19 अगस्त 2024 (हम चुप रहेंगे)
एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !
हट जाओ...
आजादी पर्व के मुख्य समारोह स्थल पर यह नजारा देखा गया। अपने दूसरे माले के मुखिया जोधपुरी सूट और साफे में हीरो लग रहे थे। माननीय मुख्यअतिथि के साथ मंच पर पहुंचे थे। अपने कप्तान जी भी मौजूद थे। एक वर्दीधारी उपनिरीक्षक भी मंच पर था। जो कि मददगार के रूप में मौजूद था। उसने ध्वजारोहण की डोरी मुख्यअतिथि को दी। लेकिन डोरी अटक गई। गठान सही नहीं बंधी थी। अतिथि ने 2 दफा कोशिश की। फिर भी ध्वज नहीं लहराया। मुख्य अतिथि हैरान थे। मददगार उपनिरीक्षक ने भी कोशिश की। आखिरकार बाबा मेहरबान हुए। ध्वजारोहण हो गया। जिसके बाद मददगार उपनिरीक्षक वहीं खड़े हो गये। नतीजा मीडिया कवरेज में दूसरे माले के मुखिया पीछे नजर आ रहे थे। उन्होंने अपने हाथ से उपनिरीक्षक को हटने का इशारा किया। उपनिरीक्षक नहीं हटे। तो फिर दूसरी दफा पीछे से हाथ लगाकर हटाया। तब जाकर उपनिरीक्षक को समझ में आया। वह तत्काल हट गये। यह नजारा सभी ने देखा। लेकिन सब चुप रहे। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
निलंबन ...
ईमानदारी की सजा निलंबन होती है। ऐसा ग्रामदेवता बोल रहे है। बदबू वाले शहर के ग्रामदेवता तो यही इशारा दे रहे है। दोनों मामले डिमांड से जुड़े है। डिमांड करने वाले दोनों अधिकारी है। डिप्टी कलेक्टर ने डिमांड की थी। फला प्रकरण में 20 हजारी भिजवा देना। ग्रामदेवता ने मना कर दिया। नतीजा निलंबन हो गया। दूसरा मामला एक मैडम से जुड़ा है। नायब स्तर की अधिकारी है। उन्होंने सामान खरीदा था। भुगतान 5 हजारी करना था। ग्रामदेवता को निर्देश दिये। दुकानदार को भुगतान कर देना। ग्रामदेवता ने शर्त रख दी। एक फाइल कर दो, भुगतान कर दूंगा। नायब मैडम ने मना कर दिया। फाइल के लिए अलग डिमांड करी। इधर ग्रामदेवता ने भुगतान नहीं किया। इनको भी घर बैठा दिया गया। ताज्जुब की बात यह है। दोनों ग्रामदेवताओं के क्षेत्र की जनता इस निलंबन से नाराज है। आपत्ति भी दर्ज कराई है। मगर हुआ कुछ नहीं है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
11 पेटी ...
बाबा महाकाल के सेनापति कालभैरव माने जाते है। जो कि सोमरस का सेवन करते है। उनके इस मंदिर में हजारों भक्त रोज आते है। इस मंदिर के प्रशासक फिलहाल तहसीलदार है। जो कि अगले महीने रिटायर होने वाले है। उनके बाद प्रशासक कौन बनेगा? इसको लेकर प्रयास शुरू हो गये है। मंदिर के गलियारों में चर्चा है। एक पूर्व सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारी रूचि दिखा रहे है। पहले भी प्रशासक रह चुके है। इसी मंदिर के। उनकी फिर मंशा है। इनसे मंदिर के दलाल खुश रहते है। इसलिए नियुक्ति पर 11 पेटी तक खर्च करने की चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। अंदरखाने की खबर है। दलाल लोग चंदा एकत्रित करके देने को तैयार है। ताकि कठपुतली प्रशासक की नियुक्ति हो जाये। देखना यह है कि 30 सितम्बर बाद प्रशासक कौन बनता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
उतारा ...
अपने विकासपुरूष रविवार को आये थे। हेलीपेड पर भावभीना स्वागत हुआ। प्रसन्नमुद्रा में उन्होंने सभी से मुलाकात की। जिसके बाद काफिला रवाना हुआ। विकासपुरूष के वाहन में अपने हाईनेस और सुरक्षाकर्मी सवार हो गये। दूसरी तरफ से अपने प्रथमसेवक ने दरवाजा खोला। अंदर पैर रखा। बैठने की कोशिश कर रहे थे। अचानक पीछे से अपने ढीला-मानुष जी आ गये। उन्होंने प्रथमसेवक को रोक दिया और खुद वाहन में सवार हो गये। बेचारे प्रथमसेवक ने सम्मान रखा और चुपचाप पीछे वाले वाहन में बैठ गये। यह नजारा सभी ने देखा। मगर सब चुप रहे। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
चिंता ...
ध्वजवंदन के दौरान की घटना है। अपने दूसरे माले के मुखिया मंच पर मौजूद थे। दशहरा मैदान पर। मगर उनके चेहरे पर चिंता नजर आ रही थी। उनको किस बात की चिंता सता रही थी। इसका तो खुलासा नहीं हुआ। मगर उनके पास एक पर्ची जरूर भेजी गई। जिसे पढ़कर उनके चेहरे पर चिंता के बदले हल्की मुस्कान नजर आई। अंदरखाने की खबर है। कोई विवाद हुआ था। बाबा साहब को लेकर। इसी कारण चिंता थी। वर्दी को इसकी खबर नहीं थी। मामला तूल पकडता, उसके पहले ही सुलझा लिया गया। ऐसी चर्चा दशहरा मैदान पर सुनाई दी। सच और झूठ का फैसला खुद पाठक कर ले। क्योंकि हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
6-7-43 ....
वैसे तो 6 को 7 से गुणा करो या फिर 7 को 6 से। अंक 42 आता है। लेकिन इस दफा यह अंक 43 था। जी-हां ... आजादी पर्व पर जो उद्बोधन अपने बाऊजी ने पढा। वह 43 पेज का था। जिसे पढऩे में उनको 90 मिनिट का समय लगा। इस दौरान आजादी पर्व का लुत्फ उठाने आये सभी बोर होते नजर आये। जिसके चक्कर में तालिया भी बज गई। जो कि इशारा थी कि बंद करो। लेकिन अपने बाऊजी पूरे जोश-खरोश से पढ़ते रहे। जब-जब उनकी ताकत कम हुई। उन्होंने पानी पिया। 43 पेज पढऩे के दौरान उन्होंने 6 दफा ग्लास से और 7 दफा बोतलबंद पानी पिया। एक दफा तो उन्होंने बोतल उठाई। मुंह तक ले गये। मगर बोतल सीलबंद थी। खोलकर नहीं रखी थी। नतीजा .... अपने कप्तान जी ने तत्काल सहायता की। बोतल का ढक्कन खोला और रख दी। तब जाकर अपने बाऊजी ने पानी पिया। ऐसा यह नजारा देखने वालो का कहना है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
जैसा-वैसा ...
क्या हल्ला-बोल कार्यक्रम प्रायोजित था? सबकुछ सेटिंग के अनुसार हुआ? यह सवाल हमारे नहीं है। बल्कि खुद पंजाप्रेमी उठा रहे है। पंजाप्रेमी दबी जुबान से स्वीकार कर रहे है। जैसी उम्मीद थी। हल्ला बोल की। वैसा हंगामा नहीं हुआ। जिसकी पुष्टि में वह अपने चरणलाल जी के कथन का हवाला दे रहे है। जो कि कोठी पर ज्ञापन देने से पहले चरणलाल जी ने एक वर्दीधारी अधिकारी को कहे थे। चरणलाल जी ने साफ-साफ कहा था। जैसा बोला ... वैसा ही कर रहे है। अब तो ज्ञापन ले लीजिए। यह सुनकर तत्काल दूसरे माले के मुखिया और कप्तान जी को सूचना दी गई। दोनों तत्काल आ गये। जिसके बाद ज्ञापन दिया गया। अब पंजाप्रेमी जैसा-वैसा का हवाला देकर सवाल उठा रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
गब्बर-बैक ....
मंदिर में नये मुखिया का आगमन हो चुका है। जिसको लेकर मंदिर के दलालों में हड़कंप मचा हुआ है। सभी डरे और सहमे है। तभी तो किसी ने मंदिर के सोशल मीडिया ग्रुप में लिख दिया। गब्बर इज बैक। ऐसी मंदिर के गलियारों में चर्चा है। अब देखना यह है कि नये मुखिया, गब्बर की भूमिका को कितनी संजीदगी से निभाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
सहमति बनाम असहमति ...
पुराने और नये कमलप्रेमी के बीच हुई मारपीट के पीछे किसकी सहमति थी। किसकी शह पर नये- नवेले कमलप्रेमी ने इतना बड़ा कांड कर दिया? यह सवाल हर कमलप्रेमी की जुबान पर है। कुछ इशारों-इशारों में पिस्तौलकांड नायक का नाम ले रहे है। जबकि पिस्तौलकांड नायक साफ इंकार कर रहे है। बहरहाल यह जांच का विषय है। किसकी शह पर कांड हुआ। मगर यह सच है। पुराने कमलप्रेमी से नये कमलप्रेमी बहुत प्रताडित थे। वैसे दोनों ही पडोसी है। नये कमलप्रेमी पहले पंजाप्रेमी थे। उस वक्त उनको खूब सताया गया। जमीन से लेकर खदान और डंपर से लेकर जिलाबदर तक की प्रताडना सही । आखिरकार पंजे का मोह छोड़कर कमलप्रेमी बन गये। अपने वजनदार जी के माध्यम से इंट्री ली थी। मगर फिर भी प्रताडित होते रहे। तो नये कमलप्रेमी ने पिस्तौलकांड नायक की शरण ली। उनकी शरण में आने के बाद यह कांड हो गया। ऐसा घटना होने के बाद अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। अब फैसला समझदार पाठकगण खुद कर ले। किसकी सहमति से यह कांड हुआ है। बाकी हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
नसीहत या हिदायत ...
अपने विकासपुरूष जी आज शहर में आये। हेलीपेड से सीधे रक्षासूत्र वाले कार्यक्रम में गये। जो कि एक गार्डन में था। जहां मंच पर उनके समीप अपने पिस्तौलकांड नायक विराजमान थे। थोडी देर बाद दोनों के बीच कानाफूसी हुई। अपने विकासपुरूष ने जाने क्या उनके कान में कहा । नसीहत दी या हिदायत। जिसके बाद अपने पिस्तौलकांड के नायक के चेहरे की भाव- भंगिमा ही बदल गई। ऐसा यह नजारा देखने वाले कमलप्रेमी बोल रहे है। कयास लगा रहे है। संभवत: पिटाई कांड को लेकर चर्चा हुई होगी। तभी तो इस कार्यक्रम के बाद पिस्तौलकांड नायक किसी कार्यक्रम में नजर नहीं आये। अब अपने विकासपुरूष ने नसीहत दी-हिदायत दी-या फिर कुछ और बात कही। यह केवल अपने विकासपुरूष ही बता सकते है और उनसे पूछने की जुर्रत कोई कर नहीं सकता है। इसलिए हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
मेरी पसंद ....
रंग-बिरंगे मौसम में सावन की घटा छाई है/ खुशियों की सौगात लेकर बहना राखी बांधने आई है...। रक्षा पर्व की सभी पाठकों को दिल से बधाई।