13 जून 2022 (हम चुप रहेंगे )

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

13 जून 2022 (हम चुप रहेंगे )

बेआबरू ...

अपने चाचा गालिब ने क्या खूब लिखा है। जो अपने चुगलीराम जी पर बिलकुल सटीक साबित हो रहा है। चाचा गालिब ने लिखा था... बड़े बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले। मंदिर के गलियारों में 2 घटनाएं दबी जुबान से सुनाई जा रही है। जो कि बेआबरू की तरफ इशारा करती है। पहली घटना एक शादी से जुड़ी है। जिसका संबंध अपने मामा-मामी जी से है। शादी दूसरे राज्य में थी। जहां पर अपने चुगलीराम जी, मंदिर के महंतश्री के साथ चले गये। चुगलीराम जी को वहां पर देखकर मामा-मामी आश्चर्य में पड़ गये। नाराजगी दिखा दी। दूसरी घटना देश के प्रथम नागरिक के आगमन वाले दिन की है। इसी दिन मामा जी के करीबी और मंदिर के पूर्व मुखिया का आना हुआ था। उनको देखकर अपने चुगलीराम जी ने चापलूसी दिखाना शुरू कर दिया। लड्डू का डिब्बा गिफ्ट कर दिया। इस चापलूसी से मामा जी के करीबी नाराज हो गये। फटकार लगा दी। मुफ्त में लड्डू क्यों देते हो। अपनी जेब से लड्डू का मूल्य चुकाकर निकल गये। अब अगर मंदिर के गलियारों में चाचा गालिब को याद कर रहे है। तो इसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

झूठ ....

एक बार फिर हम अपने चुगलीराम जी को याद कर रहे है। विषय उनका झूठ बोलना है। जिसमें उनको पीएचडी हासिल है। आम आदमी तो झूठ बोलते ही पकड़ा जाता है। लेकिन अपने चुगलीराम जी तो मीडिया से भी झूठ बोलकर उसे सच बनाकर छपवा देते है। तभी तो डॉ. वसीम बरेलवी का शेर याद आ रहा है। मगर पहले वह किस्सा। जिसमें झूठ की महक है, बाद में शेर पढऩा। मामला नियुक्ति से जुड़ा है। जो चुगलीराम जी ने बाले-बाले कर दी। आर्डर भी कर दिये। अपनी 2 खास शिष्याओं के लिए। इसकी भनक मीडिया को लगी। सवाल उठाये। तो झूठ बोलने पर उतर गये। खुद ने आर्डर किया और उसे अफवाह भी बताकर छपवा दिया। अब अगर मंदिर के गलियारों में यह शेर सुनाई दे रहा है कि ... वह झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से/ मैं एतबार ना करता तो और क्या करता।  तो इसमें गलत क्या है। मगर हमको तो बस अपनी आदत के अनुसार इस झूठ पर चुप ही रहना है। 

शर्त ...

अपने विकास पुरूष दूरदर्शी राजनीतिज्ञ है। इसीलिए तो उन्होंने ग्रामीण चुनाव में शर्त रख दी। शर्त यह थी कि ... टिकिट तभी मिलेगा... जब खुद चुनाव लड़ेगा। अपनी पत्नी को मैदान में नहीं उतारेगा। विकास पुरूष की इस शर्त के पीछे क्या कारण था। तो कमलप्रेमी चटकारे लेकर बता रहे है। जिस वार्ड से कमलप्रेमी उम्मीदवार को  टिकिट मिला है। उसका 40 प्रतिशत हिस्सा दक्षिण और 60 प्रतिशत हिस्सा घट्टिया में आता है। अगर इस वार्ड से कमलप्रेमी महिला उम्मीदवार होती और जीत जाती। तो ग्रामीण विकास भवन में अध्यक्ष की दावेदारी करती। जो कि भविष्य में दक्षिण के विकास पुरूष के लिए कांटा साबित होती। इसीलिए तो 2 नम्बरी वार्ड से पुरूष को टिकिट दिलाकर शर्त रख दी। खुद लडऩा ...पत्नी को मत  लड़ाना। जिसको लेकर कमलप्रेमी अपने विकास पुरूष को दूरदर्शी राजनीतिज्ञ बोल रहे है। उनकी बातों में दम भी है। मगर, हमको अपनी आदत के  अनुसार चुप ही रहना है।

सबक ....

अपने सूरज जी याद है। जिन्होंने कभी दाल-बिस्किट वाली तहसील में हड़कंप मचा दिया था। पहला डंडा चलाकर। प्याज कांड को लेकर। 2018 की बात है यह। तब वह अनुभाग के मुखिया थे। अब कोठी पर बैठकर राजस्व का काम देखते है। सौम्य और मिलनसार है। सिफारिश पसंद नहीं करते है। दूसरों को इज्जत देने में अव्वल है। मगर कोई अभद्रता करे। तो फिर ऐसा सबक सिखाते है। इंसान जिंदगी भर याद रखता है। कोठी के एक बाबू ने उनकी सौम्यता को कमजोरी समझ लिया। बातचीत में अभद्रता कर दी। बस फिर क्या था। अपने सूरज जी ने तत्काल कलम चलाई। ऐसी कलम चलाई। अनुकंपा वाले बाबू को हमेशा के लिए घर ही बैठा दिया। संकुल के गलियारों में उनके इस सबक की प्रशंसा की जा रही है। तो हम भी सही सबक सिखाने के लिए, साधूवाद देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

नाराज ...

माफी ... अपने पाठकों से। एक बार फिर हम चुगलीराम जी का जिक्र कर रहे है। मगर क्या करे। मजबूरी है। वह कुछ ऐसा कर देते है। जो हमको लिखने पर मजबूर कर देता है। एक बार फिर 2 घटनाएं सामने आई है। एक प्रचारक आये थे। उनके साथ 2 सेवक थे। प्रचारक को तो अंदर जाने दिया गया, मगर सेवकों को रोका गया। नतीजा प्रचारक ने नाराजगी दिखाई और सेवकों को साथ लेकर गये। इसी तरह एक संगठन के मुखिया आये थे। विहिप से उनका रिश्ता है। वह अपने चुगलीराम जी से मिलना चाहते थे। मगर उनको टरका दिया गया। अंदरखाने की खबर है कि दोनों घटनाओं की जानकारी वरिष्ठ फूलपेंटधारियों तक पहुंची है। जिसके चलते फूलपेंटधारी भी नाराज है। इसकी भनक अपने चुगलीराम जी को लग गई है। अब देखना यह है कि अपने चुगलीराम जी नाराजगी से बचने का क्या रास्ता निकालते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

वादा...

हमने पिछले सप्ताह वादा किया था। अपने पाठकों से। शिवाजी भवन के शौकीन मिजाज का नाम उजागर करने का। मामला स्पा (मसाज) से जुड़ा था। जिसको लेकर शिवाजी भवन में पिछले सप्ताह तक सभी चुप थे। मगर अब शिवाजी भवन वाले उस शौकीन मिजाज का पदनाम, दबी जुबान से बोल रहे है। इंदौर और भोपाल जाकर मसाज के शौकीन अधिकारी, उपयंत्री के पद पर विराजमान है। जब भी मौका मिलता है। इंदौर या भोपाल निकल जाते है। इस उपयंत्री की एक विशेष पहचान है। जिसे अभी शिवाजी भवन वाले छुपा रहे है। मगर हम उस उपयंत्री का नामकरण करके रहेंगे। बस ... थोड़ा इंतजार कीजिए। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप  हो जाते है। 

परेशान ...

अपने पपेट जी इन दिनों परेशान है। परेशानी का कारण अनुदान राशि है। जो कि शासकीय योजनाओं का लाभ उठाने पर हितग्राहियों को सरकार देती है। इसे सब्सिडी भी बोला जाता है। शिवाजी भवन के गलियारों में चर्चा है। अनुदान राशि को लेकर एक बैंक अधिकारी पर दबाव भी बनाया गया। किसी भी तरीके से राशि जारी कराओं। जिसकी एवज में लालच भी दिया गया। आपकी बैंक में शासकीय राशि का डिपाजिट भी करवा देंगे। शिवाजी भवन में बैठने वाले तो यही चर्चा दबी जुबान से कर रहे है। देखना यह है कि बैंक अधिकारी अनुदान राशि जारी करवाने में कितने सहायक होते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

शिकार ...

अपने पपेट जी अभी तक आधा दर्जन शिकार कर चुके है। हमारा आशय लापरवाही/ कदाचरण आदि से है। मगर अब उनका अगला शिकार कौन होगा। इसको लेकर शिवाजी भवन में कयास लगाये जा रहे है। अंदरखाने की खबर है कि पपेट जी को नया शिकार मिल गया है। यह शिकार नगर परिवहन सेवा कार्यालय से जुड़ा है। जिसकी जांच खुद अपने पपेट जी कर रहे है। 2 या 3 बार उस कार्यालय जा चुके है। जहां से बसों का कामकाज देखा जाता है। जांच में गलतिया भी पकड़ी है। जिसके चलते नये शिकार को आधा दर्जन नोटिस थमाये जा सकते है। तैयारी हो चुकी है। देखना यह है कि पपेट जी कब नोटिस थमाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

सावधान ...

अपने पंजाप्रेमी चरणलाल जी प्रथम सेवक की दौड में है। पार्टी ने भी मोहर लगा दी है। इसके बाद भी अपने चरणलाल जी को बहुत सावधान रहना होगा। उनको खतरा कमलप्रेमियों से कम, बल्कि पंजाप्रेमियों से ज्यादा है। खासकर ... बांस पर बांस चढ़ाने में माहिर नेताजी से। जिनको हम प्यार से बिरयानी नेताजी बुलाते है। बाकी हार-जीत का फैसला तो जनता करेगी। देखना यह है कि पीठ में छुरा घोपने में माहिर पंजाप्रेमी नेताओं से, अपने चरणलाल जी कितने और कब तक सावधान रहते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

होइ ना प्रीति ...

बाबा तुलसीदास हजारों साल पहले लिख गये थे। बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति/ बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति। हमारे सुधी पाठक इस दोहे का अर्थ समझ गये होगे। मगर इशारा हमारा किस तरफ है। इसको हम लिख देते है। यह दोहा लिखकर हमने, अपने उम्मीद जी से उम्मीद की है। जिनको अब अपना भय मंदिर के गलियारों में दिखाना ही होगा। वरना आम जनता तुगलकी फरमानों से परेशान होती रहेंगी। अब देखना यह है कि अपने उम्मीद जी बाबा तुलसी के दोहे को कब सार्थक करते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

अफवाह या सच ...

 राजधानी के खबरचियों में बड़ी चर्चा है। जिसका संबंध अपनी महाकाल नगरी से है। चर्चा यह है कि श्यामला हिल्स के राजकुमार का रिश्ता पक्का हुआ है। जिनसे पक्का हुआ है, वह महाकाल की नगरी में पदस्थ है। इसीलिए खबरची फोन लगाकर पूछताछ कर रहे है। अब यह अफवाह है या सच। हमको कुछ पता नहीं है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

चलते-चलते ...

जंगल  का राजा शेर होता है।  जो शेरनी को पाने के लिए कुछ भी कर  सकता है। उस शेर को भी निपटा सकता है। जिसके साथ कुछ दिनों तक शेरनी थी। शिवाजी भवन के गलियारों में ऐसा बोला जा रहा है। मगर क्यों बोला जा रहा है हमको पता नहीं है। बस ... शिकार की तरफ इशारा किया जा रहा है। जिसमें हम क्या कर सकते है। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।