19 सितम्बर 2022 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

19 सितम्बर 2022 (हम चुप रहेंगे)

विकास की राह में बाधक बन गये ' आयुक्त ' ...! भाजपा में चर्चा ...

उज्जैन। उत्तर-दक्षिण क्षेत्र के विकास में नगर निगम आयुक्त बाधक बने हुए है। ऐसी चर्चा शहर के भाजपाई कर रहे है। मामला मुख्यमंत्री की घोषणा से जुड़ा है। घोषणा यह थी कि ... प्रत्येक विधायक को अपने-अपने क्षेत्र में विकास हेतु 15 करोड़ रूपये दिये जायेंगे। लेकिन विधायकों द्वारा दिये गये प्रस्तावित कामों के प्रति आयुक्त की उदासीनता ने मजबूर कर दिया है। तभी तो भाजपाई यह बोल रहे है कि ...  विकास की राह में बाधक बन गये ' आयुक्त ' ...!

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान आज 2 घंटे के लिए उज्जैन आ रहे है। इसी कारण से शहर के भाजपाईयों में उनके द्वारा की गई घोषणा की चर्चा है। विदित रहे कि अप्रैल माह में मुख्यमंत्री ने 15-15 करोड़ विकास कार्यो हेतु देने की घोषणा की थी। जिसके बाद दोनों विधायकों डॉ. मोहन यादव और पारस जैन ने अपने-अपने क्षेत्र के विकास कार्यो हेतु प्रस्ताव भेज दिये थे। लेकिन उनके प्रस्तावों को अभी तक धरातल पर नहीं लाया जा सका है। जबकि अगले साल विधानसभा चुनाव है। जिसकी  तैयारी में पार्टी जुट गई है।

राजधानी से हरी झंडी ...

विदित रहे कि मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद, उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रस्ताव भेज दिये थे। जिसमें शनि मंदिर पहुंच मार्ग, हरिफाटक ब्रिज के पास शेड निर्माण, मोतीनगर विकास कार्य, टॉवर निर्माण गऊघाट और दशहरा मैदान में विकास को शामिल किया गया था। इन सभी प्रस्तावों की प्रशासकीय स्वीकृति 23 मई 2022 को नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग मप्र भोपाल से प्राप्त भी हो गई है। (देखे चित्र) लेकिन उसके बाद 119 दिन बीतने वाले है। अभी तक केवल शनि मंदिर के निर्माण को ही आयुक्त नगर निगम अंशुल गुप्ता द्वारा स्वीकृति मिली है। बाकी के 4 काम अभी भी स्वीकृति के इंतजार में है। ऐसा नगर निगम के सूत्र और भाजपाई बोल रहे है।

आम जनता का क्या ...

मुख्यमंत्री की घोषणा ... प्रस्तावों का भेजना ... प्रशासकीय स्वीकृति होने के बाद भी। शहर के विकास कार्यो के प्रति निगम आयुक्त की उदासीनता? इसको लेकर खुद भाजपाई ही सवाल उठा रहे है। सवाल सीधा और साफ है। अगर इतने पॉवरफुल वर्तमान मंत्री और पूर्व मंत्री पारस जैन के प्रस्तावों पर गौर नहीं किया जा रहा है। तो आम जनता की गुहार पर सुनवाई कब और कैसे होगी? जबकि विधानसभा चुनाव में केवल 14 महीने बचे है। अब अगर अपने क्षेत्र में विकास कार्य ही विधायक नहीं करवा पाये?  तो वह जनता के सामने वोट मांगने कैसे जायेंगे।

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8 साल बाद फिर होगी ' रामलीला ' ...!

उज्जैन। नई युवा पीढी को अपनी संस्कृति और धर्म से परिचय कराने का बीडा, एक बार फिर संस्कार मंच ने उठाया है। तभी तो आखिरकार 8 साल बाद शहरवासी एक बार फिर मंच पर रामायण का मंचन देख सकेंगे।

आज का दौर भले ही दूरसंचार क्रांति और 5 जी का है। लेकिन एक वक्त था। जब दूरदर्शन ही मनोरंजन का एक मात्र साधन था। तब  रामायण के प्रसारण ने देश में ऐसा माहौल पैदा किया था। प्रसारण के वक्त रेल तक रूक जाती थी। शहर में सन्नाटा छा जाता था। शादियां भी रामायण देखने के लिए रोक दी जाती थी। शनै-शनै मोबाइल युग आ गया। लेकिन संस्कृति और धर्म से युवा पीढी दूर होती गई। सुपरमैन और डोरेमाम ने रामलीला की जगह ले ली। यहां यह लिखना जरूरी है कि सन् 80 के दशक में क्षीरसागर मैदान पर रामलीला होती थी। फिर यह बंद हो गई।  2014 में भाजपा नेता सोनू गेहलोत ने रामलीला का मंचन करवाया था। अब 8 साल बाद एक बार फिर सामाजिक न्याय परिसर में रामलीला का मंचन होने जा रहा है। जिसमें शहर के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। 8 अक्टूबर से यह 9 दिवसीय रामलीला शुरू होगी।  

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दिल के अरमां ...

शिवाजी भवन से स्मार्ट गलियारों में एक गजल सुनाई दे रही है। फिल्म निकाह की चर्चित गजल। दिल के अरमां आंसूओं में बह गये। हालांकि हमें पूरा भरोसा है। अपने पपेट जी के आंसू तो  नहीं निकले होंगे, लेकिन दिल के अरमां जरूर बह गये है। तभी तो एफिल- टॉवर का जिक्र करते हुए यह गजल सुनाई जा रही है। यह भी बोला जा रहा है कि अपने पपेट जी के साथ ऐसा दूसरी बार हुआ है। जब उन्हें 7 समंदर पार जाने की अनुमति नहीं मिल पायी। इसके पहले वह फुटबाल खेल के लिए चर्चित देश की यात्रा पर जाने वाले थे। तब भी राजधानी से अंडगा डल गया था। इस बार भी यही हुआ। दु:ख इस बात का है कि अपने पपेट जी 4 दिन अतिरिक्त रूककर एफिल- टॉवर देखने का मन बना चुके थे। अगर अनुमति मिल जाती तो उनका यह अरमां पूरा हो जाता। मगर ऐसा नहीं हुआ। तो फिर दिल के अरमां बोलना कोई गलत तो नहीं है। फिलहाल अरमां नहीं निकले है तो हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

शह और मात ...

शतरंज और राजनीति एक दूसरे के पूरक है। दोनों में शह-मात का खेल चलता रहता है। जिसकी चाल सटीक होती है। वह बाजी मार लेता है। इस दफा दाव पर अकादमी का प्रांगण था। जिसको लेने के लिए अपने विकास पुरूष और वजनदार जी आमने-सामने हो गये। वजनदार जी, जिस संस्था से जुड़े है वह अकादमी प्रांगण में गरबा करवाती है। जबकि विकास पुरूष की संस्था रावण दहन वाले मैदान पर। इस दफा विकास पुरूष ने अकादमी पर नजरे इनायत कर दी। प्रशिक्षण भी शुरू करवा दिया। दबाव भी बना दिया। जिसके बाद वजनदार जी की संस्था ने जोर लगाया। एक चाल चली कि ... विकास पुरूष वाली संस्था को प्रशिक्षण स्थल पर, स्थान परिवर्तन का होर्डिंग्स लगाना पड़ा। गरबे की इस शतरंज पर फिलहाल वजनदार जी ने बाजी मार ली। इसलिए उनके समर्थक खुश है। ऐसा कमलप्रेमी बोल रहे है। देखना यह है कि जीत की यह खुशी आगे जाकर क्या रंग लाती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

सबक ...

नये संकुल में बैठने वाले कर्मचारियों के लिए यह सबक हमेशा काम आयेंगा। किसी पर भी भरोसा मत करो। खासकर जनप्रतिनिधियों के उन छर्रो पर। जो कि दलाली के चक्कर में बाबूओं के पास जाकर बैठते है। अगर कोई महत्वपूर्ण कागज नजर आ जाए। तो चुपचाप फोटो खीच लेते है। जिसका नतीजा बेचारे कर्मचारी को भुगतना पडता है। निलंबन से अगर बच जाये तो तबादला हो जाता है। शुक्रवार को यही हुआ। अपने मामाजी के आगमन को लेकर मिनिट- टू- मिनिट वाला कार्यक्रम वायरल हो गया। वायरल करने वाले अपने वजनदार जी के करीबी थे। जिन्होंने फोटो खीच लिया था। इस चक्कर में कर्मचारी पर गाज गिर गई। बाबा महाकाल की कृपा रही। निलंबन टल गया और तबादला ही हुआ। लेकिन इस घटना ने कर्मचारियों को सबक जरूर सिखा दिया है। देखना यह है कि कर्मचारी इसे सबक के रूप में लेते है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

छक्का-पक्का ...

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती आने ही वाली है। ज्यादा दिन नहीं बचे है। हमारे पाठक सोचेंगे। इसमें नई बात क्या है। हर साल 2 अक्टूबर को पूरा देश बापू को याद करता है।  लेकिन इसी दिन स्वच्छता का परिणाम भी आता है। शिवाजी भवन के गलियारों से यह दावा किया जा चुका है। इस दफा अवंतिका नगरी अंडर-10  में होगी। अब इसका फैसला तो 2 अक्टूबर को आयेंगा। भले ही अपने पपेट जी और खजांची जी लाख दावा करे। किन्तु पिछले 5 सालों से देश में नम्बर-1 का खिताब लेने वाले इंदौरी, इस बार छक्का-पक्का मान रहे है। उनका दम ठोककर दावा है कि ... टर्मिनेटर मैडम की अगुवाई में छक्का लगना पक्का है। जिसके जश्न की तैयारी भी रंग-रोगन और साज-सज्जा के तौर पर शुरू हो गई है। अब देखना यह है कि अवंतिका नगरी अंडर-10 में शामिल हो पाती है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

नोटिस ...

बाबा के दरबार में एक घटना हुई थी। यह वही घटना है। जिसके चक्कर में 18 युवा कमलप्रे्मियों की फाइल निपट गई। शायद हमारे पाठकों को यह घटना याद आ गई हो। तो यह भी याद आया होगा। घटना ने तूल पकड़ा तो अपने उम्मीद जी ने नोटिस जारी किया था। किसको... कुछ याद आया? नहीं याद आया? कोई बात नहीं। हम बता देते है। अपने चुगलीराम जी को नोटिस जारी किया था। जिसमें उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाया था। नोटिस के बाद सभी को यह उम्मीद थी। अब कोई ठोस कार्रवाई होगी। लेकिन आज तक किसी को पता नहीं चला। नोटिस के जवाब में अपने चुगलीराम जी ने क्या लिखा? लेकिन उसके बाद मामला शांत हो गया है। नतीजा हर कोई इस मामले को लेकर चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

निलंबित कर दो ...

ऊपर हमारे पाठकों ने नोटिस का मामला तो पढ़ ही लिया है। जिसमें अप्रत्यक्ष रूप से अपने चुगलीराम जी को क्लीन चिट मिल गई है। मगर 6 अगस्त की घटना को लेकर मंदिर के गलियारों में चर्चा है। चर्चा यह है कि अभी मामले की जांच चल ही रही है। लेकिन अपने चुगलीराम जी का सुझाव है। इस घटना से जुड़े सभी पात्रों को निलंबित कर दिया जाये? क्योंकि इसमें उनको अपना फायदा नजर आ रहा है। तभी तो उन्होंने यह सुझाव ऊपर दे डाला। अब उनको यह कौन बताये कि ... बगैर जांच किये किसी को दोषी नहीं माना जा सकता है। जब तक दोषी नहीं माना जाये, तब तक निलंबित भी नहीं किया जा सकता। अपने चुगलीराम जी के इसी पक्षपात वाले विचारों के चलते उनसे जांच छीनी गई। काश  ... इतनी सी बात अपने चुगलीराम जी समझ जाते? तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते।

शिकार पर ...

सबसे पहले अपने कप्तान जी को बधाई। जिन्होंने एक बार फिर चीतों को जिंदा कर दिया। हालांकि इसके पहले भी चीते जिंदा हुए थे। लेकिन उस वक्त इनके साथ एक स्लोगन चर्चित हो गया था। उज्जैन के चीते है... शिकार पर जीते है... ! तब इन चीतों के कारण वर्दी पर दाग भी लगे थे। ढांचाभवन में चीता-पार्टी के साथ ही मारापीटी हो गई थी। कारण यह था कि ... चीते खुद अपना-अपना शिकार करने लगे थे। नतीजा ... सभी चीतों को पिंजरे में बंद कर दिया गया था। अब एक बार फिर अपने कप्तान जी ने पिंजरा खोल दिया है। वर्दी वाले चीते बाजार में है। तो इन चीतों से यही उम्मीद है कि ... अच्छा काम करके, वर्दी और अपने कप्तान का मान बढायेंगे। जिसके लिए हम अग्रिम बधाई देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

फूले-फूले हम फिरे ...

शिवाजी भवन के गलियारों में इन दिनों एक बुंदेलखंडी कहावत सुनाई दे रही है। जिसमें इशारा अपने प्रथम सेवक की तरफ है। जो कि इन दिनों 24 घंटे 7 दिन मेहनत कर रहे है। निरीक्षण और दौरा जारी है। उससे समय बचता है तो कभी चाय की दुकान तो कभी सायकिल पंचर की दुकान पर भी नजर आ जाते है। प्रथम सेवक तो रविवार के दिन भी शिवाजी भवन जा रहे है। तभी तो शिवाजी भवन के गलियारों में यह कहावत सुनाई दे रही है। तुलसी गाये बजाये के ... देत काठ में पांव/ फूले-फूले हम फिरे... आज हमारा ब्याव। अब शिवाजी भवन वालो की जुबान हम पकड नहीं सकते है। इसलिए अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

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