08 जुलाई 2024 (हम चुप रहेंगे)

08 जुलाई 2024 (हम चुप रहेंगे)

भय ...

बाबा तुलसीदास की यह चौपाई पिछले 17 सालों में कई दफा हमने लिखी है। विनय ना मानत जलाधि/ गए तीन दिन बीति/ बोले राम सकोप तब/ भय बिनु होई ना प्रीति...। यह चौपाई इन दिनों मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। इशारा अपने दूसरे माले के मुखिया की तरफ है। जो कि हर रोज बाबा के दरबार में अलसुबह हाजिरी लगाते है। उनकी श्रद्धा को हमारा प्रणाम। मगर उनका भय जो होना चाहिये। वह मंदिर के गलियारों में नजर नहीं आता है। वरना, इतनी अव्यवस्था नहीं होती। कर्मचारी मनमर्जी नहीं दिखाते। उदाहरण दिया जा रहा है। अगर प्रतिदिन दर्शन करने पूर्ववर्ती नम्बर-1 ... उम्मीद जी, या उत्तम जी जाते होते ? तो मंदिर के कर्मचारियों में भय की लहर होती। किन्तु ऐसा नहीं है। दूसरे माले के मुखिया की सहजता का फायदा सभी उठा रहे है। अपनी-अपनी जेब गर्म कर रहे है। ज्यादा कमाई सावन माह में होगी। देखना यह है कि ... दूसरे माले के मुखिया अपना भय कब पैदा करते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मनोकामना ....

अपने स्मार्ट पंडित की कौनसी ऐसी मनोकामना है? जिसे दूर करने के लिए वह हर सप्ताह उस मंदिर जा रहे है। जहां अपने विकासपुरूष ने प्रति मंगलवार को जाकर बरसों पूजा की है। नतीजा ... भूमिपुत्र ने विकासपुरूष की मनोकामना पूरी कर दी। आज वह सूबे के मुखिया है। भूमिपति सबकी मनोकामना पूरी करते है। देखना यह है कि अपने स्मार्ट पंडित की मनोकामना कब पूरी होती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

सीधी बात ....

संकुल के गलियारों में एक आईएएस सीधी बात करते है। उनको देखकर अकसर मातहत बोलते है। सीधी बात- नो बकवास। बगैर किसी लाग-लपेट के मुंह पर बोलते है। फिर सामने कोई भी हो। किसी की भी सिफारिश लेकर आया हो। युवा आईएएस का सिद्धांत है। नियम से काम करवा लो- प्रेशर- सिफारिश से काम नहीं होगा। यह बात उन्होंने सीधे साफ लफ्जों में उस नेता को भी समझा दी। जो कि यह बोल रहे थे। दादा ने फोन किया था। काम के लिए। युवा आईएएस ने साफ बोल दिया। नो प्रेशर। नियम जरूरी है। उनकी बात सुनकर कमलप्रेमी नेता का चेहरा देखने लायक था। नेता का चेहरा देखकर हमको हंसी आई। मगर हम अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहे।

प्रभारी ...

कल तब वह मंदिर के राजकुमार थे। उनकी तूती बोलती थी। मगर वक्त बदला। उनकी बरसों से चल रही कारगुजारी आखिरकार पता चल गई। भस्मार्ती के नाम पर खेल कर रहे थे। अपने आश्रम में रूकने वालो की अनुमति बाले-बाले बनवा देते थे। पाप का घड़ा, कभी तो फूटना था। अपने दूसरे माले के मुखिया के सामने यह राज खुल गया। चर्चा यह भी है कि दमदमा के आईएएस को इस कांड की भनक लग गई। बस फिर क्या था। कल के राजकुमार, आज के सफाई प्रभारी है। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। बात सच है या झूठ। हमको पता नहीं है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

कानाफूसी ....

आखिर दादा ने अपने विकासपुरूष के कान में क्या मंतर फूका? इस्कॉन मंदिर में हुई मुलाकात के दौरान। यहां हमारा आशय कमलप्रेमी दादा से नहीं है। वह इन दिनों शोकग्रस्त हैं। हमारा इशारा पंजाप्रेमी दादा की तरफ है। जो कि मंदिर में विकासपुरूष का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही मौका मिला। विकासपुरूष के हाथ पकड लिये। फिर 2 दफा उन्होंने विकासपुरूष के कान में कोई बात कही। जिसे सुनकर अपने विकासपुरूष आदत के अनुसार मुस्कुरा दिये। मगर इस कानाफूसी को लेकर वहां मौजूद कमलप्रेमी अब सवाल उठा रहे है। कयास लगा रहे है। दादा ने क्या मंतर फूका होगा? लेकिन पता किसी को नहीं है। इसलिए सब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

ऊर्जा ...

विकासपुरूष का जब-जब आगमन हेता है। अधिकारियों की उर्जा सुबह से लेकर शाम होते-होते बिलकुल क्षीण हो जाती है। विकासपुरूष तो उर्जावान है। गुनगुना पानी पीकर ही काम चला लेते है। मगर अधिकारी दौडते-भागते शाम तक निढाल हो जाते है। जैसे अपने जय-वीरू की जोड़ी। जो कि हर समय अलर्ट रहती है। इस जोड़ी को मौका ही नहीं मिलता है। उर्जा, प्राप्त करने के लिए कुछ आहार ग्रहण कर लें। ऐसे में जब -जहां-जैसा मौका मिल जाये। उर्जा के लिए गोल-गप्पे तक खा लेते है। जो कि तुरत-फुरत वाला काम है। इसमें समय कम लगता है। शनिवार को यही  हुआ। इस्कॉन मंदिर में। विकासपुरूष अंदर थे। इधर गोल-गप्पे देखकर जय-वीरू की जोड़ी ने तत्काल उर्जा ग्रहण कर ली और फिर अपने काम पर लग गये। ऐसा यह नजारा देखने वालो का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

चूक ...

विकासपुरूष की सुरक्षा करना वर्दी का दायित्व है। बल्कि जिम्मेदारी है। उनके कारकेट में कोई अन्य वाहन नहीं  घुस पाये। खासकर कोई निजी वाहन। इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये। मगर शनिवार को इसमें चूक हो गई। पंजाप्रेमी सरकार में जेल यात्रा कर चुके युवा कमलप्रेमी नेताजी ने अपना नया वाहन कारकेट में घुसा दिया। दिनभर यह वाहन कारकेट में जगह-जगह पीछे-पीछे दौड़ता रहा। बेचारी वर्दी परेशान होती रही। जबकि नियमानुसार ऐसा होना नहीं चाहिये। मगर युवा नेताजी का जोश देखकर वर्दी चुप रही। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो  जाते है।

सच क्या है...

शिवाजी भवन के गलियारों में अपने प्रथमसेवक के बयान को लेकर चर्चा है। जिसमें उन्होंने कहा है। सूचना नहीं थी। इसलिए बाहर चला गया। जबकि सच इसके उलट है। क्योंकि वह खुद उस कार्यक्रम में मौजूद थे। 1 पेड मां के नाम। जिसमें यह खुलासा हुआ था। विकासपुरूष कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहेंगे। यह पता चलते ही समुद्र किनारे यात्रा का प्रोग्राम बन गया। जिसके लिए टिकिट पहले से ही बुक थी। बस एक बहाने की जरूरत थी। वह बहाना मिल गया और अपने प्रथमसेवक अपने साथी निगम की बीमारी और बूटी प्रेमी सहित 2 अन्य के साथ यात्रा पर निकल गये। ऐसा हम नहीं, बल्कि शिवाजी भवन में बैठने वाले और प्रथमसेवक के करीबी बोल रहे है। तभी तो यात्रा से पहले प्रथमसेवक हिदायत देकर गये थे। किसी को बताना नहीं? कहां जा रहा हूं? जबकि खुद ने ही बयान देकर खुलासा कर दिया। उनके इस खुलासे के बाद शिवाजी भवन वाले असली सच को लेकर सवाल उठा रहे है। उनके सवाल में सच्चाई है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

झूकेगा नहीं ...

ब्लाकबस्टर फिल्म पुष्पा का यह डायलॉग शायद हमारे पाठकों को याद होगा। झूकेगा नहीं। अपने दूसरे माले के मुखिया पर यह डायलॉग सटीक बैठता है। जिस पर हमको गर्व है। गलत काम करना और गलतियां दोनों उनको स्वीकार नहीं है। भले ही कितना भी दबाव उन पर आये। फिर भले ही यह प्रेशर न्याय मंदिर के गलियारों का हो। जहां से उन पर यह दबाव है। सरकारी जमीन को निजी कर दो। पर्दे के पीछे यह सारा खेल एक अल्पसंख्यक बिल्डर का है। जिसकी निगाहें उस बेशकीमती जमीन पर है। जबकि रिकार्ड साबित कर रहे हैं। यह जमीन सरकारी है। इस जमीन को कभी संभाग में पदस्थ रहे एक आईएएस मुक्त कर गये थे। अपनी जेब गर्म करके। अब यह आईएएस सेवानिवृत्त हो चुके है। उसी जमीन के लिए अपने दूसरे माले के मुखिया ... झूकेगा नहीं... अंदाज में लड रहे है। जिसके लिए हम उनको सेल्यूट करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मेरी पसंद ...

जब बन सकी ना बात कोई हेरफेर से/ तो कुत्ते लड़ा दिये गये जंगल के शेर से/ बुजदिल को मैने दोस्त बनाया नहीं कभी/ और दुश्मनी भी रखी तो दलेर से...।