22 अगस्त 2022 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
दंड ...
महाकाल की नगरी में बाबा का नियम है। जो यहां पद पर रहकर, गलत करता है। उसको दंड मिलता ही है। भले ही थोड़ी देर हो जाये। अपने पपेट जी को भी कार्मिक दंड भुगतना पड़ेगा। कार्मिक दंड से आशय कर्मचारी हितों की अनदेखी। जिसे करने में अपने पपेट जी माहिर है। तभी तो चुनाव के पहले से ही अनुकंपा नियुक्ति, स्थायीकरण, परीविक्षा अवधि, वरीयता सूची, परीक्षा अनुमति जैसी फाइलों का अंबार लग गया है। अपने पपेट जी इन फाइलों को बैरंग लौटा रहे है। नतीजा शिवाजी भवन का कर्मचारी संघ नाराज है। कर्मचारियों के हितों की अनदेखी पर। इधर संरक्षक ने चुप्पी साध रखी है। जिसके चलते कर्मचारी यह कहने में नहीं चूक रहे है। पपेट जी, बाबा महाकाल कार्मिक दंड जरूर देंगे। देखना यह है कि बाबा आखिर कब यह दंड देते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
बंटाढार ....
जहां-जहां पांव पड़े पपेट जी के ... वहां-वहां बंटाढार। यह स्लोगन इन दिनों शिवाजी भवन में सुनाई दे रहा है। खासकर कर्मचारी हित से जुड़े संघ वाले इसे गुनगुना रहे है। कारण ... संघ के हितों की रक्षा हेतु जिसे संरक्षक बनाया था। वह लंबे समय से अपने पपेट जी की गोद में बैठ गये है। यहीं वजह है कि संघ के मुखिया के खिलाफ 2-3 कार्रवाई हो गई। नतीजा मुखिया नाराज है। अंदरखाने की खबर है कि नाराजगी इस कदर बढ़ गई है। जल्दी ही संघ में दो- फाड हो सकती है। सीधी भाषा में एक नये संगठन का गठन हो सकता है। ताकि पपेट जी के इशारों पर चलने वाले संरक्षक को जवाब दिया जा सके। ऐसी चर्चा शिवाजी भवन में खूब सुनाई दे रही है। अब सच है या झूठ... फैसला हमारे पाठक कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
वक्त ...
बहुत पहले 70-80 के दशक में एक फिल्म बनी थी। जिसका नाम वक्त था। उसमें एक डायलॉग था। आदमी को चाहिये कि वह वक्त से डरकर रहे। यह डायलॉग इन दिनों कमलप्रेमियों में सुनाई दे रहा है। इशारा अपने दादा की तरफ है। जिनको वक्त ने अचानक ही पॉवरफुल बना दिया है। कल तक जो कमलप्रेमी दादा को देखकर रास्ता बदल लेते थे। यह बोलते थे कि ... कौन सुनेगा कविता। अब वह सभी दादा-दादा भज रहे है। पिछले दिनों दादा ने ग्रामीण इकाई के गठन पर एक-एक नाम दिये थे। अपने लोगों को संगठन में पद देने के लिए। लेकिन उन नामों पर बगैर गौर किये एक तरफ रख दिया गया। अब वहीं कमलप्रेमी खुद को दादाप्रेमी साबित कर रहे है। अब देखना यह है कि अपने दादा इन सभी को किस घाट का पानी पिलवाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दु:खी ...
अपुन दु:खी है। किसलिए ? क्योंकि अपने चुगलीराम जी इन दिनों दु:खी है। उनका दु:ख थोड़ा सा नहीं, बल्कि बहुत ज्यादा है। तभी तो बेचारे ... अपने दु:ख को हल्का करने के लिए इधर-उधर बोल रहे है। चुप रहने वालो से बात करो। इधर एक के बाद एक मामले सामने आ रहे है। महिलाओं में असुरक्षा की भावना से लेकर 44 पेटी कांड तक। इसके बीच में अपने उम्मीद जी ने नोटिस जारी कर दिया। इतने कारण दु:खी होने के लिए काफी है। तभी तो बेचारे चुगलीराम जी अब यह कह रहे है। परेशान हो गया हूं... सोचता हूं... इस्तीफा दे दूं। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों से निकलकर बाहर आ रही है। इस चर्चा में कितना सच है ... कितना झूठ। फैसला हमारे सुधीपाठकगण खुद कर ले। क्या वाकई अपने चुगलीराम जी दु:खी है। अगर वह दु:खी है तो अपुन भी उनके दु:ख में शामिल होकर, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मोह ...
राजनीति में सबसे बड़ा मोह क्या होता है। पद का मोह। जिसके चक्कर में बेइज्जत होने के बाद भी, पद का मोह नहीं छूटता है। अगर हमारी बात पर भरोसा नहीं है। तो युवा कमलप्रेमी संगठन (ग्रामीण) की सोशल मीडिया वॉल पर जाकर देख सकते है। युवा जलवा नेता जी का पद मोह अभी तक नहीं गया है। तभी तो संगठन से पदमुक्त किये जाने के बाद भी, वह खुद को जिले का मुखिया मान रहे है। उनकी सोशल मीडिया वॉल पर आज भी साफ-साफ लिखा है। वह जिले के मुखिया है। (देखे फोटो) जबकि उनको पद से हटाये दिन हो गये है। यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्र के युवा कमलप्रेमी उनके पदमोह को लेकर चर्चा कर रहे है। देखना यह है कि जलवा वाले नेताजी का यह पद का मोह कब खत्म होता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
इंतजार ...
कोठी से लेकर मंदिर के गलियारों तक इंतजार है। यह इंतजार किसी वीवीआईपी के आगमन का नहीं है। बल्कि एक शिकायत और एक नोटिस के जवाब का है। दोनों ही मामलों में फैसला अपने उम्मीद जी को करना है। जिसमें गलती अपने चुगलीराम जी की है। शिकायत में भी गंभीर आरोप है। तो नोटिस के मामले में भी जवाब देना अपने चुगलीराम जी के लिए मुसीबत ही पैदा करेगा। इसीलिए कोठी से मंदिर के गलियारों तक इंतजार हो रहा है। इस कहावत के साथ। अब आया ऊंट पहाड के नीचे। देखना यह रोचक होगा कि नोटिस का क्या जवाब आता है और शिकायत पर उम्मीद जी क्या कार्रवाई करते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
भय बिनु होइ...
रामचरित मानस की एक चौपाई है। बाबा तुलसीदास ने लिखा था। बिनय न मानत जलधि जड़ गये तीनि दिन बीति/ बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति। अब हमारे पाठक सोच रहें होंगे कि ... इस चौपाई का अर्थ तो समझ गये। मगर इशारा किस तरफ है। तो रविवार को दादा का आगमन हुआ। जोरदार स्वागत हुआ। ऐसे में अपने वजनदार जी ने एक पोस्ट अपलोड की। जिसमें उन्होंने खुद की अनुपस्थिति का जिक्र किया। यह लिखा कि ... मेरे प्रतिनिधि के रूप में आमजनता ने दादा का स्वागत किया। उनके द्वारा पहली दफा अनुपस्थित रहने की पोस्ट अपलोड हुई है। इसके पहले कभी भी ऐसा नहीं हुआ। जिसे पढ़कर कमलप्रेमी आश्चर्य में पड गये। तभी तो बाबा तुलसीदास की चौपाई का जिक्र अपने कमलप्रेमी कर रहे है। जो कि सही है। इशारा हमारे पाठक अब समझ गये होंगे। हमने क्यों चौपाई लिखी। इसलिए अब हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
चलते-चलते ...
शिवाजी भवन में लंबे समय से दु:ख की लहर है। शायद अब खुशी की लहर आ सकती है। इस माह के अंत तक। राजधानी से तो यहीं संकेत मिल रहे है। बाकी बाबा की मर्जी पर निर्भर है। क्योंकि हमको तो चुप ही रहना है।
अब स्मृति शेष ..भाजपा नेता पर एफआईआर दर्ज करवा दी थी ...!
उज्जैन। शनिवार की शाम को आखिरकार वह दिल दुखाने वाली खबर आ ही गई। डॉ. एम. गीता नहीं रही। इस खबर ने जहां उनके साथ बिताए कई पलो की यादे ताजा कर दी, वहीं आंखे भी नम हो गई। एम. गीता ... उज्जैन की एक मात्र ऐसी कलेक्टर रही। जो किसी से नहीं डरती थी। फिर भले ही वह सत्तापक्ष से जुड़े नेता हो। तभी तो उन्होंने एसडीएम के साथ हुई अभद्रता पर एफआईआर दर्ज करवा दी थी।
बृहस्पति भवन के गलियारों में उनके आक्रोश और फिर एकदम शांत हो जाना। इसके कई किस्से मशहूर है। गुस्सा उनकी नाक पर रहता था। लेकिन अगले ही पल वह शांत हो जाती थी। उनकी अपनी चिर- परिचित मुस्कान कोठी के गलियारों में चर्चित थी। अपनी तीखी आवाज में, बैठकों के अंदर, उनके तीखे जुमले, मीडिया हर रोज सुनता था। तुम कभी नहीं सुधर सकते ... तुमको भगवान भी नहीं सुधार सकता... कसम खा रखी है ... नहीं सुधरने की... आदि-आदि। यही सब जुमले अगले दिनअखबारों की सुर्खियों में होते थे। मीडिया से उनका स्नेह जगजाहिर था। वह एकमात्र ऐसी कलेक्टर रही, जिनकी साप्ताहिक जनसुनवाई कई बार 3 बजे तक चली। उनके पद संभालने के बाद शुरूआत के दिनों में जिले की जनता, जनसुनवाई में केवल उनको देखने के लिए, शिकायत लेकर आ जाती थी। नतीजा ... 1 बजे खत्म होने वाली जनसुनवाई 3 बजे तक चलती थी।
दबंग ...
डॉ. गीता भले ही अपने मातहतों को फटकार लगाने में पीछे नहीं रहती थी। लेकिन उनके दु:ख-सुख में भी हमेशा आगे नजर आती थी। तभी तो तत्कालीन एसडीएम सरोधन सिंह के मामले में उन्होंने अपना दबंग रूप दिखाया था। भाजपा नेता राजपाल सिसौदिया ने एसडीएम के साथ चेम्बर में घुसकर अभद्रता कर दी थी। जिसकी खबर जब उनको लगी। तो बगैर देर किये भाजपा नेता के खिलाफ थाना माधवनगर में शासकीय कार्य में बाधा का प्रकरण दर्ज करवा दिया था। तब एसपी राकेश गुप्ता थे। डॉ. गीता ने किसी भी दबाव को स्वीकार नहीं किया था। सत्तादल के खिलाफ जाकर भाजपा नेता पर प्रकरण दर्ज करवाने की हिम्मत डॉ. गीता ही रखती थी।
बचपना ...
एक तरफ जहां डॉ. एम. गीता अपनी कार्यशैली के कारण हर रोज सुर्खियों में रहती थी। वहीं दूसरी तरफ उनके अंदर एक बचपना था। जादू के खेल देखकर उनको बड़ा मजा आता था। ऊपर लगी तस्वीर पंचक्रोशी यात्रा की है। जिला पंचायत का कर्मचारी जादू दिखा रहा था। यह देखकर डॉ. गीता यह भूल गई कि वह जिले की कलेक्टर है। वह तत्काल जमीन पर बैठक गई। कोई घमंड नहीं दिखाया। मेरे लिए कुर्सी लाओं। उनके साथ आईएएस तरूण पिथौड़े, तत्कालीन जिपं सीईओ रविन्द्र सिंह, तहसीलदार पूर्णिमा सिंगी भी थे। जिपं सीईओ खड़े रहे, मगर बाकी सभी बैठ गये। किसी भी पंचक्रोशी यात्री को पता ही नहीं था कि ... कलेक्टर उनके बीच बैठी है। डॉ. गीता ने जादू का भरपूर आनंद उठाया था ।
सिसक-सिसक कर ...
बाबा महाकाल की अनन्य भक्त डॉ. एम.गीता अब केवल स्मृतियों में शेष है। मौत को लेकर कविवर डॉ. अशोक वाजपेयी की चंद लाइने याद आ रही है। मरने वाला/ कभी अकेले नहीं मरता उसके साथ मरते है 10-20-100 लोग उसकी याद में सिसक-सिसक कर हर रोज ... विनम्र श्रद्धांजलि .... डॉ. एम.गीता ... भगवान महाकाल आपको अपने श्रीचरणों में जगह दे।