10 अप्रैल 2023 (हम चुप रहेंगे)

एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

10 अप्रैल 2023 (हम चुप रहेंगे)

कभी ऐसे भी होते थे असली कथावाचक ...

उज्जैन। यह जानकर सुखद आश्चर्य होता है। पूज्यनीय रामचंद्र डोंगरे जी महाराज जैसे भागवताचार्य भी हुए है। जो कथा के लिए एक रूपया भी नहीं लेते थे। मात्र तुलसी पत्र लेते थे।  जहां भी वे भागवत कथा कहते थे। उसमें जो भी दान-दक्षिणा चढ़ावा आता था। उसे उसी शहर या गांव में गरीबों के कल्याणार्थ दान कर देते थे। कोई ट्रस्ट बनाया नहीं, और शिष्य भी नहीं बनाया। अपना भोजन भी स्वयं बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते थे। डोंगरे जी महाराज कलयुग के दानवीर कर्ण थे।

पूज्यनीय रामचंद्र डोंगरे जी महाराज

उनके अंतिम प्रवचन में चौपाटी में 1 करोड़ रूपये जमा हुए थे। जो गोरखपुर के कैंसर अस्पताल को दान किये गये थे। उन्होंने स्वयं कुछ नहीं लिया था। डोंगरे जी महाराज की शादी हुई थी। प्रथम रात के समय उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से कहा था। देवी... मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ 108 भागवत कथा का पारायण करे, उसके बाद यदि आपकी इच्छा होगी तो हम गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करेंगे। इसके बाद जहां-जहां डोंगरे जी महाराज भागवत कथा करने जाते, उनकी पत्नी भी साथ जाती। 108 भागवत पूर्ण होने में करीब 7 वर्ष बीत गये। तब डोंगरे जी महाराज ने पत्नी से बोले- अब अगर आपकी आज्ञा हो तो हम गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर संतान उत्पन्न करें। इस पर उनकी पत्नी ने कहा... आपके श्रीमुख से 108 भागवत श्रवण करने के बाद मैने गोपाल को ही अपना पुत्र मान लिया है। इसलिए अब हमें संतान उत्पन्न करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

डोंगरे जी महाराज की पत्नी आबू में रहती थी और डोंगरे जी महाराज देश-दुनिया में भागवत रस बरसाते थे। पत्नी की मृत्यु के 5 दिन पश्चात उन्हें इसका पता चला। वे अस्थि- विसर्जन करने गये। उनके साथ मुम्बई के बड़े सेठ रतिभाई पटेल भी थे। डोंगरे महाराज ने रतिभाई से कहा... मेरे पास तो कुछ है नहीं... और अस्थि विसर्जन में कुछ तो लगेंगा। क्या करें। फिर आगे बोले... ऐसा करो ... पत्नी का मंगलसूत्र और कर्णफूल पडा होगा। उसे बेचकर जो मिलेगा, उसे अस्थि विसर्जन क्रिया में लगा देते है।

सेठ रतिभाई पटेल ने रोते हुए बताया था। जिन महाराज श्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते थे। वह महापुरूष कह रहा था कि ... पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिए पैसे नहीं है। ज्ञात रहे कि ... परमपूज्यनीय डोंगरे महाराज जी ने उज्जैन में भी 1979 और 1980 में अपनी कथा कही थी। महाकाल मंदिर प्रांगण में। तब उनकी कथा के दौरान लगभग 16 लाख रूपया एकत्रित हुआ था। मगर वह पूरी राशि मंदिर को ही दान कर गये थे। इसीलिए तो आज प्रसंगवश यह लिखने पर मजबूर है कि ... कभी ऐसे भी होते थे असली कथावाचक ...!       

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एक हुनर है चुप रहने का, एक ऐब है कह देने का !

किरकिरी ...

इज्जत की किरकिरी कैसे होती है। इसका दर्द क्या होता है। अगर इसका पता करना है। तो किसी दमदमा वाले जनप्रतिनिधि से पूछो। जो कि गांव के विकास का दावा करते है। लेकिन इनकी इज्जत,दमदमा मुख्यालय में 2 कौडी की नहीं है।  हालांकि यह सभी कमलप्रेमी है। लेकिन इसके बाद भी इनकी सुनवाई नही होती है। सत्ता में रहकर बेइज्जती झेलना ... खून के आंसू पीने जैसा होता है। बेचारे ... अपने मामाजी को हेलीपेड पर ज्ञापन दे चुके है। घमंडी मैडम को हटाओं- हमारी इज्जत बचाओं। मगर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अभी फिर मामाजी आये थे। एक बार फिर ज्ञापन थमा दिया। किन्तु होना कुछ भी नहीं है। अपनी घमंडी मैडम का प्रभाव राजधानी तक है। इसीलिए तो कमलप्रेमी जनप्रतिनिधियों की किरकिरी हो रही है।  यह सब सोच रहे है। मामाजी के बाद आखिर किसको गुहार लगाये। यही सोचकर चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

ऑफर ...

5 पेटी का ऑफर एक फूलपेंटधारी ने दिया है। जिसको दिया गया है। उसने एक आपत्ति लगा रखी है। जिसके चलते फूलपेंटधारी के व्यवसायिक भवन का सौदा नहीं हो पा रहा है। जिसकी दो मंजिले अवैध रूप से निर्मित है। बिडला अस्पताल के समीप यह भवन है। जिसका सौदा हो चुका है। खरीददार ने एडवांस भी दे दिया है। अब रजिस्ट्री होना है। लेकिन आपत्ति के चलते सौदा खटाई में है। इसीलिए आपत्तिकर्ता को 5 पेटी का ऑफर दिया गया। लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया। अब देखना यह है कि यह ऑफर 10 पेटी में कब बदलता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

दु:खी ...

अपने ढीला-मानुष से कमलप्रेमी दु:खी है। उनकी एक आदत के कारण। जिसकी कमलप्रेमियों में खूब चर्चा है। कमलप्रेमियों का ऐसा कहना है। हेलीपेड पर जब मामाजी आते है। तो संगठन के कई छोटे पदाधिकारी मौजूद रहते है। जिनका अपने मामाजी से परिचय कराना ढीला-मानुष का दायित्व है। लेकिन ढीला-मानुष इसके उलट काम करते है। वह खुद तो मामाजी का स्वागत कर लेते है। मगर जब कार्यकर्ताओं की बारी आती है। तो प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई पार्टी कार में जाकर बैठ जाते है। अपने कमलप्रेमी अपना यह दुखडा कई दफा सुना चुके है। किन्तु अपने ढीला-मानुष को कोई फर्क नहीं पडता है। वह सुनकर चुप हो जाते है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

बहाली ...

शिवाजी भवन के बहुचर्चित सहायक यंत्री की बहाली हो गई है। इस महीने के अंत में उनकी सेवानिवृत्ति है। उनका बहाली आदेश गुरूवार की रात को निकला। जब अपने मामाजी का आगमन हुआ था। मामाजी के शहर छोड़ऩे के बाद आदेश निकाला गया। ऐसा शिवाजी भवन के सूत्र बोल रहे है। फिलहाल बहाली आदेश को गोपनीय रखा गया है। देखना यह है कि यह आदेश कब तक गोपनीय रहता है। तब तक हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहते है।

165/6 ...

यह एक धारा है। जिसके अंतर्गत आदिवासियों की जमीन के मामले सुलझाये जाते है। आदिवासी की जमीन खरीदने/ बेचने में इसका उपयोग होता है। अपने 7 जिलो के मुखिया ने इसके अधिकार अभी तक अपने मातहत आयुक्त को दे रखे थे। लेकिन पिछले दिनों उन्होंने अचानक 165/6 से जुड़ी सभी फाइले तलब कर ली। मातहत आयुक्त से अधिकार भी वापस ले लिया। अब सवाल यह है कि 7 जिलो के मुखिया ने यह कदम क्यों उठाया? क्या 165/6 में कोई भ्रष्टाचार हो रहा था। जो उन्होंने अचानक यह कदम उठाया। इसको लेकर मेला कार्यालय में सभी चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

फरमान ...

अपने मंदिर वाले इंदौरीलाल जी कभी भी- कुछ भी फरमान जारी कर देते है। जैसे अभी शुक्रवार को जारी कर दिया। अब वीआईपी दर्शन व्यवस्था का टिकिट ऑनलाइन ही मिलेगा। साहब का यह  तुगलकी फरमान था। तो पालन शुरू हो गया। लेकिन 1-2 घंटे के अंदर ही व्यवस्था ध्वस्त हो गई। हाहाकार मच गया। जनता परेशान हो रही थी। तब किसी ने प्रबंध समिति के मुखिया को फोन पर वस्तुस्थिति बताई। मुखिया ने तत्काल कदम उठाया। अपने इंदौरीलाल जी को  फटकार लगा दी। फिर ऑफ लाइन टिकिट शुरू हुई। तब व्यवस्था सुधरी। ऐसी चर्चा मंदिर के गलियारों में सुनाई दे रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

ठेका ...

मंदिर का एक कर्मचारी है। जो पिछले 2 दशक से प्रोटोकॉल में सेवा दे रहा है। वेतन भी अधिकतम 20 हजार है। मगर उन्होंने शराब की दुकान का ठेका ले लिया है। 12 खोखे का ठेका है। यह ठेका, माँ चामुंडा की नगरी में लिया है। सवाल यह है कि अदना सा कर्मचारी आखिर 12 खोखे का ठेका कैसे ले सकता है। मंदिर के गलियारों में ऐसी चर्चा है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

वीआईपी ...

मंदिर प्रबंध समिति ने निर्णय लिया था। गर्भगृह और महाकाल लोक सभी के लिए बंद रहेगा। गर्भगृह नियम का कैसे पालन हुआ। यह तो सभी पता है। मगर हम बात कर रहे है, महाकाल लोक की। जिसकी तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। अंदरखाने की खबर है। बंद के दौरान भी अधिकारियों के रिश्तेदारों हेतु महाकाल लोक हमेशा खुला रहा है। ई-कार्ट में बैठाकर इन रिश्तेदारों को घुमाया गया। जबकि आम जनता को रोका गया। नियम का पालन तो ऐसे ही होता है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

 बुरे फंसे ...

एक कवि ह्द्य अधिकारी बुरे फंस गये है। बालीवुड सुपर स्टार बिग-बी के साथ उनकी फोटो अकसर देखने में आती है। सोशल मीडिया पर। खुद को हमेशा नियम कायदे का पक्का बताते है। मगर, खुद के भवन निर्माण में उन्होंने सारे नियम कायदों को ताक में रख दिया। नियमानुसार एमओएस छोडऩा भी जरूरी नहीं समझा। उल्टे अपने पड़ोसी से विवाद कर बैठे। अपने अधिकारी होने का रूतबा दिखाया। नतीजा ... हेल्पलाइन पर शिकायत हो गई। शिकायत शिवाजी भवन तक पहुंची। तो दबंग मैडम ने नोटिस जारी कर दिया। अब मकान बनने से पहले ही टूटना तय हो गया है। देखना यह है कि कवि ह्द्य अधिकारी क्या जुगाड लगाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

सुगबुगाहट ...

कमलप्रेमियों में सुगबुगाहट है। मिशन-2023 को लेकर। कयास लगाये जा रहे है। जल्दी ही प्रदेश में गुजरात फार्मूला लागू हो सकता है। तर्क दिया जा रहा है। अभी-अभी इंदौर में संपन्न हुई संघ की बैठक को लेकर। जिसमें मामाजी अपेक्षित नहीं थे। हालांकि उस दिन मामाश्री पूरे दिन अलर्ट रहे। स्टेट हैंगर पर निर्देश थे। कभी भी चलना पड सकता है। लेकिन बुलावा नहीं आया। कमलप्रेमी यह भी बोल रहे है। संगठन में भी बदलाव हो सकता है। अपने 2 नम्बरी इंदौरी नेताजी को संगठन का मुखिया बनाया जा सकता है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल का भी पुर्नगठन होना है। जिसमें अपने मामाजी की इंट्री हो सकती है। ऐसे कयास अपने कमलप्रेमी लगा रहे है। मगर फिलहाल यह सब दूर की कौडी है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

खोज ...

हमारे पाठकों को अपने चाचा चौधरी जी तो याद होंगे। हेलीपेड की घटना भी याद होगी। अपने 2 नम्बरी इंदौरी नेताजी ने उनके सामने प्रस्ताव रखा था। अपने लिए कोई विधानसभा सीट खोज लो। टिकिट मैं दिलवा दूंगा। इस घटना को इन दिनों पड़ोसी संभागीय मुख्यालय पर याद किया जा रहा है। दबी जुबान से अधिकारी चर्चा कर रहे है। मिशन-2023 में नम्बर-1 अधिकारी अपनी किस्मत आजमा सकते है। नम्बर- 1 कभी महाकाल नगरी के भी मुखिया रह चुके है। फिर 14 महीने का वनवास भोगा। जैसे ही अपने मामाजी पॉवर में आये। उनको पुन: देवी अहिल्या नगरी की जिम्मेदारी दी गई। वही नम्बर-1 अब राजनीति में अपनी किस्मत आजमाना चाहते है। कहां से लडना है। इसकी खोजबीन हो रही है। देखना यह है कि ... यह बात सच निकलती है या झूठ। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

100 बनाम 1000 ...

अपने युवा स्वागत प्रेमी जी के गणित की चर्चा इन दिनों युवा कमलप्रेमी कर रहे है। पहले 100 रूपये की बात करते है। अभी-अभी एक रैली निकाली थी। जिसमें अच्छी संख्या थी। इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। इतनी संख्या हो जायेगी। रैली सफल होने के बाद युवा कमलप्रेमी खोजबीन में जुट गये। तो पता चला कि ... रैली में शामिल होने के लिए 100-100 रूपये दिये थे। पेट्रोल के नाम पर। इसी कारण संख्या बढ गई थी। अब बात 1 हजार वाली। जिसका संबंध राजधानी की यात्रा से जुड़ा है। ऊपर से आदेश थे। अपनी-अपनी टीम के साथ युवा संवाद में हाजिर होना है। स्वागत प्रेमी को टीम के 26 लोगों को ले जाना था। इतना खर्चा कौन करता। इसलिए रास्ता निकाला। फरमान जारी किया। जो भी हजार-हजार देगा..वही साथ चलेगा। कुल 21 लोग राजी हुए। कमंडल वालो ने तो सीधे हाथ ऊंचे कर दिये। जिन्होंने राशि दी... उनको राजधानी लेकर गये। ऐसा युवा कमलप्रेमी बोल रहे है। बात उनकी सच ही होगी, मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

मेरी पसंद ...

तंग आकर गलतबयानी से/ हम अलग हो गये कहानी से/ आदमी-आदमी का दुश्मन है/ अब सियासत की मेहरबानी से... !