16 सितम्बर 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
डर ...
आम इंसान फुटपाथ पर बेफ्रिक सोता है। मगर उच्च पद पर विराजमान इंसान के दिल में हमेशा भय होता है। तभी तो अपने जिले के प्रभारी बाऊजी ने संतरी सुरक्षा की डिमांड कर डाली। वह भी सरकारी विश्राम गृह में। जब वह रात्रि विश्राम कर रहे थे। उनको रात में संतरी नजर नहीं आया। सुरक्षा के लिए। तो एक संदेश फारवर्ड कर दिया। रात्रि विश्राम के दौरान संतरी की सुरक्षा नहीं थी। ताज्जुब की बात यह है कि देवास रोड के मुख्य सरकारी विश्राम गृह में हर वक्त कर्मचारी मौजूद रहते है। इसके बाद भी अपने बाऊजी को संतरी की सुरक्षा चाहिये। देखना यह है कि प्रशासन उनका यह डर हटाता है या कायम रखता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
अभियान ...
कमलप्रेमियों का अभियान चल रहा है। सदस्य बनाओं। जिसके लिए सबको लक्ष्य दिया गया है। कमलप्रेमी नगरसेवक भी इसमें शामिल है। जिन्होंने मेहनत करने से बचने का अनोखा रास्ता निकाला है। बिलकुल सांप भी मरे और लाठी भी ना टूटे की तर्ज पर। इस रास्ते का नाम है। लाडली बहना। कमलप्रेमी दबी जुबान से बोल रहे है। नगरसेवकों ने आंगनवाडी से संपर्क किया। अपने-अपने इलाको की। फिर फरमान दिया। घर-घर जाकर संदेश दो। इस लिंक पर क्लिक करने से ओटीपी आयेगा। नाम दर्ज हो जायेगा। फिर हर महीने राशि आयेगी। नगरसेवकों का आदेश मानकर काम शुरू हो गया है। ऐसा हम नहीं, बल्कि कमलप्रेमी बोल रहे है। बात सच है। मगर हमको आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
शिकायत ...
पंजाप्रेमियों में दबी जुबान से चर्चा है। एक नगरसेवक द्वारा की जाने वाली शिकायत की। नगरसेवक भी पंजाप्रेमी है। जिन्होंने गड़े मुर्दे उखाडने की ठान ली है। तभी तो वह गौशाला घास कांड के दस्तावेज एकत्रित कर रहे है। उनके निशाने पर अपने प्रथमसेवक है। जिन्हें घास कांड का मुख्य आरोपी मानकर शिकायत होगी। उस विभाग को, जो कि रंगे हाथों पकडऩे में माहिर है। ताज्जुब की बात यह है कि नगरसेवक उसी वार्ड के है। जिसमें प्रथमसेवक निवास करते है। ऐसा हम नहीं, बल्कि पंजाप्रेमी बोल रहे है। देखना यह है कि शिकायत होती है या फिर मामला रफा-दफा होता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
कमरे में बंद ...
शीर्षक पढ़कर हमारे पाठक यह अंदाजा नहीं लगाये। हम फिल्म बॉबी के गाने का जिक्र कर रहे है। जिसका गीत था। हम-तुम एक कमरे में बंद हों...और चाबी खो जाये। हमारा इशारा एयरस्ट्रीप पर हुई बंद कमरे में चर्चा की तरफ है। जिसमें अपने अल्फा-डेल्टा-कप्तान के अलावा अपने हाईनेस- कमलप्रेमी महामंत्री और होटल वाले नेताजी शामिल थे। घटना बुधवार की है। जब अपने विकास पुरूष अल्प समय के लिए आये थे और तत्काल जबलपुर रवाना हो गये थे। उसके बाद एयरस्ट्रीप स्थित कक्ष में 3 वर्दीधारी और 3 कमलप्रेमी बैठे थे। कमरा बंद कर लिया गया। इस दौरान इनके बीच क्या चर्चा हुई। यह केवल कमरे में बंद लोगों को ही पता है। यह सभी इस विषय को लेकर चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
हंगामा ....
इस महीने या अगले महीने हंगामा होने वाला है। हंगामा शब्द से गलत अर्थ ना निकाले। कानून व्यवस्था बिगाडने वाला हंगामा नहीं। बल्कि सम्मानित माननीय की मौजूदगी में हंगामा होगा। बैठक के अंदर। बैठक के सूत्रधार अपने वजनदार जी होंगे। जिन्होंने दिशा को लेकर 23 विभागों की सूची तैयार की है। इसमें सबसे ज्यादा टारगेट स्मार्ट भवन पर होगा। कचरा ट्रांसफर स्टेशन बिंदु पर हंगामा होगा। बैठक का यह पहला बिंदू है। जिसमें सवाल उठाया है। वित्तीय स्वीकृति के पहले भूमि किसकी थी ? सरकारी या निजी? किस-किस अधिकारी की संलिप्ता है? इस बिंदू पर हंगामे की तैयारी है। यह सच है। बस बैठक का इंतजार है। तब तक हम भी इंतजार करते हुए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
इंतजार ...
अपने प्रथमसेवक को इंतजार है। इंतजार एक सूची का है। जिसमें वह नये नाम होंगे? जिनको अपनी केबिनेट में शामिल करना है। वर्तमान में जो उनका मंत्रिमंडल है। उसको भंग करने की लंबे समय से अफवाह चल रही है। लेकिन परिणाम सामने नहीं आया है। इधर प्रथमसेवक तैयार है। सूची आये और मंत्रिमंडल भंग करे। लेकिन उच्च स्तर पर नामों को लेकर सहमति ही नहीं बन पा रही है। देखना यह है कि कब नाम फायनल होते है? कब प्रथमसेवक को सूची मिलती है? कब केबिनेट भंग होती है? इसका इंतजार जैसे प्रथमसेवक कर रहे है, वैसे हम भी इंतजार करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
नाराज ...
जिले के प्रभारी अपने बाऊजी नाराज है। बहुत ज्यादा नाराजगी है। उनकी नाराजगी मीडिया कवरेज को लेकर है। मीडिया उनको तवज्जों नहीं दे रही है। तभी तो उन्होंने खुलकर यह कहा। मेरे को मीडिया में जगह ही नहीं मिलती है। प्रभारी बाऊजी ने बकायदा अपने सरकारी भोपू को बुलाकर यह बात कही। अब बेचारा सरकारी भोपू क्या कर सकता है। बाऊजी को तवज्जों चाहिये तो वह मीडिया को बुलाकर खुद बात करे। लेकिन यह याद रखे। विकासपुरूष का गृहनगर है और विकासपुरूष के कद के आगे, बाकी सभी बौने हैं। मुफ्त की सलाह है। समझ जाओं तो ठीक, वरना हमको तो चुप ही रहना है।
भारी पड़ी ईमानदारी...
संकुल के गलियारों में चर्चा है। भारी पड़ी ईमानदारी। एक युवा आईएएस को। इस युवा आईएएस ने ग्रामदेवताओं का काकस तोडा था। उन ग्रामदेवताओं को चिन्हित किया। जो कि जेब गर्म करने के बाद भी काम लटकाते थे। इन पर शिकंजा कसा। तितर-बितर कर दिया काकस को। एक ग्रामदेवता को तो प्रमाणपत्र पेश करने का नोटिस थमा दिया। नतीजा ... युवा आईएएस की ही रवानगी हो गई। उनका तबादला कर दिया गया। संकुल में तो यही चर्चा है। जो कि सच भी है। मगर हम कर क्या सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
चेला- बदर ...
अपने दूसरे माले के मुखिया ने एक कमलप्रेमी नेता को 7 जिलों की सीमा से दूर रहने का आदेश कर दिया है। यह कमलप्रेमी नेता, अपने 2 नंबरी इंदौरी नेताजी के खास माने जाते है। टोपीबाजी करना इनका प्रिय शगल था। सोमरस की भी अवैध तरीके से बिक्री करते थे। आखिरकार कभी ना कभी तो गाज गिरनी थी। जो 4 दिन पहले गिर गई। ताज्जुब की बात यह है कि जिस इंदौरी नेता के यह चेले है। उस नेता के प्रभार वाले जिले से भी कमलप्रेमी नेता को बदर किया गया है। तभी तो कमलप्रेमी खुश होकर बोल रहे है। चेला-बदर, चेला-बदर। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
आदेश ...
युवा आईएएस की रवानगी हो गई। उनकी जगह अपनी जिज्जी को विराजमान कर दिया। जिसके लिए आदेश निकला। निकालने वाले अपने दूसरे माले के मुखिया है। जिन्होंने नगरीय प्रशासन से उठाकर, अपनी जिज्जी को राजस्व का अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया। जबकि संकुल में कई डिप्टी कलेक्टर खाली बैठे है। लेकिन शिवाजी भवन से जिज्जी को विशेष तौर पर लाया गया। किन्तु जो आदेश निकला। उसमें विसंगति है। आदेश में संभाग मुखिया के अनुमोदन का उल्लेख होना जरूरी था। मगर नजर नहीं आया। तभी तो संकुल के गलियारों में चर्चा है। आदेश में विसंगति की। इसके साथ एक पूर्व आदेश में हुई विसंगति की भी दबी जुबान से चर्चा है। उक्त आदेश अपने इंदौरीलाल से जुड़ा है। जिनको मंदिर में मुखिया के तौर पर शासन ने पदस्थ किया था। अतिरिक्त प्रभार में भरतपुरी का विकास विभाग था। उनको मूल पद से हटाया गया। लेकिन अतिरिक्त प्रभार वाले पद पर वह अभी भी विराजमान है। जबकि जानकारों का कहना है। मूल पद से हटते ही अतिरिक्त प्रभार स्वत: खत्म हो जाता है। संकुल में बैठने वाले तो यही बोल रहे है। मगर हमकों अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
एफओसी ..
मंदिर के गलियारों में एफओसी शब्द चर्चा में है। इसका साफ मतलब यह है। मुफ्त में दर्शन करवाना। जबकि नियमानुसार 250 की रसीद कटवाना अनिवार्य है। इस एफओसी का फायदा एक परिवार उठा रहा है। देखना यह है कि इस पर आखिरकार कब रोक लगती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।