सवारी के जल्दी मंदिर पहुंचने पर दु:खी हुए। वहीं आदिवासी नृत्य दल भी दु:खी होकर ही गया। इन कलाकारों को अपनी नृत्य कला का पूरे मार्ग में कहीं पर भी सही तरीके से प्रदर्शन करने का अवसर नहीं मिला। जहां मौका मिलता-वहीं धक्का देकर वर्दी आगे बढा देती थी। बेचारे भक्त और कलाकार दोनों ही दु:खी होकर अपने-अपने घर वापस लौटे। सवारी को सवा घंटे पहले पहुंचाकर, क्या तीर प्रशासन ने मार लिया? यह वही जाने लेकिन भक्तगणों और कलाकारों की बददुआ जरूर प्रशासन को मिली। जो रंग भी लायेगी। मगर कब ? बाबा महाकाल जाने। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

बाहुबलि....

इस नाम की एक फिल्म आई थी। जिसका नायक असंभव काम को भी अंजाम देता था। मगर यह केवल फिल्मों में संभव है। आम जिंदगी में किसी वाहन को धक्का देकर हटा देना असंभव होता है। वह भी केवल 2 लोग। जैसे अपने स्मार्ट पंडित और इंदौरीलाल जी। दोनों ने वाहन को धक्का देकर निकालने की नाकाम कोशिश की। शायद कुछ पल के लिए दोनों खुद को बाहुबलि समझ बैठे थे। घटनास्थल भूखीमाता क्षेत्र का है। लेकिन दोनों का बाहुबल काम नहीं आया। तो फिर आसपास मौजूद वर्दी व आमजन से गुहार लगाई। तब जाकर सभी ने सामुहिक प्रयास किया और वाहन को निकाला। ऐसा हमारा नहीं, बल्कि यह नजारा देखने वालों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

चूक  ...

अपने विकासपुरूष शोकग्रस्त है। उनके इस दु:ख में हम भी सहभागी है। पूरा शहर सहभागी है। लेकिन वह जिस पद पर है। उसमें उनकी सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता पर है। जिसके लिए शासन की तरफ से सुरक्षा घेरा रहता है। 6 फीट की दूरी का सुरक्षा घेरा। इसके लिए पीएसओ हमेशा साथ रहते है। इसमें चूक नजर आई। उस दिन जब वह शिप्रा नदी में उतरे थे। नियमानुसार उनके पीएसओ को घेरा बनाकर अंदर भी रहना था। मगर सभी दूर खड़े थे। इस चूक की चर्चा वर्दी वाले दबी जुबान से कर रहे है। बात सच है। सुरक्षा की दृष्टि और नियमानुसार नदी में भी सुरक्षा रहनी थी। लेकिन चूक हो गई। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

3 मिनिट ...

अपने विकासपुरूष दु:खी हैं। उनकी पीडा का अंदाजा कोई नहीं लगा सकता है। मगर वह राजधर्म भी निभा रहे है। पीडा अपनी जगह- राजधर्म अपनी जगह। क्योंकि समय का चक्र अनवरत चलता रहता है। वह किसी के लिए नहीं रूकता। इस सच से वह वाकिफ है। तभी तो शोकग्रस्त होते हुए भी शुक्रवार को राजधानी गये। अपना राजधर्म निभाया। शाम को वापसी हुई। एयरस्ट्रीप पर उनका पुष्पक विमान उतरा। अगवानी के लिए अल्फा- डेल्टा-दूसरे माले के मुखिया और कप्तान जी मौजूद थे। यही की यह 3 मिनिट की घटना है। जब विकासपुरूष ने दूसरे माले के मुखिया को अलग बुलाकर 3 मिनिट तक चर्चा की। इस दौरान बाकी सभी अधिकारी दूर खड़े रहकर यह नजारा देख रहे थे। इस 180 सेंकेड में क्या चर्चा हुई। किसी को पता नहीं। अगर किसी को पता होगा तो वह अपने कप्तान जी हो सकते है। क्योंकि जय-वीरू की दोस्ती में कुछ भी पर्दा नहीं है। जय और वीरू हमको कुछ बतायेंगे नहीं। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चूहा कौन ...

मंदिर के गलियारों में चर्चा है। आखिर चूहा कौन है? जो कि मंदिर की रीति- रिवाजों को अपने फायदे के लिए कुतर रहा है। इस चूहे को इंसानी रूप भगवान से तो मिला है। लेकिन काम इनके चूहे वाले है। बाबा की खूब सेवा करते है। इस चूहे को देखकर बाकी पुजारीगण खूब पीठ पीछे बोलते है। उनका बोलना भी सही है। रीति रिवाजों को अपने फायदे के लिए यह जब चाहे कुरेदकर बदलवाने में सफलता हासिल कर लेते हैं। अधिकारीगण भी इनके चूहेपन से डरते है और चुप  रहते है। तो हम भी डर के कारण अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

कसीनों ...

हमारे पाठकगण शीर्षक पढ़कर यह खुशी नहीं मनाये। महानगर की तर्ज पर बाबा की नगरी में कोई कसीनों खुल रहा है। ऐसा कुछ भी नहीं है। मगर वर्दी के अंदर सुगबुगाहट है। देसी कसीनों की। इन दिनों संभाग के अंदर देसी कसीनों खूब पनप रहे है। जिसके लिए बस एक फार्म हाऊस होना चाहिये। जहां पर घोडी-मांग-पत्ती का खेल खुलकर होता है। कोई रोक-टोक नहीं होती है। ऐसा हमारा नहीं, बल्कि वर्दी के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है। अब बात सच है या झूठ? वर्दी जाने या देसी कसीनों को चलाने वाले। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

सोच ...

कोयला फाटक पर हुए कांड को लेकर कुछ वर्दीधारी अलग सोच रखते है। तभी तो वह खुलकर नहीं बोलते हुए, दबी जुबान से यह बोल रहे है। जल्दबाजी में मिसहेंडलिंग हो गई है। वर्दी को इस मामले में दूरदर्शी सोच रखनी थी। प्रकरण दर्ज करने से पहले। अगर वर्दी सही सोच- विचार के साथ कदम उठाती। तो सार्वजनिक अश्लीलता व वेश्यावृत्ति का प्रकरण दर्ज करके मामले को आसानी से निपटा सकती थी। इससे देशभर में बाबा की नगरी की बदनामी भी नहीं होती। वर्दीधारियों की इस सोच को लेकर हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

नोटिस ...

संकुल के गलियारों में एक नोटिस की चर्चा है। नोटिस देने वाले अपने युवा आईएएस है। जिनके पास विकासपुरूष के दक्षिण की जिम्मेदारी है। इस युवा आईएएस को एक ग्रामदेवता ने चुनौती दे डाली। जिसके बाद ग्रामदेवता को शहर से बाहर अटैच कर दिया गया था। लेकिन ग्रामदेवता के तेवर अपनी अवैध कमाई के कारण बुलंद है। उन्होंने जमकर शहरी क्षेत्र में भष्टाचार किया है। पिछले दिनों उनको एक नोटिस जारी किया गया था। किन्तु तामील, जानबूझकर नहीं कराया गया। केवल सोशल मीडिया पर भेज दिया। नोटिस सीपीसीटी (हिन्दी टाइपिंग और कम्प्यूटर ) से जुड़ा है। यह प्रमाण-पत्र पदभार ज्वाइन करने के बाद ग्रामदेवता को जमा कराना था। किन्तु 5 साल हो गये। जमा नहीं कराया गया है। इसी को लेकर नोटिस जारी हुआ है। अब देखना यह है कि सीपीसीटी प्रमाण-पत्र कब जमा होता है और ग्रामदेवता पर क्या कार्रवाई होती है। फैसला वक्त करेगा। तब तक हम अपनी आदत  के अनुसार चुप हो जाते है।

नमन ....

मरने वाला/ कभी अकेले नहीं मरता/ उसके साथ मरते है/ 2-4-10 लोग/ उसकी याद में / हर रोज सिसक-सिसक कर ...। नौकरशाह, रंगकर्मी, व कविवर अशोक वाजपेयी की इस कविता को याद करते हुए चुप रहेंगे डाटकॉम की तरफ से स्व. पूनमचंद यादव को शत-शत नमन व विनम्र श्रद्धांजलि।