01 जुलाई 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
भरोसा ...
किसी शायर ने खूब कहा है। किस पर भरोसा करें, यहां कौन किसका होता है/ धोखा वही देता है जिस पर भरोसा होता है...! यह शेर इन दिनों मंदिर से लेकर संकुल के गलियारों में सुनाई दे रहा है। इशारा अपने दूसरे माले के मुखिया की तरफ है। जिन्होंने भरोसा किया। उसके बदले एक अदने से कर्मचारी ने धोखा दिया। मामला मंदिर के गर्भगृह प्रवेश से जुडा है। प्रोटोकॉल से जुड़ा यह कर्मचारी था। जो कि हर रोज अपने दूसरे माले के मुखिया को दर्शन करवाता था। मंदिर की डयोढी या नंदीहॉल से। इसलिए उसका रूतबा मंदिर में बढ़ गया था। जिसका उसने फायदा उठाया। खुद गर्भगृह में जाकर हर रोज जल चढ़ाने लगा। इसकी भनक दूसरे माले के मुखिया को कभी नहीं लगी। मगर चोरी पकड़ी गई। वीडियों में कैद हो गया कर्मचारी। लंबे समय से गर्भगृह में जा रहा था। इस वीडियों को देखते ही दूसरे माले के मुखिया ने तत्काल सख्त कदम उठाया। कर्मचारी की उसके मूल विभाग में वापसी कर दी। जिसके लिए हम मुखिया को साधूवाद देकर, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
पोंछा ...
एक बार फिर मंदिर के गर्भगृह को लेकर यह चर्चा है। पोंछा लगाने के नाम पर। एक कर्मचारी रोजाना गर्भगृह में जाकर पहले जल चढाता है और फिर दिखाने के लिए पोछा लगाने लगता है। मगर यह केवल दिखावा होता है। ताज्जुब की बात यह है कि मंदिर की तरफ से इस कर्मचारी को पोंछा लगाने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है। कोई लिखित में आर्डर नहीं है। फिर भी यह कर्मचारी गर्भगृह में घुसकर पहले जल चढाता है और फिर पोंछा लगाने की नौटंकी करता है। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में दबी जुबान से यह नजारा देखने वाले कर रहे है। हमारे सूत्र भी इसकी पुष्टि कर रहे है। लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते है। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मोह ...
पद का मोह मरते दम तक नहीं जाता है। खासकर राजनीति करने वालों के दिल से। फिर भले ही उनसे यह पद छीन लिया गया हो। मगर उनके वाहन के आगे उसी पद की नेम प्लेट लगी रहती है। फिर वह पंजाप्रेमी हो या कमलप्रेमी। मगर यहां हमारा इशारा पंजाप्रेमी की तरफ है। जिनको पंजाप्रेमी ... सूरज अस्त- हम मस्त.... के नाम से जानते है। उनको पंजाप्रेमी मुखिया पद से हटाये काफी समय हो गया है। लेकिन उनका पद का मोह अभी तक नहीं जा रहा है। तभी तो आज भी उनके वाहन पर पदमोह की नेम प्लेट नजर आती है। ऐसा हमारा नहीं, बल्कि पंजाप्रेमियों का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
नाम क्या है ...
चाचा शेक्सपियर ने कहा था। नाम में क्या रखा है। गुलाब तो गुलाब है। मगर कभी-कभी नाम पूछकर मुसीबत को टाला जा सकता है। खासकर उस मंदिर में। जहां अपने विकासपुरूष बरसों तक प्रति मंगलवार पूजन करने जाते थे। भूमिपुत्र के मंदिर में। उनकी तपस्या रंग लाई। आज वह सूबे के मुखिया है। उनके इस पद पर पहुंचते ही, कई अपरिचित चेहरे उनका नाम लेकर फायदा उठा रहे है। बेचारे ... मंदिर के पुजारीगण परेशान है। तभी तो वह ऐसे सवाल कर लेते है। जो कि नाम से जुड़े रहते है। जैसे पुजारी ने पूछ लिया। आप अगर विकासपुरूष के करीबी है ... रिश्तेदार है। तो उनके घोड़े का नाम बताओं। यह सवाल सुनते ही विकासपुरूष के नाम की धमकी दे रहा शख्स चुप हो गया। इसके बाद ऐसे गायब हुआ। जैसे गधे के सिर से सिंग। ऐसी चर्चा भूमिपुत्र मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
दबाव ...
पिछले दिनों एक छेड़छाड की घटना हुई थी। मंदिर के गलियारों में। मामला तूल पकड़ गया। नौबत रिपोर्ट करवाने तक की आ गई। मगर एक आईएएस इसके पक्ष में नहीं थे। शायद मंदिर की बदनामी को लेकर डर रहे थे। इसलिए उन्होंने एडी-चोटी का जोर लगाया। खूब दबाव बनाया। वर्दी पर। मगर अपने कप्तान जी भी टस से मस नहीं हुए। उन्होंने साफ निर्देश दिये। एफआईआर दर्ज की जाये। कप्तान की बात पर अमल किया गया। आईएएस जी का दबाव काम नहीं आया। ऐसी चर्चा वर्दी वाले दबी जुबान से कर रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
आधी-खुशी ...
वर्दी में इन दिनों खुशी की लहर है। मगर यह उनकी अधूरी खुशी है। ऐसा खुद वर्दीवालो का कहना है। इशारा सोमरस बिक्री करने वालों की तरफ है। जिनका वर्दी से अघोषित मगर ईमानदारी वाला समझौता चलता है। प्रतिमाह की बंदी का। लंबे समय से इस बंदी पर अंकुश लगा था। वर्दीवालों को कोई बंदी या सोमरस की शीशी नहीं दी जा रही थी। मगर अब समझौता हुआ है। जिसमें वर्दी को बंदी मिलेगी,मगर यह बंदी आधी रहेगी। तभी तो वर्दी बोल रही है। आधी खुशी मिली है। वर्दी की बात सच है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
नजरे ...
अपने विकासपुरूष भले ही बाबा की नगरी से 200 किलोमीटर दूर रहते है। मगर कहां क्या हो रहा है- कौन क्या कर रहा है। इस पर उनकी नजरे बनी रहती है। फिर भले ही राजधानी से आये प्रमुख सचिव क्यों ना हो। प्रमुख सचिव बैठक ले रहे थे। इस दौरान 3 दफा उनका फोन बजा। तीनों बार उठकर बाहर गये। बातचीत करके वापस आये। तीसरी दफा जब बात करके लौटे। तो उन्होंने खुद कह दिया। साहब का फोन था। मतलब अपने विकासपुरूष का। प्रमुख सचिव की बात सुनकर वहां मौजूद हर अधिकारी आश्चर्य में पड गया। सभी ने दबी जुबान से कहा। नजरें हो तो विकासपुरूष जैसी। जो कहीं भी रहें। अपने जिले की खबर रखते है। अधिकारियों की बात में सच्चाई है। शासन ऐसे ही चलता है। इसके लिए विकासपुरूष को साधूवाद देकर, हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
दु:ख ...
नौकरशाही के लिए यह माना जाता है। वह कठोर दिल होते है। बल्कि उनके सीने में दिल ही नहीं होता है। इसलिए दु:खी नहीं होते है। मगर कुछ आईएएस अपवाद होते है। जैसे शनिवार को आए प्रमुख सचिव। जिन्होंने खुद खुलकर बैठक में कहा। उन्हें बड़ा दु:ख होता है। जब यह खबरे पढ़ते हैं। फला जगह- फला ग्रामदेवता... 5 हजारी राशि लेते पकड़ा गया। प्रमुख सचिव का यह दु:ख सुनकर बैठक में मौजूद सभी हतप्रभ थे। कारण आईएएस और दु:खी। ऐसा होता नहीं है। तभी तो अधिकारी वर्ग में प्रमुख सचिव के दु:ख की चर्चा है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
अभी आई हूं...
झूठ कई प्रकार के होते हैं। मगर सफेद झूठ बोलना हर किसी को नहीं आता। इसके लिए बहुत हुनर चाहिये। शायर वसीम बरेलवी का अशआर है। वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से/ मैं एतबार ना करता तो और क्या करता। प्रमुख सचिव की बैठक में यही झूठ सामने आया। जब उन्होंने प्राकृतिक संसाधन विभाग से उत्तखनन- परिवहन-भंडारण को लेकर सवाल किया। सवाल पर जवाब मिला। मैं अभी आई हूं। इसका आशय यह था कि कुछ दिन पहले ही पदस्थापना हुई है। जबकि सच इसके उलट है। जवाब देने वाली मैडम की पदस्थापना अपने उत्तम जी के कार्यकाल में हुई थी। लगभग 9 महीने हो चुके है। इसके बाद भी उनका यह जवाब ... अभी आई हूं... सुनकर वहां मौजूद सभी अधिकारी आश्चर्य में पड़ गये। 9 महीने की पदस्थापना से तुलना करने लगे। नतीजा बैठक के बाद ऊपर लिखे अशआर को सभी याद कर रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
सूची ...
अपने दूसरे माले के मुखिया ने सूची मांगी है। उन राजस्व अधिकारियों की। जो कि काम करने में कमजोर है। फील्ड में रहने और जनहित के काम में रूचि नहीं लेते है। बस .... जेब गर्म करने के चक्कर में रहते हैं। ऐसे अधिकारियों को अब जिले से बाहर भेजा जायेगा। तभी तो बैठक में ही उन्होंने बोल दिया। ऐसे सभी लोगों की सूची बनाकर दी जाये। ताकि इनको हटाया जा सके। यह आदेश उन्होंने प्रमुख सचिव की बैठक में ही दिया। अब देखना यह है कि इस सूची में कितने नाम शामिल होते हैं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
चेतावनी ...
अंदरखाने की खबर है। अपने प्रथमसेवक की नाराजगी चरम पर है। तभी तो अपने करीबियों से यह बोल रहे है। वह जनहित के लिए अपना पद भी छोडऩे को तैयार है। उनका यह आक्रोश बैठकों में नहीं बुलाये जाने को लेकर है। वह खुलकर इशारा दे रहे है। अफसरशाही उनको तवज्जों नहीं देती है। इसलिए जरूरी हुआ तो वह अपना पद भी छोड़ देंगे। शिवाजी भवन के गलियारों में तो यही चर्चा है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
बीमारी ....
अपना सरकारी भोंपू इन दिनों बीमारी का शिकार है। इस बीमारी का नाम जलन है। तभी तो किसी भी बैठक- दौरे- निरीक्षण से वरिष्ठ अधिकारियों के नाम अपनी खबरों से गायब कर देता है। जबकि फोटो में कई वरिष्ठ अधिकारी नजर आते है। अब इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। कुछ अधिकारी दबी जुबान से यह भी बोल रहे है। संकुल के इशारे पर यह सब होता है। अधिकारियों की बात में दम है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
शपथ ...
अकसर आम जनता को समय-समय पर शपथ दिलाई जाती है। कानून का पालन करने की। मगर पहली दफा अपराधियों को शपथ दिलाने का नजारा देखने को मिला। यह वह अपराधी थे। जिनको अपने घर से बहुत दूर भेजा जा रहा था। सभी को शपथ दिलाई गई। कानून का पालन करने की। अच्छा नागरिक बनने की। प्रयास अच्छा है। इसके लिए बधाई। मगर खुद इस शपथ पर वर्दी सवाल उठा रही है। एक कहावत सुना रही है। लातो के भूत- बातों से नहीं मानते। वर्दी की बात 1 हजार प्रतिशत सच है। मगर हम सकारात्मक सोच रखते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
याद ....
मंदिर के गलियारों में याद किया जा रहा है। किसको ? अपने इंदौरीलाल जी को। कारण मंदिर में अव्यवस्था शीर्ष पर है। कोई रोकने वाला नहीं है। जिसकी मर्जी होती है। वह अपना प्रभाव दिखाकर, नियमों को तोड रहा है। बोलने वाले खुलकर बोल रहे है। जब अपने इंदौरीलाल जी थे। तब थोड़ा बहुत डर रहता था। कारण वह मौजूद रहते थे। मगर जब से दमदमा के आईएएस जी ने कार्य संभाला है। यह डर खत्म हो गया है। मंदिर वालो की बात सच है। मगर हम कुछ नहीं कर सकते है। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मेरी पसंद ...
जब बारी आई कुछ कहने की/ तब तक आदत बन चुकी थी चुप रहने की...!