25 जुलाई 2022 (हम चुप रहेंगे )

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

25 जुलाई 2022 (हम चुप रहेंगे )

किसके इशारे पर जारी किये गये अनुमति पत्र ...!

उज्जैन। महाकाल मंदिर वैसे तो आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है। जहां पर हजारों भक्त प्रतिदिन आते है। लेकिन इन दिनों मंदिर राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का केन्द्र बन गया है। तभी तो जिसका पॉवर चलता है। वह दबाव डालकर नियम विरूद्ध अनुमति पास जारी करवा लेता है। लेकिन जब बवाल मचता है तो फिर खुद की गलती छुपाने के लिए त्रुटिवश शब्द का उपयोग मंदिर कार्यालय करने लगता है।  

मंदिर के गलियारों में इन दिनों 10 बाहरी पुरोहितों को अनुमति पास जारी करने की चर्चा सुनाई दे रही है। श्रावण-भादौ मास के लिए यह अनुमति पास जारी किये गये है। जिसमें बलि का बकरा सहायक प्रशासनिक अधिकारी आरके तिवारी को बना दिया गया है। जब इन अनुमति पास को लेकर हंगामा मचा। तो अपनी गलती पर पर्दा डालने के लिए सभी को पत्र लिखकर  जारी किये गये अनुमति पास वापस मांगे जा रहे है।

इनको जारी किये गये ...

मंदिर प्रबंध समिति ने 10 बाहरी पुरोहितों को अनुमति पत्र जारी किये है। जिसमें वेदप्रकाश, गौरव उपाध्याय, यश जोशी, आनंद जोशी, शुभम उपाध्याय, वेदांत व्यास, मोहनलाल त्रिवेदी, अमृतेष त्रिवेदी, योगेश हाडा और मोहित त्रिवेदी का नाम शामिल है। संपूर्ण मंदिर परिसर- सवारी मार्ग और रामघाट के लिए यह मान्य है। जिस पर हस्ताक्षर सहायक प्रशासनिक अधिकारी के है।

वापस करो ...

मंदिर के अतिविश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि ... बाहरी पुरोहितों को पास जारी होने के बाद विवाद खड़ा हो गया। जिसके बाद 1 पत्र सभी पुरोहितों को जारी किया गया है। जिसके  अंत में यह लिखा है कि ... आपको जारी उपरोक्त पास त्रुटिवश जारी हो गये है। इसलिए यह पास मंदिर कार्यालय में जमा कराये।

चुभता सवाल ...

मंदिर कार्यालय से प्रतिदिन आदेश/निर्देश व कई पत्र आदि जारी होते है। मगर आज तक ऐसा कोई मामला देखने या सुनने में नहीं आया। त्रुटिवश यह पत्र/ आदेश/ निर्देश /पास  आदि जारी हुए है। यह पहला मामला है। जिसमें अपनी गलती को छुपाने के लिए त्रुटिवश शब्द का सहारा लिया गया है। असली और चुभता हुआ सवाल यह है कि ... किसके इशारे पर यह अनुमति पास जारी किये गये? उस नाम का खुलासा करने को कोई तैयार नहीं है। यह तो पक्का है कि सहायक प्रशासनिक अधिकारी अपनी मर्जी से अनुमति पत्र जारी नहीं करने वाले? तो फिर उन पर आखिर किसका दबाव था। यहां यह लिखना जरूरी है कि बगैर मंदिर प्रशासक की अनुमति के मंदिर कार्यालय में पत्ता भी नहीं हिलता है। फिर अनुमति पास कैसे जारी हो गये? बहरहाल सहायक प्रशासनिक अधिकारी श्री तिवारी ने दूरभाष पर यह स्वीकार किया है कि ... जारी किये गये अनुमति पत्र निरस्त कर दिये गये है।  

इनको निकालो...
पंजाप्रेमी बिरयानी नेताजी,होटल वाले भैया और दमदमा की मीठी गोली को पार्टी से बाहर निकालो।इनकी वजह से ही मेरी हार हुई है।यह संवाद राजधानी में हुआ है।ऐसा पंजा प्रेमी दबी जुबान से बोल रहे है।इशारा अपने चरण लाल जी की तरफ है।जो राजधानी गए थे।पंजाप्रेमी प्रदेश मुखिया से।तब उन्होंने शिकायत करी।पंजा प्रेमी तो यह तक बोल रहे है कि फोन पर हुई चर्चा की कुछ रिकार्डिंग भी बतौर सबूत पेश की गई है।जिसमे बिरयानी नेताजी और होटल वाले भैया की आवाज है।जिसमे चरण लाल जी को वोट नही देने की सलाह दी जा रही है।जिसको लेकर बकायदा लिखित में शिकायत दर्ज कराई गई है।अब ये बात सच है या झूट।इसका जवाब तो अपने चरण लाल जी ही दे सकते है।लेकिन पंजा प्रेमी इस बात को खूब हवा दे रहे है।देखना यह है कि चरण लाल जी की शिकायत पर कोई कार्रवाई होती हैं या नही? तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

स्वयंसेवक ...
तो क्या अपने पपेट जी भी स्वयं सेवक है? यह चर्चा इन दिनों केसरिया झंडे वाले भवन से लेकर,शिवाजी भवन तक सुनाई दे रही है।अंदरखाने की खबर है कि अपने पपेट जी ,केसरिया झंडे वाले भवन गए थे। जहां उनको विशेष तौर से बुलाया गया था।कारण..किसी से मुलाकात करवानी थी। मुलाकात प्रथम सेवक से करवाई गई।जिनको परिचय करवाते वक्त यह बोला गया कि यह भी अपने स्वयंसेवक है। इधर यह भी चर्चा है कि मुलाकात का मकसद केवल यह था कि अपने पपेट जी को काम करने में आगे जाकर कोई परेशानी का सामना नही करना पड़े।अभी से परिचय हो जाएगा,तो संबंध मधुर बने रहेंगे।
अब देखना यह है कि आधे अधूरे स्वयंसेवक को यह परिचय,आगे जाकर कितना काम आता है।तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

कौन बनेगा किंगमेकर..
ग्रामीण क्षेत्र में विकास का जिम्मा किसको मिलेगा।उच्च शिक्षा प्राप्त महिला को या फिर दस्तखत करने वाली महिला को?अपने विकास पुरुष किसका साथ देंगे? यह सवाल इन दिनों कमल प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।इशारा ,दमदमा के ग्रामीण विकास विभाग की तरफ है।एक तरफ उच्च शिक्षा प्राप्त महिला इस दौड़ में है।मगर इसको अगर विकास पुरुष ने समर्थन दिया तो एक प्रदेश प्रवक्ता का कद बड़ जाएगा?इसके साथ ही बदबू वाले शहर के दरबार भी पॉवर में आ जाएंगे।जो कि अपने विकास पुरुष कभी होने नही देंगे?तो ऐसे में दाल बिस्किट वाली तहसील की महिला ही इस कुर्सी पर विराजमान होंगी! जो कि केवल दस्तखत कर सकती है।इससे फायदा अपने लेटरबाज जी को भी होगा।उनकी मंशा है कि अपने स्वजातीय बंधु को दमदमा ग्रामीण विकास विभाग में दूसरे नंबर की कुर्सी दिलवा दे?इसलिए वह भी अपने विकास पुरुष का साथ देने में पीछे नहीं रहने वाले।वजनदार जी को भी मनाने में लेटरबाज़ जी कोई कसर नही छोड़ेंगे?ऐसा कमलप्रेमी बोल रहे हैं।अब देखना यह है कि अपने विकास पुरुष किंगमेकर बनते है या इस मामले से दूर रहते है।तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

उच्चाटन की वजह..
हमारे पाठकगण उच्चाटन का मतलब तो समझते ही होंगे।
अस्थिर चित्त होना।बोलचाल की भाषा में इसको इंसान का अस्थिर मनोदशा में होना भी बोला जा सकता है।यह शब्द इन दिनों मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रहा है।जिसमे इशारा अपने चुगलीराम जी की तरफ है।जो इन दिनों उच्चाटन के दौर से गुजर रहे है।तभी तो मंदिर में कम नजर आते है,अगर दिखते है,तो भी अधिकतम 120 मिनिट के लिए।पहले जैसे नजर नही आते और न ही एक्टिव।इसके पीछे आखिर कारण क्या है।तो चर्चा यह है कि अपने चुगलीराम जी को लेकर ऊपर तक हर बात पहुंचाई जा रही हैं।उनके हर फैसले को शिकायत के रूप में ऊपर अवगत कराया जाता है।कोढ़ में खाज वाली बात यह हो गई कि अनाम शिकायत ने ऊपर तक खलबली मचा दी।ऐसे में कोई भी इंसान हो,उच्चाटन का शिकार ही होगा।अपने चुगलीराम जी भी हो गए।जिसको लेकर चर्चा है,मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

ताला लगा रखा...
किसी भी नेता से अगर जनता या कार्यकर्ता मिलने जाता है।तो उसके घर पर ताला लगा देखकर,क्या सोच बनेगी।शायद नेताजी घर पर नही है।मगर अपने बिरयानी नेताजी ने लगता है,हमेशा के लिए ताला लगा लिया है।जो तभी खुलता है,जब उनका मन होता है।वर्ना गेट पर ताला हमेशा लगा मिलता है।यह तालाबंदी तब हुई थी,जब टिकिट वितरण का दौर शुरू हुआ था।उसके बाद पूरे चुनाव में यह लगा रहा।फिर नतीजे आ गए।उसके बाद भी तालाबंदी बरकरार है।कारण केवल यह है कि अपने बिरयानी नेताजी सब पचड़ों से दूर रहना चाहते है।ऐसा हम नहीं,बल्कि अपने पंजाप्रेमी बोल रहे है! अब देखना यह है कि पंजाप्रेमी बिरयानी नेताजी आखिर कब तक तालाबंदी जारी रखते है।तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

रात 2 से 3 के बीच..
सावन माह चल रहा हैं।बाबा के दरबार में हर रोज हजारों भक्त हाजिरी लगा रहे है।सोमवार के दिन भीड़ जोरदार रहती है।सोमवार की सुबह 2से 3 के बीच मंदिर में आखिर क्या होता है।वो कौन अतिविशिष्ट वीआईपी है।जो अपने साथ कुछ लोगो को लेकर आते है।2.45 पर गर्भगृह में प्रवेश करते है।जल चढ़ाते है और 3 बजे के पहले बाहर निकल जाते है।उसके बाद ही कैमरे चालू होते है।ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है।यह किसके इशारे पर हो रहा है,इसको लेकर सब चुप है।तो सच और झूट का फैसला खुद हमारे समझदार पाठक करे ?क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

संस्कृति का पालन...
पंजाप्रेमी इस बात का हमेशा ध्यान रखते है।उनकी हंगामा करने की आदत कहीं छूट न जाए।इसलिए जब मौका मिलता है, जहां मौका मिलता है।अपनी संस्कृति का पालन करने में पीछे नहीं रहते है।रविवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ।पंजाप्रेमी मुख्यालय पर।नए नवेले नगर सेवको का सम्मान रखा गया था। जहां पर हंगामा मच गया।जमकर उन शब्दों का भी प्रयोग हो गया।जो लिखने के काबिल नही है।एक दूसरे पर आरोप लग गए। गद्दारों को भगाओ,पंजे को बचाओ।अब पंजाप्रेमी संस्कृति से हमारे सभी पाठक परिचित है।तो वो समझ ही जाएंगे कि और क्या क्या हुआ होगा।इसलिए हम ज्यादा विस्तार से नही लिखकर,अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

सच को सच कहें
अभी पिछले सप्ताह का मामला है। खबरचियों ने प्रथम सेवक का सम्मान रखा था। जहां अपने विकास पुरुष भी मौजूद थे।वही की घटना है।अपने विकास पुरुष ने कहा कि अब कोई एक ऐसा फोरम भी होना चाहिए।जो सच को केवल सच कहें।उनके इस विचार ने खरबरचियो में हड़कंप पैदा कर दिया।कयास लगाए जाने लगे,कोई और नई संस्था का तो गठन नही होने वाला है?जिसको लेकर खबरची खोजबीन में जुट गए है? इधर यह भी अपने विकास पुरुष ने कहा।अब बाबा की नगरी में विकास महानगर की तर्ज पर होगा।उन्होंने कुछ उदाहरण भी दिए।जिसमे 12 साल में आने वाले मेले का भी उल्लेख किया।जिसका इशारा मास्टर प्लान की तरफ था।प्रथम सेवक को भी नसीहत दी।सरकार से समन्वय स्थापित करने की। अब बेचारे खबरची तो केवल नए फोरम और सच को सच वाली बात से ही घबरा रहे है? कहीं विकास पुरुष की बात आगे जाकर सच साबित न हो जाए?अगर 2 फाड़ हो गई तो क्या होगा?वैसे यह सच है कि अपने विकास पुरुष बहुत सोचकर बोलते है और जो बोलते है,वह आगे जाकर सच साबित होता है! अब देखना यह है कि सच को सच लिखने/बोलने वाले कब तक सामने आते है।तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

झूट बोलते हो...
यह शब्द उस वक्त उपयोग किए गए।जब अपने उम्मीद जी ने अपने चुगलीराम जी का सफेद झूट पकड़ा। कानों से सुनी बात गलत हो सकती हैं,मगर आंखो से देखी नही।घटना पिछले सप्ताह की है।ठीक इसी दिन की,जिस दिन हमारे पाठक इसको पढ़ रहे है।बस,घटना का समय दोपहर का है।नंदी हाल में उम्मीद जी मौजूद थे।तब उन्होंने दर्शन व्यस्था को लेकर ,अपने चुगलीराम जी का यह झूट पकड़ा।उम्मीद जी ने खुद देखा,कैसे प्रतिबंधित दर्शन व्यवस्था का मजाक ,खुद अपने चुगलीराम जी उड़ा रहे थे।वो भी अपने हाथ का इशारा करके।बस..फिर क्या था।जैसे ही चुगलीराम जी सामने आए।अपने उम्मीद जी ने सवाल किया।जिस पर आदत से मजबूर चुगली जी ने तत्काल झूट बोल दिया।जिसके बाद तो हमेशा शांत रहने वाले अपने उम्मीद जी ने नंदी हाल में ही जोरदार फटकार लगाई।यह तक बोल दिया।एक तो गलत करते हो,उस पर झूट भी बोलते हो।इस सार्वजनिक फटकार के बाद,अपने चुगलीराम जी चुप हो गए।तो हम भी उनकी तरह अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चलते चलते...
कमल प्रेमी इन दिनों एक कद्दावर पदाधिकारी की द्विअर्थी भाषा से काफी परेशान है।वह जब जहां मौका मिलता है।अपनी आदत के अनुसार शुरू हो जाते हैं।एक बार तो विवाद होते होते बच गया।उस वक्त अपने ढीला मानुष जी ने मामले को शांत कर दिया था।वर्ना,हाथापाई हो जाती ।ऐसा कमल प्रेमी बोल रहे है।लेकिन हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।